बांझ – संगीता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

राधिका की खुशियां थामे नहीं थम रही थी आखिर आठ साल बाद मां बनने का सौभाग्य जो मिल रहा था।खुश तो माधव भी बहुत था आखिर नाउम्मीदी के दलदल में उम्मीद का कमल खिला था । अब बांझ नहीं कहेगा कोई मुझे ये सोच सोच राधिका खुश हो रही थी । कितना कुछ सहा उसने इन आठ सालों में। सोचते सोचते वो अतीत में पहुंच गई।

” अरे माधव की मां बेटे के ब्याह को साल होने वाला दादी बनने का सुख कब मिल रहा तुम्हे !” अकसर कोई ना कोई पड़ोसन राधिका की सास केतकी से पूछती।

” अरे बहन अभी तो बच्चों के खेलने खाने के दिन है अभी से इन जिम्मेदारियों में क्या पड़ना !” केतकी जी अक्सर यही जवाब देती।

पर जैसे जैसे वक़्त बीतता गया मोहल्ले की औरतें केतकी जी को बेचारी , फूटी किस्मत वाली और ना जाने क्या क्या कहने लगे और राधिका को नाम मिला भाग्यहीन बांझ का क्योंकि शादी के पांच साल बाद तक भी एक बच्चा जो नहीं जन पाई थी वो। हालाकि घर में उसे उसकी सास , ससुर पति कुछ नहीं बोलते थे पर पड़ोसियों की बातें अक्सर उसका दिल दुखा देती। हालाकि राधिका का इलाज चल रहा था पर अभी उम्मीद की लौ नहीं नजर आईं थीं।

” बहू वो निर्मला की बहू के बेटा हुआ है उसकी छटी है आज तैयार रहना तुम वहां चलने को !” एक दिन केतकी जी बोली ।

” ठीक है मांजी वहां मैं खूब सारे गीत गाऊंगी बच्चे के लिए !” राधिका चहकते हुए बोली।

दोपहर में दोनों सास बहू तैयार होकर निर्मला जी के घर पहुंची।

” अरे केतकी तुम्हारी बुद्धि फिर गई है क्या जो बच्चे के शुभ कारज में इस भाग्यहीन बांझ को लाई है !” एक पड़ोसन राधिका की सास से बोली।

” मेरी बहू ना तो भाग्यहीन है ना ही बांझ है बस थोड़ी परेशानी है जिसका इलाज चल रहा है जैसे ही इलाज पूरा होगा वो भी मां बन जाएगी !” केतकी जी सबसे बोली।

” किसे बहला रही हो माधव की मां हमे या खुद को अरे बच्चा होना होता तो अब तक हो जाता ये डॉक्टर तो बस इलाज के नाम पर लूटते हैं वरना जिसकी क़िस्मत में बच्चा हो तो शादी के एक बाद ही हो जाता जैसे मेरी बहू के हुआ !” एक और पड़ोसन बोली।

” बहन आज के युग में तुम कैसी बात करती हो इंसानी शरीर मशीन है मशीन में खराबी लगी रहती माना राधिका अभी मां नहीं बन पाई पर ये जरूरी तो नहीं कभी नहीं बनेगी !” केतकी नम्रता के साथ बोली।

” अरे बंजर जमीन पर फूल ना खिला करे हैं …इसे वापिस भेज दे वरना कहीं शुभ कारज में कुछ अनहोनी ना हो जाए मेरी बहू और पोते पर मैं इसका साया भी ना पड़ने दूंगी !” निर्मला जी बोली।

राधिका बेचारी ये सुनकर अपमान और दर्द का घूंट पी घर को भागी और ईश्वर के सम्मुख हाथ जोड़ रोते हुए बोली। ” हे भगवान मेरे साथ ही ऐसा क्यों क्यों तुमने मुझे बंजर बनाया !”

” ना बहू तू बंजर नहीं है क्यों ऐसे लोगो की बातों से अपना जी दुखाती है तू देखियो एक दिन तेरी कोख भी हरी होगी मुझे अपने कान्हा पर विश्वास है !” तभी वहां केतकी जी आ बोली और राधिका को गले लगा लिया। 

” मांजी आप बहुत अच्छी हो जो हर परिस्थिति में मेरा साथ देती हो पर अब बहुत हुआ आप माधव जी की दूसरी शादी करवा दीजिए !” राधिका केतकी जी के सीने से लगी फूट फूट कर रोते हुए बोली।

” आज ये बात बोल दी सो बोल दी आज के बाद ऐसा कुछ नहीं सुनना मुझे अगर बच्चा नहीं हुआ तो हम गोद ले लेंगे पर बहू मेरी तू ही रहेगी!” केतकी जी उसे मीठी झड़प लगाती बोली।

” मांजी आप सच में देवी है!” राधिका अपनी सास के आगे नतमस्तक हो गई।

” ना बहू ऐसा कुछ नहीं तू नहीं जानती जो आज तू सुन रही सह रही ये मैने भी सहा है क्योंकि माधव शादी के चार साल बाद हुआ था वो भी बहुत इलाज के बाद तब सब मुझे भी भाग्यहीन , बांझ और ना जाने क्या क्या बोलते थे मुझे भी बहुत खराब लगता था यहां तक कि मेरी सास भी तुम्हारे ससुर की दूसरी शादी की बात करती थी पर किस्मत को मुझ पर तरस आया और उनकी शादी से पहले ही मेरी गोद हरी हो गई तब माधव के मेरी गोद में आते ही मैने खुद से वादा किया था अपनी बहू का मैं हर मोड़ पर साथ दूंगी !” केतकी जी ने राधिका को सारी सच्चाई बताई।

उसके बाद केतकी जी ने खुद भी किसी शुभ कार्य में जाना बन्द कर दिया यहां तक कि पड़ोसनों के साथ उठना बैठना भी बन्द कर दिया जिससे उनकी कड़वी बाते राधिका का दिल ना दुखाए।

और आज डॉक्टर को दिखाने आईं राधिका को डॉक्टर ने ये खुशखबरी दे दी।

” राधिका आप सुन रही हैं मैं क्या कह रही हूं !” तभी डॉक्टर की आवाज़ से राधिका वर्तमान में आईं।

” जी डॉक्टर क्या कहा आपने?” राधिका ने पूछा।

” तुम्हे अपना ध्यान रखना है , कोई भारी काम नहीं करना खाने पीने पर ध्यान देना है और दवाइयां वक़्त से लेनी है समझी तुम !” डॉक्टर बोली।

” जी डॉक्टर !” ये बोल राधिका खुशी खुशी माधव के साथ घर आईं और केतकी के गले लगकर फूट फूट कर रो दी।

” क्या हुआ बहू सब ठीक तो है !” केतकी जी चिंतित हो बोली।

” सब ठीक है मां अब आप बेचारी और फूटी किस्मत वाली नहीं रही ना ही कोई मुझे भाग्यहीन बांझ बोलेगा !” राधिका नम आंखों से हंसते हुए बोली।

” क्या ….सच में … ओह बहू तुम नहीं जानती ये कितनी बड़ी खुशी है !” केतकी जी उसका माथा चूमते हुए बोली।

घर में सब बहुत खुश थे माधव राधिका का पूरा ख्याल रखता और केतकी जी तो उसे बिस्तर से उतरने नहीं देती।

देर से ही सही राधिका की जिंदगी में खुशियां आ ही गई।

दोस्तों बच्चा ना होना एक औरत के लिए बहुत दुखदाई है और ऐसे में कुछ लोग उसे भाग्यहीन , बांझ की संज्ञा दे उस शुभ कार्य से दूर रख उसके दुख को बढ़ा देते है। ये बहुत गलत है मां ना बन पाना फूटी किस्मत का दोष नहीं अपितु एक बीमारी है जिसका इलाज हो सकता है और ना भी हो तो बच्चा ना होने से कोई औरत अपशगुनी नही बन जाती तो यूं किसी को ताने देना बहुत गलत है ।

क्या आप मेरी कहानी से इत्तेफाक रखते है?

आपकी दोस्त 

संगीता अग्रवाल

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