बड़ा दिल – नीलम शर्मा  : Moral Stories in Hindi

नीलिमा देखो अब हमारा-तुम्हारा गुजारा एक साथ नहीं हो सकता। दीपक तो अब कुछ कमाता नहीं। ऐसा लगता है जैसे वह दूसरी नौकरी करना ही नहीं चाहता। नहीं तो क्या दो महीने होने को आए उसे नौकरी नहीं मिलती। नहीं दीदी ऐसी बात नहीं है, वह पूरी तरह कोशिश कर रहे हैं। इंटरव्यू भी दिए हैं, लेकिन अभी कहीं बात नहीं बनी। 

बस बस मुझे कुछ नहीं पता ये अकेले अपनी कमाई से किस-किस को पालेंगे। 

यह है सीमा जी का परिवार जिसमें उनकी दो बहुएं नीलिमा और मधु हैं। सभी कुछ ठीक चल रहा था। लेकिन जब से उनके छोटे बेटे दीपक की नौकरी छुटी थी, घर के माहौल में एक अनबोली कड़वाहट सी घुल गई थी।  जो अब तक मन में दबा था आज मधु के मुंह से बाहर आ ही गया। उसे लगता था कि उस पर खर्च होने वाली कमाई उसका पति अपने परिवार पर लुटा रहा था। जबकि उसका पति विपिन भी उसे कई बार समझा चुका था कि जब हम सुख में एक साथ थे तो क्या विपत्ति के समय मैं अपने भाई को अकेला छोड़ दूं। कुछ समय की बात है दोबारा दिन बदलेंगे। 

पर सीमा की बुद्धि भ्रष्ट हो चुकी थी। उसने आज नीलिमा को बहुत कुछ सुनाया। नीलिमा अपने आप को बहुत अपमानित महसूस कर रही थी। उसकी आंखों में आंसू भर आए। वह चुपचाप अपने कमरे में चली गई। दीपक उस समय किसी काम से बाहर गया हुआ था। ना ही वह यह सब उसे बताकर कोई तनाव देना चाहती थी। 

कुछ देर बाद सीमा जी आई जो मंदिर गई हुई थी। घर की बोझिल सी चुप्पी से उन्हें लग गया कि जरूर कुछ बात हुई है।उन्होंने दोनों बहुओं को आवाज़ लगाई। नीलिमा अपने आंसू पोंछकर बाहर आ गई। मधु भी दनदनाती हुई बाहर आई। जी मांजी क्यों बुलाया आपने। बेटा वह मैंने तो….। तुम दोनों दिखाई नहीं दे रही थी इसीलिए आवाज लगाई। कुछ बात हुई है क्या? देखिए मॉं जी

 अनजान मत बनिए। यह क्या अपनी मेहनत की कमाई यूं ही लुटाते रहेंगे। लेकिन बेटा वह परिवार ही क्या जो सुख में एक ,और दुख में अलग हो। मुझे कुछ नहीं पता मॉंजी हमें अलग-अलग कर दीजिए। सीमा जी ने नीलिमा की ओर देखा जिसकी रो-रो कर आंखें सूज गई थी। उन्हें लगा कि अगर उन्होंने मधु की बात नहीं मानी तो नीलिमा रोज अपमानित होती रहेगी। कहीं ऐसा ना हो कि इस सब का प्रभाव उनके बेटों के रिश्ते पर भी पड़ जाए उन्होंने दोनों को अलग कर दिया। 

अब बिन पैसे के गुजारा कैसे हो। नीलिमा ने दीपक से कहा जब तक तुम्हारी नौकरी नहीं लगती, जो पापा की बंद दुकान है उसमें कोई काम शुरू कर दो लेकिन दुकान में सामान डालने के लिए भी तो पैसे चाहिएं। कोई काम छोटा बड़ा नहीं होता दीपक। पैसे को सलाम है। तुम उसमें चाय की दुकान करो पास में ही स्कूल और बाजार हैं।कोई ज्यादा खर्चा नहीं होगा और ईश्वर की कृपा से काम चल निकलेगा। यह लो मेरे कंगन और इन्हें बेचकर दुकान के लिए जो सामान चाहिए वह ले आओ। 

दीपक ने प्यार से नीलिमा को गले लगा लिया। तुम मेरी सच्ची जीवन साथी हो। भगवान की दया से दीपक की चाय की दुकान चलने लगी। जब कुछ पैसे बचे तो नीलिमा ने घर पर नाश्ता बना कर दुकान पर बेचना शुरू कर दिया। जो स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को बहुत अच्छा लगता। धीरे-धीरे चाय की दुकान एक कैंटीन में बदल गई। 

उधर मधु की हालत खराब थी। क्योंकि विपिन जिस कंपनी में काम करता था, वह दिवालिया हो गई थी।  उसे नौकरी से निकाल दिया गया था। कुछ समय बचत से काम चला।ना ही मधु परिस्थितियों को समझ कर खर्च करती थी। जो जमा पूंजी थी वह भी धीरे-धीरे खत्म हो रही थी। मधु को तो बस अपनी ज़रूरतें पूरी होने से मतलब था। विपिन को संभालने की जगह वह उसे नौकरी न लगने पर ताने मारती रहती। 

एक एक रात विपिन को तनाव की वजह से हार्ट अटैक आ गया। अब मधु को लगा कि मैं क्या करूं। पैसे भी नहीं हैं। जो खुद विपिन को अस्पताल ले जाऊं। अब उसे दीपक के अलावा कोई दूसरा सहारा नजर नहीं आ रहा था। उसने झिझकते हुए दीपक को फोन मिलाकर रोते-रोते सारी बात बताई। 

आप चिंता मत करिए भाभी मैं आ रहा हूंँ। दीपक और नीलिमा ने आकर सब संभाल लिया। विपिन ठीक होकर घर आ गया। मधु ने नीलिमा के आगे हाथ जोड़ दिये और अपने बुरे व्यवहार के लिए माफी मॉंगी। नीलिमा ने मधु को गले लगा लिया और बोली दीदी मैं तो कभी आपसे नाराज ही नहीं थी। कितना बड़ा दिल है नीलिमा तुम्हारा। 

अपने परिवार को फिर से एक साथ देखकर सीमा जी की आंखें भी खुशी से छलछला आई।

नाम: नीलम शर्मा 

मुजफ्फरनगर उत्तरप्रदेश,

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!