मां! बड़ी मम्मी और बड़े पापा आए हैं मैं उन्हें प्रणाम करके आती हूं••! आप भी चलो!
“तुझे जाना है तु जा”पर••वहां बैठने का काम नहीं! फटाफट चली आना! और ज्यादा दादी-नानी बनने की जरूरत नहीं!
ठीक है••! उदास होकर अनुष्का वहां से चली गई।
क्यों शादी-शुदा बेटी को डांटती रहती हो ? राजेश बाबू आधी नींद में बेटी और पत्नी की आवाज सुन बरबराते हुए उठकर बैठ गए।
क्या बोलूं फिर? सुनती किसका है? बिल्कुल तुम पर गई है!
आ गये तुम्हारे मनहूस भैया और भाभी! पता नहीं कितने दिन उनका चेहरा देखना पड़ेगा और कितने दिन के लिए वह आए हैं? सावित्री गुस्से से बोली।
“क्या बोल रही हो भैया भाभी आए हैं” •••?
फिर कुछ देर रुक कर पुनः बोले।
चाहे ••कितनी भी दिन रहे उससे तुम्हें क्या? कौन सा उन्हें खाना बनाकर खिलती हो या उनके
आओ-भगत में लगी रहती हो! अपने घर आए हैं खाना बनाएंगे खाएंगे!
फिर इतनी परेशानी वाली क्या बात है ?
बहुत खिला लिया अब नहीं! सावित्री बोली।
मैं प्रणाम करके आता हूं! चाय तो पिला सकती हो ना? राजेश जी पूछे।
बिल्कुल भी नहीं अब कोई हमदर्दी नहीं•• चाय तो क्या मैं एक पानी का गिलास भी ना दूं! और ना ही तुम्हें बनाने दूंगी! इतनी नफरत है मुझे उन लोगों से कि मैं उनका मुंह तक नहीं देखना चाहती !
बड़े आए थे बंटवारा करने•• क्या पड़ी थी उन्हें ?
अच्छी खासी नौकरी थी उनकी! उसके बाद भी संतुष्टि नहीं! घर में भी हिस्सा चाहिए!
पल्लू खींचते और मुंह टेढ़ा करते हुए सावित्री वहां से चली गई।
राजेश जी तीन भाई थे।
बड़ा भाई रत्नेश बीच वाले कमलेश।
तीनों भाई की पढ़ाई गांव के विद्यालय से ही हुई। उच्च शिक्षा हेतु, पिता ‘रामानंद बाबू’ ने तीनों को शहर भेज दिया। रत्नेश जी और कमलेश जी तीव्र बुद्धि के थे इस वजह से उन्हें सफलता मिलती गई।
रत्नेश जी प्रोफेसर बने उनकी शादी हुई और वह अपने परिवार के साथ बाहर रहने लगे।
कमलेश जी भी वकील बन अपने परिवार का नाम रौशन किया। प्रेक्टिस अच्छी चलने की वजह से उनकी शादी भी जल्द ही हो गई। और वह भी परिवार लेकर बाहर रहने लगें।
अब बचे हमारे सबसे छोटे, लाडले राजेश जी। दोनों भाई को अपने पैर पर खड़ा होता देख :-
बाबूजी मुझे भी नौकरी करनी है! अरे•• सब नौकरी कर लेंगे तो बिजनेस कौन करेगा?
बाबूजी! मुझे बिजनेस नहीं•• नौकरी करनी है!
छोटे बेटे की जीद से रामानंद बाबू ने कुछ पैसे देकर “प्राइवेट इंटर कॉलेज” में शिक्षक के पद पर नियुक्त करवा दिया।
राजेश जी वैसे तो दुनियादारी और छल प्रपंच में सबसे आगे थे परंतु पढ़ाई में बिलकुल जीरो।
उन्होंने जिस सब्जेक्ट से मास्टर डिग्री की थी उस सब्जेक्ट में भी वह नील थे••और इस कारण इंटरमीडिएट कॉलेज के बच्चों को पढ़ाने में असमर्थ !
बच्चों ने शिकायत प्रिंसिपल से कर दी ।
प्रिंसिपल ने राजेश जी को ऑफिस में बुलाकर
देखो राजेश! तुम्हारे बाबूजी के कहने पर मैंने तुम्हें यहां नियुक्त तो कर लिया परंतु बच्चों का भविष्य का क्या? वह अगर ठीक से पढ़ाई नहीं करेंगे तो परीक्षा में उत्तीर्ण कैसे होंगे•••? खामखां मेरे कॉलेज की बदनामी हो जाएगी!
समझदार के लिए इशारा ही काफी था राजेश जी ने नौकरी से इस्तीफा दे दिया।
आखिर रामानंद बाबू के बोलने पर, राजेश जी ने बिजनेस के लिए हां कर दी। बहुत सोच समझकर और दोनों बेटों के राय विचार से उन्होंने ईंटों का भट्टा चालू करने का फैसला किया परंतु रामानंद बाबू के पास तत्काल इतनी बड़ी पूंजी नहीं थी इसलिए उन्होंने दोनों भाई से पैसों की मदद मांगी भाइयों ने भी अपनी-अपनी प्रॉफिट की मांग करते हुए सारा पैसा बिजनेस में लगा दिया। अब रामानंद बाबू के रणनीति और उनके देखरेख में बिजनेस फलने-फूलने लगा ।
सही मायने में बोला जाए तो राजेश जी बिजनेस के लिए ही बने थे झूठ-प्रपंच,रणनीति क्या होती है और उसे कैसे लागू किया जाता है यह उनसे अच्छा कोई नहीं समझ सकता ।
इसी बीच किसी गंभीर बीमारी से रामानंद बाबू की मौत हो गई। पहले तो प्रॉफिट का कुछ हिस्सा दोनों भाई को दिया जाता था परंतु उनके मरने के बाद राजेश जी ने देना बंद कर दिये।
जब भाई अपना हिस्सा मांगते तो उन्हें यह कह टाल जाते कि
ईंटों की बिक्री अभी नहीं हो रही।
इधर सावित्री के दिन मजे में गुजरने लगे। लाखों के गहने- साड़ियां उसके शौक बनते जा रहे थे।
बाबूजी के मौत के बाद रत्नेश जी गर्मियों की छुट्टी में महीना भर लगा खेत के पेंडिंग काम को पूरा कर जाते।
जब वह आते तो ‘कमलेश जी’ भी परिवार के साथ गांव चले आते। फिर तो पूरा परिवार इकट्ठा हो जाता। सभी के आओ-भगत में राजेश जी कोई कसर नहीं छोड़ते।
देवरानी सावित्री अपनी जेठानी सरोज और सुनीता की खूब सेवा करती। बिल्कुल सास की तरह।
सावित्री के सेवा से सरोज और सुनीता फूले नहीं समातीं ।दोनों जेठानी-देवरानी आपस में बात करती कि कितनी अच्छी है ना हमारी देवरानी••!
हां दीदी! हम बहुत भाग्यशाली हैं जो हमें ऐसी देवरानी मिली! कितना ख्याल रहता है हमारा! कोई भी काम हमें नहीं करने देती!
मेरी तो बिना पैर दबाए वह सोने ही नहीं जाती सरोज खुश होते हुए बोलती ।
भगवान करे ऐसे ही हमारा प्यार बना रहे कहते हुए दोनों भावुक हो जाती।
फिर महीना लगाकर सभी अपने अपने जगह चले जाते।
धीरे-धीरे समय बीतता गया रत्नेश जी ने बेटी की शादी ठीक कर दी
एक दिन फोन पर :-
छोटे! मैने ‘अनु की शादी’ तय कर दी है! लड़का यही इसी शहर का है और बैंक में कार्यरत है!
वाह भैया••! ये तो बड़ी खुशी की बात है!
हां शादी भी अगले ही महीने की रखी है और लड़के वाले शादी यहां •• इसी शहर से करना चाहते हैं!
अच्छा••!
हां सुन!तुझसे एक काम था! बोलिए ना भैया!
कुछ पैसों का इंतजाम हो जाता तो मुझे भी शादी में सहयोग मिल जाता!
पर भैया पैसे कहां से आएंगे?
अगर भट्टे से कुछ आमदनी हुई हो तो पैसे••
भैया! मैंने आपको बताया नहीं कि ,आप टेंशन में आ जाओगे! बीच में ही बात काटते हुए राजेश जी बोल पड़े बिजनेस बहुत मंद चल रहा है! कई भट्टे खुल चुके हैं इस वजह से ईटों की बिक्री रुक गई है !
अच्छा! मुझे तो इस बात का पता ही नहीं था! देख तू टेंशन मत ले मैं कोई दूसरा जुगाड़ देखता हूं!
कहते हुए रत्नेश जी फोन रख देते हैं।
बिना घर के सहयोग से उन्होंने किसी तरह बेटी की शादी कर ली।
” घर से तो हमें किसी तरह की मदद नहीं मिली “!सरोज मायूस होते हुए बोली।
कोई बात नहीं•• शादी ठीक से हो गई ‘भगवान’का शुक्र मनाओ! पत्नी को संतावना देते हुए रत्नेश जी बोले।
शादी के कुछ महीने बाद ही उनके बेटे की सरकारी नौकरी लग गई । सभी बहुत खुश थे। इधर कमलेश जी ने अपने दोनों बेटों को ‘इंजीनियरिंग’ में डाल दिया।
सभी बच्चों को सेटल होते हुए सुन सावित्री जी के कलेजे पर सांप लोटने लगा।
पता नहीं हमारा बेटा क्या करेगा? सावित्री राजेश जी से गंभीर चिंतन कर रही थी।
अरे तू फिक्र मत करो•• इसका भी मैंने उपाय ढूंढ लिया है अब भैया के आने का इंतजार है!
पर प्लान तो बताओ? सावित्री उत्सुकता वश पूछ बैठी।
अभी उन्हें आने तो दो••• तब तुम भी जान जाओगी! फिलहाल मेरे लिए एक कप चाय बना दो! रत्नेश जी परिवार के साथ छुट्टियों में घर पहुंचे तो हमेशा के भांति दोनों पति-पत्नी भाई-भाभी के स्वागत में जी-जान से लग गए। भाई-भाभी के मन में घर से सहयोग न मिल पाने के कारण, जो खटास थी वह उनके स्वागत से दूर हो गई।
एक दिन दोनों भाई इकट्ठे बैठे थें तभी राजेश जी ने सोनू की बात छेड़ दी ।
मुझे तो सोनू के लिए अब फिक्र हो रही है भैया!
राजेश रत्नेश जी से बोले ।
क्यों छोटे-?
उसकी 12वीं का रिजल्ट महीना के अंदर ही आ जाएगा फिर पता नहीं उसे क्या करना है? पढ़ाई में वह इतना भी होशियार तो नहीं कि अपने बलबूते पर कोई प्रतियोगिता निकाल सके !मुझे तो बहुत टेंशन हो रही है!
सावित्री का बीपी भी इसी सोच में ‘लो’ हो गया !एक दिन वह चक्कर खाकर गिर पड़ी डॉक्टर को दिखाया तो उसने टेंशन लेने से मना कर दिया!
वह पगली दिन-रात बेटे के लिए ही सोचती रहती है! अब आप ही बताओ मैं क्या करूं?
भाई की इस समस्या को सुन रत्नेश जी का दिल पिघल गया उन्होंने फौरन कमलेश जी को घर बुलाया और सभी के आपसी सहमति से उन्होंने सोनू को प्राइवेट’ डेंटल कॉलेज ‘में एडमिशन करवाने का निर्णय लिया!
पर भैया!उसमें तो 20 लाख से काम नहीं लगेंगे? और इतना पैसा मेरे बस की बात नहीं!
अच्छा भट्टे से तुझे कुछ आमदनी है या बस यूं ही••? अगर आमदनी नहीं तो क्यों ना हम भट्ठा बेच दें ?
कमलेश जी ने अपना राय व्यक्त की ।
नहीं-नहीं इधर बिक्री शुरू हो गई है बेचने की बात सुन ,घबराते हुए राजेश जी तुरंत बोल पड़े।
तो ठीक है ! उसी आमदनी से तू सोनू का ‘कॉलेज फी’ भरना!
जब तक वह पढ नहीं जाता तब तक हम तुझसे कुछ भी नहीं लेंगे!
क्यों कमलेश?
रत्नेश जी बोले।
कुछ देर सोचने के बाद कमलेश जी ने भारी मन से हां बोल दी।
राजेश जी की तरकीब काम कर गई। बेचारा बन उन्होंने “जॉइंट पैसों “से सोनू की पढ़ाई पूरी करवा ली और इसी तरह रोते-रोते चालाकी से बेटी की शादी भी पढ़े-लिखे नौकरी वाले लड़के से कर दी।
अब रत्नेश जी रिटायर हो चले। घर चलते हैं वहीं रहकर खेती-बाड़ी करेंगे!शहर से मन ऊब चुका है! अब मुझे शांति चाहिए!
कुछ दिन बाद उन्होंने गांव की तरफ रुख किया। जब वह वहां रहने लगे तब उन्हें, धीरे-धीरे छोटे की चालाकी तथा धोखा-गिरी का पता चलने लग गया। जब उन्होंने सारे चीज का हिसाब मांगा तो राजेश जी बड़े भाई पर ही बरस पड़े और उन्हें भला-बुरा सुना दिया।
भैया मैं सोचता हूं कि हमें बंटवारा कर लेना चाहिए ताकि अपना-अपना देख सकें!कमलेश जी बात बिगड़ते देख रत्नेश जी से बोले।
समाज क्या कहेगा? यह उचित नहीं है! रत्नेश जी बोले ।
भैया! यह सब तो आप ही का किया-धरा है आपने इसे बेरोजगार समझ, इतनी छूट दे दी कि इसने हमारी शराफत का फायदा उठा ,हमें ही धोखा देने लग गया! और जब हिसाब मांगा जा रहा है तो पूरे परिवार को मिर्ची लग रही है!
अब कमलेश जी बंटवारा करवाने पर तुल गए ।
बंटवारे की बात सुन सावित्री ने उन्हें बहुत भला-बुरा कहा और उसी समय उसने तुरंत अपनी रसोई अलग कर ली।
कमलेश जी के प्रयास से सभी भाइयों के बीच बंटवारा तो हो गया परंतु भाईयों के बीच “नफरत की दीवार” खड़ी हो गई जो आज सावित्री के चेहरे से साफ झलक रहा था ,जब उसने उन्हें चाय तो दूर प्रणाम करने से भी मना कर दिया।
दोस्तों आपसी बंटवारे पर आपकी क्या राय है? क्या भाइयों के बीच बंटवारा होना सही है या सम्मिलित रहना•• ??
कृपया अपने विचार कमेंट के द्वारा व्यक्त कीजिए।
कहानी पसंद आई हो तो प्लीज इसे लाइक्स ,कमेंट्स और शेयर जरूर कीजिएगा।
धन्यवाद।
मनीषा सिंह