सीमा, जो दिखने में सुंदर और स्वभाव से सरल थी, अपने घर और रिश्तों को बखूबी निभाने वाली एक संस्कारी बहू थी। वह हमेशा सबका दिल से स्वागत करती थी, चाहे घर में कितने भी मेहमान क्यों न आ जाएं। उसके स्वभाव और समर्पण के कारण घर में सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा था।
कुछ दिनों से सीमा की सास की तबीयत खराब चल रही थी। वह बेड पर थीं और अपनी दिनचर्या का सारा काम बेड पर ही करती थीं। सीमा ने फिजियोथैरेपी का कोर्स किया हुआ था, और वह अपनी सास-ससुर दोनों का बराबर ध्यान रखती थी। लेकिन सास की देखभाल में वह विशेष रूप से सतर्क रहती थी। सुबह-शाम उनकी एक्सरसाइज करवाना, जूस देना, और समय पर खाना देना उसका नियमित काम बन गया था।
इसके साथ-साथ सीमा सिलाई का काम भी करती थी। शादियों का मौसम था, और सिलाई के काम में बहुत ऑर्डर आने लगे थे। सिलाई से कुछ अतिरिक्त पैसे कमाने के लिए वह मेहनत करती थी, जिससे घर की आर्थिक स्थिति में मदद हो सके। हालांकि काम का बोझ बढ़ गया था, लेकिन सीमा ने कभी शिकायत नहीं की।
इस बीच, सीमा की ननद रश्मि अपने बच्चों के साथ उनके घर आ गई। रश्मि के पति बिजनेस के काम से एक महीने के लिए बाहर गए थे। सीमा ने रश्मि और उसके बच्चों के आने का स्वागत पूरे दिल से किया। उसने रश्मि के खाने-पीने से लेकर बच्चों की जरूरतों तक का पूरा ध्यान रखा।
रश्मि के आने से घर का माहौल बदलने लगा। हालांकि सीमा ने हर संभव कोशिश की कि रश्मि को किसी भी चीज की कमी न हो, लेकिन रश्मि का व्यवहार कुछ अलग था। वह आराम से उठती, खाना खाती, और घूमने चली जाती। मॉल जाना, गार्डन में टहलना, बच्चों के साथ समय बिताना—यह उसकी दिनचर्या बन गई थी। लेकिन इस सबके बीच रश्मि ने कभी यह नहीं सोचा कि वह सीमा की मदद कर सके।
रश्मि के आने के बाद, सीमा की सास का स्वभाव भी बदलने लगा। जो सास पहले सीमा की तारीफ करती नहीं थकती थी, वही अब हर छोटी-बड़ी बात पर सीमा पर गुस्सा करने लगी। सास बार-बार कहने लगी, “सीमा मेरा ध्यान नहीं रखती है। मुझे समय पर दवाइयां नहीं देती, एक्सरसाइज नहीं करवाती। वह तो बस अपने काम में व्यस्त रहती है।”
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सीमा को यह सब सुनकर बहुत दुख होता था, लेकिन उसने कभी किसी से शिकायत नहीं की। वह सास से माफी मांग लेती और अपने काम में लग जाती। लेकिन घर के बढ़ते काम और सिलाई के ऑर्डर्स के कारण वह सास पर उतना ध्यान नहीं दे पा रही थी, जितना पहले दिया करती थी।
रश्मि को यह सब देखकर समझना चाहिए था कि सीमा पर कितना काम है। लेकिन इसके बजाय, वह सीमा की आलोचना करने लगी। वह कहती, “भाभी तो बिल्कुल भी काम नहीं करतीं। मैं तो अपने घर में दिनभर किचन में रहती हूं।” रश्मि यह भूल गई थी कि सीमा न सिर्फ घर का सारा काम संभाल रही थी, बल्कि सिलाई के काम से भी परिवार की आर्थिक मदद कर रही थी।
सीमा के लिए दिन और रात एक जैसे हो गए थे। सुबह जल्दी उठकर काम शुरू करना और रात तक थककर सो जाना उसकी दिनचर्या बन गई थी। बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करना, पति का टिफिन बनाना, घर की साफ-सफाई करना, खाना बनाना, और फिर सिलाई का काम—इन सबके बीच वह अपने लिए एक पल भी नहीं निकाल पाती थी।
सीमा का मायके जाना भी बहुत कम होता था। तीज-त्योहार पर ही वह मायके जा पाती थी। वह अपने परिवार के लिए पूरी तरह समर्पित थी, लेकिन उसके इस समर्पण को घर में कोई समझ नहीं पाता था। ननद के ताने, सास की शिकायतें, और पति की व्यस्तता ने उसे पूरी तरह अकेला कर दिया था।
एक दिन, जब सीमा अपने कमरे में थककर पलंग पर लेटी, तो उसे नींद लग गई। सुबह फिर वही दिनचर्या शुरू हो गई। लेकिन इस बार सीमा के मन में एक अजीब-सी बेचैनी थी। उसने सोचा, “मैं हर किसी के लिए सब कुछ कर रही हूं, लेकिन मेरे लिए कोई नहीं सोचता। क्या मैं सिर्फ बहू हूं, बेटी नहीं बन सकती?”
समय बीतता गया। सीमा ने अपने काम में कोई कमी नहीं आने दी। लेकिन धीरे-धीरे उसने यह समझ लिया कि उसकी खुशी दूसरों पर निर्भर नहीं हो सकती। उसने खुद को सशक्त बनाने का फैसला किया। उसने अपने सिलाई के काम को और बढ़ाने की योजना बनाई। उसने ऑनलाइन ऑर्डर्स लेना शुरू किया और अपनी आय को बढ़ाया।
एक दिन, जब रश्मि ने फिर ताना मारा, तो सीमा ने विनम्रता से जवाब दिया, “रश्मि, हर किसी की स्थिति अलग होती है। मैं जो कर रही हूं, वह मेरे परिवार के लिए है। अगर तुम मेरी जगह होती, तो शायद तुम भी यही करती।”
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सीमा का यह जवाब रश्मि को सोचने पर मजबूर कर गया। उसने पहली बार महसूस किया कि सीमा कितनी मेहनत कर रही है। उसने सीमा की मदद करने का फैसला किया। रश्मि ने घर के कामों में हाथ बंटाना शुरू किया और बच्चों की देखभाल में भी मदद करने लगी।
धीरे-धीरे, घर का माहौल बदलने लगा। सास ने भी महसूस किया कि सीमा ने कितनी मेहनत से घर को संभाला है। उन्होंने सीमा से माफी मांगी और कहा, “मैंने तुम्हारे साथ गलत किया। तुम बहू नहीं, बेटी हो।”
लेखिका : विधि जैन