बहू भी तो एक ही है – अर्चना खंडेलवाल : Moral stories in hindi

राधिका की शादी एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुई थी, राधिका की सास सुनंदा जी अपनी बहू को बेटी की ही

तरह रखती थी, वो भी अपने घर में अच्छे से रच-बस गई थी, अपने पति प्रवीण का वो हर सुख-दुख में बराबर साथ देती थी।

कुछ दिनों से वो प्रवीण को बहुत उदास देख रही थी, पूछने पर पता चला कि उन्होंने त्यौहार को देखते हुए दुकान पर उधारी पर माल तो मंगवा लिया पर अब वो माल बिक नहीं रहा था, और आगे भी अच्छी खासी रकम देनी थी, बैंक से पहले ही कर्ज ले रखा था तो अब और नहीं ले सकता था, राधिका ने कहा, “बस इतनी सी बात के लिए परेशान हो रहे हो, मेरे गहने किस दिन काम आयेंगे? जब पैसे होंगे तो छुड़वा लेंगे।”

प्रवीण ने गहने गिरवी रखकर आगे का बकाया चुका दिया, धीरे-धीरे दुकान पर वो रखा हुआ माल भी बिक गया, और सब कुछ सामान्य होने लगा था। 

एक दिन प्रवीण दुकान पर काम कर रहा था कि सुनंदा जी का फोन आया, “राधिका को चक्कर आ गया है, तू जल्दी घर आजा, प्रवीण उसे फटाफट डॉ के पास लेकर गया, वहां पता लगा कि राधिका मां बनने वाली हैं, तो घर में खुशियां छा गई। उसने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया, और उसके पालन पोषण में लग गई, इधर प्रवीण का बिजनस भी अच्छा चल रहा था।

बड़ी बेटी तीन साल की हुई तो राधिका की गोद फिर से हरी हो गई, इस बार उसने प्यारे से बेटे को जन्म दिया, ईश्वर ने जैसे इस परिवार को सब-कुछ दे दिया हो, घर में खुशियां मनाई जा रही थी, दीपावली का त्योहार नजदीक आ रहा था।

राधिका प्रवीण का इंतजार कर रही थी, प्रवीण थोडा देर से आया और उसने राधिका को उसके गिरवी रखे गहने वापस सौंप दिए, हालांकि कर्ज की रकम छोटी नहीं थी, पर प्रवीण ने किसी तरह कर्ज चुकाकर गहने छुड़वा ही लिए।

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“प्रवीण, मुझे अभी गहनों की जरूरत नहीं थी, मेरा गहना तो आप हो ये परिवार है, मै इसी में खुश थी, आप चाहते तो ये पैसा वापस बिजनस में लगा सकते थे।”

“अरे! ऐसे कैसे? मेरी बहू मेरे घर की लक्ष्मी गहनों से लदी रहनी चाहिए, मैंने ही प्रवीण से कहा था, वरना ये तो बिजनस में सब कुछ भुल ही बैठा था, और सुनंदा जी ने अपनी इकलौती बहू को गले से लगा लिया।

राधिका को कुछ महीनों से थकान और कमजोरी रहने लगी थी, उसके पांव और चेहरे पर भी सूजन सी रहने लगी थी, उसने सोचा ये सब कुछ सामान्य है, दोनों बच्चों के पीछे-पीछे भागते, उनका काम करने से शायद थकान रहने लगी थी।

लेकिन सुनंदा जी चिंतित रहने लगी थी कि ये बहू को क्या हो रहा है? उन्होंने डॉक्टर से अपोइंटमेंट लिया और राधिका के कुछ टेस्ट हुए, टेस्ट की रिपोर्ट ने सबके होश उड़ा दिये, राधिका की दोनों किडनियां खराब हो गई थी, और किडनी ट्रांसप्लांट ही एकमात्र उपाय बचा था, सुनंदा जी और प्रवीण कुछ सोच नहीं पा रहे थे,कि अब आगे क्या करें?

राधिका एक अनाथ लड़की थी, जिसे गोद लिया गया था, और उसके माता-पिता ने शादी के पन्द्रह साल बाद संतान ना होने के कारण उसे गोद लिया था, उनकी तबीयत वैसे भी ठीक नहीं थी, और उनकी किडनी मैच भी नहीं हो रही थी।

प्रवीण भी हर तरह की भागादौड़ी कर रहा था, पर कहीं से भी किडनी मिल नहीं पा रही थी। 

सुनंदा जी ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी कि किसी तरह से उनकी बहू बच जाएं।

एक दिन सुबह वो पूजा करके उठी तो उन्होंने प्रवीण से कहा, ‘ बेटा बिना पति या बिना पत्नी के जीवन भार बन जाता है, अभी तो बच्चे भी बहुत छोटे हैं, मै अपनी बहू को किडनी दूंगी, और मेरी किडनी मैच ना हुई तो तू भी अपनी पत्नी को किडनी दे सकता है, सात फेरे लिए है, सात वचन दिएं है, उसने भी तेरे हर सुख-दुख में साथ निभाया है, मेरी राधिका तो मेरे घर की जान है, मै उसे मरते हुए नहीं देख सकती हूं।”

अपनी मम्मी की बात सुनकर प्रवीण की भी आंख भर आई, वो उन्हें अस्पताल ले गया और उन दोनों ने भी टेस्ट करवाया, दोनों को रिपोर्ट का इंतजार था।

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इधर राधिका बहुत ही परेशान थी, किडनी मैच होगी या नहीं? मैच भी होगी तो किसकी होगी? मम्मी जी की मैच हुई तो इस उम्र में उनको वैसे ही परेशानी रहती है, वो कैसे अपना ऑपरेशन करवायेगी?  और अगर प्रवीण की किडनी मैच होती है तो उन्हें आगे भागादौड़ी और काम-धंधा करने में परेशानी तो नहीं होगी, और अगर दोनों में से किसी की भी मैच नहीं होगी तो उसके दोनों छोटे बच्चों का क्या होगा? सारी रात राधिका ने जागते हुए बिताई।

जब रिपोर्ट आ गई तो डॉक्टर का फोन आया कि आप लोग अस्पताल आ जाइये, किडनी मिल गई है।

प्रवीण ये जानकर खुश था कि उसकी किडनी राधिका से मैच हो रही है।

“देखो, राधिका लोगों की सिर्फ कुंडली मैच होती है और हम दोनों की तो किडनी भी मैच हो रही है, वो हंसते हुए बोला।

सुनंदा जी की ओर मुखातिब होकर राधिका कहती हैं, “मम्मी जी आपके तो एक ही बेटा है, आपने कैसे हां कर दी? ऑपरेशन करने के लिए, किडनी देने के लिए? मां तो अपने बेटे की जरा सी भी तकलीफ नहीं देख सकती है, और बहू के लिए तो कोई सास अपने बेटे को इतना दर्द सहन नहीं करने देती है।”

“राधिका, बेटा एक है तो मेरी बहू भी तो एक ही है, मुझे अपने दोनों बच्चों की जरूरत है, और सुनंदा जी ने स्वीकृति दे दी।

कुछ समय बाद दोनों का ऑपरेशन हुआ, प्रवीण की एक किडनी राधिका को लगाई गई, दोनों को कुछ महीने आराम करना था, सुनंदा जी ने दुकान की देखभाल के लिए अपने भाई के बेटे को बुला लिया, जो अभी पढ़ाई पूरी करके नौकरी ढूंढ ही रहा था, और घर पर एक चौबीस घंटे वाली नौकरानी रख ली,  दोनों बेटे बहू के ठीक होने तक दोनों की दिल से सेवा की, जब दोनों की रिकवरी होने लगी तो उन्होंने ईश्वर को धन्यवाद दिया।

“मम्मी जी,  “मैंने पिछले जन्म में जरूर कुछ अच्छे कर्म किये होंगे, जो मुझे आप जैसी सास मिली, मुझे हमेशा ईश्वर से शिकायत रहती थी कि मैंने मुझे जन्म देने वाली मां को नहीं देखा, वो कैसी दिखती होगी? पर आपने भी मुझे दोबारा जन्म दिया है, वो भी आप जैसी ही दिखती होगी, प्रवीण ने अपना हर पति धर्म निभाया है, अपने अंग का दान कर इन्होंने अपनी पत्नी की जान की रक्षा की है, मै आप दोनों के इस प्यार, विश्वास और त्याग का सदा सम्मान करती रहूंगी,” राधिका ने आंखें भिगोते हुए कहा।

सुनंदा जी ने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा, दोनों बच्चे उससे आकर लिपट गये, राधिका अपने हरे-भरे परिवार को देखकर मुस्कुरा दी।

अर्चना खंडेलवाल

मौलिक अप्रकाशित रचना

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