” स्वाति…पापा आ गये हैं…अब अपना अंशु अपने दादाजी से ही पढ़ेगा.. है ना अंशु बेटे..।” नकुल हाथ में लिया बैग ड्राइंग रूम में रखते हुए अपनी पत्नी और बेटे से कहा तो अंशु खुश होकर ‘ यस पापा..’ कहकर अपने दादाजी से लिपट गया।
नकुल के पिता विश्वनाथ बाबू कस्बे के एक विद्यालय में हैडमास्टर थें।कमज़ोर और ज़रूरतमंद विद्यार्थियों को वो अपने घर में मुफ़्त ट्यूशन भी देते थें।उनका कहना था कि मेरे विद्यार्थी जब कुछ बन जाते हैं तो वही मेरी फ़ीस हो जाती है।नकुल उनकी इकलौती संतान थी।उसे भी उन्होंने बहुत अच्छी शिक्षा-दीक्षा दी थी।
दसवीं कक्षा के बाद नकुल ने दिल्ली के स्कूल से बारहवीं किया और इंजीनियरिंग की पढ़ाई करके वहीं की एक कंपनी में नौकरी करने लगा।छह महीने के बाद उसके बाॅस ने उसे अपने पर बुलाया जहाँ उसकी मुलाकात उनकी बेटी स्वाति से होती है और दोनों एक-दूसरे को पसंद करने लगते हैं।उसकी माँ जब विवाह के लिये लड़की देखने लगी तब उसने स्वाति के बारे में बताया और अपनी इच्छा भी बताई।
विश्वनाथ बाबू ने सहर्ष बेटे की इच्छा को स्वीकार कर लिया और एक शुभ मुहूर्त में दोनों बच्चों का विवाह करा दिया।आधुनिक ख्यालों की होते हुए भी स्वाति संस्कारों और मान-मर्यादा का ख्याल रखना जानती थी।शादी के दो बरस बाद जब वह प्रेग्नेंट हुई और डिलीवरी के समय उसकी मम्मी को ऑपरेशन करवाने अमेरिका जाना पड़ा था तब वह अपनी मम्मी से बोली थी,” आप मेरी फ़िक्र नहीं कीजिये..मुझे अपनी सास पर पूरा भरोसा है..वो आपकी तरह ही मेरा ख्याल रखेंगी।
बेटे के जन्मोत्सव पर स्वाति की सहेलियों ने कहा था,” तेरे जैसे सास-ससुर तो सबको मिले।”
समय अपनी रफ़्तार से चलता रहा।तीज-त्योहारों पर कभी स्वाति ससुराल चली जाती तो कभी विश्वनाथ बाबू पत्नी के साथ आ जाते और पोते के साथ हाथी-घोड़ा और छुक-छुक रेलगाड़ी बन जाते।
फिर एक दिन नकुल की माँ का भगवान के घर से बुलावा आ गया।जाते समय वो अपने पति से कह गईं थी कि पढ़ाना-लिखाना बहुत कर लिया…अब बेटे के पास चले जाना।लेकिन विश्वनाथ बाबू नहीं माने।पत्नी के जाने के बाद के खालीपन की भरपाई वो बच्चों को पढ़ाकर करने लगे।सेवानिवृत्त होने के चार माह बाद वो अस्वस्थ रहने लगे तब नकुल ने उनकी एक न सुनी और पिता को अपने संग ले आया।वो चाहता था कि जैसे मैं और अन्य छात्र मेरे पिता से पढ़कर बड़े अफ़सर बने हैं वैसे ही मेरा बेटा भी अपने दादाजी से…।
रात के डिनर के बाद विश्वनाथ बाबू सोने चले गये।आँख लगी ही थी कि उनके कानों में सुनाई दिया,” ये क्या नकुल…पापा से पढ़कर तो अंशु फेल ही हो जायेगा।वह अब 6th में आ गया है…उसके लिये इंग्लिश मीडियम में पढ़ाने वाला एक्सपर्ट ट्युटर चाहिए…पापा तो हिन्दी मीडियम के हैं।”
” स्वाति..एजुकेशन का हिन्दी-इंग्लिश माध्यम से कोई फ़र्क नहीं पड़ता।पापा से पढ़कर ही तो मैं आज यहाँ हूँ।उनके पढ़ाये कितने ही लड़के बैंक अधिकारी और आईएएस बने हैं।आनंद सर और खान सर भी तो हिन्दी मीडियम..।”
” नहीं-नहीं नकुल…मुझे पापा पर ज़रा भी विश्वास नहीं है।मैंने अंकित सर से बात कर ली है..कल से अंशु उन्हीं से ट्यूशन पढ़ने जाएगा।” विश्वनाथ बाबू की बंद आँखों से आँसू की दो बूँद गालों पर लुढ़क गई।
अगले दिन से अंशु स्कूल से आकर अंकित सर से ट्यूशन पढ़ने जाने लगा।नकुल अपने ऑफ़िस में व्यस्त हो गया और स्वाति अपने ससुर को समय पर नाश्ता-खाना देकर अपनी सहेलियों से बातें करने में मशगूल हो जाती।इसी तरह से तीन महीने बीत गये।
एक दिन मयंक नाम का लड़का आकर स्वाति से पूछा,” विश्वनाथ सर यहीं रहते हैं?”
” हाँ..पर अभी बाहर गये हैं।कहिये..क्या बात है?
मिठाई का डिब्बा स्वाति को देते हुए मयंक बोला,” मैम..मेरे पास ट्यूशन के लिये फ़ीस नहीं थी तब सर ने ही मुझे और मेरे चार दोस्तों को छह महीने तक पढ़ाया था।उन्हीं की मेहनत से मैं और मेरे दो दोस्त UPSC क्लियर कर पायें हैं।उनके घर गया तो पता चला कि सर यहाँ आये हैं तो…।ये मिठाई उन्हीं के लिये है।ईश्वर उन्हें हमेशा स्वस्थ और प्रसन्न रखे।” कहकर वह चला गया तो स्वाति को बहुत ग्लानि हुई कि मयंक को अपने विश्वनाथ सर पर पूरा विश्वास था लेकिन वह अपने ससुर पर भरोसा नहीं कर पाई।
तभी स्वाति की मम्मी का फ़ोन आया।बेटी की आवाज़ उन्हें भारी लगी तो उन्होंने पूछ लिया,” क्या बात है बेटी..तेरी आवाज़..।”
तब स्वाति ने पूरी बात बताई और रो पड़ी।उसकी मम्मी उसे समझाते हुए बोली,” देख बेटी..रिश्तों के बीच विश्वास का एक पतला धागा होता है जो एक बार टूट गया तो फिर कभी नहीं जुड़ता।इसलिये अपने बड़ों पर विश्वास करना सीखो तभी रिश्तों की डोर मजबूत होगी। तुम्हारे सास-ससुर ने अपने खून-पसीने से पाला हुआ छब्बीस साल का इकलौता बेटा बिना किसी प्रश्न के तुमको सौंप दिया।क्योंकि उन्हें तुम पर पूरा भरोसा था।इसी अंश के जन्म के समय तो तुमने मुझसे कहा था कि मुझे अपनी सास पर पूरा विश्वास है..फिर आज ससुर के लिये तुम्हारे विश्वास की डोर कैसे कमज़ोर पड़ गई।बिटिया…सच्चा ज्ञान किसी भाषा का मोहताज नहीं होता।डाॅक्टर अब्दुल कलाम की स्कूली शिक्षा तमिल भाषा में हुई थी और आज पूरे देश को उनपर गर्व है।विश्वनाथ जी ने अपने ज्ञान से कितनों के ही घर रोशन किये हैं और तुम्हें ही उनपर..।फिर तो तुम्हें मुझपर भी…।”
” नहीं मम्मी…।” कहकर स्वाति रो पड़ी।
” अब क्या करूँ..।”
” तो क्या..ये भी मुझे ही बताना पड़ेगा..।” कहकर स्वाति की मम्मी ने फ़ोन डिस्कनेक्ट कर दिया।
तभी अंशु आकर रूठते हुए बोला,” मम्मा..मुझे अंकित सर से नहीं…अपने दादू से पढ़ना है।”
” अच्छा-अच्छा..आ चल अपने दादू के पास।”
तब तक स्वाति के ससुर आ चुके थे।उनको चाय का कप देती हुई स्वाति ने उन्हें मयंक के बारे में बताया और बोली,” पापा..अब संभालिये अपने नये विद्यार्थी को “
” लेकिन बेटी..मेरा तो हिन्दी मीडियम..।”
” मैं अपने व्यवहार पर बहुत शर्मिंदा हूँ पापा.. मेरी भूल को आप क्षमा कर दीजिये.., अंशु आपसे ज्ञान और संस्कार दोनों ही सीखेगा।” स्वाति बोली तो अंशु तपाक-से बोला,” और कहानी भी सुनूँगा।” फिर तो तीनों ही हँस पड़े।
डिनर टेबल पर स्वाति ने नकुल को बताया तो वह हँसते हुए पूछा,” ये परिवर्तन कैसे श्रीमती जी?”
” क्योंकि हमारे रिश्तों के बीच विश्वास का धागा पतला ही सही लेकिन मजबूत है…।” स्वाति बोली तो नकुल मुस्कुराया जैसे कह रहा हो, वो तो है।
विभा गुप्ता
स्वरचित
#रिश्तों के बीच विश्वास का एक पतला धागा होता है