नहीं बहू नहीं जाएगी और यही मेरा आखिरी फैसला है, मुझे और कोई बहस नहीं करनी। जानकी जी ने चिल्लाते हुए कहा
निशांत: फिर ठीक है, अब जब आपने फैसला कर ही लिया है फिर तो कोई आगे बात करने का कोई मतलब ही नहीं। सोनम तुमने सुन लिया ना? अब मेरे कान के सामने बार-बार अपने मायके जाने की रट मत लगाना।
सोनम और निशांत की शादी को केवल एक साल ही हुआ था। पर सोनम अपने ससुराल आते ही समझ गई थी कि यहां सासू मां का राज चलता है, उसका पति हो या उसके ससुर जी सभी उसकी सासू मां के ही इशारों पर चलते हैं, पर कभी-कभी निशांत उसकी तरफ से बोल देता था, बाकी सोनम ने सोचा धीरे-धीरे सब कुछ ठीक हो जाएगा, उसकी एक ननद भी थी
रोहिणी जो कि अब अपने ससुराल में थी, पर जब भी आती थी अपनी मां के साथ मिलकर सोनम को परेशान करने का कोई मौका नहीं छोड़ती थी। इधर सोनम अपनी परेशानी अपनी मां को फोन पर कहती तो उसकी मां कहती, बेटा यह तो हर ससुराल की कहानी है, दामाद जी तो अच्छे हैं ना?
यह सब तो चलता रहता है, धीरे-धीरे तुझे इसकी आदत हो जाएगी, सोनम बिचारी यही सोच कर चुप हो जाती है कि शायद वक्त के साथ सब ठीक हो जाएगा, पर उसकी यह गलतफहमी धीरे-धीरे दूर होते जा रही थी।
एक दिन जानकी जी सुबह नाश्ता किए बिना ही पड़ोस में किसी के घर पर कथा पर जाती है और जाते वक्त यही कहती है कि मैं आकर सीधे दोपहर का ही खाना खाऊंगी तो जल्दी खाना बनाकर रखना।
सोनम: पर मम्मी जी बनाना क्या हैं? बता कर जाइए ताकि समय पर सब कुछ बन जाए
जानकी जी: आलू गोभी, चावल, दाल और रोटियां बना लेना।
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सोनम: जी मम्मी जी कहकर अपने कामों में लग जाती है, वह जल्दी-जल्दी सारा काम निपटा कर बैठी ही थी कि तभी जानकी जी आ जाती है उन्हें इतनी जल्दी आता देख, सोनम ने पूछा मम्मी जी आप इतनी जल्दी आ गई? आपने नाश्ता भी नहीं किया था आपको भूख लगी होगी, कहिए तो खाना परोस दूं? खाना बन गया है
जानकी जी: अरे नहीं नहीं, खाना अभी रहने दो, मुझे अभी किसी काम से बाहर जाना है, हो सकता है थोड़ी देर हो जाए तुम खा लेना, मेरा इंतजार मत करना, यह कहकर जानकी जी अपनी पहनी हुई साड़ी को जल्दी-जल्दी बदलकर एक भारी साड़ी पहनने लगती है।
सोनम: आपने सुबह से नाश्ता भी नहीं किया, अब ऐसे बिना खाए आप अचानक कहां जा रही है मम्मी जी? आप इतनी देर भूखी रहेंगी तो आपकी तबीयत खराब हो जाएगी।
जानकी जी: ज्यादा मेरी मां बनने की जरूरत नहीं है, बहू हो तो बहू बनकर ही रहो, मुझे अपना ध्यान रखना आता है। मैंने कथा में प्रसाद खाया है और अब हम सारी महिलाएं बड़े वाले माता के मंदिर में जा रही हैं। शाम हो जाएगी आते-आते
सोनम: ठीक है मम्मी जी!
फिर जानकी जी चली गई और उनके जाने के बाद सोनम ने सोचा जाकर बाजार से कुछ सब्जियों ले आती हूं, घर पर सारी सब्जियां भी खत्म हो गई है, मम्मी जी तो शाम तक आएंगी, तो तब तक यह काम हो जाएगा।
सोनम बाजार में घूम-घूम कर सब्जियां खरीद रही थी, तभी उसकी नज़र अपनी ननद रोहिणी पर पड़ी, वह उसके करीब जा ही रही थी कि तभी उसने देखा रोहिणी के पीछे से उसका पति अर्णव, बेटा रोहन और जानकी जी उसके कार से उतर रहे हैं। सोनम हैरान होकर बस उन्हें देखने लगी तो देखा सभी एक रेस्टोरेंट में जा रहे थे।
सोनम को समझते देर ना लगी की सासू मां इतना बन संवरकर कौन सी मंदिर जा रही थी? मुझसे खाना बनवाकर खुद बेटी के साथ खाने पर गई और मुझे पता नहीं क्या-क्या बहाना बना दिया? मैं क्या इतनी भूखी हूं जो अगर सच बता देती तो मैं उनके पीछे पड़ जाती? सोनम ने सोचा
और वह वहां से चली गई। जब जानकी जी घर वापस आई तो सोनम ने उनसे कुछ भी नहीं कहा कि वह कहां गई थी या उसने कहां उन्हें देखा? जानकी जी खुद ही आकर मंदिर की झूठी कहानी बताने लगी
सोनम: मम्मी जी प्रसाद नहीं लाई मंदिर का? सोनम के इस बात से जानकी जी सकपका जाती है और कहती है अरे वह तो विमला के पास ही रह गया।
सोनम तो सब जानती थी, पर उसने सोच लिया था कि वह इसे सही वक्त पर इस्तेमाल करेगी। आज सोनम को वह मौका मिल गया था। उसके मायके में उसके ममेरी भाई की शादी थी और इधर उसके फुफेर देवर की शादी, एक दिन आगे पीछे थी, जिसमें रोहिणी भी अपने पूरे परिवार को लेकर आने वाली थी।
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पर सोनम ने ठान लिया था कि वह अपने भाई की शादी पर ही जाएगी और आज इसी पर बहस हो रही थी, जहां जानकी जी ने कहा कि सोनम कहीं नहीं जाएगी, यही मेरा आखिरी फैसला है अगर यह चली गई तो हमें यहां दिक्कत हो जाएगी। रोहिणी दामाद जी और रोहन भी आ रहा है, उनका खाना पीना, घर के काम यह सब कैसे होगा? बहू की जिम्मेदारी पहले ससुराल के लिए होती है मायका तो बाद में आता है।
सोनम: ओह अच्छा, यह बात है मम्मी जी? पर आपने तो विदाई के वक्त मेरे पापा से कहा था कि आप बहू नहीं बेटी ले जा रही है, मैंने तो सोचा था यही मेरा मायका है, मैं तो बड़ा खुश हो रही थी कि मेरे दो-दो मायके हैं और रही बात रोहिणी और उनके परिवार की खाने-पीने की? तो उसकी दिक्कत कैसे होगी? एक-दो दिन फिर से आप लोग रेस्टोरेंट में खा लीजिएगा, जैसे उस दिन मंदिर के बहाने खाया था।
सोनम के इस बात से जानकी जी हक्का-बक्का रह जाती है उन्हें अब समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या बोले? निशांत कहता है क्या? मम्मी आप रेस्टोरेंट? पर कब? अच्छा तो यह सब भी होता है ?
सोनम: पता है उस दिन मम्मी जी ने मुझे खाना बनाने को कहकर मंदिर जाने का बहाना करके रोहिणी के साथ रेस्टोरेंट में खाना खाने गई थी। मुझे इस बात का बुरा नहीं लगा के आप बहाना बनाकर बाहर खाना खाने गई, पर इस बात का लगा के आपने मुझसे झूठ कहा, क्या मैं आपके पैर पड़ जाती? इतनी भी लालची नहीं हूं मम्मी जी मैं?
पर जिस घर में बेटी के सामने बहू की कदर नहीं होती उस घर में बहू भी घुल मिल नहीं पाती, फिर दोषी बहू ही बन जाती है कि अलग कर दिया घर को। सोनम यह सब कह ही रही थी कि जानकी जी का फोन बज उठता है। रोहिणी का फोन देखकर वह फोन नहीं उठाती है, पर निशांत कहता है मां फोन उठाओ और स्पीकर पर रखो,
जानकी जी मना कर रही थी पर निशांत नहीं माना, तभी वह मजबूरन फोन उठाती है और स्पीकर पर रख देती है, फोन पर रोहिणी कहती है हेलो मां, भाभी को मना कर दिया ना? देखो मैं कोई काम वाम नहीं करने वाली वहां पर, रोहिणी यह सब कह ही रही होती है कि तभी सोनम ने पीछे से कहा रोहिणी आपको खाना बनाने की जरूरत नहीं,
रेस्टोरेंट में खा लेना और घर के काम मेरे आने के पहले भी कैसे मम्मी जी करती थी, वैसे ही वह दो दिन कर ही लेंगी, क्योंकि अब मैं मायके जा रही हूं और यह मेरा आखिरी फैसला है, यह बोलकर सोनम वहां से चली जाती है और फिर वह अपने मायके चली जाती है, इधर निशांत उसे फोन पर कहता है रोहिणी नहीं आई, क्योंकि उसका कहना यह था
कि जब मुझे वहां आकर भी काम करना है तो मैं क्यों ना अपने ही घर पर रहूं? शादी घर तो मैं यहां से भी जा सकती हूं ना? अब मां अकेली ही सब कुछ कर रही है और सारा भड़ास बेचारे पापा पर ही निकल रहा है, यह कहकर दोनों हंसने लगते हैं।
दोस्तों, आज भी कई घरों में ऐसा देखा गया है की बहू को बेटी बस कहा ही गया है पर जब करने की बारी आई तो बेटी का स्थान ही आगे था। इसी पर कुछ शब्द लिखूंगी
विदाई दे रहे बाबुल से कहा गया
बहू नहीं बेटी ले जा रहे हैं
पर कुछ ही दिनों में कहने लगे इसे ज्यादा सर ना चढ़ा
अरे इसे तो पराए घर से ला रहे हैं
#आखिरी फैसला
धन्यवाद
रोनिता