जेल की लम्बी सजा काट कर प्रमोद आज रिहा हो रहा था। वह समझ नहीं पा रहा था खुश हो या अफ़सोस मनाए ।
वह जेल के फाटक के बाहर जड़वत खड़ा सोच रहा था किधर जाए। वहाँ जहाँ उसके परिजनों ने उसे अपराधी मान जेल के सींखचों के पीछे जीवन काटने को मजबूर किया। या फिर कहीं और गुमनामी में शेष जीवन काट दे।
उसे आज भी याद है वह काली रात। आपसी कहा सुनी पर उत्तेजित होकर उसकी पत्नी रेखा ने उसके सामने ही फाँसी लगा ली थी। उसने बचाने का भरसक प्रयत्न किया था
पर तब तक रेखा का दम घुट गया था और वह नहीं बची शोर शराबा सुनकर सब जमा हो गए थे। नारी सशक्तिकरण वाले भाई भतीजे सब मुझे जिम्मेदार ठहरा रहे थे। सबका मानना था कि हमने उसका गला दबा कर
मार डाला और फिर लटका दिया । कोर्ट में केस चला । ख़ूब इज्जत उछाली गयी। हर बार नयी बातें नए आरोप मेरा इंतजार कर रहे होते।
मेरे वक़ील भी कुछ नहीं कर पाए। मुझे बीस साल की बामशक्कत जेल हुयी। हाँ इन बातों का सबसे ज्यादा असर पड़ा मेरी बेटी के जीवन पर। वह मात्र दो वर्ष की बच्ची थी
उसकी कस्टडी एक अनाथ आश्रम को दे दी गयी थी। मैं जेल में कमाए पैसे अनाथ आश्रम में बेटी के खर्चे के लिए भेज देता था।
“बड़ी हो गयी होगी मेरी बेटी, “सोच कर उसका मन भावुक हो गया।
काश एक बार देख पाते अपनी गुड़िया को। पता नहीं वह मिलना भी चाहेगी कि नहीं। वह तो यही जानती है कि मैंने ही उसकी माँ को मारा है।
भारी कदमों से उसने अनाथ आश्रम की ओर रुख किया।
वह अनाथ आश्रम के गेट पर खड़ा था ।
लगता है यहाँ किसी की शादी है इतनी सजावट।
चौकीदार से पूछने पर पता चला कि यहाँ आज अनाथालय की बेटियों का सामूहिक विवाह हो रहा है। उसने कार्यालय में जाकर बेटी के बारे में पूछा। वह पहले उससे कभी मिलने नहीं आया न कभी बात हुयी।
पैसे के जिक्र का भी मना कर रखा था। पता चला आज उसकी बेटी की भी शादी है। एक तरफ़ पिता का हृदय भाव विह्वल हो रहा था दूसरी ओर असमंजस की स्थिति में था कि बेटी की प्रतिक्रिया कैसी होगी। फ़िलहाल उसने वापसी का मन बना लिया।
अनाथ आश्रम के फाटक से बाहर कदम रख रहा था कि पीछे से आवाज़ आई
“पापा अपनी गुड़िया का कन्यादान नहीं करेंगे”
वह वापस पलटा सामने खड़ी बेटी का हाथ पकड़ कर फूट फूट कर बच्चों की तरह रो पड़ा। वहाँ सबकी आँखें नम हो गयीं।
हाँ पापा हमें नानी ने सब बता दिया था आपकी कोई गलती नहीं थी।
आज वह सचमुच रिहा हो गया था।
सीमा वर्णिका, कानपुर