मूलचंद जी शहर के बहुत ही नामी-गिरामी व्यापारी थे । इनके दो बच्चे थें बेटा संकेत और बेटी अवंतिका।
बेटा संकेत बहुत ही बुद्धिमान, गंभीर और समझदार लड़का था जबकि बेटी अवंतिका बहुत ही जिद्दी और तुनुकमिजाज थी। दोनों बच्चे भी वक्त के साथ बड़े होते गए ।
संकेत अब अपने पिता के कारोबार में हाथ बंटाने लगा था।
अब अवंतिका की शादी की बात भी चलनी शुरू हो गई।
और एक दिन— पास के शहर के सबसे धनी से सेठ का बेटा ” मनोहर से अवंतिका की शादी बहुत ही धूमधाम से करा दी गई ।”।
शादी के बाद अवंतिका ससुराल चली आई शुरू में तो अवंतिका की “जिद्दी स्वभाव तथा घमंड” को मनोहर ने यूं ही जाने दिया। पर इस स्वभाव के कारण सासू मां, “विमला देवी और जेठानी, “गरिमा भी अब परेशान रहने लगी ।
अवंतिका ने ससुराल को कभी भी अपना नहीं समझा उसे तो ऐसा लगता जैसे वह आज है और कल उसे नहीं रहना।
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वहां रहने वाले सास ससुर ,नंद ,जेठ, जेठानी सभी उसे बहुत प्यार और सम्मान देते और समझाते भी थे कि अब यही तुम्हारा घर है और तुम यहां की सदस्या हो।
पर अपने घमंड और अकड़ की वजह से वह सबसे अलग- थलग रहती ।
“अब तो मनोहर से भी हर रोज की लड़ाई ” एक आम बात हो गई।
एक दिन मनोहर दुकान से आने के बाद मां विमला देवी और अपने पूरे परिवार के साथ बैठा बहन रेनू से अपने सर की मालिश करवाने लगा थके होने की वजह से ,समय का पता ही नहीं चला।
अरे भाभी अब 9:00 बज गए हैं खाना भी लगा ही दीजिए हां देवर जी अभी लगाती हूं —!सभी ने खाना खाया ।
10:00 बज गये । रेनू जा– छोटी भाभी को भी बुला आ ।
हम सब भी अब खाना खा लेते हैं। गरिमा ने रेनू को अवंतिका को बुलाने भेज दिया ।
नहीं मुझे भूख नहीं है—।
पेट में दर्द है तो प्लीज मुझे सोने दो कहते हुए पीठ रेनू के तरफ कर ली।
रेनू के जाते ही मनोहर कमरे में आए । अवंतिका —! तुम सोई हो बाहर भाभी तुम्हारा इंतजार कर रही है देखो आज बहुत ही मजेदार खीर बनाई है भाभी ने—! कहते हुए मनोहर अवंतिका का हाथ पकड़ उठाने की कोशिश करने लगा तभी जोर से झटका का एहसास लिए मनोहर एक और खड़ा हो गया।
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हां हां —जाऒ अपनी “प्यारी भाभी “के पास—! मुझसे ज्यादा अब तुम उन्हें ही प्यार करते हो ? उनकी बनाई खीर तुम्हें स्वादिष्ट लगती है ना—-? अरे मुझे तो लगता है कि तुम्हारा भाभी के साथ कोई चक्कर चल रहा है तभी तो तुम उनके साथ हंस हंस के बातें किया करते हो।
जब ऐसी ही बात थी तो मुझसे शादी क्यों किया–?
बेतुकी बात सुनकर वो बर्दाश्त नहीं कर पाया और अवंतिका के गाल पर एक जोरदार तमाचा जड़ दिया । घर वाले हल्ला सुनकर एकत्रित हो गए।
बिना कुछ बोले मनोहर कमरे से निकल गया। हां —आप सब आप तमाशा देखने यहां चले आए जाइए– अब आप लोग इंजॉय कीजिए !यही नौटंकी आप सबको देखनी थी ना—?अवंतिका की बदतमीजी को सभी ने बर्दाश्त करते हुए उसे समझाने की कोशिश की पर ,वह नहीं मानी। अपना सामान पैक कर अगले ही दिन ड्राइवर के साथ अपने मायके चली आई ।
“बेटी तु अकेले ही और दामाद जी नहीं आए—? आते ही मां तारा देवी ने असंकित मन से सवाल जड़ दिया—।
क्या— मैं अब अपने घर भी नहीं आ सकती—? तेजस्विनी ने झल्लाकर कर अपना सवाल दागा।
अरे क्यों नहीं —!बेटी ये तेरा घर है जब चाहे आ मैं तो बस ऐसे ही पूछ रही थी तारा देवी बात मिलाते हुए बोली।
मां–!” मैं अब राखी के बाद ही जाऊंगी!
हां- हां बेटा कहते हुए तारा देवी बेटी की मनपसंद पकवान बनाने के लिए किचन में चली गई!
मूलचंद जी और संकेत दोनों अपने कारोबार से लौटे तो बहन को देखकर संकेत बोला अरे— अवनी तू? कब आई ना आने की सूचना दी ना कोई खबर—? और मनोहर जी नहीं आए—? मुझे बुला लिया होता मैं तुझे लेने आ जाता !
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बस भैया मेरा मन हुआ तो आ गई!
नहीं तूने बहुत अच्छा किया बेटा–! मूलचंद जी बेटी को गले लगाते हुए बोले।
“इधर संकेत कई दिनों से बहन की मानसिक स्थिति को देखकर भाप गया था कि, जरूर अवनी ने ससुराल में कोई कांड कर दिया होगा और मनोहर जी भी साथ नहीं आए।
दिमाग में कई प्रश्न आ रहे थे।
एक दिन ।
क्या बात है अवनी—? कोई परेशानी है तो मुझे बता–? मैं तेरा बड़ा भाई हूं शायद कुछ तेरी मदद कर सकूं ।
नहीं नहीं भैया ऐसी कोई बात नहीं ! आप खामखां परेशान हो रहे हो। वह अपने में व्यस्त हो गई।
ठीक है बहन तू मुझे नहीं बताएगी–! लेकिन ,मैं तुझसे वादा करता हूं कि तेरी हर परेशानी को दूर करूंगा।
मन ही मन संकेत ने संकल्प लिया और अपने इस प्लान में अवंतिका की सबसे अच्छी” सहेली कुसुम” को भी शामिल कर लिया।
इधर चार महीने बीत गए –!
“मनोहर ने भी कभी अवंतिका से कोई कांटेक्ट नहीं रखा ।
मां -बाप ,परिवार सभी कहते की जा बहू को मना कर घर ले आ पर मनोहर यह कहकर टाल देता कि, उसे जब आना होगा तो वह खुद आ जाएगी।
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इधर जब “कुसुम अपने ससुराल से मायका” आई तो अवंतिका अपनी प्यारी दोस्त से मिलने उसके घर गई तब दोनों सहेलियां आपस में लिपट गई और वह पूरे बातचीत के दौरान अवंतिका ने नोटिस किया कि वोअपने ससुराल और पति की बड़ाई ही कर रही थी। सुनकर वो परेशान होने लगी घर जाकर पता नहीं क्यों आज बार-बार फोन की तरफ देख रही थी ।अब तो रोज उसे मनोहर के काल का इंतजार रहने लगा।
” वह ऐसा सोचने लगी कि “काश— बस एक बार —वह मुझे मनाने के लिए आ जाते और मैं हमेशा के लिए उनके साथ चली जाऊंगी फिर कभी भी उनसे लड़ाई नहीं करूंगी उनसे “मैं माफी भी मांग लूंगी कितने अच्छे हैं वह —!मेरा परिवार भी कितना अनमोल है मैंने उनकी कदर नहीं कि—! भगवान मुझे एक मौका और दे दीजिए फिर मैं कभी भी गलत कदम नहीं उठाऊंगी–!
“बहन के इस बदलते हुए स्वभाव को संकेत ने ,भाप लिया।”
अरे भैया आप कब आए–? मनोहर संकेत के पैर छूते हुए बोला ।
अरे बस मनोहर जी कितने दिन हो गए—! आप नहीं आए तो– सोचा कि चलो मैं ही आप सब से मिल लेता हूं !
अच्छा किया भैया –!
मनोहर की मां बहुत खुश हुई कहा बेटा– अब तुम ही समझाओ दोनों को–! ना तो यह जा रहा है और ना ही बहू आ रही है ।
क्या बात है मांजी —? मुझे कुछ पता नहीं अवनी ने भी हमें कुछ नहीं बताया–! लेकिन उसकी मानसिक स्थिति देख मुझसे रहा नहीं गया इसलिए— मैं मनोहर जी को लेने आया हूं!
सारी बात पता चलते ही संकेत मनोहर से अपनी बहन के किये हुए पर शर्मिंदगी जताते हुए बोला कि– “मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि इतने दिनों के अलगाव की वजह से अवनी में अब “बदलाव” आ गया है। उसे अपने किए पर पछतावा हो रहा है।
संकेत माजी से हाथ जोड़कर बोला माजी –अपनी बहन के किए हुए गलती के बदले, मैं आपसे माफी मांगता हूं ।
“अरे नहीं बेटा बहु तो हमारी बेटी की तरह है मैं तो कब से मनोहर को बोल रही हूं
जा बेटा– बहू को घर ले आ अब—!
मनोहर भी अवंतिका को घर लाने के लिए बेचैन हो उठा ।
“तो कल राखी है” हम कल ही चलते हैं कहते हुए संकेत मनोहर को गले लगा लिया।
इस तरह भाई के सूझबूझ से बहन का घर टूटते- टूटते बस गया। इस राखी संकेत ने अपनी बहन को मनोहर के रूप में बहुत “बड़ा उपहार” दे दिया था!
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धन्यवाद।
मनीषा सिंह