सुना है मनोज…. हमारे पड़ोस के वर्मा जी के बेटे का तलाक हो रहा है… यह तो होना ही था… रोज-रोज के झगड़ों से अच्छा है कि एक ही बार में अलग हो जाए… आशा जी ने अपने बेटे मनोज से कहा
मनोज: अच्छा..? पर अतुल भैया और सीमा भाभी तो बड़े खुश दिखते थे… मुझे तो आपसे पता चल रहा है कि उन लोगों के बीच रोज-रोज झगड़े भी होते थे और अब तलाक भी… बड़े ताज्जुब की बात है
आशा जी: हां वह तो बाहरी दुनिया को बस दिखाने के लिए बाहर हंसते बोलते थे… पर सच्चाई कब तक छुप सकती है भला..? यह आजकल के रिश्तों का कोई भरोसा नहीं… एक हमारा जमाना था… लाख लड़ झगड़ ले अपने पति से… पर भूल कर भी तलाक का जिक्र नहीं करते थे
और आजकल बात बात पर तलाक… यह खुद तो अपना घर तोड़ते ही है… साथ में औरों को भी प्रोत्साहित करते हैं… बेड़ा गर्ग हो इनका…
मनोज: हां मां और सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण बात… अपनी पत्नी को ना ज्यादा छूट देनी चाहिए और ना ही सर पर चढ़ाना चाहिए.. फिर ऐसी नौबत कभी नहीं आएगी और एक बात मां, यह बात यहीं खत्म कर दो… मनीषा के कान तक नहीं जानी चाहिए
आशा जी: अरे बेटा… उसके कान तक चली भी गई तो क्या..? उसकी तो हमारे आगे जुबान तक नहीं खुलती, तलाक का क्या ही सोचेगी…? तू निश्चिंत रह…
मनोज: ठीक है मां… मैं ऑफिस जाता हूं… अरे मनीषा मेरा नाश्ता तैयार हुआ या नहीं..?
मनीषा: हां बन गया है.. आती हूं बस पापा जी को दवाई दे रही हूं…
आशा जी: बहू मेरी पूजा की थाल तैयार की या नहीं..?
मनीषा: करती हूं मम्मी जी… बस अभी इनको नाश्ता दे दूं पहले…
आशा जी: तुम्हें पता ही है मुझे अपने सारे काम समय पर चाहिए, तुम थोड़ा जल्दी नहीं उठ सकती… पता नहीं इतनी कामचोर बहू मेरे ही पल्ले क्यों पड़ी..? मनीषा कुछ नहीं कहती और कभी इधर कभी उधर भाग कर काम करती रही…
थोड़ी देर बाद मनोज चिल्लाकर उसे पुकारता और कहता है… यह क्या मनीषा..? कल तुम्हें मैंने अपने जूते पॉलिश करने को कहा था… पर तुमने किया नहीं… हद होती है काम चोरी की… गिन कर दो-चार लोगों का काम करना होता है तुम्हें… वह भी तुमसे नहीं होता…
उसके बाद थोड़ा शोर शराबा कर मनोज ऑफिस चला गया… पीछे से आशा जी ने भी बची कुची कसर पूरी कर दी..
शाम को मनोज जब ऑफिस से लौटा तो देखता है.. उसकी मां उदास बैठी है और उसके पापा अखबार में घुसे हैं, तो मनोज ने अपनी मां से पूछा… क्या हुआ मा..? सब ठीक तो है ना..?
आशा जी: मैं क्या बोलूं..? जाकर अपने कमरे में देख… मनोज दौड़ता हुआ अपने कमरे में जाता है तो देखता है… मनीषा अपना सामान पैक कर रही है..
मनोज: यह सब क्या है मनीषा…? तुमने अब क्या किया जो मां इतनी परेशान है..? तुम मुझे चैन से रहने क्यों नहीं देती..?
मनीषा: आपके चैन का ही बंदोबस्त किया है… यह देखिए तलाक के कागजात.. उस पर मैंने अपने दस्तखत कर दिए हैं आप भी करके इसे वकील को दे देना… मैंने अपने कपड़े और सामान ले लिए हैं… कुछ रह जाए तो बाद में आकर ले जाऊंगी…
मनोज: यह सब क्या बक रही हो तुम..? मुझे तलाक दोगी इतनी औकात कब से हो गई तुम्हारी..? दो दिन में उलटे पाँव वापस आओगी और जा कहां रही हो..? अपने मायके..? वह लोग रख लेंगे ना तुम्हें..? तुम्हें क्या लगता है
तुम्हारी ऐसी बातों से मैं डर जाऊंगा और तुम्हारे पैर पड़कर गिड़ गिड़ाऊंगा..?
मनीषा: नहीं जी… मैंने ऐसा कब कहा..? मैं तो रोज-रोज आप लोगों की बातें सुनकर यह सोचती हूं कि मैं आप लोगों की जिंदगी खराब कर रही हूं… आप लोगों को बेहतर लड़की मिलनी चाहिए थी, सो मैंने सोचा चलो मैं ही आपसे अलग हो जाती हूं…
क्यों किसी पर जबरदस्ती बोझ बनना..? सच में मेरी औकात नहीं आप लोगों के बीच रहने की, इसलिए आपको आजाद कर रही हूं.. अब आप अपने लिए अपनी पसंद की लड़की ढूंढ लेना… उसके बाद मनीषा चली गई
अगले दिन आशा जी सब कुछ संभाल लेगी यह सोचकर बड़ी जोश के साथ सुबह उठी… पर एक बार में एक ही काम संभालने के कारण उनकी पूजा रह गई… मनोज को नाश्ता वक्त पर नहीं मिला… जिससे उसे ऑफिस में डांट पड़ी… मनोज का कोई सामान जगह पर नहीं था.. दोनों मां बेटे ही आपस में लड़ जाते कभी-कभी…
मनोज: कहा था अतुल भैया के तलाक वाली बात घर में ना कहें..? पर आप औरतों के पेट में कोई बात बचे तब ना..?
आशा जी: मैंने वह बात तुझे बताने के बाद फिर कभी जिक्र ही नहीं की इस घर में.. यह तेरी गलती है क्या जरूरत थी बात बात पर बहू पर चिल्लाने की..? आखिर कब तक सहती बेचारी..?
मनोज के पापा अशोक जी: बेचारी..? कौन बेचारी..? जिसको तुमने भी कम नहीं सताया… खुद तो दिन भर बैठी रहती और उसे बस हुकुम देती रही… सही किया बिल्कुल बहू ने और तुम आशा मेरी दवाई का समय याद रखो, जैसे पहले रखती थी… अब तो बहू भी नहीं है, जो वह दे देगी…
दोनों मां बेटे अब पछताने लगे… थोड़ी दिन बाद दोनों ने तय किया के मनीषा को वह वापस लाएंगे… यह सोचकर आशा जी ने मनीषा की मां मीना जी को फोन किया और कहा नमस्ते समधन जी…
मीना जी: जी नमस्ते…
आशा जी: मनीषा को फोन दीजिए जरा…
मीनी जी: पर मनीषा तो वही है ना..?
आशा जी: क्या..? आप झूठ बोल रही है ना..? उससे कहिए हम अपने किए पर शर्मिंदा है.. आगे से उस पर कोई तानाशाही नहीं होगी… बस वह लौट आए… हमें समझ आ गया है उसकी अहमियत… आप उसे फोन दीजिए..
मीना जी: यह सब आप क्या कह रही है समधन जी..? हमें तो इसके बारे में कुछ भी नहीं पता और ना ही मनीषा यहां आई है… आखिर हुआ क्या पूरी बात तो बताइए…?
आशा जी: क्या सच में मनीषा वहां नहीं है..? अच्छा ठीक है मैं आपको थोड़ी देर से कॉल करती हूं.. यह कहकर आशा जी ने फोन रख दिया फिर उन्होंने मनोज से कहा… बेटा गजब हो गया… बहु तो अपने मायके गई ही नहीं… अब उसे कहां ढूंढे..? ऊपर से उसकी मां को भी पता चल गया है.. कहीं वह हमें ही गलत ना समझे
मनोज: क्या..? वह अपने मायके में नहीं तो कहां गई..? मां मैं अब उसे कहाँ ढूंढू.? उसे मैंने हमेशा नकारा ही समझा… आज उसके ना रहने से मुझे यह समझ आ गया है कि उसने उसके बिना मैं नकारा हूं… मैंने हमेशा उसे कितना सुनाया,
बदले में उसने मुझे कभी पलट कर जवाब नहीं दिया… उल्टा उसकी वजह से मेरी जिंदगी खराब ना हो मुझे तलाक तक देने को तैयार हो गई और अपने माता-पिता को परेशान ना करें इसलिए उनके पास भी नहीं गई… उसने हमेशा इस टूटते रिश्ते को बचाने की कोशिश की…
पर शायद मेरी वजह से उसकी यह कोशिश बेकार हो गई… अब तो उससे माफी मांग सकूं, यह मौका भी नहीं रहा…
आशा जी: हां बेटा मेरी भी गलती है… बहु सब कर रही है फिर भी उस पर नुक्स निकाल कर अपने सास होने का अधिकार जताती रही… उससे कभी प्यार के दो बोल नहीं बोले.. अब बस बीते हुए पल को सोच कर खुद को कोसने के अलावा और कोई रास्ता नहीं दिख रहा…
अशोक जी: चलो अच्छा है… तुम दोनों को बहू की कीमत का तो पता चल गया… अब मैं पता देता हूं जाकर मेरी बहू को पूरे सम्मान के साथ ले आओ और आगे से वादा करो कि उसके साथ कभी भी दुर्व्यवहार नहीं करोगे….
मां बेटे हैरान हो जाते है और आशा जी अशोक जी से पूछती हैं… आपको पता है बहू कहां है..?
अशोक जी: हां जब मैंने ही भेजा है तो मुझे तो पता होगा ना..?
मनोज: क्या मतलब आपने भेजा..?
अशोक जी: उस दिन तुम मां बेटे की बातें मैंने सुन ली थी… किस तरह पड़ोस में हुए तलाक का जिक्र तुम कर रहे थे और बहू को बस इस बात से दूर रखने को इसलिए कह रहे थे, ताकि वह कभी इसके बारे में ना सोच सके और तुम लोग उस पर अपनी हुकूमत चला सको…
मैंने उसी दिन तय कर लिया था कि तुम दोनों को सबक सिखाऊंगा… तभी मैंने बहु के साथ मिलकर यह नाटक रचाया और उसे अपने पुराने घर में रहने भेज दिया… तो वहीं जाकर मेरी बहू को ले आओ और आगे से याद रखना मेरी बहू के साथ इस घर में एक भी बदसलूकी मैं बर्दाश्त नहीं करूंगा…
वरना अबकी बार जो नाटक किया वह सच में बदल सकता है और इस गलतफहमी में मत रहना, के तुम्हें तलाक देने के बाद वह दर-दर भटकेगी… वह यह घर मेरी संपत्ति की आधी मालकिन है, उसके लिए इतना काफी होगा, पर तुम लोगों की जिंदगी बदहाल जरूर हो जाएगी…
मनोज: नहीं पापा.. उसकी अहमियत अब मुझे पता चल गई है… मैं अभी जाता हूं उसे लेने..
आशा जी: हां और तब तक मैं भी आरती की थाली सजा लेती हूं… फिर से गृह प्रवेश होगा मेरी बहू का, इस घर की लक्ष्मी का..
धन्यवाद
रोनिता
#टूटते रिश्ते