इरा ने कलैंडर पर नजर डाली अरे उन्नीस तारीख़ का तो ररक्षाबंधन का त्योहार है,सोच कर मन उदास हो गया। मन में भाईे के साथ बिताए प्यार के पल किसी चलचित्र की तरह याद आने लगे।बस दो साल ही तो बड़ा हैउसका भाई नमन उससे।बचपन में जब भी वह उसे राखी बांधती थी तो हमेशा यह कह कर चिढ़ाता था
कि कितनी कंजूस है कोई अच्छी राखी नही ला सकती थी,जा मैं भी तुझे फटा हुआ नोट ही दूंगा राखी बंधवाने के बाद।उनके मां बाप बहुत खुश होते उनकी आपस की चुहलबाज़ी देख कर और मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना करते हे प्रभु इन दोनो का प्यार पूरी उम्र ऐसा ही बना रहे।
थोड़ी बड़ी होने पर इरा अपनी पाकिट मनी बचा कर नमन के लिए राखी पर कैडबरी चॉकलेट का डिब्बा लाती थी फिर दोनों मिल कर उन चॉकलेट को खाते थे।पता नही बचपन इतनी जल्दी खत्म कयों हो जाता है और बड़े होने पर रिश्तों में मिलाबट क्यों कर आजाती है।
मार्केट जाने पर देखा कि हरेक दुकान पर एक से एक सुंदर राखियां सजी हुई हैं,बह भी रुक कर राखियां देखने लगी और सुन्दर सी दो राखियां अपने भाई व भतीजे आरब के लिए लेली,जब राखियां ली तो साथ में देने को मिठाई व अन्य उपहार भी खरीद लिए, भतीजे की मनपसंद चॉकलेट भी खरीदना नहीं भूली।
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घर आने पर दिल और दिमाग में जंग छिड़ गई,पूरे छह महीने हो चले थे तब से मायके से कोई सम्पर्क नही हो पाया था।एक मन कहता कि मैंने बात नही की तो क्या भाई भी तो फोन कर सकता था कि राखी का त्योहार है तुझे जरूर आना है,एक मन कहता अगर तू ही फोन करके हक से कहती कि भाई मैं राखी के लिए आरही हूं मेरा तोफहा तैयार रखना,तो क्या हो जाता।
आखिरी बार मायके बीमार मां को देखने गई थी,मां ने ही इच्छा जाहिर की थी कि बेटा मेरा मन कररहा है कि तू आके मुझसे मिल जा,इस शरीर का क्या भरोसा कब साथ छोड़ दे। मां पिछले कई दिनों से बीमार चल रही थी,बाबूजी के जाने के बाद से ही मां ने अपनी परबाह करनी छोड़ दी थी,
डायबिटीज व कोलेस्ट्रॉल हाई होने के कारण डॉ ने खाने पीने का परहेज बताया था। हालांकि बहू बेटे बहुत ध्यान रखते थे फिर भी मां कभी कभी चटपटा व तला हुआ खाने की ज़िद कर ही बैठती थी।उस दिन भी जब इरा मां से मिलने पहुंची तो डायबिटीज बढी होने के कारण बहू उनको सूप पिला रही थी।
मां को सूप पीना जरा भी पसंद नहीं था यह इरा जानती थी।मां को सूप पीते देख ,इरा भाई भाभी पर एकदम भड़क गई,तुम लोग तो मेरी मां को सूप पिला पिला कर ही मारना चाहते हो।
इरा के भाई ने समझाया कि डॉक्टर ने ही उनकी हालत को देखते हुए उनका डाइट चार्ट बना कर दिया है उसी के अनुसार ही उनको सूप दिया जारहा है।तुम इस तरह की बात कैसे बोल सकती हो मैं व तुम्हारी भाभी उनकी सेहत का पूरा पूरा ध्यान रखते हैं तुमको बिना सोचे समझे ऐसा बोल ने का कोई मतलब नहीं है।
बस इसी बात पर दोनों में कहासुनी बहुत बढ गई, और इरा गुस्से से पांव पटकती हुई अपने घर आगई।उसके पन्द्रह दिन बाद ही मां ने अपने प्राण त्याग दिए।मां की खबर सुन कर मायके गई जरूर थी लेकिन बिना किसी से बातचीत किए अपने घर बापसआगई थी।बस तभी से भाई बहन में मनमुटाव सा चल रहा था।
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इरा की भाभी ने कई बार नमन को समझाया कि आपकी छोटी बहन है आप ही आगे बढ़ कर उसे अपने घर आने को कह दीजिए न ,एक ही तो बहन है आपकी।भाई ने भीयहकह कर चुप्पी साध ली कि छोटी है तो क्या उसको भी तो अपनी गलती का एहसास होना चाहिए।मां के जाने के बाद उसने भी तो एकबार फोन करने की जरूरत नही समझी जैसे हम लोग उसके कुछ नही हैं।
इरा के पति ने ऑफिस से आकर टेबिल पर जब राखियां व मिठाई रखी देखी तो तुरंत कहा इसका मतलब राखी पर हम लोग नमन के घर जारहे हैं।पति के इतना कहते ही इरा के आंखों से झर झर आंसू बहने लगे।मैने तो तुमको कितनी बार समझाया कि रिश्ते ऐसी छोटी छोटी बातों पर नही टूटा करते,
ऐसी नौक झोंक तो हर रिश्ते में चलती रहती है, क्या बचपन में तुम व नमन भाई नही लड़ते थे,बैसे तुम भी कभी कभी बिना सोचे समझे कुछ भी बोल जाती हो,वह तो मैं तुमको समझता हूं कि तुम्हारा दिल एकदम साफ है वह तो गुस्से में भड़क जाती हो, अच्छा अब आप भी……
अरे नही मै तो तुम्हारा मूड ठीक करने को ही कह रहा था,चलो जल्दी से नमन भाई को फोन करके बोलो कि कल हम लोग आरहे है और पूरा दिन आप लोगों के साथ बिताएंगे।पहले चाय पिलाओ और खुद भी पीकर मूड ठीक करले फिर फोन करना और ध्यान रहे कोई ताना उलाहना नही, सिर्फ प्यार से बात करना।
पति के समझाने पर इरा का मन कुछ शांत हुआ और रसोई में जाकर चाय बनाने गई ,बस उसी समय फोन की घंटी घनघना उठी,दौड़ कर आई फोन उठाया,दूसरी तरफ से भाई नमन की आबाज सुन कर गला रूंध गया,नमन ने कहा ,पगली कितने दिन नाराज रहेगी अपने भाई से ,
राखी आरही है मुझे व तेरी भाभी को तेरा इंतज़ार रहेगा।उस दिन खाने का पूरा मैन्यू तेरी पसंद का रखा है।बस तुम लोगों को आना ही है ।मां नही है तो क्या तेरा भाई भाभी तो हैं और फिर इन छोटी-छोटी बातों को दिल से नही लगाया करते।
इतने दिनों बाद भाई की आबाज सुन कर इरा से कुछ बोलते नहीं बन रहा था ,बस आंखों से खुशी के आंसू बह रहे थे।
कुछ बोलती क्यों नही,इरा के पति ने फोन लेकर कहा। भाईसाहब हम लोग तो पहले ही आने का प्रोग्राम बना चुके हैं ,ये तो इतने दिनों बाद आपकी आबाज सुन कर भावनाओं में बहकर ही रोने लगी इसी कारण कुछ बोल नही पारही है। हम लोग इस त्योहार को मिलजुलकर हंसी खुशी मनाऐगे।
स्वरचित व मौलिक
माधुरी गुप्ता
नई दिल्ली ७६
बहन शब्द पर आधारित कहानी