” बहुरानी ” – अयोध्याप्रसाद उपाध्याय : Moral Stories in Hindi

प्रमोद का रिटायरमेंट हो गया था। पत्नी रंजना की सेवा अभी तीन साल शेष थी। वह ग्राम सेविका के पद पर गांँव में ही कार्यरत थी। एक ही लड़का विनोद जो पटना सचिवालय के शिक्षा विभाग में  पदाधिकारी था।  उसकी दादी प्रेमशीला उसे बहुत मानती थी। बार बार यही कहती ” मैं अपने विनोद की शादी विवाह देखकर ही इस दुनिया को अलविदा करुँगी ।”

दादा देवदत्त अपनी पत्नी की बातें सुनकर खूब हँसते और कहते ” पता नहीं एक पल का और ये पोते की शादी में गीत गाने के लिए बेचैन हैं।”

प्रेमशीला ने कहा ” इतनी जल्दी मेरी मौत आने वाली नहीं है। अपने विनोद की शादी में झूम झूम कर गीत गाऊँगी और अपनी बहुरानी को भी सुनाऊँगी ।” सभी एक ही साथ हँस पड़े। रंजना ने कहा ” मां जी, अपनी बहुरानी से तेल लगवायेंगी, और उसे तरह तरह की कहानियांँ सुनायेंगी। “

प्रेमशीला ने रंजना से कहा ” बहू! अब तुम्हारा समय नहीं रह गया है तेल मालिश करवाने का।देखती नहीं हो कितना  बदलाव आ गया है । घर घर की बहुरिया अपने मन की हो गयी हैं। वैसे भगवान की कृपा से हमारे विनोद की पत्नी एक नंबर की मिलेगी। जो एक मिसाल कायम करेगी। ” हाँ माँ !  मुझे भी ऐसा ही लगता है कि विनोद की पत्नी ठीक ठाक ही मिलेगी क्योंकि वह बहुत सीधा-सादा है। शादी विवाह के लिए तो बहुत लोग आ जा रहे हैं किन्तु अभी तक कहीं तय नहीं हुआ है, प्रमोद जी समय पर बेटे की शादी के लिए मन बना चुके हैं। इससे विनोद को भी कोई आपत्ति नहीं है। पिताजी जहांँ तय कर देंगे वहांँ  होगा । फिर उस बारे में कुछ भी नहीं कहना।

चुरामनपुर के रहने वाले संजीव अपनी बेटी दीपा की शादी के लिए प्रमोद जी के घर आये हैं। साथ में दीपा का फोटो सहित बायोडाटा भी ले आये हैं। संजीव एयरफोर्स में इंजीनियर से अवकाश प्राप्त हैं। दीपा गृहविज्ञान में एम् ए पास है और इससे संबंधित कोई व्यावसायिक कोर्स दिल्ली विश्वविद्यालय से कर रही है। जो अब समाप्त होने पर है।

प्रमोद जी और संजीव के बीच कुछ देर तक बातें होती रही और साथ साथ चाय और नाश्ता भी। प्रमोद जी ने संजीव को यह कहा कि ” आपका बायोडाटा हमलोग देखेंगे और दीपा के फोटोग्राफ पर भी विचार करेंगे। यदि अनुकूल हुआ तो आपको सूचना दी जायेगी। ” चलते चलते संजीव ने कहा”एक सप्ताह के बाद मैं आपसे इसके संबंध में जानकारी प्राप्त कर सकता हूंँ ।”  हांँ, हाँ — प्रमोद ने कहा।

इस कहानी को भी पढ़ें:

आईना – डा. पारुल अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

छठ पर्व के अवसर पर विनोद भी आया हुआ है। रंजना छठ व्रत करने वाली है। एक दिन सब बैठ कर दीपा के बायोडाटा पर विचार करने लगे।

सबने यही कहा कि लड़की फोटो में तो सही लग रही है और जहांँ तक बायोडाटा का सवाल है वह भी ठीक ही है। व्यावसायिक कोर्स कर रही है।

नौकरी करने की रुचि होगी तो पटना में भी कर सकती है। आपसी सहमति इसके लिए बन गयी। इधर एक सप्ताह का वक्त भी आ गया। संजीव ने प्रमोद के पास मोबाइल फोन किया। दोनों ने आपस में बातें की जो सार्थक रही। संजीव ने पुनः आने के लिए पूछा था तो प्रमोद ने सहर्ष स्वीकृति प्रदान कर दी थी। संजीव अपने बेटे सलिल के साथ प्रमोद जी से मिलने और विवाह के मुद्दे पर चर्चा करने के लिए आये। दोनों के बीच जो कुछ भी बातें हुईं वे उत्साहित करने वाली थीं। सबसे पहले यह जरुरी समझा गया था  दीपा को देखना। संजीव हर तरह से तैयार थे।

वैसे उन्होंने कहा था कि आप हमारे घर आ जायें और कायदे से देख-सुन और बातें करके संतुष्ट हो जायें या फिर असंतुष्ट मुझे कोई दिक्कत नहीं होगी। मैं तो बस इतना ही जानता हूंँ कि ईश्वर जो चाहेगा वही होगा। प्रमोद जी सपरिवार संजीव के घर जाने के लिए तैयार हो गये। चले भी गये जहांँ उनका खूब स्वागत सत्कार हुआ। मन ही मन बहुत खुश थे। उनको संजीव के घर सब कुछ अच्छा लगा। रंजना भी दीपा को देखकर अति प्रसन्न थी। वहांँ जब तक रही उससे बातें करती रही। दीपा की मां स्वाति भीतर भीतर आशंकित हो रही थी कि अंतिम क्षणों में इनका निर्णय क्या होगा वे ही जानें। स्वाति ने रंजना से दीपा की भरपूर मात्रा में प्रशंसा की। रंजना सुनती रही और सुनाती रही। स्वाति को कुछ ऐसा महसूस हुआ कि रंजना जी दीपा से संतुष्ट हैं। उसे थोड़ा सा बल मिला।

जब भोजन पानी हो गया उस समय संध्या के चार बजे थे। अब जाने की तैयारियां होने लगी थीं इससे पहले की कुछ खास रस्में पूरी कर ली जायें। रंजना ने दीपा को बुलवाया और उसके गले में एक सोने की चेन पहना दी। बहुत सारे और भी गहने और वस्त्र दिये। प्रमोद जी भी भेंट स्वरूप नगद रुपये दीपा के हाथों में दिये। दीपा और विनोद आपस में बातें करके  संतुष्ट नजर आये। दोनों ने अपने अपने अंदाज में एक दूसरे के लिए प्रेम का इजहार किया।

स्वाति और संजीव ने भी अपने आगत अतिथियों और अब तो होने वाले समधी समधन जी का जी भर कर स्वागत किया। उनके लिए भी उन्होंने वस्त्र प्रदान किया।

हँसीखुशी का माहौल बना रहा। चलने के समय रंजना जी ने कहा कि ” मैं अपनी बहुरानी को एक बार फिर से देखना चाहूंँगी। “

उन्होंने उसे देखा और बधाइयां दीं।

इसके बाद ससम्मान दोनों ही एक दूसरे से लिपट कर गले मिले और शुभकामनाएं देकर विदा हुए ।

पन्द्रह दिनों बाद संजीव ने प्रमोद जी से वैवाहिक कार्यक्रम किस प्रकार से आयोजित करेंगे इससे संबंधित बातें करने के लिए संपर्क किया। प्रमोद जी ने कहा कि ” आप दो दिनों बाद आ जायें। हमलोग इस पर विचार विमर्श कर लेंगे।”

इस कहानी को भी पढ़ें:

अन्तर्मन की गांठ – पुष्पा जोशी 

जब विनोद और दीपा उस दिन मिले थे तब उनके बीच जो बातें हुई थीं उनमें  यह भी थी कि क्या वह मेरे साथ रह सकती है? मेरे बारे में कुछ जानकारी मिली है या नहीं। मेरा जो आवास है वह दो ही कमरे का है, उसमें रह सकोगी? सभी सवालों का जवाब दीपा ने सकारात्मक सोच के साथ दिया था। लेकिन जब वह कभी एकांत में होती है तो वे सब सवाल उसके सामने होते हैं और उनके लिए उस दिन दिये गये जवाबों पर पुनर्विचार करने का प्रयास करती है और फिर मौन हो जाती है यह सब सोचकर कि उसने सही कहा था। इसकी चर्चा उसने अपनी सहेलियों से भी की थी। सबने उसको सही बतलाया। अब वह पूरी तरह से आश्वस्त हो गई है कि विनोद उसके लिए एक उपयुक्त इंसान ( पति के रूप में ) साबित होगा।

आज बदलते हुए परिवेश में शादी करने के नाम पर कई प्रकार की औपचारिकताओं को पूरा करना पड़ता है। उनमें से एक है रिंग सेरेमनी। जिसमें दोनों परिवारों की उपस्थिति में लड़की और लड़का  एक-दूसरे को अँगूठी पहनाने की रस्म अदायगी पूरी करते हैं । समय के साथ यह कार्यक्रम भी संपन्न हो गया और उसी दिन विवाह की तिथियां भी निर्धारित कर दी गईं। अपने नियत समय पर तिलकोत्सव संपन्न हुआ। इसके दो दिनों बाद प्रमोद जी संजीव जी के गांव चुरामनपुर में गाजे-बाजे के साथ बारात लेकर पहुँचे।

वहांँ बारातियों का आवभगत गर्मजोशी से किया गया। बढ़िया नाश्ता – भोजन, ठहरने की उत्तम व्यवस्था आदि सबकुछ सही रहा। कहीं से किसी प्रकार की कोई कमी संजीव  ने नहीं होने दी। प्रमोद जी ने भी भरपूर मात्रा में सहयोग किया। उनके भीतर यह भावना काम कर रही थी कि उनकी कमी मेरी कमी कही जायेगी। इसलिए ऐसा कोई भी अवसर ही नहीं उत्पन्न हो जिससे ऐसा महसूस किया जा सके। सब कुछ सही सलामत रहा। रात में विवाह विधि भी ढंग से पूरी हो गयी। सुबह में जलपान के बाद बारातियों की विदाई की गयी। दरवाजे पर दोनों समधी अपने संबंधियों सहित गले लगे। तत्पश्चात लड़की विदा हो कर पटना आ गयी।

यहांँ रंजना ने दरवाजे पर दीपा के स्वागत के लिए पूरी तैयारी कर रखी थी। सगे संबंधियों के साथ साथ मुहल्ले की महिलाएंँ परिछन करने के लिए एकत्र थीं। रंजना ने दीपा की आरती उतारी और ससम्मान घर में दौरा में डेग डलवाती हुई ले गयी। श्री सत्यनारायण भगवान की कथा सुनाई गयी। प्रसाद वितरण किया गया। फिर भोजन कराया गया। यह सब कुछ बहुत ही आकर्षक और आनंददायक था।

पहले ही दिन से दीपा के लिए वह घर जाना पहचाना लगने लगा था। किसी भी तरह की झिझक उसके भीतर नहीं थी। सबके साथ उसका व्यवहार अति विनम्रतापूर्ण था। दीपा के प्रति किसी को भी कोई शिकवा नहीं थी। दीपा का हँसता हुआ सौम्य रूप सबको आकर्षित कर रहा था। उसकी नम्रता तो सोने पे सुहागा की स्थिति बनी हुई थी।

दीपा और विनोद जब पहली बार अपने कक्ष में मिले तो ऐसा लगा मानो वे दोनों एक दूसरे को बहुत दिनों से जानते हैं और मिलते-जुलते रहे हैं। यह है हमारी आत्मीयता, और अपनापन का भाव। जिसके कारण किसी तरह की कमी खलती ही नहीं, ऐसा प्रतीत होता है कि सब-कुछ भरा पड़ा है। जहांँ भाव होता है वहांँ

अभाव नहीं टिक सकता। वह तो भाग खड़ा होता है। दीपा रंजना के घर में साक्षात् लक्ष्मी के रूप में अवतरित हुई है।

विनोद की दादी प्रेमशीला तो बस दीपा के साथ ही रहना चाहती है और दीपा भी दादी के साथ। प्रेमशीला उसे गीत सुनाती ,उसका मनोरंजन करती रहती कि हमारी ‘ बहुरानी ‘ का मन उदास नहीं हो।

इस कहानी को भी पढ़ें:

अड़चनें – सीमा बत्रा

बिना किसी से कुछ भी बताये दीपा कटोरी में तेल डालकर दादी के पैरों की मालिश करने लगी। दादी ने ऐसा नहीं करने दिया किन्तु दीपा यह कहती रही कि ” दादी जी आपने मेरे लिए आज बहुत श्रम किया है। इधर से उधर दौड़ती रही हैं। आपके पाँव थक गये होंगे।”

” नहीं, नहीं बहुरानी । मेरे पैरों को तो पंख लग गये हैं जब से मैंने तुम्हें देखा है । उनमें दर्द तनिक भी नहीं है। तुम सदा सुखी और स्वस्थ रहो। तुम्हारा सौभाग्य अखण्ड रहे।”

रंजना यह सब कुछ जानकर आश्चर्य चकित हो गयी। उसने अपने मन में विचार किया कि दीपा अभी अभी तो आयी है और आते ही सबसे हिल मिल गयी है। दीपा की भाँति बहुत कम ही होती हैं।उसके भीतर कोई संकोच नहीं है। उसके मन में अपनापन का भाव भरा हुआ है। मैं भी तो कभी इस घर में बहू बनकर आयी थी लेकिन बहुत दिनों बाद ऐसा व्यवहार मैंने किया था। सचमुच तुम इस घर की बहुरिया नहीं बहुरानी हो। भगवान तुम्हारी हर तरह से रक्षा करें।

प्रमोद जी ने रंजना से कहा –” दीपा और विनोद कहीं घुमने फिरने के लिए बाहर जाना चाहते हों तो वे जायें। उनके लिए सारी व्यवस्थाएं सुनिश्चित कर दी जायेंगी। उनसे पूछ लिया जाना चाहिए।”

रंजना ने कहा –” हांँ , मैं उनको कह दूँगी । मन बहलाने के लिए उन्हें जरुर जाना चाहिए। नयी नयी जगहों पर जायेंगे और देखेंगे तथा अपनी थकान मिटायेंगे।”

एक दिन रंजना ने विनोद से कहा –” तुमलोग कहीं बाहर जाकर घुम आवो। आज कल तो लोग आने जाने लगे हैं। एक सप्ताह दस दिनों तक मनोरंजन करने के बाद लौट आते हैं।

विलंब करने की आवश्यकता नहीं है।”

विनोद ने मां को अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी और कुछ ही दिनों बाद चले गये। एक हफ्ता बीतते ही वे घर आ गये।

यह एक बिलकुल छोटा-सा सुखी परिवार है। कोई अंतर्कलह नहीं है।

किसी को किसी से कोई भी परेशानी नहीं है। सभी एक दूसरे को सहयोग करने की भावना से काम करना जानते हैं इसलिए कभी पारिवारिक असुविधा पैदा होने की बात ही नहीं।

समय बीतता गया। दीपा का व्यावसायिक कोर्स भी पूरा हो गया।

इस कहानी को भी पढ़ें:

ख्वाहिश – सीमा बत्रा

अब वह भी जाॅब करना चाहती है किन्तु इसके लिए परिवार की सहमति प्राप्त करना चाहती है। यदि लोग कहेंगे तो वह नौकरी करेगी अन्यथा नहीं। क्योंकि नौकरी उसके लिए बहुत जरुरी चीज नहीं है। जरुरी है पारिवारिक सौहार्द।विनोद ने कहा –” यदि तुम चाहो तो अपने आप को कहीं व्यस्त कर सकती हो। हमारे यहांँ तो मांँ भी अभी सेवारत हैं ही। दादा दादी जी को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। पिता जी ने उनके लिए सारी व्यवस्थाएंँ बना रखी है और वे खुद घर पर ही रहते हैं। सब कुछ देखते रहते हैं। किसी को भी कोई असुविधा न हो इसका भरपूर ख्याल करते हैं।”

दो तीन महीने के बाद दीपा  स्वास्थ्य विभाग में डाइटीशियन के पद पर आसीन हो गयी।

घर से लगभग दस बजे विभाग के लिए निकलती है। उससे पहले घरेलू कामकाज को निपटा दिया करती है और आते वक्त पिता जी की अनुमति ले लेती है। विभाग से घर चार बजे तक आ जाती है। घर आने पर सबसे पहले दादा दादी की खोज खबर लेती है। उनके लिए जो चाहिए वह करती है। इस प्रकार से दादा देवदत्त का पारिवारिक जीवन सुखद अहसास दिलाता रहा। जीवन में सुख और दुख दोनों आते हैं किन्तु इससे पारिवारिक समरसता पर कोई दबाव नहीं पड़ता है।

वैसे शारीरिक कष्ट को कैसे रोका जा सकता है किन्तु उसका उपचार तो किया ही जा सकता है। सब कुछ मिला-जुला कर अच्छा रहा, कहीं कोई व्यवधान और झंझट नहीं है।

रंजना दीपा के ऐसे व्यवहार से बहुत खुश रहती है और अपना भरपूर प्यार उसे देती है। अब वह भी अगले साल रिटायर होने वाली है। नौकरी के प्रति बहुत लगाव नहीं रह गया है किन्तु जब तक है तब तक उसे करना है।

रविवार छुट्टी का दिन होता है। परिवार के सभी लोग घर पर रहते हैं। आपस में बातें करते हैं, समस्या का समाधान करते हैं और आगे क्या करना है इस पर विचार विमर्श करते हैं। एक बार सभी साथ साथ भोजन कर रहे थे और बातें भी कर रहे थे।इसी बीच सबने मिलकर यह कहा कि दीपा अत्यंत ही सहनशील और सौम्य है। यह सामान्य से ऊपर है।

इसमें अपनापन का भाव भरा हुआ है। दूसरे के दुख से दुखी और सुख से सुखी होने वाली यह हमारी बहू ही नहीं बल्कि  हमारी बहुरानी है। दीपा को पाकर हम धन्य धन्य हो गये हैं। हम सब भगवान से प्रार्थना करते हैं कि वह अखंड सौभाग्यवती और पुत्रवती हो।

दीपा जैसी बेटियों के बेहतरीन कार्य और योग्यता ही बहुरानी के दर्जे से विभूषित करते हैं। ऐसे विरले ही किसी को बहू मिलती है। जो बड़े भाग्यशाली हुआ करते हैं उनके नसीब में ही ऐसी बहुरानी आती है।

अयोध्याप्रसाद उपाध्याय, आरा

मौलिक एवं अप्रकाशित।

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!