बेटे की चाहत – शिव कुमारी शुक्ला : Moral Stories in Hindi

विधी एक के बाद एक तीन बेटियो की मां बन गई।तीसरी बेटी के जन्म के समय वह जरूर मायूस हुई कि भगवान एक तो बेटा दे देते जो मेरा परिवार पूरा हो जाता खैर जैसी तेरी इच्छा प्रभू जो दिया वह सहर्ष स्वीकार है और वे मनोयोग पूर्वक अपनी तीनों परियों सी सुंदर बेटियों के पालन पोषण में जुट गईं।

अब उन्होंने बेटे का ख्याल मन से निकाल दिया। किन्तु छोटी बेटी के दो साल की होते ही उनकी सास ने फिर बेटे का राग अलापना शुरू कर दिया। वंश बेल को आगे बढ़ाने के लिए एक बेटे की तो आवश्यकता है ही सो बहू तू एक बार और प्रयास कर।

अब विधि की शारीरिक क्षमता जबाब दे चुकी थी कारण सात व्यक्तियों के काम का बोझ उनके ही कन्धों पर था सो वे अब और बच्चा पैदा करने से कतरा रहीं थीं। उनके पति श्रेयस जी ने भी अपने मम्मी-पापा को बहुत समझाया कि जो है उसी में सब्र करो। बेटियां ही बुढ़ापे का सहारा बनेंगी उन्हें ही पढ़ा लिखा कर योग्य बना अपने पैरों पर खड़ा करेंगे।

मम्मी अब विधि की सेहत भी अच्छी नहीं है यदि उसे कुछ हो गया तो इन बच्चों का पालन पोषण कैसे होगा सो अब जो हैं उन्हें ही सम्हालने दो। किन्तु मां की सुबह-शाम, रात -दिन बेटे बेटे की गुहार ने उनका जीवन दूभर कर दिया और फिर उनके मन में भी दबी आस ने उन्हें एक बार फिर संतानोत्पत्ति के लिए प्रेरित किया।इस बार सबकी इच्छा पूर्ति हो गई

और घर में बेटे की किलकारियां गूंजने लगीं। शायद उन पर ऊपर वाले को भी दया आ गई और उनकी प्रतीक्षा पूरी हुई।अब तो दादा दादी, मम्मी-पापा का पूरा ध्यान बेटे पर केंद्रित हो गया। बेटियां उपेक्षित होने लगीं।बेटा लाड़ प्यार में कुछ ज्यादा ही अपेक्षित हो गया। अब हर चीज जो उसे चाहिए होती मुहैया कराई जाती।

उसमें उन्हें अपना भविष्य नजर आता, बुढ़ापे का सहारा दिखता। सारी अधूरी इच्छाओं की पूर्ति का साधन दिखता है वहीं बेटियां अब उन्हें पराया धन लगतीं जिनसे शादी कर जल्दी छुटकारा पाना चाहते थे।सब बच्चे पढ़ने में होशियार निकले।दो बड़ी बेटियों ने इंजीनियर बनने की राह पकड़ी वहीं छोटी बेटी ने सी ए बनना चाहा और अपनी इच्छानुसार पढ़ाई

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कर अच्छी नौकरीयां पा लीं। फिर मम्मी-पापा ने उनकी शादीयां कर उन्हें जीवन में व्यवस्थित कर दिया।अब पूरे परिवार का आकर्षण का केंद्र बेटा साहिल था जो उनकी जीवन रुपी नैया को किनारे लगाने वाला था। सहिल भी इंजीनियर बन एक एम एन सी में मैनेजर के पद पर आसीन हो गया। परिवार में खुशी का माहौल था।वह अपनी नौकरी पर हैदराबाद चला गया।इस बीच दादा-दादी भी नहीं रहे।

नौकरी लगते ही साहिल का मिजाज बदल गया अब वह केवल अपने बारे में ही सोचता । मम्मी-पापा से उसे जैसे कोई मतलब  ही नहीं था। पापा भी सेवा निवृत्त हो चुके थे।लोन जो बेटे की पढ़ाई और बेटियों की शादी के लिए लिया था उसकी किश्त चुकानी भारी पड़ रही थी।एक दिन उन्होंने फोन पर बेटे से कहा कि लोन चुकाने में कुछ मदद करो।

उसका टका सा जवाब सुन वे हतप्रभ रह गए। पापा अभी तो मेरे को स्वयं ही सैटल होना है आपको कहां से भेजूं। जब आपके पास पैसे नहीं थे तो लोन लेने की क्या जरूरत थी।अब आपकी आप जानो कह फोन रख दिया।

सुना विधि बेटे का जवाब लोन लेने की क्या जरूरत थी अरे छोटी सी नौकरी में , मैं लोन न लेता तो क्या करता। कैसे सबको पढ़ाता लिखाता, शादी व्याह करता। विधि भी बहुत दुखी हो गई।

पांच माह बाद वह घर आया तो कुछ पैसे साथ लाया और मम्मी को देते हुए बोला ये रख लो मां आपके पास जितना है उसी में गुजर करना सीखो ज्यादा हाथ पैर फैलाने की जरूरत नहीं है।अब बुढ़ापे में आपको क्या करना है जो पैसों की जरूरत है ‌। पापा की पेंशन आती तो है।

पहले तो विधि जी चुप चाप उसकी बातें सुनतीं रहीं फिर बोलीं और जो कर्ज लेकर 

तुम्हारी पढ़ाई करवाई थी उसे कैसे चुकाएं।

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कर्ज लेने को आपसे किसने कहा था।

तो क्या तुझे बिना पढा लिखा रखते। कहां से देते इतनी फीस। अभी तो तेरी शादी भी करनी है उसमें भी खर्च होंगे।

ठीक है मम्मी शादी को लेकर आप ज्यादा परेशान न हों।

कुछ समय बाद उसने अपने साथ ही काम करने वाली लड़की पसंद कर ली। वह शहर में ही पली बढ़ी लड़की थी अतः उसने पहले ही शर्त रख दी कि वह शादी के बाद कभी गांव नहीं जाएगी।उसे गांव का माहौल बिल्कुल पसंद नहीं है।वह पैसे वाले माता-पिता की इकलौती संतान थी।

सो हैदराबाद में ही शादी करना निश्चित हो गया। सारी जिम्मेदारी लड़की तुरही के माता-पिता ने सम्हाल ली।

विधि जी ,श्रैयस जी एवं उनकी बेटियां अवांछित मेहमान के रूप में शादी में आए और मूकदर्शक बने सब देखते रहे। शादी के बाद तुरही ने उन्हें वह मान सम्मान नहीं दिया जिसकी उन्हें अपेक्षा थी।वे चुप चाप अपने घर लौट गए चार दिनों बाद ही।न बेटे ने उनसे रुकने को कहा। बेटियां तो दूसरे दिन ही चली गईं थीं। ट्रेन में बैठे दोनों पति-पत्नी के बीच चुप्पी छाई थी। दोनों के मन में मंथन चल रहा था। क्या इसीलिए बेटा चाहा था।

विधि जी बोलीं बेटे की शादी को  लेकर क्या-क्या अरमान दिल में संजोए थे सब धरे के धरे रह गए। ये हमें किस बात की सजा मिली। हमनें तो साहिल को संस्कार देने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। हमने तो अपने बड़ों को कितने सम्मान पूर्वक रखा था। क्या साहिल सब भूल गया।

मम्मी-पापा के बार-बार कहने पर वह दीवाली पर तुरही के साथ घर आया। तुरही ने घर में।घुलने -मिलने  की कोई कोशिश नहीं की।चार दिन रहकर बापस जाने लगे तो पापा बोले अब कब आओगे बेटा।

वह दो टूक बोला मम्मी अब मेरी भी घर गृहस्थी बस गई है तुरही मेरी जिम्मेदारी है। क्या यहां बार-बार आकर मैं समय और पैसा नष्ट करता रहूंगा।आप लोगों की समस्या क्या है आराम से रहो।

अब विधि जी से नहीं रहा गया बोलीं समस्या क्या है ‌हमने तूझे इतने प्यार से, जतनों से पाला पोसा और तू इस कल की आई के लिए हम सबको छोड़कर जा रहा है। हमने तुझमें अपने बुढ़ापे का सहारा देखा, तेरे साथ रहने की सुखद कल्पना की थी। पोते -पोती के साथ खेलते हुए सुखमय जीवन की आकांक्षा कर बैठे थे। क्या अब हम तुम्हारे कुछ नहीं रहे।

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मम्मी अब ये भावनात्मक ब्लेक मेल करना बंद करें मेरी जिम्मेदारी की प्राथमिकताएं बदल गईं हैं कह‌ वह दोनों चले गए।

जब बेटियों को यह सब पता चला तो उन्होंने अपनी जिम्मेदारी निभानी शुरू की। तीनों ने मिलकर पापा का लोन चुकाया ‌बारी-बारी से उनके पास आतीं ताकि उन्हें अकेलापन महसूस न हो। कभी अपने साथ ले जातीं वहां बच्चों के साथ वे बहुत खुश रहते ।

एक दिन श्रेयस जी बोले विधि बुढ़ापे का सहारा केवल बेटा ही नहीं होता बल्कि लायक बेटियां भी होतीं हैं।देखो हमारे बेटी- दामाद, बच्चे कैसे हमारा पूरा ध्यान रखते हैं।किस सुख की कल्पना में हमने बेटे की चाहत की थी।

शिव कुमारी शुक्ला 

14-2-25

स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशित 

बेटा इतने जतनों से*****हम सबको छोड़कर जा रहा है

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