रह -रह कर बिजली चमक रही थी, सर्दी अचानक से बढ़ गई थी, सुप्रिया ने कस कर शाल अपने चारों तरफ लपेट लिया। बाहर जिंदगी अपनी पूरी रफ़्तार से दौड़ रही थी, बस सुप्रिया की ही जिंदगी ठहर गई। पूरी दुनिया वैलेंटाइन डे मना रही पर सुप्रिया किस बात का जश्न मनाये, तलाक के केस में विजय प्राप्त होने का या फिर अकेली रह जाने का। अपने पैरों पर कुल्हाड़ी तो उसने खुद ही मारी थी। क्यों नहीं अपनी बुद्धि से निर्णय लिया,
पढ़ी -लिखी हो कर भी कान की कच्ची निकली।दूसरों के बहकावे में आ उसने अपनी गृहस्थी खराब कर ली। जिस घर से उसने कलह और छल कर सास -ससुर को हटाया, उसी घर में आज वो तन्हा है।
उस दिन सुप्रिया जल्दी -जल्दी काम निपटा रही थी कि उसकी मम्मी का कॉल आ गया। “क्या कर रही सुप्रिया,
” कुछ नहीं मम्मी, खाना बना रही हूँ, मुझे ऑफिस भी जाना है देर हो रही “
“अरे तो तू ऑफिस चली जा,तेरी सास खुद ही खाना बना लेगी , तूने सब काम अपने ऊपर ले उनको आलसी बना दिया है, तू इतना कमाती है, तुझे क्या जरूरत किसी की धौंस सहने की “सुप्रिया की मम्मी ने कहा।
“बाद में बात करती हूँ कह सुप्रिया ने फोन काट दिया।
ऑफिस उस दिन देर से पहुंची थी, माधवी, किरण सबने देर से आने का कारण पूछा। “कुछ नहीं यार, घर के काम ही नहीं खत्म होते हैं, ऊपर से सास -ससुर भी साथ रहते उनके भी ढेरों काम,कितनी भी जल्दी करू,पर देर हो ही जाती हैं।”
“अरे तो अपनी सासु माँ को भी कुछ काम कराया कर, वो घर में ही रहती हैं तो क्या जरूरत उनका खाना बना कर आने की, तू अपना और विजय का बना लिया कर, बाकी तेरी सासु माँ बना लेंगी, मुझे देख, मैंने अभय से साफ कह दिया पैसे भी कमा कर लाऊं और आकर सबकी रोटी भी बनाऊं, मेरे बस का नहीं। मैं नहीं रह सकती इतने लोगों के साथ, मेरी लड़ाई से घबरा कर सासु माँ गांव चली गईं,कुछ दिन तो अभय नाराज रहे
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फिर लाइन पर आ गये।, तू भी कुछ ऐसा कर कि सास -ससुर तेरे पास से चले जायें तू विजय के साथ आराम से रह “किरण ने सलाह दी । किरण की बात सुन सुप्रिया सोचने लगी -काश वो भी ऐसा कर सकती।कहते हैं ना संगत का असर जल्दी पड़ता हैं।धीरे -धीरे सुप्रिया का भी मन बदलने लगा।उसकी मम्मी भी उसे अलग रहने को उकसाने लगी।सुप्रिया में आया परिवर्तन, विजय की नजरों से छुपी नहीं थी।
सुप्रिया अब देर से उठती, देखती रसोई में उसकी सासु माँ काम कर रही होती तो रसोई में जाती ही नहीं, पहले सासु माँ रसोई में कम आती थीं, सुप्रिया ही संभालती थी। पर अब सुप्रिया किसी ना किसी बहाने से काम से हटने लगी। विजय कई बार समझाते -सुप्रिया माँ को घुटने की तकलीफ है ज्यादा देर खड़ी नहीं रह सकती, तुम खाना तो बना लिया करो या कोई खाना बनाने वाली लगा लो।
पर सुप्रिया कुछ भी सोचने -समझने की बुद्धि खो बैठी थी। उसके दिमाग में सिर्फ अलग रहने का मिशन चल रहा था।सासु माँ घुटने की तकलीफ के बावजूद रसोई में लगी रहती, ये देख विजय कई बार गुस्सा करते, जवाब में सुप्रिया भी उनको बुरा -भला कहने लगती, बात बढ़ जाती और सुप्रिया बिना खाये -पीये कमरा बंद कर लेती। विजय की मम्मी उमा जी समझ ही नहीं पाती, अचानक उनकी बहू के व्यवहार में परिवर्तन क्यों आ गया , पहले तो ऐसी नहीं थी।
बढ़ते मतभेद और अशांति ने विजय को त्रस्त कर दिया। अलग रहने की चाह प्रबल हो अहम् में बदल गई। एक दिन छोटी सी बात पर नाराज हो सुप्रिया मायके चली गई। विजय ने सोचा अपने आप गई हैं गुस्सा ठंडा होते आ जायेगी पर मायके में माँ की सीख पर चल रही सुप्रिया ने इसे आत्मसम्मान का प्रश्न बना अदालत में तलाक का केस कर दिया। जी -जान से प्यार करने वाला विजय उसकी हरकत से इतना आहत हुआ कि बिना किसी प्रतिरोध के पेपर पर हस्ताक्षर कर दिया। पिछले हफ्ते सुप्रिया मिसेज विजय शर्मा, के पहचान से मुक्त हो गई। अब सिर्फ सुप्रिया ही रह गई।
सुप्रिया को होश तो तब आया, जब मायके में एक दिन उसने बाहर के कमरे की साज -सज्जा अपने हिसाब से बदल दी। भाभी ने देखते ही हंगामा मचा दिया। भाई और माँ ने सुप्रिया को ही डांट लगाई,बिना पूछे क्यों किया।कल जो माँ, सास -ससुर के लिये खाना बनाने पर एतराज करती थी, अब वही नित -नये फरमाइश सुप्रिया से करती। कभी भाभी कहती दीदी आप खाली हैं तो मोनू को देख लीजिये हम लोग बाहर डिनर करने जा रहे।
पहले भाई -भाभी उसके बगैर डिनर करने बाहर नहीं जाते थे, कभी भाई पूछ भी लेता तो भाभी तुरंत बोल देती -दीदी को हमेशा यही रहना हैं, फिर कभी इनको ले चलेंगे। एक दिन सुप्रिया के भाई -भाभी की आपस में लड़ाई हो गई, सुप्रिया ने बीच -बचाव करना चाहा तो भाभी तुरंत बोल दी -अपना घर तो बिगाड़ दी हैं मेरा घर मत बिगाड़े। माँ ने भी उसे ही डांटा। सुप्रिया समझ गई तलाकशुदा बेटी को मायके में भी कोई जगह नहीं मिलती। सुप्रिया अपने घर लौट आई। ये घर उसे तलाक के एवज में मिला था। जो घर खुशियों से खिलखिलाता था, आज वीरान सा लग रहा था।
घर आने के बाद सुप्रिया अपनी सहेलियों से मिलने गई, किसी ने उससे अच्छे से बात नहीं की। सबको ये डर लगने लगा कहीं उनके पति को ना फंसा ले। तलाकशुदा औरत सब के लिये ग्रांटेड हो जाती है। किरण के पति ने तो उसके सामने ही किरण को बोला -ऐसी औरतों से दूर रहो, नहीं तो ये तुम्हारा घर भी बरबाद कर देंगी।सुप्रिया जी जब आप विजय जैसे भले व्यक्ति से निभा नहीं पाई तो किससे निभाएंगी, कहीं आपका कोई चक्कर तो नहीं चल रहा…, सुप्रिया इसके आगे सुन नहीं पाई,रोते हुये घर लौट आई।
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अब समझ में आया उसे उकसा कर कितना बड़ा धोखा दिया गया। उसकी सुखी गृहस्थी को देख कर यही सहेलियां जलन करती थीं।काश उसने दूसरों के बहकावे में आ अपनी गृहस्थी बरबाद ना की होती। विजय अपने माँ -बाप का इकलौता पुत्र था, वो अपने माँ -पापा को कैसे छोड़ देते, उसने बिना सोचे समझें कैसी जिद पकड़ ली थी। शुरु में सुप्रिया भी दोनों को अपने माता -पिता जैसा सम्मान देती थी पर गलत सलाह ने उसके जीवन को बिगाड़ दिया।
पर अब और नहीं..वो विजय से माफ़ी मांग लेगी, आखिर उसने और विजय ने प्रेम विवाह किया था… क्या हुआ जो अदालत में उसका और विजय का तलाक हो गया है वो सब कुछ भूल नये सिरे से जिंदगी जियेगी। हाँ सबक यही है किसी के बहकावे में ना आ अपनी बुद्धि का उपयोग करना चाहिए।
मोबाइल पर विजय को कॉल मिलाया, उधर से हेलो की. आवाज सुन कर सुप्रिया का गला भर आया, बड़ी मुश्किल से बोल पाई -विजय मुझे माफ कर दो, मुझे सबक मिल गया। विरह की वेदना दोनों तरफ थी। “आ जाओ सुप्रिया, तुम्हारे बिना कहीं चैन नहीं “फिर सुप्रिया रुक नहीं पाई विजय के पास पहुंच, गले लग खूब रोई, सासु माँ से भी माफ़ी मांग ली।वैलेंटाइन का अंतिम दिन आज उसके लिये भी उत्सव बन उसके जीवन को भी प्रेम से भर दिया।सबने सब कुछ भुला कर नये सिरे से जिंदगी शुरु किया।
दोस्तों कई बार हम गलत सलाह में इतने उलझ जाते कि सही -गलत का फैसला नहीं कर पाते। दूसरों के बहकावे में ना आ अपने विवेक से काम लेना चाहिए, कई बार लोग खुद तो घर -परिवार ले कर चलते पर दूसरों को भड़काते हैं
संगीता त्रिपाठी