स्कूल में सर्दियों की छुट्टियाँ हो गई थीं, सभी साथी टीचर्स को बाय कह विभा घर जाने के लिए अपनी स्कूटी स्टार्ट करने लगी| ठंडी हवा से बचने के लिए अपने स्टॉल को कानों पर लपेट लिया था, पर फिर भी ऐसा लग रहा था जैसे ठंडी हवा कानों में घुसी जा रही है|
चलो अच्छा है..!! कल से सुबह थोड़ा देर से उठेगी तो भी चलेगा| राकेश तो वैसे भी 9:00 बजे तक ऑफिस जाते हैं कुछ देर धूप में बैठने को भी मिल जाएगा वरना जब तक घर पहुंचती है धूप चली जाती है| सोचती हुई घर आ गई| ठंड से बचने के लिए चाय पीने ही जा ही रही थी की माँ जी आकर बोलीं|
“बहू अलमारी में जो नई वाली रजाई रखी है उसे कल याद से निकाल कर धूप दिखा देना| रजनी और रीना बिटिया आ रही हैं, कल दोपहर तक पहुंच जाएंगीं|”
“अरे..!! अचानक से रजनी दीदी का प्रोग्राम कैसे बन गया आने का…?” मां जी को चाय का कप पकड़ाते हुए उसने पूछा|
“अचानक नहीं, वह तो बहुत दिन से कह रही थी माँ तुम्हारी याद आ रही है, देखने का मन कर रहा है, बच्चों की सर्दी की छुट्टियों में आऊँगी| मैं ही तुम्हें बताना भूल गई थी|”
कहाँ तो थोड़ा आराम से उठने का सोच रही थी और रोज से भी पहले उठ गई नाश्ते, खाने की तैयारी करनी थी, घर भी ठीक करना था| रोज स्कूल जाने की जल्दी में घर की तरफ ध्यान नहीं दे पाती थी सोच रही थी कि छुट्टियों में सारे पैंडिंग काम निपटा लेगी अब देखो क्या-क्या हो पाता है..?
खैर, आने वाले मेहमान का स्वागत तो करना ही चाहिए और फिर यह तो दीदी का अपना घर है| सबको नाश्ता करने के बाद बेटी कीर्ति के पास बोली…
“बेटा आपको पता है न…..? आज रजनी बुआ आ रही हैं अपना कमरा ठीक कर लेना रीना तुम्हारे साथ सो जाया करेगी, बुआ जी तो वैसे भी दादी के कमरे में ही रहती हैं और हां..! उसके कपड़े रखने के लिए अपनी अलमारी में एक तरफ जगह खाली कर देना”|
“क्या मम्मी आप भी..! आप तो रीना दीदी का नेचर अच्छी तरह से जानती हैं फिर भी वार्डरोब शेयर करने के लिए कह रही हैं आपको याद है ना पिछली बार क्या हुआ था..?.पापा भी कुछ नहीं बोले थे और आपको तो सहते सहते जैसे आदत ही पड़ गई है….आप तो कभी कुछ बोल ही नहीं सकते चाहे कोई आपका सबकुछ उठा कर ही क्यों ना ले जाए”| कीर्ति ने अपने दिल की भड़ास उसके ऊपर निकाल दी|
विभा सब्जी काटते हुए सोचने लगी कुछ नहीं भूली हूँ, और सब समझती भी हूँ…..पर क्या करूं,घर की शांति की खातिर चुप रह जाती हूँ | स्वभाव भी कुछ ऐसा ही है कि अपनी खुशी से ज्यादा दूसरों की दूसरों की खुशी का ख्याल रहता है,खुद चाहे परेशानी उठा लो पर सामने वाले को परेशानी ना हो”|
रजनी दीदी की शादी के करीब डेढ़ साल बाद उसकी शादी हुई थी| रजनी दीदी जब भी मायके आतीं उसका मेकअप का सामान हो या कोई भी साड़ी बिना पूछे इस्तेमाल करतीं और जो अच्छा लगता साथ ले जातीं उसे बड़ा अजीब लगता क्योंकि उसके मायके में तो कोई भी एक दूसरे से पूछे बिना किसी की कोई चीज नहीं लेता था| शुरू शुरू में एक दो बार सोचा भी कि राकेश से इस बारे में बात करे फिर लगा सोचेंगे मेरी बहन की शिकायत कर रही है…..
रजनी दीदी की बेटी रीना और कीर्ति में यही कोई साल भर का फ़र्क था| रीना में भी बिल्कुल अपनी माँ वाली आदतें थीं| बचपन से ही कीर्ति का कोई भी खिलौना हो या ड्रेस उसे अच्छी लगती बस..! उसे भी वही चाहिए| माँ जी कीर्ति से छीन कर उसे पकड़ा देती थीं कीर्ति रोती रह जाती थी|
पहले की बात और थी जब वह छोटी थी थोड़ी देर रोती फिर उसे बहला लेते थे पर अब वह बड़ी और समझदार हो गई है| पिछली बार जब कीर्ति ने अपनी ड्रेस और गॉगल्स जो उसकी मौसी ने अमेरिका से भेजे थे रीना से वापस मांग लिए तो रीना ने हंगामा खड़ा कर दिया| आखिर में दो नई ड्रेस के साथ वह कीर्ति की ड्रेस और गॉगल्स लेकर ही मानी और कीर्ति का मूड पता नहीं कितने दिन तक खराब रहा था|
ऑफिस से आधे दिन की छुट्टी लेकर राकेश रजनी दीदी को लेने स्टेशन चले गए थे| मां जी ने विभा से सारा खाना दीदी की पसंद का बनवाया था| पालक पनीर, मटर पुलाव, रायता, आलू गोभी की सूखी सब्जी, खीर…. सबने मिलकर दोपहर का खाना खाया| बेटी के आने से मां जी के चेहरे की रौनक ही बढ़ गई थी| खाना खाने के बाद सब बातों में लग गए कीर्ति की मदद से उसने रसोई समेटी…
एक तो सर्दियों के दिन इतने छोटे कि सुबह से शाम कब हो जाती पता ही नहीं चलता है| दीदी के आने के बाद तो कभी कोई उनसे मिलने आ जाता या वो किसी से मिलने चले जातीं चार-पांच दिन देखते ही देखते निकल गए|
पता नहीं क्यों इस बार कीर्ति रीना से कटी कटी सी थी..? जब सारे बैठ के बातें कर रहे होते वह उसकी मदद करने के बहाने उसके पास रसोई में आ जाती…
दीदी के जाने के 2 दिन पहले राकेश बोले….
“दीदी को शॉपिंग भी करवानी है पर क्या करूं मेरे पास बिल्कुल भी टाइम नहीं है..? ऐसा करो तुम दीदी को लेकर चले जाना मैं फ्री होते ही सीधा वहीं पहुंच जाऊंगा फिर चाहो तो डिनर करके घर आ जाएंगे|”
मां जी घुटनों के दर्द की वज़ह से घर पर ही रुक गयीं वह लोग मार्केट आ गए| दीदी और रीना मन भर कर अपनी शॉपिंग कर रहे थे कीर्ति ने अपने लिए एक जैकेट ली उसके देखा देखी रीना ने भी एक ब्राउन कलर की जैकेट ले ली… तब तक राकेश भी आ गए| सबकी शॉपिंग खत्म हो जाने के बाद अच्छे से रेस्टोरेंट में दीदी को डिनर करवाने के बाद माँजी का खाना पैक करवा कर वह लोग घर लौट आए|
घर आने के बाद विभा मां जी को खाना देकर आई तब तक रीना सारे शॉपिंग बैग बैड पर फैला कर बैठ गई| अपनी सारी ड्रेस पहनकर देखने के बाद वह जैकेट पहन कर बोली….
“मम्मी देखो इस ब्राउन जैकेट में तो मेरा कलर और ज्यादा डार्क लग रहा है मैं कीर्ति वाली जैकेट ले लेती हूं उसका रंग तो साफ़ है उसके ऊपर तो सारे ही कलर अच्छे लगते हैं|”
“तुझे जो अच्छी लगे वह ले ले लेना बेटा..! कीर्ति के पास तो वैसे भी बहुत कपड़े हैं, अभी पिछले महीने जन्मदिन पर उसकी मौसी ने अमेरिका से इतना बड़ा पार्सल भेजा था| कितने कपड़े पहनेगी यह लड़की..? मां जी को कीर्ति के कपड़ों से ना जाने क्या शिकायत थी..? खाना खाते हुए हमेंशा की तरह माँजी ने अपना फरमान सुना दिया यह भी नहीं सोचा कि रीना को खुश करने के चक्कर में वह कीर्ति के साथ अन्याय कर रही हैं|
मां जी की बात सुनकर जैसे ही रीना कीर्ति की जैकेट उठाने चली उसे कीर्ति की बात याद आ गई…..
“आप तो कभी कुछ कह ही नहीं सकतीं चाहे कोई आपका सब कुछ उठा कर ले जाए|” क्या सच में अन्याय सहने की आदत पड़ गई है उसे….?? क्या उसकी बेटी को भी इसी तरह जिंदगी भर घुट घुट कर जीना होगा….?? अगर आज नहीं बोली तो फिर कभी नहीं बोल पाएगी….
“नहीं बेटा..!! जो जिसका है वह उसका ही रहेगा, आप तो खुद पसंद करके लाए हो फिर अब आपको अपनी जैकेट पसंद क्यों नहीं आ रही है…..??
अब आप इतने छोटे भी नहीं हो कि दूसरे की कोई भी चीज अच्छी लगे और ले लो….. आपने तो कितना कुछ लिया है..? कीर्ति तो सिर्फ एक जैकेट लेकर आई है….. मैंने देखा था कितने मन से उसने अपने लिए वह जैकेट पसंद की थी…. वैसे भी ब्राउन कलर उसे बिल्कुल पसंद नहीं है फिर वह मन मार कर क्यों ले…..?? अगर आपको नहीं पसंद है तो मार्केट जाकर चेंज करवा लो…. कीर्ति इस बार अपनी जैकेट आपको नहीं देगी|
और हां, जो यह बात हो रही है उसकी मौसी के गिफ्ट भेजने की…. तो जिस तरह रीना को उसके मामा और नानी गिफ्ट देते हैं उसी तरह कीर्ति की मौसी भी उसे बहुत प्यार करती हैं… वह उसे चाहे जो भी भेजें किसी को उससे क्या प्रॉब्लम है…..??” कीर्ति की जैकेट उठाकर अलमारी में रखते हुए आज उसे अपने दिल का बोझ कुछ हल्का लग रहा था|
जानती थी इस बार भी बहुत हंगामा होगा पर जब आज तक इतना कुछ कुछ सहती आई है तो आज भी सह लेगी…. पर बेटी के साथ अपने ही घर में अब और अन्याय नहीं होने देगी|
देर से ही सही आज उसे समझ में आ गया था कि जब तक अन्याय सहते रहो आपके साथ अन्याय होता रहेगा… और इस अन्याय के खिलाफ आवाज़ आपको खुद ही उठानी पडती है…. पर यह हिम्मत उसमें कीर्ति की वज़ह से ही आई थी…. क्योंकि एक मां तो सब कुछ बर्दाश्त कर सकती है पर अपने बच्चों के साथ अन्याय होता नहीं देख सकती|
#अन्याय
शाहीन खान
स्वरचित एवं मौलिक