सुनंदा जी का बेटा नितिन और बहु नीतिका विदेश में रहते थे। उन्होंने आज ही उन्हें दादी बनने की खबर दी थी। जिसे सुनकर सुनंदा जी बहुत खुश थी। सुनंदा जी ने ये खुशखबरी अपने पति रमाकांत जी को दी और कहा चलो मंदिर में प्रसाद चढ़ाकर आते हैं। नितिन की शादी के 6 साल बाद मुझे ये शुभ समाचार सुनने को मिला है।
सुनंदा जी फोन पर नीतिका को समझाती रहती कि बेटा अपना ध्यान रखो। वजन मत उठाना आदि-आदि। नीतिका भी “जी मम्मी” कहकर उनका मान बढ़ाती। लेकिन बच्चे इन सब चीजों को नहीं समझते और कम टाइम की प्रेग्नेंसी में ही घूमने का प्रोग्राम बना लिया। वहां जाकर नीतिका की तबियत खराब हो गई। नितिन तुरंत उसे डॉक्टर के पास लेकर गया। डॉक्टर ने अल्ट्रासाउंड करके बताया कि बच्चा तो ठीक है लेकिन अब आपको कंप्लीट बेडरेस्ट करना होगा। आपको अपने पास किसी बड़े को रखना चाहिए जो आपका अच्छी तरह से ध्यान रख सके।
नितिन ने सुनंदा जी को अपने पास आने के लिए कहा तो वे और रमाकांत जी नितिन के पास अमेरिका चले आए।
लेकिन पास में रहने पर एक दूसरे की आदतों के साथ भी हमें सामंजस्य करना होता है। जब बच्चों को अकेले रहने की आदत हो जाती है तो बड़े-बुजुर्गों से उन्हें बंधन दिखाई देने लगता है। सुनंदा जी नीतिका का एक बेटी की तरह ध्यान रखती उसे हिम्मत भी देती। लेकिन नीतिका भी सारा दिन लेटे-लेटे और हर काम के लिए दूसरों पर निर्भर होकर चिड़चिड़ी सी हो गई थी। अब उसे अपनी सास का कुछ समझाना नागवार लगता। वही बहु जो पहले जी मम्मी, जी मम्मी करती थी अब उनके कुछ कहने पर झुंझला जाती। रमाकांत जी का सारा दिन घर पर रहना भी उसको बर्दाश्त नहीं हो रहा था।
सुनंदा जी उसकी मनोस्थिति समझ रही थी। उन्हें अब लग रहा था कि जब पहले नितिन उन्हें बुलाता था उन्हें तब आना चाहिए था जिससे बहु को उनके साथ रहने की आदत बनी रहती।
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जैसे जैसे नीतिका की डिलीवरी का समय करीब आ रहा था उसकी परेशानियां बढ़ती ही जा रही थी। सुनंदा जी अपनी तरफ से नीतिका का हर संभव ध्यान रखती और उसके बुरे व्यवहार को नजरअंदाज कर देती।
एक दिन नीतिका गुस्से में सुनंदा जी से बोली आप तो मुझसे छुटकारा चाहती है। कहते है मूल से ज्यादा ब्याज प्यारा होता है इसलिए आप मेरा ध्यान रखती है। अगर मुझमें और बच्चे में से डॉक्टर ने किसी एक को चुनने के लिए कहा तो आप तो मुझे ही मर जाने देंगी। नहीं बेटा कैसी बाते कर रही हो। नितिन भी वहीं बैठा था ओर वह भी नीतिका का गलत व्यवहार बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था। आज उसे बहुत गुस्सा आया फिर भी नीतिका की स्थिति को देखते हुए उसने बड़ी मुश्किल से अपने गुस्से पर नियंत्रण किया और नीतिका से कहा देखो अपने व्यवहार को तुम क्या से क्या हो गई हो। हम सब तुम्हारी परेशानी को समझ रहे है तो तुम भी तो कुछ समझो।
नितिन…उठो ना मुझे बहुत तेज दर्द हो रहा है जल्दी मम्मी को उठाओ ना। नितिन अपनी मम्मी के साथ नीतिका को लेकर हॉस्पिटल पहुंचा। नीतिका की हालत बहुत खराब थी। उसका चेक अप करने के बाद डॉक्टर ने आकर बताया कि शायद हम मां और बच्चे में से किसी एक को ही बचा सकते है। नीतिका दर्द से तड़पती हुई भगवान को याद कर रही थी। तभी उसे बाहर से अपनी सास की आवाज सुनाई दी जो रोते हुए बोल रही थी डॉक्टर साहब आप बस किसी भी तरह मेरी बहुरानी को बचा लो। नीतिका को अपनी कही हुई सारी बाते इस समय याद आ रही थी। उसकी आंखों से आसूं बहने लगे।
लेकिन ईश्वर की कृपा से नीतिका और बच्चा दोनों सही थे। सुनंदा जी भी अब नीतिका और बच्चे का पूरा ध्यान रखती। कुछ समय बाद उन्होंने नितिन से अपने घर वापस जाने के लिए टिकट कराने को कहा। जब नीतिका को पता चला तब उसने सुनंदा जी के आगे हाथ जोड़कर उनसे माफी मांगी और बोली, मम्मी मैं बहुत शर्मिंदा हूं। प्लीज आप यही रहिए अपने पोते और बच्चों के साथ। मैं आपको कही नहीं जाने दूंगी। अगर आप चली गई तो मैं समझूंगी की आपने मुझे माफ नहीं किया। रमाकांत जी बोले अंत भला तो सब भला। भाई मैं तो अपना बुढ़ापा अपने पोते के साथ ही बिताऊंगा। जी बिल्कुल मैं भी। और प्यार से नीतिका का गाल थपथपा दिया।
नीलम शर्मा