बांहों का झूला – अंजु गुप्ता ‘अक्षरा’ : Moral Stories in Hindi

विनय और तनवी एक दूसरे के पूरक थे। क्या मजाल कि बिन अपने पापा की मर्जी के खिलाफ तनवी कोई तिनका भी उठा ले। पर.. वही तनवी आजकल कुछ कुछ बदलने लगी थी। नहीं, यह सोलह बरस वाली उम्र का तकाज़ा नहीं था। बात बस इतनी थी कि 15 साल पहले उसकी माँ रुपाली, जो उसके पिता से तलाक़ लेकर विदेश बस गई थी

और जिसे दूसरी शादी से कोई औलाद नहीं थी, वो यदाकदा तनवी को फोन कर लिया करती थी। तनवी को भी अपनी माँ से बात करना अच्छा लगता था। शायद… दिल के कोने में माँ की कमी रह गई थी, जो उसके फोन से पूरी होने लगी थी।

कुछ दिन पहले ही रुपाली ने भारत आने का प्रोग्राम बनाया था।

आज विनय जैसे ही ऑफिस जाने को तैयार हुआ, तनवी बोली, “पापा, याद है न कि आज माँ से मिलने होटल जाना है?” 

कहने को तो विनय ने “हाँ” बोल दिया, पर अब कहीं न कहीं उसके दिल में तनवी को खोने का डर सताने लगा था। “क्या होगा, अगर रुपाली तनवी को अपने साथ ले गई?” नहीं नहीं….अपने ख्यालों से भी वो डरने लगा था।

खैर, शाम को दोनों होटल पहुंच गए थे। हमेशा की तरह रुपाली बेहद खूबसूरत लग रही थी। आगे बढ़ कर उसने तनवी को गले लगा लिया। थोड़ी देर बातचीत के बाद वो बोली, “विनय! अगर आपको एतराज न हो तो क्या मैं तनवी को आज रात अपने साथ रख सकती हूं?”

इससे पहले कि विनय कुछ बोलता, विनय का हाथ थाम तनवी बोली, “माँ! मुझे भी आपसे मिलने की चाह थी इसलिए जब आपने मुझसे मिलने की इच्छा दिखलाई, मैंने भी बहती गंगा में हाथ धो लिए। आपसे मिलने की मुझे बहुत खुशी है। पर क्या करूं, मुझे माँ की गोदी की आदत नहीं है, हमेशा से पापा के हाथों का झूला ही झूला है। आप से मिलना था, मिल लिया, पर.. अब हम लोग चलते हैं।”

 विनय के चेहरे की मंद मुस्कान बता रही थी कि माना कि आज बिटिया उसकी बाजुओं के झूले में नहीं झूल सकती थी, पर झूला झुलाने वाले हाथों को थामना उसे बेशक आ गया था।

अंजु गुप्ता ‘अक्षरा’

#बहती गंगा में हाथ धोना

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