बहन – डाॅक्टर संजु झा  : Moral Stories in Hindi

मीना कुछ दिनों से अजीब कशमकश  में घिरी हुई है।बिस्तर पर लेटे-लेटे चिन्तामग्न थी। यह जिन्दगी का कैसा मोड़ उपस्थित हो गया है!हर तरफ अंधेरा और बर्बादी का आलम पसर चुका है।कोरोना महामारी तो आकर गुजर गई, परन्तु इसने कितनों की जिन्दगी के साथ उसकी रोजी-रोटी भी छीन ली!कोरोना में उसके माता-पिता की मृत्यु हो गई।

उसका इकलौता भाई पंकज भी व्यवसाय ठप्प होने के कारण  बेघर हो गया है।यह सब सोचकर हृदय से जुड़ा बालपन की कोमल भावनाओं के मृदुल एहसास  से भींगा रकतबंधन में बँधा भाई-बहन का नैसर्गिक रिश्ता उसके मन-प्राण में उष्मा का संचार करने लगा।अगामी रक्षाबंधन पर भाई के  भविष्य  के लिए  उसे कोई ठोस  निर्णय लेना ही होगा।

मीना को परेशान देखकर उसके पति रमण ने पूछा -” मीना!क्या बात है?कुछ परेशान लग रही हो?”

मीना -“रमण!मैं कुछ निर्णय लेना चाहती हूँ,परन्तु ले नहीं पा रही हूँ। खून के रिश्ते बहुत नाजुक डोरी से बँधे होते हैं,इसे बचाने के लिएकभी-कभी त्याग भी करना पड़ता है!”

रमण -” मीना!आज के माहौल में काफी बदलाव आया है।नारियां आजकल बहुत बड़े-बड़े फैसले लेने लगीं हैं। तुम मेरी तरफ से कोई  निर्णय लेने में स्वतंत्र हो।हाँ!एक बात अवश्य है कि तुम्हें अपनी लड़ाई खुद लड़नी पड़ेगी!”

पति की बातों से उसके मन में आत्मविश्वास और दृढ़ता को बल मिला।उसकी आँखों के सामने नन्हें पंकज की छवि घूमने लगी थी।जब वह पन्द्रह साल की थी,तब उसके भाई पंकज का जन्म हुआ  था।माता-पिता ने मीना को ही इकलौती औलाद मान लिया था,इस कारण  एक बड़ा घर मीना के नाम पहले ही कर चुके थे।पंकज के जन्म के बाद भी उन्होंने वह घर मीना के ही नाम  रहने दिया।उन्होंने सोचा

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कि पंकज के लिए शहर का पुश्तैनी   घर और उनकी पेंशन काफी है।पंकज को मीना अपने बच्चे की तरह प्यार  करती थी।पंकज भी बचपन  में माँ की अपेक्षा मीना से ही ज्यादा प्यार करता था।दोनों भाई-बहन के आपसी प्यार को देखकर  माता-पिता फूले नहीं समाते। समय के साथ मीना शादी होकर ससुराल चली गई ।पंकज भी बड़ा होकर इंजिनियरिंग पढ़ने चला गया,परन्तु दोनों

भाई-बहन का प्यार पूर्ववत् बना रहा।पंकज देश के किसी भी कोने में रहता,परन्तु बहन मीना से राखी बंधवाने अवश्य आता। दोनों का आपसी रिश्ता इतना मजबूत था कि लोगों की टेढ़ी नजर भी उसे हिला नहीं सकता था।

वक्त तीव्र गति से आगे बढ़  रहा था।समय के साथ मीना के दोनों बच्चे बड़े हो रहे थे।पंकज भी माता-पिता और पत्नी तथा दो प्यारे बच्चों  के साथ  खुशहाल जिन्दगी जी रहा था।पढ़ाई पूरी होने के बाद  उसने नौकरी करने की बजाय अपना व्यवसाय करना सही समझा।   अपनी कंपनी के उद्घाटन से एक सप्ताह पूर्व वह अपनी बहन से सारी सलाहें लेता रहा।अंत में उसने मीना से मनुहार करते हुए कहा था -“दीदी!तुम्हारे हाथों ही मेरी कंपनी का उद्घाटन होना है।तुम्हें दो दिन पहले आकर सबकुछ देखना है!”

मीना ने हँसते हुए कहा भी था -” पगले!बहन को इतनी तरजीह देगा तो तुम्हारी पत्नी नाराज हो जाएगी!”

परन्तु भाई पंकज भी कहाँ माननेवाला था!आखिर उसने बहन मीना के हाथों ही अपनी कंपनी का उद्घाटन करवाया।

आपसी प्रेम और सौहार्द से रिश्तों की डोर मजबूत होती जा रही थी।अचानक  से कोरोना नाम के काल ने सबकुछ अस्त-व्यस्त कर दिया। कोरोनाकाल में   मीना के माता-पिता काफी दिनों तक वेंटिलेटर पर रहें।पंकज की सारी जमा-पूँजी उनकी बीमारी में लग गई। उसकी कंपनी भी बंद हो गई। पंकज पाई-पाई को मोहताज हो उठा।

कर्जे में डूबे पंकज ने अपना पुश्तैनी घर बेच दिया।कोरोना के बाद  उसने नौकरी पकड़ ली,परन्तु हर साल-छः महीने बाद  उसे किराए का मकान बदलना पड़ता है। मीना अपने भाई पंकज की परेशानी को समझती है,परन्तु अबतक कुछ नहीं कर पाई। आज भाई  के घर से लौटने के बाद  से ही उसका मन व्यथित है।उसे अंतिम समय में माँ के कहे वचन याद  आ गए।

माँ ने उसका हाथ पकड़कर कहा था -” बेटी!पंकज बहुत भोला और सीधा है।दुनियाँ के छल-प्रपंच से अनजान है।कभी वह मुसीबत में पड़े तो अपने बच्चे के समान उसकी मदद करना।”

अब मीना के मन में पश्चाताप होने लगा कि इतने दिनों तक उसने अपने बेटे समान भाई की मदद क्यों नहीं की।शायद पति  बच्चों या ससुराल वालों की नाराजगी का भय उसके मन में था,परन्तु आज इन सब बातों की परवाह न कर उसने एक अडिग फैसला ले लिया।उसके मन के सारे कशमकश छूमंतर हो गए। 

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राखी की सुबह से ही मीना बेसब्री से भाई  पंकज का इंतजार कर रही थी।उसके पति मजाक करते हुए कहते-” मीना!राखी दिन सड़कों पर भीड़ रहती है।कुछ देर आराम से बैठ जाओ।पंकज आ जाएगा।”

बेटी भी चिढ़ाते हुए कहती -” माँ!आपको अपने भाई से इतना प्रेम है!मेरा भाई तो मुझसे प्रेम ही नहीं करता है!”

मीना दोनों बच्चों को राखी बंधवाने के बाद फिर से अपने भाई का इंतजार करती है।कुछ समय बाद  पंकज आ जाता है।मीना उसे प्रेमपूर्वक राखी बाँधकर मिठाई खिलाती है ,उसके बाद  भाई को आँख बंद करने कहती है।पंकज बहन के पैर छूकर आँखें बंद कर लेता है।मीना उसके हाथ में पिता के दिए हुए घर की रजिस्ट्री के उसके नाम के कागजात रख देती है।पंकज हतप्रभ हो पूछता है-” दीदी!ये क्या है?राखी के दिन भाई  बहन को तोहफा देता है।मैं ये कैसे ले सकता हूँ?”

मीना -” पंकज!राखी के त्योहार में भाई-बहन दोनों एक दूसरे की मुसीबत  में मददगार बनने का वचन लेते हैं।इसे संकीर्णता की डोर में मत बाँधो।”

मीना के पति और बच्चों की आँखें भाई बहन के प्यार को देखकर नम हो उठीं।उन्हें बहन की परिभाषा अत्यधिक विराट,उदात्त और विशाल महसूस होने लगी।

समाप्त। 

लेखिका-डाॅक्टर संजु झा(स्वरचित)

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