राजस्थान के कोटपूतली का किरतपुरा शेत्र आज सुर्खियों में हैं। वज़ह, 3 साल की एक मासूम बोरवेल में गिर गई ओर 150 फिट गहराई में फस गई। बोरवेल में गिरने वाले सब बच्चे प्रिन्स जैसे किस्मत वाले नही होते जो अपने माँ बाप से दुबारा मिल सके।
प्रिंस के बोरवेल में गिरने के बाद अबतक अनेकों अनेक बच्चे अपनी जान गवा चुके हैं। हादसा होने के बाद पुलिस, एन ड़ी आर एफ आदि पूरी प्रशासनिक मशीनरी काम पर लग जाती हैं, दो तीन दिनों तक खूब उठा पटक करने के बाद सब भूल जाते हैं और फिर दूसरी जगह किसी दूसरे बच्चे के गिरने का इंतजार करते हैं।
क्या प्रशासन कोई गाइड लाइन नही बना सकता ?
* बोर करने वाले की क्या जवाबदेही है?
* बोर कराने वाले की क्या जवाबदेही है?
* नगर पालिका, पुलिस प्रशासन आदि की क्या जवाबदेही है?
भ्रुण हत्या रोकने के लिये गाइड लाइन्स बनाई, सोनोग्राफी पर अंकुश लगाया ओर परिणाम साफ नजर आते है।
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पोलियो, हैजा, टी बी, प्लेग, जैसी अनेक बिमारिओ को सिस्टेमैटिक ढंग से कंट्रोल किया।
कोविड़ जैसी महामारी तक तो अच्छे से मैनेज किया तो बोरिंग / बोर तो कुछ भी नही बस जिस दिन इसे समाज मे एक बीमारी मान लिया जायेगा, निवारण भी हो जायेगा। फिर किसी मां की गोद सूनी नही होगी, किसी बाप से उसकी औलाद जुदा नहीं होगी, भाई से बहन जुदा नही होंगी।
कब तक दूसरों की गलती के लिए मासूम बच्चों की बलि चढ़ती रहेगी ? कब तक ?
रचना
एम पी सिंह
(Mohindra Singh)
स्वरचित, अप्रकाशित
24 Dec 24