एक बार की बात है, एक बुजुर्ग व्यक्ति, श्रीराम, अपनी गंभीर बीमारी के कारण अस्पताल में भर्ती हुए। उनके साथ उनके परिवार के सदस्य थे—उनका बेटा, बहू और दो पोते। डॉक्टरों ने उन्हें बताया कि बीमारी गंभीर है, लेकिन यह छूत की नहीं है। फिर भी, श्रीराम को विशेष देखभाल की जरूरत थी। इलाज के बाद उन्हें घर लाया गया और उनके लिए एक नर्स और एक नौकर की व्यवस्था कर दी गई।
शुरुआत में, सभी उनका ख्याल रखते थे। बेटा-बहू उनके कमरे में आते-जाते, पोते उनके पास बैठते। लेकिन धीरे-धीरे यह सब बदलने लगा। पोतों ने उनके कमरे में आना बंद कर दिया। बहू कभी-कभार ही झांकती और बेटा अक्सर काम के बहाने दूर रहता। श्रीराम को यह बदलाव खलने लगा।
एक दिन, श्रीराम अपने कमरे से बाहर टहल रहे थे। तभी उन्होंने बेटे और बहू की बातचीत सुनी। बहू कह रही थी, “पिताजी को किसी वृद्धाश्रम में भेज दें या किसी प्राइवेट अस्पताल के कमरे में रखवा दें। बच्चों की सेहत पर असर पड़ सकता है।” बेटा जवाब में बोला, “तुम ठीक कह रही हो। आज ही पिताजी से बात करता हूं।”
श्रीराम चुपचाप अपने कमरे में लौट आए। उनके दिल में गहरा आघात पहुंचा, लेकिन उन्होंने अपने चेहरे पर कोई शिकन नहीं आने दी। उस रात उन्होंने बहुत देर तक सोचा और आखिरकार एक निर्णय लिया। अगले दिन शाम को, उनका बेटा उनके कमरे में आया।
“पिताजी, मुझे आपसे कुछ बात करनी है,” बेटा बोला।
“बेटे, मुझे भी तुमसे कुछ जरूरी बात करनी है,” श्रीराम ने जवाब दिया।
बेटे ने पूछा, “आप पहले बताइए, क्या बात है?”
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श्रीराम ने कहा, “देखो बेटा, मेरी तबीयत ठीक नहीं रहती, और मैं अब अकेलेपन में रहकर तंग आ चुका हूं। मैंने निर्णय लिया है कि मैं अपना बाकी जीवन मेरे जैसे बीमार, असहाय और बेसहारा बुजुर्गों के साथ बिताऊंगा। इसलिए मैंने सोचा है कि इस बंगले को वृद्धाश्रम में बदल दूं।”
बेटा यह सुनकर सन्न रह गया। मन ही मन वह खुश हो रहा था कि उसे अपने पिताजी को वृद्धाश्रम भेजने की बात कहनी ही नहीं पड़ी। लेकिन दिखावे के लिए उसने कहा, “पिताजी, यह आप क्या कह रहे हैं? आपको यहां रहने में कोई परेशानी है क्या?”
“नहीं बेटे, मुझे यहां रहने में कोई परेशानी नहीं है। लेकिन यह कहने में मुझे तकलीफ हो रही है कि अब तुम अपनी रहने की व्यवस्था कहीं और कर लो। मैं इस घर को वृद्धाश्रम बनाऊंगा और जरूरतमंद बुजुर्गों की देखभाल करते हुए अपना जीवन व्यतीत करूंगा।”
“अरे हां, तुम भी कुछ कहने वाले थे। बताओ, क्या बात थी?” श्रीराम ने शांत स्वर में पूछा।
कमरे में सन्नाटा छा गया। बेटा कुछ कह नहीं पाया। उसके चेहरे पर शर्मिंदगी और अपराधबोध साफ झलक रहे थे। वह समझ चुका था कि उसके पिता ने उसकी और बहू की बातचीत सुन ली थी।
श्रीराम ने अपनी योजना पर काम शुरू कर दिया। उन्होंने अपने घर को वृद्धाश्रम में बदलने के लिए स्थानीय प्रशासन से अनुमति ली। उनके पास जो भी बचत थी, उन्होंने उसे वृद्धाश्रम के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने कुछ समाजसेवकों और डॉक्टरों से संपर्क किया और उनकी मदद से वृद्धाश्रम को चलाने की व्यवस्था की।
जल्द ही, श्रीराम का घर असहाय और जरूरतमंद बुजुर्गों से भर गया। वह उन सभी के लिए एक पिता समान बन गए। वृद्धाश्रम में रहने वाले सभी बुजुर्ग उन्हें आदर से “बाबाजी” कहकर बुलाने लगे।
वृद्धाश्रम में श्रीराम का दिनचर्या पूरी तरह बदल गई थी। सुबह की चाय से लेकर रात के खाने तक, वह हर छोटे-बड़े काम में बुजुर्गों के साथ रहते। उन्होंने ध्यान रखा कि किसी को भी अकेलापन महसूस न हो।
इस दौरान, श्रीराम के बेटे को भी अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने देखा कि उसके पिता अब कितने खुश और संतुष्ट हैं। उसने महसूस किया कि जो पिता अपने बच्चों के लिए पूरी जिंदगी समर्पित कर सकते हैं, उनके साथ ऐसा व्यवहार करना कितना गलत था।
एक दिन, वह अपने पिता से मिलने वृद्धाश्रम पहुंचा। उसके साथ उसकी पत्नी और बच्चे भी थे। “पिताजी, मैं आपसे माफी मांगने आया हूं। हमने आपके साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया। मुझे अब अपनी गलती का एहसास हो गया है। क्या आप हमें माफ कर सकते हैं?”
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श्रीराम ने बेटे को गले लगाते हुए कहा, “बेटा, माफी मांगने से बड़ा कदम अपनी गलती को सुधारना है। अगर तुमने अपनी गलती समझ ली है, तो मैं तुम्हें माफ कर चुका हूं। लेकिन याद रखना, बुजुर्गों का सम्मान करना और उनकी देखभाल करना हमारी जिम्मेदारी है।”
इसके बाद बेटा और बहू भी वृद्धाश्रम के कार्यों में मदद करने लगे। उन्होंने वहां समय बिताना शुरू किया और बुजुर्गों की सेवा करने लगे। श्रीराम ने देखा कि उनका बेटा अब पहले जैसा नहीं रहा। उसकी सोच और व्यवहार में बदलाव आ गया था।
यह कहानी हमें सिखाती है कि कभी-कभी जीवन में सख्त कदम उठाने की जरूरत होती है। श्रीराम ने अपने बेटे को न सिर्फ सबक सिखाया, बल्कि अपने उदाहरण से उसे एक बेहतर इंसान भी बनाया। उनके इस कदम ने न केवल उनके परिवार, बल्कि पूरे समाज को एक नई दिशा दी।
लेखिका : अंजनित निज्जर