बहती गंगा में हाथ धोना – डाॅक्टर संजु झा : Moral Stories in Hindi

हमारे देश में परोपकार करनेवालों की कमी नहीं है,परन्तु कुछ ऐसे लोग भी हैं ,जो देश में आपदा पड़ने पर भी बहती गंगा में हाथ धोने से बाज नहीं आते हैं।ऐसे लोग परमार्थ, दया,मानवता भूलकर अपनी स्वार्थपूर्ति हेतु आपदा में भी अवसर  ढ़ूँढ़  ही लेते हैं।अभी कुछ दिनों पहले आई महामारी कोरोनाकाल में भी कुछ ऐसे लोग भी थे,जो  लोगों की जान बचाने की बजाय अपने हित साधने में लगे रहें।

कोरोना महामारी 2019 में चीन के वुहान शहर से शुरू होकर पूरे विश्व  में तेजी से फैल गई। पूरा विश्व इस बीमारी के भयानक रुप देखकर काँप उठा।आनन-फानन में पूरे विश्व  में लाॅकडाउन लग गया।जो व्यक्ति जहाँ था,वहीं स्तंभित होकर फँसा रहा।मजदूर वर्ग के लिए  विषम स्थिति उत्पन्न हो गई। रोजी-रोटी बंद होने के कारण मजदूर वर्ग  सिर पर सामान उठाए पैदल ही कोसों मील की दूरी नापने चल पड़े।

रास्ते में स्वार्थ-लोलुप लोगों ने  जमकर उन्हें लूटा।दुकानदार से लेकर यातायात चालकों ने उनकी मदद करने  की बजाय बहती गंगा में हाथ धोना ही बेहतर समझा।

कोरोना की पहली लहर तो जैसे-तैसे गुजर गई, परन्तु दूसरी लहर ने  अपना रौद्र रुप दिखाया।इसमें लाखों लोगों की जानें गईं।अमेरिका और ब्रिटेन जैसे साधन संपन्न देश ने भी इस बीमारी के समक्ष घुटने टेक दिए।हमारे देश में भी अस्पतालों में बेड और इलाज के नाम पर दलालों ने लोगों को खूब लूटा।सरकार और स्वास्थ्य मंत्रालय ने इन लुटेरों के खिलाफ कुछ कड़े कदम उठाए, परन्तु वे नाकाफी थे।कुछ स्थानों पर रेमिडिसिविर जैसी  आवश्यक दवाओं की जमकर कालाबाजारी हुई।जीवन -रक्षक ऑक्सीजन सिलेंडरों को भी पैसे के लिए  ब्लैक किया जाने लगा।

जिसे जहाँ  मिल रहा था,वहीं बहती गंगा में हाथ धोने की कोशिश कर रहा था।कुछ लोग कोरोना का फर्जी जाँच कर पैसे बना रहे थे।कुछ लोग दम तोड़ते हुए मरीजों के परिजन से बेहिसाब पैसों की माँग कर रहें थे।इन्हें देख-सुनकर उस समय ऐसा महसूस हो रहा था,मानो इनकी मानवता मर चुकी थी।बड़े तो बड़े, कुछ छोटे व्यवसायी भी मास्क,सेनेटाइजर की कालाबाजारी में लगे हुए थे।कोरोनाकाल में ऐसा महसूस हो रहा था,मानो स्वार्थी लोग बहती गंगा में हाथ धोने में लगे हुए हैं।

हमें देश की सरकार, स्वास्थ्य विभाग, स्वास्थ्य कर्मी तथा मानव सेवी संस्था का शुक्रिया अदा करना चाहिए, जिनके सहयोग से इस बीमारी पर काबू पाया जा सका। उन्हीं के सहयोग से पूरा विश्व उस भयावह स्थिति से  ऊबरकर अब सामान्य जीवन व्यतीत कर रहा है।

 यह सही है कि  उस समय कुछ लोगों ने मानवता भूलकर बहती गंगा में हाथ धोएँ,परन्तु कुछ लोग ऐसे भी थे जिन्होंने पीड़ित लोगों की सेवा में अपनी जान की बाजी भी लगा दी।सचमुच जहाँ विश्व में बुरे लोग हैं,तो अच्छे लोगों की भी कमी नहीं है।

समाप्त। 

लेखिका-डाॅक्टर संजु झा(स्वरचित)

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