“ये क्या बेटा बाहर से आए हो कपड़े तो बदल लो… आते ही आराम कुर्सी पर आराम फ़रमाने लगे… देखरही हूँ दिन प्रतिदिन तुम बिगड़ते जा रहे हो।” ग़ुस्से में नयना अपने बेटे आदि के कपड़े बदलने की जुगत करती बोली
तभी उसने देखा देवरानी अदिति की बेटी इरा खुद ही कपड़े बदल कर अपनी सैंडिल शू रैक में रखने जा रही थी जो आदि से बस एक साल ही छोटी थी।
काश मेरी भी बेटी होती नयना ये सोच रही थी….. नयना ऐसा बिल्कुल नहीं सोचती अगर उसकी सासु माँ करूणा जी बेटा बेटी के बीच कभी अंतर ना करती पर नयना भी क्या करें औलाद के मोह के कारण वो सब सह रही थी आखिर अपने बच्चे को कितना डांट डपट करे जब वो नहीं सुनता तो उसके काम उसे ही करने पड़ते और जरा सी डांट लगा दे तो सास के कोप की भाजन बनना पड़ता था ।
सास करुणा जी दो बेटे की माँ ….और उन्हें इस बात का बहुत घमंड है कि मेरे दो दो बेटे है… बेटों को उन्होंने कभी भी घर के किसी काम में हाथ तक लगाने नहीं दिया..जो भी काम होता खुद ही करती …शादी के बाद बहुओं से करवाती … मजाल है जो कभी बेटों ने एक गिलास पानी तक खुद से लेकर पिया हो…कभी कभी बहुओं को कोफ़्त भी होती ऐसा भी क्या ग़ुरूर की एक काम ना करने देती…औलाद को बिगाड़ने और सुधारने का श्रेय तो माँ को ही दिया जाएगा पर यहाँ पर तो करुणा जी ऐसा ताना बाना बना कर रखी थी कि बहुएँ चाह कर भी अपनी औलाद के लिए कठोर कदम उठा नहीं सकती थी।
संजोग से बड़े बेटे की पहली संतान भी बेटा ही हुआ तो उनकी अकड़ और बढ़ गई थी…. बड़ी बहू नयना ऐसे घर से आई थी जहां सब मिल जुल कर सारे काम करते थे ….वो चाहती थी अपने बेटे को भी वो सभी काम करना सीखाएँगी पर जब वो कोशिश करती और फिर अगर सासु माँ देख लेती तो शुरू हो जाती,“ ये क्या नयना बहू मेरे पोते से काम करवा रही हो… ख़बरदार जो इसे कुछ भी करने को कहा…आजा मेरा लल्ला दादी के पास… ।”और बस लाट साहब आदि की तो ऐश हो जाती
छोटी बहू अदिति को करूणा जी की इस आदत से दुख ज़रूर होता था पर वो समझती थी कि आज नहीं तो कल इरा को ये सब करना ही होगा तो क्यों ना ये नींव बचपन से ही रखी जाए तो अच्छा ही है…और वो अपनी बेटी को सब कुछ करने के लिए भी कहती और करवाती भी थी ।
करूणा जी के इस भेदभाव का असर सात साल की इरा पर भी हो रहा था वो हमेशा अपनी मम्मी से कहती,” मम्मा दादी अदू भाई को कुछ करने को क्यों नहीं बोलती है…मुझे कहती है अपना काम करना आना चाहिए… स्कूल से आओ तो बैग जगह पर रखो… टिफ़िन निकाल कर रखो… जूते शू रैक में रखो… पर उसको कुछ नहीं बोलती … उसके सारे काम ताई जी को ही करने पड़ते है ।”
” बेटा ये बताओ तुम्हें ये सब काम करने में दिक़्क़त होती… या फिर तुम ख़ुद कर लेती हो मुझे तुमसे कुछ कहना नहीं पड़ता या फिर मेरा काम हल्का हो जाता ये तुम्हें बुरा लगता… अगर ऐसा है तो कल से मैं तुम्हारे सारे काम कर दूँगी।”अदिति इरा को समझाते हुए बोली
“ नहीं मम्मा… आप ताई जी की तरह परेशान रहो वो मैं नहीं करूँगी ।” कह इरा अदिति के गले लग गई थी
नयना और अदिति आपस में करूणा जी के मन से ये भेद मिटाने की जुगत में रहती पर करूणा जी कुछ सुनने को तैयार ही नहीं होती थी ।
एक दिन करूणा जी कुछ खा रही थी… अचानक उनके गले में खाना अटक गया… दोनों बहुएँ बाहर रेहड़ी पर सब्ज़ी लेने गई हुई थी पास में आदि खेल रहा था…,“ अदू पानी दे बेटा ” करूणा जी दो तीन बार बोली
“ खुद से ले लो … मैं नहीं देता पानी …. ” कह आदि खेलने में व्यस्त रहा
“ लो दादी पानी पी लो….” दौड़ती हुई इरा गिलास में पानी लेकर आई और करूणा जी को दे दी
” अदू भाई दादी को पानी क्यों नहीं दे रहे थे… उन्हें कुछ हो जाता तो…!” दादी की पीठ सहलाते हुए इरा ने कहा
आदि अनसुना कर मुँह टेढ़ा कर के फिर खेलने लगा।
तभी दोनों बहुएँ अंदर आ गई और इरा की बात सुन करूणा जी को देख रही थी ।
आज पहली बार करूणा जी पोती को प्यार भरी नज़रों से देखते हुए नयना से बोली,“ बहुत हो गया बेटे की माँ बन कर रहना… अब से इरा के साथ साथ आदि को भी अपने काम करना सीखाना बड़ी बहू… आज मेरी हालत देख कर भी मेरे पोते को फ़र्क़ ना पड़ा शायद ये मेरे ही ज़्यादा लाड़ का गलत असर है… औलाद के मोह में या कहो बेटे के मोह में मैं अब तक शायद सब गलत ही करती आ रही थी…अब से आदि और इरा दोनों को बराबर उनके हिसाब से सब कुछ सीखना होगा…. ना जाने कब किसे किसकी ज़रूरत पड़ जाए।”
नयना और अदिति एक दूसरे को देख कर मुस्कुरा दी…. वो भी तो यही चाहती थी…. आदि शुरू शुरू में तो बहुत नखरे करता रहा पर अब तो उसकी साइड लेने वाली दादी भी सख़्त हो गई थी… परवरिश का नतीजा देख कर करुणा जी के कहेनुसार उसे भी अब वो सब काम करने पड़ रहे थे जो सारी औलादों को करनी चाहिए ।
दोस्तों औलाद के मोह में बहुत कुछ सह लिया जाता है पर जब अति होने लगे तो सही राह दिखाना भी जरूरी होता है….सच यही है आज के समय में अपने सभी बच्चों को काम सीखाना जरूरी है ….. और आज के समय की माँग भी यही है कि आप अपने बच्चों में भेद ना करें बल्कि उन्हें ज़िम्मेदार और लायक़ बच्चा बनाने का प्रयास करें।
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धन्यवाद
रश्मि प्रकाश
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