Moral Stories in Hindi : वीरेंद्र सिंह अपने ग्राम में सरपंच थे,लोकप्रिय,न्यायप्रिय और सबके दुःख सुख में काम आने वाले व्यक्ति रूप में उनकी ख्याति थी।पत्नी पार्वती सहित दो बेटे शिखर और कैलाश उनके परिवार में थे।दोनो बेटों को वीरेंद्र जी ने शहर में पढ़ने भेज दिया था।छुट्टियों में ही वे गावँ आते या फिर कभी वीरेंद्र जी का शहर जाना होता तो वे खुद बच्चो से वही मिल आते।
दोनो बेटे पढ़ाई लिखाई में होशियार थे,अन्य गतिविधियों में भी भाग लेते थे,इससे वीरेंद्र जी एवं पार्वती को स्वाभाविक रूप से प्रसन्नता होती।जीवन चक्र ऐसे ही ठीक चल रहा था कि अचानक ही एक दिन रात्रि में वीरेंद्र जी के सीने में भयंकर दर्द उठा, हॉस्पिटल ले जाने की प्रक्रिया में ही वीरेंद्र जी दुनिया को अलविदा कर गये।अपने दोनो बेटों के साथ रह गयी अकेली पार्वती।
वीरेंद्र जी के पास ग्राम में खेती की काफी जमीन थी,इसलिये वीरेंद्र जी के अकस्मात चले जाने के कारण जीवन यापन में कोई कठिनाई नही आयी, पर परिवार के मुखिया का असमय ही यूँ ही चले जाना सबको दुःखी तो करता ही था।
दोनो बेटे शिखर व कैलाश अपनी शिक्षा पूरी कर चुके थे।पार्वती ने अपने दोनो बेटों शिखर व कैलाश से स्पष्ट कहा कि वह घर तो संभाल सकती है,पर तुम्हारे पिता के खेती सम्बन्धी तथा लेन देन के कार्य को नही संभाल पायेगी।इस पर बड़े बेटे शिखर ने पिता के साम्राज्य को संभालने में रुचि प्रकट की तो छोटे बेटे कैलाश ने कोई जॉब करने की मंशा जता दी।पार्वती को सुकून इस बात से मिला कि कम से कम एक बेटा उसके पास भी रहेगा और अपने पिता का काम भी संभालेगा।
छोटे बेटे कैलाश का जॉब लग चुका था,बड़े बेटे शिखर ने अपने पिता का काम संभाल लिया था। पार्वती ने दोनो बेटों की शादी भी कर दी।कैलाश तो शहर में ही रहता था,उसके पास कभी कभी जाना होता था,शिखर तो पार्वती के पास ही रहता था।इस बीच शिखर को पुत्र की प्राप्ति हो चुकी थी।
पोते के साथ पार्वती खूब खुश थी,समय के भी पंख लग गये थे।इधर पार्वती महसूस करने लगी थी कि उसके दिवंगत पति और शिखर के व्यवहार तथा आदत में जमीन आसमान का अंतर है।
वीरेन्द्र जी जहाँ सौम्य व्यवहार के प्रतीक थे तो वही शिखर का व्यवहार कटु और अहंकारी था।पार्वती को शिखर का अपने मजदूरों और कामगारों के प्रति यह व्यवहार चुभता था।पार्वती ने एक दो बार कहा भी कि बेटा ये सब भी हमारे परिवार के सदस्य जैसे हैं, इनके प्रति मृदु स्वभाव रखा करो।पहले माँ के सामने चुप रहने वाला शिखर अब मां को समझाने लगा था
कि माँ तुम इस बीच मे मत पड़ा करो।परिवार के सदस्य हैं से क्या मतलब अपना वेतन या मजदूरी लेते हैं, कोई मुफ्त में थोड़े ही काम करते हैं।शिखर ने माँ को आगे की बात भी समझा दी कि इन लोगो से कड़ाई से पेश न आया जाये तो ये रत्ती भर भी काम न करे।
असहमत होते हुए भी पार्वती चुप रह जाती।सोचती समय सब ठीक करेगा।एक दिन तो पार्वती सन्न ही रह गयी,अपना चाकर शंकर घबराया सा आया और शिखर से बोला बाबू भाई साहब मुन्ना बहुत तेज बुखार से पीड़ित है उसे शहर ले जाना है।दो हजार रुपये दे दीजिये, सरकार।शिखर बोला देखो शंकर तुम अपनी पगार ले चुके हो,अब और एडवांस नही दिया जा सकता।
तुम पुराने मुलाजिम हो दो चार सौ रुपये की बात और है।शंकर बोला बाबू मेरे बच्चे की जिंदगी का सवाल है।शिखर बोला भाई ये तुम जानो।मायूश सा शंकर वापस जाने लगा।पार्वती चुपचाप घर से निकली और हवेली के बाहर आकर उसने शंकर को आवाज देकर बुलाया और दो हजार रुपये उसे दे दिये।शंकर ने मालकिन के पावँ छू उन्हें दुआयें देते हुए अपने घर की ओर लपक लिया।
शिखर के इस व्यवहार से पार्वती टूट सी गयी,गावँ से मन उचाट हो गया और शिखर से आग्रह कर छोटे बेटे कैलाश के पास शहर में आ गयी।शिखर के आचरण के कारण पार्वती गुमसुम सी रहने लगी थी। धीरे धीरे दो माह बीत गये।
अचानक एक दिन शिखर शंकर के साथ शहर कैलाश के घर आया।बोला माँ मैं तुम्हे लेने आया हूँ।मैं समझ गया हूँ माँ तुम मुझसे नाराज हो, मैं पिता जी का अनुशरण नही कर पाया ना।माँ इस शंकर ने मेरी आँखें खोल दी है।पार्वती आश्चर्य से शिखर को देखी जा रही थी,पता नही क्या बोले जा रहा है?
शिखर कहे जा रहा था मां इस शंकर के बेटे के इलाज के लिये मैंने इसे दो हजार रुपये न देकर दुत्कार दिया था,पर जानती हो मां इस शंकर ने अपने मनु की जान बचायी अपनी जान पर खेल कर।
अपना मनु गांव में एक असंतुलित घोड़ा गाड़ी के नीचे आने ही वाला था कि शंकर जो उधर ही था दौड़कर मनु को एक ओर धक्का देकर बचा लिया और खुद चोट खा बैठा,वो तो अच्छा हुआ चोट थोड़ी ही आयी घोड़ा गाड़ी इसके ऊपर को भी गुजर सकती थी।तब मेरी आँख खुली कि इसके बच्चे के इलाज को जिसने पैसे तक न दिये थे
उसने उसके बच्चे के प्राण बचाये हैं।तभी मुझे मां तुम्हारी नाराजगी का अहसास भी हो गया।शंकर ने मुझे माफ़ कर दिया है माँ तुम भी मुझे माफ़ कर दो।माफ कर दो माँ।
गीली आँखे लिये पार्वती ने उठकर अपने नये शिखर को तो गले से लगाया ही साथ ही शंकर के सिर पर भी हाथ रख आशीर्वाद दिया——!
बालेश्वर गुप्ता, नोयडा
मौलिक एवं अप्रकाशित
#माफ करने वाले का दिल बहुत बड़ा होता है