“बदलाव की बयार” – श्वेता अग्रवाल   : Moral Stories in Hindi

“अंश, यह दिशा है। इसने आज ही ऑफिस ज्वाइन किया है। तुम इसे इसका काम समझा दो। तुम दोनों सेम प्रोजेक्ट पर काम करोगे।”

“ओके सर।”

धीरे-धीरे एक ही प्रोजेक्ट पर काम करते-करते वे अच्छे दोस्त बन गए। यह दोस्ती कब प्यार में बदल गई उन्हें पता ही नहीं चला। लेकिन अब असल समस्या शुरू हुई क्योंकि दिशा थी गुजराती छोकरी और अंश था राजस्थानी छोरा। दिशा की फैमिली तो आधुनिक विचारों की थी

तो उन्हें तो इस शादी से कोई प्रॉब्लम नहीं थी। लेकिन अंश के घर वाले राजी नहीं थे। आखिर में वे इस शर्त पर उनके रिश्ते को स्वीकारने के लिए तैयार हुए कि दिशा शादी के बाद कुछ समय के लिए अपनी नौकरी से ब्रेक लेकर राजस्थानी रीति-रिवाज सीखेगी।

दिशा को इसमें कोई प्रॉब्लम नहीं थी। वह खुद नए परिवेश को समझने के लिए कुछ समय देना चाहती थी। इसलिए उसने शादी के बाद छः महीने के लिए नो पे लीव ले ली और अपने ससुराल के रीति-रिवाज सीखने समझने लगी।

एक दिन जब दिशा सोकर उठी तो उसने देखा कि सासू माँ एक पाटे पर माटी से कुछ बना रही हैं।

“माँ, आप क्या बना रहे हो? बहुत ही क्यूट लग रहे हैं।”

“बींदणी (बहू), मैं यह बछवारस मांड रही हूँ। ये सेठ-सेठानी, ये उनके सात बेटे और सात बहुएँ। बीच में गोल बावड़ी यानी कुँआ है। अभी देखना मैं और बड़ी बींदणी भैंस के दूध, दही, भींगे मोठ, बाजरा, चना से इनकी पूजा करेंगे।”

“जा, तू बड़ी बींदणी को बुला ला। बोलना, बछवारस मंड गई है। पूजा के लिए आ जाए।”

“जी, माँ।”

थोड़ी देर बाद दिशा की सास और उसकी जेठानी पूजा करने लगी। “अरे! ध्यान से देखना दिशा। बाबू होने के बाद तुम्हें भी करनी होगी यह पूजा।” जेठानी ने उसे छेड़ा।

यह सुनते ही दिशा शरमा गई और मुस्कुराते हुए चुपचाप पूजा देखने लगी।

पूजा के बाद सासू माँ ने अपने पोते अवि को बुलाया और उसकी हथेली पर रोली से स्वास्तिक बनाकर अंगूठी, दही, फूल, बाजरा रखकर फूँक मारने लगी।

“भाभी, ये माँ क्या कर रही है?”

“दिशा, माँ अवि का फुदकड़ा कर रही है, उसकी लंबी आयु और सलामती के लिए।”

“हाउ इंट्रेस्टिंग!”

“तो निवि को भी बुलाइए ना। उसका भी तो फुदकड़ा होगा ना।”

“अरे! ये क्या बोल रही है छोटी बींदणी! छोरियों (लड़कियों) का फुदकड़ा नहीं होता है।”

“लेकिन, क्यों माँ? क्या आप निवि की लंबी आयु और सलामती नहीं चाहती?”

“देख बींदणी, इन सब बहसबाजी का कोई मतलब नहीं है। ये रीति-रिवाज सदियों से ऐसे ही चले आ रहे हैं और ऐसे ही चलेंगे। समझी।” 

“लेकिन, यह तो गलत है।”

“अब तू मुझे समझाएगी क्या सही है और क्या गलत? हे भगवान! इसीलिए मैं मना कर रही थी कि दूसरी जात की लड़की को बहू बनाकर मत ला। ये हमारे रीति-रिवाज और परम्पराएँ क्या समझेगी? लेकिन, किसी ने मेरी नहीं सुनी। अब भुगतो।” सासू माँ जोर-जोर से चिल्लाने लगी।

“माँ, इसमें इतना जोर-जोर चिल्लाने की कोई बात नहीं है। रीति रिवाज के नाम पर ऐसा भेदभाव सही नहीं है।”

शोर सुनकर उसके ससुर जी, जेठ जी, अंश सभी बाहर दौड़े आए।

“क्या हुआ माँ?” अंश ने पूछा।

“मुझसे क्या पूछ रहा है? अपनी लुगाई (बीवी) से पूछ। हमारे रीति-रिवाजों का मजाक उड़ाने पर तुली हुई है।”

“क्या हुआ छोटी बींदणी? तुम ही बताओ।” ससुर जी कहा।

“बाबूजी, मैंने तो माँ से बस यही कहा कि जब अवि की लंबी आयु और सलामती के लिए उसका फुदकड़ा हो रहा है तो निवि का भी होना चाहिए। आखिर हमें दोनों बच्चों की सलामती की प्रार्थना करनी चाहिए ना। बच्चों में ये कैसा भेदभाव कि एक की सलामती की पूजा करेंगे और दूसरे की नहीं। बस इसी बात पर माँ नाराज हो गई।”

“लेकिन, बींदणी ये रिवाज तो सदियों से ऐसे ही चले आ रहे हैं। इनमें बदलाव संभव नहीं है।”

“क्यों ना संभव है बाबूजी? 

“बस कर छोटी बींदणी अपने ससुर से बहस करती है। यह बदतमीजी थारे यहां होती होगी। यहां यह सब नहीं चलेगा। चल अभी अपने ससुर जी से माफी मांग ।” 

“मैंने क्या गलती की है सासू माँ जो मैं माफी माँगू। गलत तो आप लोग हैं जो बेटे और बीच में भेदभाव करते हैं।”

“बस कर या तो अभी के अभी माफी माँग और हमारे रीति रिवाज और परंपराओं को स्वीकार नहीं तो इस घर से निकल जाए ऐसी बदतमीज और मुंह फट बींदणी के लिए मेरे घर में कोई जगह नहीं है।”

सासू माँ की यह बात सुनते ही दिशा भी चिल्लाई “मुझे भी कोई शौक नहीं है ऐसे लोगों के साथ रहने का।” और पैर पटकते हुए अपने कमरे में चली गई।

धीरे-धीरे यह बात और मनमुटाव इतना बढ़ गया कि एक ही घर में रहकर दिशा और उसकी सासू माँ एक दूसरे की ओर देखते भी नहीं थे। दोनों ही अपनी अपनी जिद पर कायम थे। इसी तरह महीनों बीत गए।

तभी एक दिन अंश की बुआ वहां रहने आई। घर का ऐसा माहौल देखकर उन्हें बहुत दुख हुआ। सारी बात का पता चलने पर उन्होंने भी दिशा और अपनी भाभी दोनों को समझाने की बहुत कोशिश की किंतु, कोई भी समझने को तैयार न था। लेकिन, बुआ जी भी हार मानने वालों में नहीं थी।

एकदिन वो बैठी अपनी भाभी से बातें कर रही थी कि निवी दौड़ती हुई आई और दादी के कंधे पर झूल गई “दादी, दादी मुझे भी अंश की तरह क्रिकेट कोचिंग ज्वाइन करनी है।”

“हां, हां लाड़ो क्यों नहीं। मैं तेरे दादा जी को कह दूंगी वह तुझे भी कोचिंग ज्वाइन करा देंगे।”

“अरे भाभी, क्या गजब कर रही हो! छोरी क्या करेगी क्रिकेट कोचिंग ज्वाइन करके? इसे तो घर के काम-काज सीखा वही काम आएगा। यह क्रिकेट-विकेट तो छोरों को शोभा देता है छोरियों  को नहीं।” बुआ जी ने छूटते ही कहा।

यह सुनते ही निवी का चेहरा उतर गया।

“क्या जीजी आप भी। यह कैसी बातें कर रही हैआप। मेरे लिए दोनों बच्चे बराबर हैं यदि अंश क्रिकेट कोचिंग सीख सकता है तो निवी क्यों नहीं?”

“नहीं सीख सकती क्योंकि यह एक छोरी है, छोरा नहीं।” बुआ जी ने गरजते  हुए कहा।

“मैं नहीं मानती इन सब बातों को। यदि अंश क्रिकेट कोचिंग कर सकता है तो निवि भी कर सकती है।” निवी के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए उसकी दादी बोली।

“यदि नहीं मानती इन सब बातों को तो क्यों इतने महीनों से छोटी बींदणी से मनमुटाव किए बैठी है?”

“अरे जीजी, उसकी तो बात ही छोड़ दो। उसे तो हमारे रीति रिवाज और परंपराएं सभी मजाक लगते हैं। खाली बहस करवा लो।”

“अरी बावली, वो बहस नहीं कर रही बल्कि सच्चाई का आईना दिखा रही है। सौ टका सही बात कर रही है छोटी बींदणी। जब दोनों ही हमारे आंखों के तारे हैं तो प्रार्थना भी दोनों के लिए होनी चाहिए। इसलिए अब से परम्परा के नाम पर यह भेदभाव बंद कर। समझी। बड़ी है तो सही मायने में बड़प्पन दिखा। “

“हाँ, आप सही कह रहे हो जीजी।

 वो कहते हैं ना ‘जब जागो तभी सवेरा’ तो मैं देर से ही सही लेकिन समझ गई हूँ।”यह कहते हुए उन्होंने दूर खड़ी दिशा के पास जाकर उसे गले से लगा लिया। घर के सभी लोग यह देखकर मुस्कुरा उठे । बुआ जी की समझदारी से मनमुटावों के बादल छट गए थे और बदलाव की बयार बह गई थी।छोटे स्तर से ही सही लेकिन परिवर्तन की शुरुआत हो चुकी थी।

#मनमुटाव

धन्यवाद 

श्वेता अग्रवाल

1 thought on ““बदलाव की बयार” – श्वेता अग्रवाल   : Moral Stories in Hindi”

  1. जबरदस्त कहानी । ऐसा ही होना चाहिए । जन्म,शिक्षा,भोजन ,अधिकार,रुचि,व्यवसाय ,व्यवहार के मामले में बेटियां बेटों के समान है किंतु सत्य यही है प्रकृति ने नर और नारी दोनो को एक दूसरे का पूरक बनाया है दोनो ही सभी क्षेत्रों को एक दूसरे से बेहतर नही संभाल सकते अर्थात भिन्नता तो है।

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