आज मनोहर लाल जी की सबसे छोटी पुत्री तानिया का विवाह था। आज उनकी सारी जिम्मेदारियां पूर्ण होने वाली थी।मनोहर लाल जी के तीन बच्चे थे,दो पुत्रियां सारिका और तानिया तथा एक पुत्र रोहित।तानिया उनमें सबसे छोटी थी। अभी दो साल पहले ही उन्होंने अपनी पत्नी सुप्रिया जी को कैंसर ग्रस्त होने के कारण खो दिया था।
आज सबसे छोटी बेटी की शादी एक सुयोग्य वर से होने से उनके चेहरे पर काफ़ी संतुष्टि के भाव थे। शादी की रस्में चल ही रही थी पर उनके बेटे और बहू का कहीं भी अता-पता नहीं था।
वैसे भी घर की सारी जिम्मादारियों से तो वो बहुत पहले ही मुंह मोड़ चुके थे पर आज के इस शुभ अवसर पर भी दोनों का उपस्थित ना होने से शादी में निमंत्रित अन्य लोगों को भी बातें बनाने का एक मौका मिल गया था।
पूरी शादी में नाती रिश्तेदार जान-बूझकर रोहित का ज़िक्र जरूर छेड़ने की कोशिश करते। कई लोग तो दबी जबान में ये भी कह रहे थे कि शादी की कुछ रस्मों में तो भाई की जरूरत पड़ती ही है।
वैसे भी जब अपना सगा बड़ा भाई है तो ऐसी क्या वजह हो गई कि एक ही शहर में रहते हुए वो अपनी छोटी बहन के विवाह में भी सम्मिलित नहीं हुआ। जितने मुंह उतनी ही बातें पर कोई भी कार्य कभी किसी खास की अनुपस्थिति से भी रुकता नहीं है और यही दुनिया की रीत है।
तानिया के विवाह में जिस भी रस्म में भाई की जरूरत पड़ रही थी,वहां उसकी बड़ी बहन सारिका के पति अनुराग बिल्कुल बड़े भाई की तरह उस रस्म को पूर्ण कर रहे थे। पूरे विवाह में ऐसे कई पल आए जहां मनोहर जी के बड़े दामाद ने बेटे की भूमिका अदा की।
यहां तक कि जब कन्यादान का समय आया तब भी मनोहर जी की आखें दरवाज़े पर लगी थी कि शायद अब तो बेटा-बहू आ जाएं पर वो नहीं आए। ऐसे में बड़ी बेटी और दामाद ने कन्यादान की रस्म खुशी-खुशी निभाई। भाई और भाभी का ना आना लोगों की उत्सुकता तो बढ़ा रहा था पर शादी का सारा कार्य अच्छे से निबट गया था।
यहां तक कि तानिया के ससुराल वाले भी मनोहर जी की आवभगत से खुश थे उन्होंने भी उनसे बेटे के ना आने पर कोई प्रश्नचिन्ह नहीं लगाया था।
मनोहर जी जहां एक तरफ सब कार्य अच्छी तरह से निबटने पर खुश थे वहीं बेटे और बहू के शादी में उपस्थित ना होने की वजह से मन ही मन अपने आपको टूटा हुआ महसूस कर रहे थे। तानिया को विदा करके जब वो अपने घर पहुंचे तब अधिकतर रिश्तेदार तो मंडप से ही जा चुके थे बस कुछ खास रिश्तेदार और बड़ी बेटी दामाद उनके साथ थे।
बड़ी बेटी सारिका ने उन्हें ज़िद करके थोड़ी देर आराम करने भेज दिया था। वो आराम करने गए तो थे पर बेटे के बहन के ही विवाह में ना आने की व्यथा ने उनके दिल को क्षोभ से भर दिया था। नींद उनकी आंखों से ओझल थी। लेटे-लेटे वो अपने अतीत के उन पलों में पहुंच गए जब तानिया का जन्म हुआ था।
हालांकि उनके एक बेटा और बेटी पहले से थे पर अपनी मां के बार-बार ये कहने पर कि दो बेटे तो होने हो चाहिए, उन्होंने तीसरा बच्चा पैदा करने के निर्णय लिया था। वैसे तो मनोहर जी और सुप्रिया जी दोनों ने ये भी सोचा था कि बेटा या बेटी जो भी होगा वो दोनों का ही स्वागत खुले मन से करेंगे।
इस तरह तानिया का उनकी तीसरी संतान के रूप में जन्म हुआ। तानिया के जन्म के बाद उनकी माता जी का रोहित के प्रति लगाव और भी ज्यादा बढ़ गया था। वो उसके अकेला लड़का होने की वजह से सारी मांगें और ज़िद पूरी करने से नहीं झिझकती थी।बस ऐसे ही करते-करते रोहित पूरी तरह हाथ से निकलने लगा था।
कई बार मनोहर जी ने अपनी मां को समझाने की कोशिश भी करते पर इसका उन पर कोई फर्क नहीं पड़ता था। वक्त आगे बढ़ता रहा जहां मनोहर जी की बड़ी बेटी सौम्यता और विनम्रता की प्रतिमूर्ति थी वहीं छोटी तानिया पढ़ाई-लिखाई में बहुत अच्छी थी।
बड़ी बेटी की शादी होने के बाद उसने अपने व्यवहार से ससुराल वालों का भी दिल जीत लिया।जहां बड़ी बेटी की शादी उन्होंने और उनकी पत्नी ने बहुत देखभाल के अपने जैसा ही घरबार देखकर की थी वहीं रोहित अपने लिए खुद ही लड़की पसंद करके शादी कर लाया था।
मनोहर जी और उनकी पत्नी को लड़की के परिवार के विषय में कुछ जानने पहचाने का भी अवसर नहीं मिला था। फिर भी समाज की नज़रों में अपने परिवार की इज्ज़त बनाए रखने के लिए उन्होंने उसकी शादी का बहुत बड़ा आयोजन किया था।
रोहित की शादी के बाद घर की तो जैसे शान्ति ही चली गई थी। आए दिन रोहित की पत्नी सुप्रिया जी और तानिया की किसी भी बात का बतंगड़ बनाकर झगड़ती रहती। रोहित भी सब जानते हुए अपनी ही पत्नी का पक्ष लेता। ये सब ऐसे ही चल रहा था कि सुप्रिया जी बहुत बीमार पड़ गई।
उनकी जांच कराई गई तो उनको तीसरी अवस्था का कैंसर निकला। मनोहर जी और बेटी तानिया बहुत परेशान हो गए। डॉक्टर ने बताया कि कीमोथेरेपी चलेगी, जिससे उनके बचने की कुछ संभावना है। अब बीमारी ही ऐसी थी कि चिकित्सा का खर्चा भी काफ़ी आना था। जब वो घर आए बेटे रोहित और उसकी पत्नी ने खूब हंगामा किया।
दोनों का कहना था कि जब इस बीमारी का कोई इलाज़ ही नहीं है तब मां पर पैसा पानी की तरह बहाने का क्या फ़ायदा है। मनोहर जी उन लोगों की ऐसी बातें सुनकर सुन्न पड़ गए। अभी तक सुप्रिया जी को उनकी बीमारी का पता नहीं था पर दोनों की घिनौनी बातों और हंगामा करने की वजह से उनको भी आभास हो गया कि अब उनकी मृत्यु नजदीक है।
उन्होंने मनोहर जी और छोटी बेटी तानिया को बुलाकर कहा कि रोहित और बहू ठीक ही तो कह रही हैं, जब मेरी ज़िंदगी ज्यादा दिन की बची ही नहीं है तो क्यों बेकार मेरे ऊपर इतना खर्च करना। मां की ऐसी हालत देखकर तानिया के आंसू निकल आए और उसने कहा मां अब तो मेरी भी बैंक में अच्छी नौकरी है।
मैं आपका अच्छे से अच्छा इलाज़ करवाऊंगी और देखना आप जल्दी ही ठीक हो जायेंगी। बेटी की ममत्व भरी बातों ने सुप्रिया जी के जख्मों पर मरहम का काम किया। उधर रोहित और उसकी पत्नी का घर में क्लेश करना जारी था।
अब उनका ये कहना था कि ऐसे नकरात्मक और बीमार वातावरण में वो नहीं रह पाएंगे इसलिए वो अलग होना चाहते हैं। असल में उन दोनों को ये भी लग रहा था कि कहीं सुप्रिया जी के इलाज़ के लिए उन्हें भी पैसा ना देना पड़ जाए।
मनोहर जी बेटा और बहू को पहले ही बड़े शॉपिंग मॉल में रेडीमेड कपड़ों की दुकान खुलवा चुके थे। एक तरह से दोनों अपना हिस्सा तो ले ही चुके थे इसलिए दोनों अपनी जिम्मेदारियों से बचना चाहते थे।मनोहर जी ने बड़े बेटी-दामाद और तानिया से सलाह करके उनको अलग कर दिया।
वैसे भी अब सबका पूरा ध्यान सुप्रिया जी को ठीक करने पर था। रोज़ रोज़ का झगड़ा उनकी तबियत को और भी खराब कर सकता था। बेटे-बहू के घर से चले जाने के बाद तानिया और मनोहर जी ने सुप्रिया जी की दवाई, खाने पीने से लेकर उनके रोजमर्रा की दिनचर्या का सारा ज़िम्मा ले लिया। बीच-बीच में बड़ी बेटी और दामाद ने भी अपनी तरफ से पूरा सहयोग दिया। prerak kahani in hindi
एक दिन सुप्रिया जी थोड़ा ठीक लग रही थी तब उन्होंने मनोहर जी से कहा कि ये हमारे समाज का दुर्भाग्य है कि हम लोग आज भी लड़की को पराया धन समझ जन्म होने पर दुखी होते हैं और बेटे की ही आस लगाए रखते हैं। जबकि देखा जाए तो लड़के पराया धन होते हैं।
बेटी तो शादी के बाद भी बेटी रहती है और अपनी ससुराल एवं मायके दोनों जगह समन्वय बनाकर रखती है। पर बेटा वो तो शादी के बाद कई बार बिल्कुल बदल जाता है और हम लोग उस समय भी उसको दोष ना देकर दूसरे घर से आई लड़की को दोष देते हैं। जबकि जब अपना ही सिक्का खोटा हो तो दूसरे से क्या शिकायत।
मनोहर जी, सुप्रिया जी के मन की हालत समझ रहे थे फिर उन्होंने बड़ी बेटी दामाद और तानिया को भी एक साथ अपने पास बुलाया। मनोहर जी कहा कि आज मैं ठीक हूं क्या एक तस्वीर हम सबकी नहीं होनी चाहिए। तानिया ने मां के साथ के उन पलों को सेल्फी में कैद कर लिया।वक्त पर तो किसी का वश नहीं चलता,शायद सुप्रिया जी को अपने आखिरी वक्त का आभास हो गया था।
उस रात वो हमेशा के लिए चिरनिद्रा में सो गई। उस समय भी बेशर्म बेटा-बहू सब कार्यों से दूरी बनाए रहे। इतना सब होने के बाद जब अब ये खुशी का पल आया तब भी बेटे रोहित ने छोटी बहन तानिया की शादी में ना आकर मनोहर जी को पूरी तरह व्यथित कर दिया था।
आज उनके कानों में बार बार सुप्रिया जी के वो शब्द बेटा होता है पराया धन गूंज रहे थे। वे ये सब सोच ही रहे थे कि इतने में बड़े दामाद ने आकर दरवाज़ा खटखटाया और कहा पापा, तानिया के पगफेरे की रस्म की तैयारी करनी है। वो अपनी सोच से बाहर आए। सबसे पहले उन्होंने भगवान से इतने अच्छे बेटी-दामाद देने के लिए धन्यवाद दिया।
अब मन ही मन उन्होंने निर्णय लिया कि तानिया के पगफेरे की रस्म पर आने के बाद वो सभी के सामने अपने कुछ निर्णय लिखित में सुनाएंगे जिसमें अपने अंतिम संस्कार का दायित्व अपने बेटी और दामाद को देकर जायेंगे। समाज और लोग क्या कहेंगे,इस डर को छोड़कर अब वो बेटे से अपने किसी भी दायित्व पूर्ति की उम्मीद नहीं करेंगे।
अब उन्होंने सोच लिया था कि वो जब तक जिएंगे तब तक अपनी सेहत का पूरा ख्याल रखेंगे। अपनी पेंशन से समाजसेवा,बागवानी और लेखन के शौक पूर्ण करेंगे। उनकी तो बेटियां उनका पूरा ख्याल रखती हैं पर कई लोगों के तो सभी बच्चे वृद्धावस्था आने पर उनको बेसहारा छोड़ देते है,ऐसे लोगों को भी वो एक साथ जोड़ने की कोशिश करेंगे। Moral stories
दोस्तों कैसी लगी मेरी कहानी,अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें। वैसे तो ये मेरे ही एक रिश्तेदार के साथ घटित परिस्थितियों का नाटकीय रूपांतरण है पर फिर भी कई लोगों को लग सकता है कि हर बार बेटी को ही अच्छा दिखाने की कोशिश क्यों की जाती है तो इस विषय में मेरा सिर्फ यही कहना है बात अच्छे बुरे की नहीं है, कमियां दोनों में हो सकती हैं पर आज भी हमारे समाज में दोनों की परवरिश में अंतर किया जाता है। अगर दोनों की परवरिश समान रूप से की जाए तो शायद ये समस्या ना आए।
#मासिक_अप्रैल
डॉ. पारुल अग्रवाल,
नोएडा
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