बेनाम रिश्ते – संध्या त्रिपाठी : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : काॅलबेल की आवाज सुनते ही मीता ने दुपट्टा ठीक करते हुए ..आ रही हूं कहा और दरवाजे की ओर बढ़ी… दरवाजा खोलते ही , एक लंबा चौड़ा युवक सामने मुस्कुराते हुए खड़ा था , असमंजस की स्थिति में पहचानने की कोशिश करती हुई मीता कुछ कहती इससे पहले ही युवक ने बड़े ही सहज भाव से कहा.. मैं स्वप्निल , शायद आप मीता…..

मीता की हड़बड़ाहट उसके चेहरे पर साफ दिखाई दे रही थी… सहज बनने की कोशिश करती हुई मीता ने अंदर आने का संकेत किया , सोफे पर बैठते ही मीता अतीत की स्मृतियों में ऐसे खो गई उसे कुछ सुध ही नही रहा । परत दर परत यादें ताजा होती गई …

स्कूल के दिनों की बात थी , मुहल्ले में ही स्वप्निल का घर था प्रतिष्ठित इंजीनियर का इकलौता बेटा था स्वप्निल । काफी धनी , स्मार्ट , पढ़ने में भी अव्वल पर स्वभाव से शांत, शर्मिला.. हम मुहल्ले के बच्चे शाम को लुका छुपी का खेल खेला करते थे ..मैंने अक्सर देखा जब भी स्वप्निल चोर बनता मुझे पहला टिप ( चोर) कभी नहीं बोलता था , पता नहीं क्यों ? कभी-कभी मैं खुद ही सामने आ जाती कि कोई मुझे पहला टिप बोले तो… पर जैसे ही चोर मुझ तक पहुंचने की कोशिश करता वो पहले ही सामने आकर मेरी रक्षा कवच बन जाता था …ये सिलसिला चलता रहा जिसे मैं भी भली-भांति समझ चुकी थी , और कहीं ना कहीं ये चीजें मुझे भी पसंद आ रही थीं ।

धीरे-धीरे समय बीतता गया.. पता ही नहीं चला , हम बड़े हो गए लुका छुपी का खेल भी बंद हो गया ।

मध्यम वर्गीय परिवार की कुछ मर्यादाएं और दोनों परिवार की असमानताएं हम सभी दोस्तों के मिलने में बाधा बनने लगी और हम सब दोस्तों का मिलना बंद हो गया । कुछ समय बात पता चला कि उनका तबादला हो चुका है , बस इसके आगे…..

…. आज स्वप्निल सामने खड़ा था….

मीता कहां खो गई ? अचानक स्वप्निल की आवाज ने मीता को अतीत की मधुर स्मृतियां से बाहर निकाला…. हां हां कहते हुए मुस्कुराती हुई मीता पानी लेने अंदर गई और वापस पति ( आकाश) के साथ लौटते हुए मीता ने स्वप्निल का परिचय कराया ।

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हां हां भाई , स्वप्निल का नाम मीता के मुख से इतनी बार सुना है और आज आपसे मिल भी लिया स्वप्निल ।

आपकी बातें करते हुए मीता के चेहरे पर एक संतोष एक खुशी और एक गर्व का मिला-जुला भाव स्पष्ट दिखाई देता था ।

मीता की बातों से इतना तो स्पष्ट था कि , स्वप्निल मीता के लिए दोस्त से ऊपर था , मैंने कई बार मीता से कहा भी ..जैसे और दोस्त थे वैसे ही स्वप्निल भी था ..शायद वो तुम्हारा ज्यादा ध्यान देता था , तुम्हारी फिक्र करता था इसलिए तुम्हें सभी दोस्तों से ज्यादा उसकी याद आती है । मतलबी हो तुम मीता… कहीं तुम्हारा ये रिश्ता मतलबी तो नहीं.. ये कहकर मीता को मैं हमेशा छेड़ता रहता था.. माहौल को हल्का खुशनुमा बनाने की भरपूर कोशिश की आकाश ने …

एक बात बताऊँ स्वप्निल.. आकाश ने थोड़ा गंभीर होते हुए कहा… कभी-कभी मुझे लगता भी था कहीं ये मीता का स्वप्निल के प्रति किशोरावस्था वाला आकर्षण तो नहीं , या दोनों के बीच प्यार तो नहीं था जो शायद अनकही और अनसमझी ही रह गई हो ।

पर मीता का बेबाक और निर्भीक हो एक ऐसे रिश्ते को जो बेनाम है , सम्मान देना वाकई काबिले तारीफ थी और मैं आप दोनों के इस बेनाम रिश्ते को सम्मान करता हूँ ।

कितना प्यारा रिश्ता है आप दोनों के बीच ….क्या हमारा हर रिश्ता नाम का मोहताज है ? कुछ रिश्ते बेनाम होकर भी बड़े नाम के होते हैं ।

पतिदेव द्वारा इस बेनाम रिश्ते को सम्मान व आदर देते देख मीता की नजरों में पतिदेव का मान और भी बढ़ गया ।

(स्वरचित मौलिक और सर्वाधिकार सुरक्षित रचना)

श्रीमती संध्या त्रिपाठी

#मतलबी रिश्ते

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