हमारे पड़ोस में एक पांडेय परिवार रहते थे,उनसे हमारा आत्मीय सम्बन्ध था।उनकी पत्नी श्वेता हमारी दोस्त थी।पांडेय परिवार जितने ही संपन्न थे,उतने ही सभ्य भी।उनके दो बेटे थे-सुमित और सुन्दर। सुमित देखने में साधारण था,परन्तु पढ़ने में उतनी ही कुशाग्र बुद्धि का।उसे शिक्षा का महत्त्व पता था,इस कारण वह अपना ध्यान पूरी तरह पढ़ाई-लिखाई में लगाता था।सुमित जब मोटरसाइकिल से काॅलेज के लिए निकलता,तब उसे बस स्टांप पर खड़ी एक लड़की नजर आती।सुमित जानता था कि ये लड़की उसी के मोहल्ले की है,परन्तु सुमित उस लड़की से न तो बात कर पाता,न ही उससे नाम पूछने की हिम्मत। पर उस लड़की को देखकर सुमित के दिल में कुछ-कुछ होता था।देखते-देखते सुमित की अच्छी नौकरी लग गई। सुमित उस लड़की से अपने दिल की भावनाओं का इजहार करने के लिए बेताब रहता,परन्तु उसे मौका ही नहीं मिल रहा था।
एक दिन ‘जहाँ चाह,वहाँ राह ‘वाली कहावत सुमित के लिए चरितार्थ हो गई। उसी के मोहल्ले की पार्टी में उस लड़की से सुमित का आमना-सामना हो गया।सुमित ने मौका न गवाते हुए हिम्मत बटोरकर उस लड़की से पूछ ही लिया -” हलो! तुम्हारा नाम क्या है”
उस लड़की ने भी मुस्कराते हुए कहा -” मोनिका।”
मोनिका की मुस्कराहट बता रही थी कि उसे भी सुमित पसन्द है।उसके दिल में भी सुमित के लिए चाहत छुपी हुई थी।
मोनिका का गोरा रंग,तीखे नयन-नक्श,छरहरा बदन,लम्बा कद किसी को भी आकर्षित कर सकता था।परन्तु उन दोनों के परिवार मे रहन-सहन में जमीन-आसमान का अंतर था।सुमित जहाँ बहुत बड़े परिवार का बेटा था,वही मोनिका बहुत साधारण परिवार की।उसके पिता की एक छोटी-सी दुकान थी।माता-पिता और दो बहनें,यही उसका परिवार था।अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि के कारण मोनिका सुमित से खिंची-खिंची सी रहती,परन्तु सुमित के दिल में तो मोनिका बस चुकी थी।उसे छोटे-बड़े की कहाँ परवाह थी?
पारिवारिक की नाराजगी को दरकिनार करते हुए एक दिन सुमित ने खुलेआम ऐलान करते हुए कहा-“माँ!मैं मोनिका को पसन्द करता हूँ,उसी से शादी करुँगा।”
मोनिका से शादी की बात सुनते ही श्वेता ने गुस्से से उबलते हुए कहा-” मैं इन छोटे घरों की लड़कियों को खूब समझती हूँ।अमीर घरों के भोले-भाले लड़कों को फँसातीं हैं।ये रिश्ता हमारी बराबरी का नहीं है।मुझे ये शादी नामंजूर है।”
सुमित के पिता ने अपनी पत्नी की बातों से असहमत होते हुए कहा-“मोनिका बहुत सुन्दर और संस्कारी लड़की है।मुझे बहू के रुप में पसन्द है।जब हमें दहेज लेना ही नहीं है,तो उनकी आर्थिक स्थिति से हमें क्या मतलब ?”
सुमित की माँ-“इस लड़की से शादी करने से बिरादरी में हमारी क्या हैसियत रह जाएगी?”
सुमित-“माँ!मैं आपको स्पष्ट कह देता हूँ कि शादी करुँगा तो मोनिका से,नहीं तो मैं आजीवन कुँवारा रह जाऊँगा।”
अब श्वेता को बेटे के समक्ष झुकने के सिवा कोई चारा नहीं था।सुमित की शादी मोनिका के साथ धूमधाम से हो गई। मोनिका होशियार तो थी ही,उसने ससुराल के रहन-सहन में खुद को ढ़ाल लिया।वह अपने व्यवहार से सबको खुश रखने की कोशिश करती।उसके व्यवहार से सास धीरे-धीरे खुश हो रही थी,परन्तु कभी-कभार मन का गुब्बारा मोनिका पर फूट पड़ता।किसी बात को लेकर मोनिका को कह उठती -” बहू!मेरे परिवार में छोटे घर ऐसा रिवाज नहीं है।मेरे यहाँ तुम्हारे घर ऐसा नहीं होता है।”
सास की बातों से कभी-कभी मोनिका काफी आहत और उदास हो जाती,फिर अगले पल ही सास को खुश करने की कोशिश करती।
कुछ समय बाद श्वेता ने अपने दूसरे बेटे सुन्दर की शादी बहुत बड़े घराने में की।सुमित की शादी में जो अरमान अधूरे रह गए थे,इसे इस बार दिल खोलकर पूरा किया।मोनिका को सुनाकर श्वेता
सम्बन्धियों से कहती-“इस बार मैं छोटे-मोटे नहीं,बल्कि बहुत बड़े घर की बहू लाई हूँ।”
कटाक्ष भरी बातों को सुनकर मोनिका मायूस हो जाती,परन्तु सुमित उसे समझाते हुए कहता-“मोनिका!उदास मत हो। माँ एक-न-एक दिन तुम्हें दिल से जरुर स्वीकार कर लेगी।”
बड़े घर की बेटी नन्दिनी को पति छोड़कर घर में किसी से कोई लगाव नहीं था।घर के कामों से भी उसे कोई मतलब नहीं था।अब धीरे-धीरे श्वेता को मोनिका की अहमियत महसूस होने लगी थी।एकदिन अचानक श्वेता सीढ़ियों से गिर पड़ी।उस समय मोनिका घर में नहीं थी।छोटी बहू नन्दिनी ने फोन कर जल्दी से मोनिका को बुला दिया और खुद घर से बाहर निकल गई, मानो फोन कर देने भर से उसके कर्त्तव्यों की इति श्री हो गई।
मोनिका तुरंत अपनी सास श्वेता को अस्पताल ले गई। श्वेता के दोनों पैर टूट चुके थे।उसके दोनों पैर का ऑपरेशन हुआ। मोनिका ने सास की जी-जान से दिन-रात सेवा की और उन्हें अपने पैरों पर खड़ा कर दिया।उसने अपनी सेवा -भावना से सास के दर्द पर मलहम पट्टी का काम किया। आज श्वेता ने अपनी बहू को पूर्णरुपेेण स्वीकार कर गले लगाते हुए कहा-“बेटी!तुमने मेरी आँखें खोल दी।छोटे या बड़े घर की बेटी से कुछ नहीं होता है,जिन लड़कियों में समझदारी और संस्कार होते हैं,वही बड़े घर की बहू बनने के काबिल है।”
मोनिका की आँखों से खुशी के दो मोती छलक पड़े।
समाप्त।
लेखिका-डाॅ संजु झा।