बेड़ियाँ या उड़ान – रश्मि प्रकाश   : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : “ जब देखो घर से बाहर रहने का मन करता है… अरे जब ब्याह हो जाएगा तब जितना बाहर रहना हो रहना… चल जा कपड़े बदल और घर के कुछ काम काज सीख ।” राजवंती देवी ने अपनी पोती पीहू से कहा

पीहू लाचार नज़रों से अपनी माँ की ओर देखने लगी… कुंती जी ने इशारों में दादी की बात मनाने को कह दिया 

पीहू पैर पटकती अपने कमरे की ओर चल दी।

कुंती जी भी पीहू के पीछे पीछे आ गई जानती थी बेटी आज दोस्तों के साथ बाहर घूमने जाने की कब से परमिशन माँग रही थी…. कौशल जी ने बेटी को बहुत मुश्किल से इजाज़त दी थी… क्योंकि उनकी माँ हमेशा यही कहती रहती थी…,“ बेटी को इतनी छूट दे रहा है ना …देखना बाद में जब ताने सुनेगा तब समझ आएगा ।”

“ माँ क्या सच में लड़कियों को इतनी पाबंदी में रखा जाना सही है… पुरू को तो दादी कभी कुछ नहीं कहती… वो जहाँ मर्ज़ी जा सकता है ..आ सकता है…. दोस्तों के संग शहर के बाहर भी घूमने जाने बोलता है तो दादी कभी भी कुछ नहीं कहती हैं और मैं जैसे ही मुँह खोलती हूँ मेरे बोलने से पहले ही दादी के शब्द बाण निकलते…

हद है यार…. क्या ही किस्मत है  हमारी ….हम लड़कियों को पता नहीं इतनी बेड़ियों में जकड़ कर क्यों रखा जाता है!” पीहू ग़ुस्से में कपड़े बदलते हुए बोलती जा रही थी 

” बेटा ऐसे ग़ुस्सा करके अपना जी क्यों जलाती है…. चल मैं एक काम करती हूँ…. जल्दी से सब काम निपटा कर तेरे साथ चलती हूँ…. दो घंटे दोस्तों के साथ घूम लेना तब तक  मैं बाज़ार का कुछ काम निपटा लूँगी फिर हम साथ ही आ जाएँगे ।” कुंती जी ने कहा 

” क्या माँ …. पुरू के साथ तो ना पापा जाते है ना तुम …. मुझे तो समझ ही नहीं आता हम लड़कियों को कब तक सहारे के साथ चलना पड़ेगा….।” पीहू ग़ुस्से में बोली 

“ ये सब ना शादी के बाद अपने मन की करना…..।”कुंती जी सासु माँ के लहजे में बोली जो वो अक्सर पीहू से कहा करती थी 

” सच में माँ शादी बाद लड़कियों को आज़ादी मिल जाती हैं…. तुम्हें भी मिली …?” पीहू के सवाल कुंती जी को अंदर तक झकझोर गए

” पूरी तरह तो नहीं पर हाँ मिली तो…. चल तू बातों में मत लगा जल्दी से शाम के खाने की तैयारी कर तेरे साथ निकलने का सोचती हूँ ।” कह कुंती जी रसोई में चली गई 

काम करते हाथ ज़रूर चल रहे थे पर मस्तिष्क सालों पीछे चलने लगा था….

” देख सोमेश की दुल्हन कुंती को ज़्यादा पढ़ा लिखा कर क्या ही करेंगी…. रसोई के कामकाज में निपुण कर ससुराल जाकर वही तो करना है उसे…..फिर ज़्यादा पढ़ने से दिमाग़ ज़्यादा ही चलने लगता है…. बारहवीं तक पढ़ाई करवा कर ब्याह कर दे…. फिर ससुराल वालों की मर्ज़ी पढ़ाना चाहे तो पढ़ाए…. बेटियों को ब्याह से पहले ज़्यादा खुला छूट देना सही ना है….।”कुंती जी की दादी अक्सर कहा करती थी 

“ पर माँ जी अभी तो ये बच्ची ही है…. मायके में भी बेड़ियाँ पहना कर रखे इसको…. ससुराल जाकर तो ज़िम्मेदारी की बेड़ियाँ यूँ ही बिन कहे पहननी  पड़ती है…मेरी फूल सी राजकुमारी को अभी से बेड़ियों में नहीं जकड़ना…।” माँ हमेशा कुंती जी का पक्ष लेती थी 

कुंतीजी  माँ के सीने से लग खुश हो जाती और सोचती माँ मुझे बेड़ियों में नहीं जकड़ने देंगी पर क़िस्मत भी बड़ी अजीब चीज़ होती हैं मन का कहा कब होने देती….. बारहवीं पास करते कुंती जी का ब्याह कौशल जी से हो गया…. कौशल जी कुंती जी की पढ़ने की इच्छा जान आगे पढ़वाने को तैयार भी हो गए थे

पर ससुराल वालों के कोप का भाजन बनने के लिए उन्हें बहुत मशक़्क़त करनी पड़ी…. पहला ही साल था और पता चला कुंती जी माँ बनने वाली है फिर पढ़ाई छुड़वा कर सासु माँ के आदेशानुसार घर में ही बँध कर रह गई….. मन हमेशा यहीं चाहता है जो हम झेले वो हमारे बच्चे ना झेले….

बचपन से यही सुन कर बड़ी हुई कि मन का जो करना ससुराल जाकर करना यहाँ नहीं…. ससुराल जाकर सुनने को मिलता यहाँ ये सब नहीं चलता…. मायके से कुछ सीख कर नहीं आई है…… एक औरत करें तो क्या करे…. एक ही ज़िन्दगी में दो दो घर मिल जाते पर अपनी मर्ज़ी की ज़िन्दगी कभी ना मिलती….

पहले पुरू का जन्म हुआ…..फिर पीहू  घर में आई…..कुंती जी पीहू को सब ख़ुशियाँ देना चाहती थी ताकि उसे किसी बात का अफ़सोस ना रहे….. उसका कॉलेज चल रहा था….. हमेशा एक ही बात उनके दिमाग़ में चलती रहती थी कि पीहू को इतना सक्षम बनाना है कि वो किसी पर आश्रित ना रहें …..

एक ही ज़िन्दगी मिली है जब तक अपनी मर्ज़ी से जी सकती है जी सकें….. भविष्य का क्या पता…. ससुराल कैसा मिले …. क्योंकि शुरू में कहाँ कुछ पता चल पाता है…..उसकी क़िस्मत मेरी जैसी नहीं होने दूँगी….वो अपनी क़िस्मत खुद लिखेंगी ।

“ हो गया माँ ….।” पीहू की आवाज़ सुन कुंती जी सहज होते हुए बोली ,“ हाँ हो गया… चल तैयार होकर निकलते हैं ।”

 दोनों जब तैयार होकर जाने लगी तो राजवंती देवी ने कहा,“ अब दोनों माँ बेटी की सवारी कहाँ चल दी..?”

“ माँ जी पीहू को बाहर जाने का मन था पर आपकी बात मानकर नहीं भेजी …..पर अब वो मेरे साथ जा रही है बाज़ार में थोड़ा काम है…. साथ ले जा रही हूँ ताकि मन बहल जाए…।”कुंती जी कह कर पीहू का हाथ पकड़ कर बाहर निकल गई

“ जो करना करो… मेरा क्या है… कल को…।”कुंती जी की सासु माँ बड़बड़ाते हुए कहे जा रही थी 

“ माँ क्या सच में तुम चाहती हो मेरे पैरों में वो बेड़ियाँ ना पड़े जो तुम्हारे पैरों में पड़ी…।” पीहू ने पूछा 

“ बेटा शादी क़िस्मत का खेल है ….कौन जानता है किसको कैसा परिवार मिलेगा पर मैं कोशिश करूँगी मेरी बेटी के पैरों में बेड़ियाँ नहीं बल्कि …उसे पंख मिले जहाँ वो उड़ सकें पर एक मर्यादा में रहते हुए….. घर परिवार को सँभालते हुए ।”कुंती जी बेटी का हाथ पकड़ कर ऑटो पर सवार हो कर बाज़ार को निकल गई 

दोस्तों हम माएँ ही बेटियों को पिंजरा या खुला आसमान दे सकते हैं..उनके लिए हमेशा खड़े रहना चाहिए.. उनकी क़िस्मत में बेड़ियाँ क्यों डालना जब वो खुले आसमान में उड़ान भरने की क्षमता रखती हो..उन्हें अपनी क़िस्मत लिखने का मौक़ा देकर तो देखिए ।

हाँ अब समय बदल रहा है पर पूरी तरह बदलने में अभी भी वक्त लगेगा ।

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धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश

#किस्मत

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