बेजोड़ अदाकारा – लतिका श्रीवास्तव

…..वो कोई अदाकारा नहीं है ना ही कहीं से उसने अभिनय की ट्रेनिंग ली है लेकिन उसका हर अभिनय बेजोड़ है कोई भी रोल दे दो बेहतरीन तरीके से निभाना आता है उसे…कभी भी किसी भूमिका को निभाने से इंकार नहीं किया उसने बल्कि अन्य किरदारों की भूमिका भी निभाने को सहर्ष निःशर्त  तैयार रहती है…कमाल है इतना सटीक अभिनय करती रही जीवन भर पर कोई भी पुरस्कार कभी नहीं मिला उसे….शायद किसी इनाम की कभी ख्वाहिश ही नहीं की थी उसने या अपने हर अभिनय को बखूबी त्रुटिरहित निभाने को ही अपना सबसे बड़ा पुरस्कार मानती रही जिंदगी भर दूसरों के लिए ही जीती रही अपने लिए अलग से जीना क्या होता है ये कल्पनातीत ही रहा उसके लिए….

उस दिन सुबह मैंने उसे जन्मदिन की बधाई दी तो हमेशा की तरह खुश होकर बातें की पर पता नही क्यों आज लाख छुपाने पर भी मुझसे उसका अनमनापन नहीं छिप सका था मेरे बधाई देने पर कहने लगी अरे अब मेरा क्या जन्मदिन ….जन्मदिन तो बच्चों का मनाया जाता है …बूढ़ी अम्मा का क्या जन्मदिन…!!कुछ तो था उसकी बात में उसकी टोन में जो मुझे विचलित सा कर गया उसका अभिनय मैं नही पहचानूंगी तो कौन पहचानेगा..!!मैं दोपहर तक उसके पास पहुंच गई ….बहुत खुश हो गई मुझे देख वो फिर भी कुछ उखड़ी उखड़ी बुझी बुझी सी लगी मुझे उसकी मुस्कान …!पिताजी हमेशा की तरह सुबोध अंकल के साथ शतरंज खेल रहे थे और मां उनके लिए चाय बना रही थी..!

मैंने उससे पूछा ..मां कुछ अपने लिए भी सोचो तुम्हें क्या पसंद है क्या शौक हैं कभी तो ध्यान दिया करो वो देखो मीना आंटी को लेख छपते हैं उनके पत्रिका में  जगह जगह स्टेज शो करती रहती हैं कविताएं सुनातीं हैं आप को भी कुछ करना चाहिए ….हमेशा की तरह मीठी सी मुस्कान आ गई थी उनके चेहरे पर…अरे बेटा  अब मेरे क्या शौक हैं क्या करूंगी मैं खुद ये जानकर ….और बताएगा भी कौन …मुझे खुद ही नहीं पता मुझे क्या पसंद है तुम सबकी पसंद ही मेरी पसंद रही है हां तुम सबको क्या पसंद है तुम्हारे पिता जी को क्या पसंद है ये पूछ लो तुम्हें तो सादा भोजन पसंद है पर दाल में प्याज और लाल सूखी मिर्च का तड़का होना ही चाहिए…. तेरे भाई को तो रोज खाने में मसाले दार सब्जी चाहिए और खाने के बाद कुछ मीठा खाए बिना तो उसको चैन नहीं कभी खीर कभी सेंवई कभी कस्टर्ड और गाजर का हलवा तो तुम सबका फेवरेट है अरे हां तेरे पिता को मूंग दाल की मांगोडी हर दूसरे दिन खानी रहती है…..पर साथ में हरी चटनी जरूरी है।




अगाध स्नेह उत्साह और चमकीली आंखों से सबकी पसंद बखानती मां को मैंने फिर टोक दिया बस करो मां मैने सबकी नहीं तुम्हारी पसंद पूछी है एक चीज तो बताओ जो तुम्हें खाने में सबसे ज्यादा पसंद है मैं आज तुम्हें बना कर खिलाना चाहती हूं मेरा दिल कर रहा है तुम्हें अपने हाथ की बनी कोई डिश खिलाऊं देखो तुम हमेशा हम सबके जन्मदिन पर हमारी मनपसंद ढेरों चीजे बनाती हो खिलाती हो पूरे मोहल्ले में बांटती हो आज तुम्हारा जन्मदिन है तुम बताओ तुम्हें क्या पसंद है …मुझे भी नहीं पता मेरी मां को खाने में क्या पसंद है कितने अफसोस की बात है ….याद करो आज तुम्हे बताना ही पड़ेगा मैं भी थोड़ी ढीट हो गई थी आज ..!

तब तक तुम टीवी पर अपना कोई मनपसंद कार्यक्रम देख लो बताओ कौन सा कार्यक्रम लगा दूं….फिर से मां सोच में पड़ गई थी…मेरी भृकुटी तनते देख फट से बोल पड़ी अरे वो छोटा भीम लगा दे….छोटा भीम !!वो तो चीनू और मिनी देखते हैं मां..!मैने कहा तो बोलने लगी हां बेटा दिन भर लगा रहता है तो मैं भी वही देखती रहती हूं दोनो बच्चों को बहुत पसंद है मैं तो उनके खुश चेहरे देख कर ही खुश होती रहती हूं …अच्छा है टीवी मेरे कमरे में लगा है..अरे तो इसमें तुम्हे क्या अच्छा है तुम तो देख ही नहीं पाती हो वही लोगवदेखते रहते हैं पूरे समय..!!मैने कुछ नाराजगी से कहा तो हंस पड़ी”…. अरे तो क्या हुआ बच्चों को ही तो देखना  चाहिए उनकी यही सबकी उमर है अभी… इसी बहाने मेरे पास यहां बैठ तो लेते हैं नहीं तो सारा दिन अकेले पड़े पड़े ऊब सी जाती हूं…अब इस उम्र में मैं क्या टीवी सीवी देखूंगी…!”अपने दिल की बात छुपाना मां ने जाने कहां से सीखा है..!!

अच्छा आज तो तुम्हारा जन्मदिन है तुम्हारी पसंद का खाना बना होगा आज बताओ तो तुमने आज क्या खाया..!! मेरे पूछते ही वही मीठी मुस्कान उसके चेहरे पर आ गई थी “..हां हां आज तो सब मेरी ही पसंद का ही था बहुत ख्याल रखते हैं सब मेरी पसंद का बेटा .. .!!…. हां तो बताओ ना क्या खाया था तुमने मैंने तेजी से टोका तो थोड़ा शांत हुई फिर कहने लगी “…वो क्या कहते हैं पिज्जा वही खाया सबने मेरा जन्मदिन है इसलिए पिजा पार्टी हुई आज….!




पर मां तुम्हारे तो दांत ही नहीं है और तुम्हें तो पसंद नहीं है तुमने कैसे खा लिया … हतप्रभ थी मैं अपनी मां के अभिनय कौशल को देख देख कर पर मैं भी उसकी बेटी थी उसके अभिनय की एक एक रग पहचान रही थी..! मेरे कहते ही मुझसे आंखें चुरा कर कहने लगी अरे तो पार्टी तो मेरी ही तरफ से थी ना तो सबको जो पसंद होगा पार्टी तो उसी की होनी चाहिए सबको अच्छा लगा तो मुझे भी बहुत अच्छा लगा…!

अच्छा छोड़ो मां मैं आज पिताजी से ही पूछ लेती हूं…पिताजी .. पिताजी आप इधर आइए मां के पास बैठिए और अब आप ही बता दीजिए मां को खाने में सबसे ज्यादा क्या पसंद है उनकी फेवरेट डिश क्या है पिताजी आप तो बता ही देंगे… मैंने पूरे विश्वास से पिताजी की ओर देखते हुए कहा तो पिताजी समझ ही नही पाए प्रश्न क्या है..!!दुबारा पूछने पर बड़ी कठिनाई से बोल पाए “…बेटा तेरी मां की फेवरेट डिश तो मुझे भी नहीं पता है …वो क्या खाती है ये भी मैं कैसे बता पाऊंगा??मैने तो कभी उसे खाना खाते देखा ही नहीं सबके खाने के बाद खाती रही हमेशा ….वैसे सब अपनी ही पसंद का ही बनाती रहती है जो भी बना देती है मैं खुशी खुशी ही खाता रहा….कभी कोई नखरे नहीं दिखाए पूछ लो अपनी मां से पिताजी ने बहुत मजे से मेरी बात दरकिनार करते हुए हंसकर मां की तरफ देखा था ….मां ने भी हंसकर हमेशा की ही तरह उनकी बात का पुरजोर समर्थन किया था ।

…..पिताजी मां आपके सारे नखरे उठाती रही बिना आपके कहे ….आपकी पसंद नापसंद शादी के तुरंत बाद से ही समझने लग गई थी …और आप एक डिश मां की पसंद की नही बता पा रहे हैं..!!मुझे आज सच में अपने पिताजी का मां के प्रति उदासीन रवैया अंदर तक खौला गया था

अच्छा पिताजी आज मां का जन्मदिन है आप मां को क्या गिफ्ट दे रहे हैं इस बात पर फिर से पिताजी अचकचा से गए थे अरे इसका क्या जन्मदिन क्या गिफ्ट ….तुम्हारी मां को कोई गिफ्ट नहीं चाहिए उसको ये सब बिलकुल पसंद नहीं है…फिर से बात टालते पिताजी को मैने टोक दिया था इसका क्या जन्मदिन का क्या मतलब है पिताजी क्या मां के जन्मदिन का कोई महत्व नहीं है …और पसंद नहीं है क्यों पसंद नहीं है??क्या आप कभी कोई गिफ्ट मां के लिए लाए थे और मां ने नापसंदगी जाहिर की थी!!क्या आपके गिफ्ट को मां ने फेंक दिया था….अगर मां को गिफ्ट वगैरह पसंद नहीं है तो फिर आपके हर जन्मदिन पर अपने हाथों का बुना स्वेटर या टोपा वो आपको क्यों गिफ्ट करतीं हैं…!!!सबके जन्मदिन पर भी मां ही सबकी पसंद के पकवान बना कर खिलाए और खुद अपने जन्मदिन पर भी सबके पसंद के ..!!




शायद आज जिंदगी में पहली बार पिताजी का ध्यान इस अनछुए अनकहे तथ्य की तरफ गया था।

अपने कामों को बखूबी करने के साथ साथ पिताजी के ऑफिस के काम और हम बच्चों को पढ़ाने लिखाने घुमाने फिराने बाजार जाने के भी सभी काम मां स्वयं ही अपने ऊपर लेती गई और हम सबने कभी भी मां के कामों में सहायता करने की उसका भी ख्याल करने का कभी ख्याल ही नहीं किया…बल्कि अपने ढेरों काम रोज उसके सुपुर्द करके उस पर एहसान सा जताते रहे ….वो हमारे मन की बात बिना कहे समझती रही पर हमने उसके मन की बात कभी समझने की कोशिश नहीं की..!

पिताजी अपने ऑफिस का गुस्सा और हम अपने कैरियर की पढ़ाई की चिंताएं चिड़चिड़ाहटें रोज मां पर बरसाते रहे और वो हमेशा बेशकीमती धैर्य से हम सबकी चिंताओं को क्रोध को आत्मसात करते हुए मुस्कुराती रही ….क्या उसे कभी गुस्सा नहीं आता था !!मुझे तो गहराई से याद करने पर भी मां का गुस्से वाला चेहरा या पिताजी से ऊंचे स्वर में बात करते या बहस करने वाली कोई घटना याद ही नहीं आ रही थी…..

आज तक हमने कभी उसकी पीड़ाओं की नाराज़गी की या किसी तनाव की चिंता नहीं की ये सोच कर कि अरे मां को क्या चिंता मां से क्या पूछना सारी दुनिया की चिंताएं तो जैसे हमीं को रहती हैं..!!वो हमेशा पहले हम सबको खिला कर ही खाना खाती रही कोई खाद्य सामग्री कम पड़ जाती थी तो …मुझे तो आज भूख ही नहीं है या मुझे वो पसंद ही नहीं जैसे जुमले बोल कर हमें संतुष्ट करती रही….हमने कभी उसके साथ उसके पास बैठकर खाना खाने की नहीं सोची कभी अपने हाथों से परस कर उसे खाना खिलाने का ख्याल तक नहीं आया ….उसने खाना खाया भी या नहीं खाया ये जानने की भी कभी चेष्टा नहीं की …!

उसने हम सबमें अपने आपको समाहित कर दिया उसका खुद का कोई अस्तित्व नहीं है वो हम सबमें बंट गई है हम सबका अस्तित्व ही उसका अस्तित्व है और हम सबका व्यक्तित्व ही उसका व्यक्तित्व बन गया….!आज हम सबके अपने अलग अलग व्यक्तित्व बन गए हैं अपना अस्तित्व तलाश रहे हैं हम !!




“मां तुमने सब कुछ सिखाया सबका ख्याल रखना सिखाया अपना ख्याल करवाना  हमलोगों को क्यों नहीं सिखाया ..!!मैं सच में आज बहुत दुखी अनुभव कर रही थी… जिसने अपनी पसंद अपने ख्याल अपने वजूद का त्याग हम सबके लिए कर दिया….!हमने कभी  उसके मन की बात समझने की चेष्टा ही नहीं की ना अभी ही करने की सोचते हैं!!मेरा मन आत्मग्लानी से क्षत विक्षत हो उठा…

…अरे हां बेटा  मुझे याद आया तुम्हारी मां को मेरे हाथ की मलाईदार चाय बहुत पसंद है कभी कभार मैं इसके लिए बना दिया करता था …मुझे दुखी देख कर पिताजी ने अचानक मुस्कुराते हुए कहा तो मां का चेहरा अचानक गुलाब की तरह खिल गया था …हां  हां बहुत बढ़िया चाय बनाते हैं तेरे पिता ….तीन साल पहले तीज व्रत खोलते समय आपने बनाई थी उसका स्वाद आज भी मेरी जुबान पर है …मां की बात सुनते ही लगा आज की तरह पूरी हो गई….मैंने झट से कहा …. तो फिर ठीक है आज पिताजी वही मलाईदार चाय बनाएंगे और मैं पनीर के पकौड़े बनाती हूं मैंने हर्ष से घोषणा करते हुए पिता जी के साथ किचेन की ओर रुख कर लिया…..!

…..आज का जन्मदिन मेरी जिंदगी का बेस्ट जन्मदिन है पिताजी के द्वारा प्रेम से बनाई गई चाय और अपने  हाथों से मां को देते हुए पिताजी की तरफ देखते हुए मां ने मुस्कुरा कर कहा तो मुझे मां की आवाज में खुशी की वही पुरानी खनक और मुस्कान में वही मिठास महसूस हो गई जो मैं सुनना चाह रही थी ….शायद ये मिठास पिताजी की चाय में थी….

……वाह मां… पिताजी की बिना मेहनत की चाय की तो तुम इतनी तारीफ कर रही हो और मैने जो इतनी मेहनत से पनीर के पकोड़े बनाए उसका क्या…जाओ पिताजी के साथ ही चाय पियो मैं चली अपने पकोड़े के साथ!!!मैने गुस्सा होने का अभिनय करते हुए कहा तो “…अरे पगली तेरे कारण ही तो आज मुझे जिंदगी में पहली बार तेरी मां के प्रति अपनी उदासीनता का बोध हो पाया ….आज तो तुझे कोई गिफ्ट देने का दिल हो रहा पिताजी ने भावुक होकर कहा तो मां ने बढ़ कर मेरे हाथ से पकोड़े लेते हुए हंसकर कहा …. तेरे हाथ के पकोड़े का ही इंतजार कर रहे थे हम लोग …चल अब पकोड़े के साथ ही चाय पियेंगे ….अब मौका मिला  है तो तू जल्दी से अपना गिफ्ट बता दे नहीं तो पिताजी अपनी बात से मुकर जायेंगे ….. जोरों की हंसी के बीच मां की बात सुन मुझे लगा यही तो है मेरा सर्वोत्तम गिफ्ट!!

#मासिक_अप्रैल 

लतिका श्रीवास्तव

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