बहु चाहे जितना भी कर ले …. वो बेटी नहीं बन सकती – सिफा खान : Moral Stories in Hindi

रामप्रकाश जी के घर का आँगन हमेशा खुशियों से गूंजता था। उनकी पत्नी, कमला, घर की लक्ष्मी थीं और उनकी बेटी सिया उनकी आँखों का तारा। सिया की शादी हो गई, और वह दूसरे शहर चली गई। घर सूना हो गया, लेकिन कुछ महीनों बाद उनके बेटे, रवि की शादी हुई और उनकी बहू, पूजा घर आई।

पूजा ने घर में कदम रखा तो हर कोई खुश था। वह संस्कारी, पढ़ी-लिखी और समझदार लड़की थी। उसने पूरी कोशिश की कि वह परिवार के हर सदस्य के दिल में जगह बना सके। सुबह-सुबह उठकर पूजा कमला जी के पैर छूती, उनके लिए चाय बनाती, और घर के हर छोटे-बड़े काम में मदद करती।

पूजा ने घर में कदम रखा तो हर कोई खुश था। वह संस्कारी, पढ़ी-लिखी और समझदार लड़की थी। उसने पूरी कोशिश की कि वह परिवार के हर सदस्य के दिल में जगह बना सके। सुबह-सुबह उठकर पूजा कमला जी के पैर छूती, उनके लिए चाय बनाती, और घर के हर छोटे-बड़े काम में मदद करती।

लेकिन कमला जी का दिल कहीं ना कहीं अभी भी सूना था। जब भी वह सिया के बारे में सोचतीं, उनकी आँखें भर आतीं। पूजा ने कई बार उन्हें खुश करने की कोशिश की, लेकिन कमला जी के दिल में वह जगह नहीं बना पाई जो उनकी बेटी के लिए थी।

एक दिन पूजा ने साहस करके पूछा, “माँजी, क्या मुझसे कोई गलती हो गई है? आप मुझसे नाराज रहती हैं?”

कमला जी ने कहा, “नाराजगी की बात नहीं है, बेटा। लेकिन तुम मेरी बेटी नहीं हो सकती। बहू चाहे जितना भी कर ले, वो बेटी नहीं बन सकती।”

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पूजा की आँखों में आँसू थे, लेकिन उसने मुस्कराकर जवाब दिया, “माँजी, मैं जानती हूँ कि मैं आपकी बेटी की जगह नहीं ले सकती। लेकिन क्या बहू के लिए माँ के दिल में थोड़ी-सी जगह नहीं हो सकती? मैं आपकी बेटी बनने का अधिकार नहीं मांगती, लेकिन क्या मैं आपकी बहू होने का सम्मान भी नहीं पा सकती?”

कमला जी थोड़ी देर चुप रहीं। उस रात, जब वह पूजा के शब्दों के बारे में सोच रही थीं, तो उन्हें याद आया कि जब सिया ससुराल गई थी, तो वह भी इसी तरह अपने सास-ससुर का दिल जीतने की कोशिश करती थी। “क्या मैं अपनी बहू से वही उम्मीद कर रही हूँ जो मैं सिया के सास-ससुर से चाहती थी?” उन्होंने खुद से पूछा।

अगली सुबह, कमला जी ने पूजा को अपने पास बुलाया। पहली बार, उन्होंने पूजा को गले से लगा लिया और कहा, “बेटा, तुम सही कह रही थी। तुम मेरी बेटी नहीं हो सकती, लेकिन तुमने बहू होकर भी इतना प्यार और सम्मान दिया है कि आज मैं खुद को भाग्यशाली मानती हूँ। तुम मेरे लिए बेटी जैसी ही हो।”

उस दिन से, घर का माहौल बदल गया। पूजा ने कमला जी के दिल में अपनी जगह बना ली, और कमला जी ने महसूस किया कि रिश्तों की परिभाषा खून के बंधन से नहीं, बल्कि प्यार और समझ से होती है।

समाप्त

सिफा खान

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