आज पापा जी को गए हुए एक माह होने जा रहा है पर वो दोनों पति पत्नी उनकी छवि मन से हटा ही नहीं पा रहे हैं।नवीन अकेले उनकी फोटो के आगे बैठा हुआ था…तभी वो चाय ले आई थी।
चाय का एक घूँट पीते ही उसके मुँह से निकला,”वाह, एकदम पापा की पसंद की चाय! आज वो होते तो इस समय कितना उछल रहे होते और आशीर्वाद दे रहे होते”
वो भी हौले से बोली,”सच कह रहे हो, इधर तो वो बिल्कुल बच्चों की तरह करने लगे थे…बात बात पर जिद्द भी करते थे ना”
वो भरे गले से बोला,”उस दिन वो बर्फ की चुस्की खाने के लिए कितना हल्ला कर रहे थे और ना मिलने पर कितना रूठ भी गए थे। आज बहुत दुख हो रहा है”
“सच्ची, उस दिन तुम्हें भी तो जूड़ी सी चढ़ गई थी, बिना बात के कितना झिड़क भी दिया था।”
वो एकदम रो ही पड़ा ,”हाँ पर वो खाँस भी तो रहे थे पर उनकी शरारतें बहुत मज़ेदार भी होती थीं”
इधर सुमति का बड़ा ऑपरेशन हुआ था,पापा जी ने कितनी सेवा की थी…सोचते हुए उसका दिल भर आया था। अचानक कह बैठी,”अपना सौरभ तो बहुत जल्दी बड़ा हो गया था। शुरू से ही गंभीर और मेधावी था। पढ़ता लिखता रहता था…कितनी जल्दी विदेश भी चला गया…कुछ पता ही नहीं चला”
वो भी उसी तरह उदासी से बोला,”सच पूछो तो हम दोनों ही अपना अपना बचपन कहाँ एंजॉय कर पाए थे। कठिन हालातों ने हमको असमय ही
वयस्क बना दिया था, अब पापा जी की हरकतों में ,उनकी बालसुलभ क्रियाकलापों में हम अपना बचपन ही तो जी रहे थे और अब वो भी तो ईश्वर को मंजूर नहीं हुआ।”
अब नवीन ने ही बातचीत को घुमाया और खाना लगाने को उठने लगा,”भई, तुम थोड़ा आराम करो,बहुत बड़ी बीमारी से उबरी हो”
वो रो पड़ी,”बीमारी से तो उबर ही जाऊँगी पर उनके सदमे से उबरने में अभी समय लगेगा।”
वो आँसू पोंछ ही रही थी…क्या देखती है…वो दोनों हाथों में रंग बिरंगे बर्फ के गोले लिए चला आ रहा था। उसने एक झपट कर ले लिया और बच्चे की तरह ही चूसने लगी।