बड़ा दिल – करुणा मलिक : Moral Stories in Hindi

नीलम ! कल जब तू यहाँ से उठ के चली गई थी तो तुम्हारी मम्मी का फ़ोन था ना ? सब ठीक- ठाक तो है?

हाँ माँ…. सब ठीक है, मैंने सोचा कि शायद मम्मी मकर- संक्रांति की कोथली के बारे में बात करेंगी …इसलिए उठकर बाहर चली गई पर वे तो वैसे ही फ़ोन कर रही थी । मुझे लगा कि मनीषा यहीं बैठी है , कहीं मम्मी कुछ ऐसा ना पूछ लें कि जवाब देना मुश्किल हो जाए मनीषा के सामने , इसलिए चली गई थी ।

ये तो तूने ठीक सोचा था बेटा! छह महीने हो गए पर मनीषा आज भी असमय गए माता-पिता के सदमे से बाहर नहीं आ पाई है । हुआ भी बुरा ही ….. कोई भाई-बहन नहीं, चाचा- ताऊ नहीं, माता-पिता थे , वे भी चले गए । जिस पर बीतती है वही जानता है ।

रसोई में चाय बनाती मनीषा के कानों में सास और जेठानी की एक- एक बात पड़ रही थी । रोकने के बावजूद भी वह अपने आँसुओं को न रोक सकी ।जहाँ एक ओर  गैस पर रखी  चाय उबल रही थी वहीं दूसरी ओर दिल में रह-रहकर वे भावनाएँ उबाले मार रही थी जिन्हें मनीषा रोकने का प्रयास कर रही थी । 

छह महीने पहले तक वह कितनी खुश थी । मम्मी- पापा की दुलारी इकलौती और ससुराल में भी सबसे छोटी शरारती मनीषा । कहने के लिए तो बहू थी पर इस घर की बेटी की कमी को उसने पूरा कर दिया था । सास- ससुर तो क्या , उसकी एक पुकार पर जेठ-जेठानी बड़े भाई- भाभी की तरह उसके नाज़ नखरे उठाते थे । अक्सर मनीषा की मम्मी उसकी नज़र उतारते हुए कहती थी—-

किसी की नज़र ना लग जाए मेरी लाडो को , भगवान ने इतनी ख़ुशियाँ दी है बेटा तुझे … इन्हें सँभाल कर रखना । 

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नीलम  ने जेठानी के रुप में मनीषा के जीवन की बहन , भाभी , सहेली हर कमी को पूरा कर दिया था । पर मनीषा ने भी अपने चुलबुले स्वभाव और शरारतों की आड़ में किसी के मन को कभी आहत नहीं किया था । 

कोई भी तीज- त्योहार आता । मनीषा  की  मम्मी महीने  पहले ही फ़ोन करके पूछना शुरू कर देती —

मीनू ! क्या – क्या भेजूँ ? खाने में भी बता दे और हाँ….. गौरव को बोलना कि अपने मनपसंद पैंट- शर्ट ख़रीद लें , तेरे पापा ने उसके अकाउंट में पैसे डलवा दिए हैं ।

अक्सर गौरव भी कहते —-

क्या यार मनीषा, पापा रिटायर हो चुके हैं? मुझे अच्छा नहीं लगता कि हर त्योहार पर मम्मी- पापा इस तरह पैसे भेजते हैं ।

तो क्या हुआ? बच्चे मम्मी- पापा से फ़रमाइशें नहीं करेंगे तो किस से करेंगे? कुछ नहीं होता, उनको अच्छा लगता है । 

मनीषा…. बेटा ! कहाँ रह गई? चाय नहीं बनी क्या ? जा नीलम , देखना मनीषा कहाँ रह गई? 

सास की आवाज़ सुनकर मनीषा विचारों से बाहर आई पर तब तक उबलती चाय कढ़-कढ़ कर आँधी फुंक चुकी थी ।

मनीषा…. चाय तो जल गई ? छोड़ इसे … बाहर चल । मैं बनाकर लाती हूँ । 

वो दीदी….सॉरी , पता ही नहीं चला ? मैं बनाकर लाई बस दस मिनट में ।

नीलम ने सास के पास जाकर धीरे से चाय जलने वाली बात बताते हुए कहा—-

क्या करें माँ, मुझसे तो मनीषा की हालत देखी नहीं जाती । क्यों ना गौरव के साथ कुछ दिनों के लिए कहीं घूमने भेज दें … मन बदल जाएगा । 

हाँ बेटा … कर लेना गौरव से बात । सर्दी भी तो बहुत पड़ रही है और दो टाइम बाहर का खाते ही मनीषा का पेट ख़राब हो जाता है । पर देख ले , जैसा तुम ठीक समझो …. कर लेना । 

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आज मनीषा को रह- रहकर मम्मी- पापा की याद आ रही थी । पिछले साल की ही तो बात है जब मम्मी- पापा लोहड़ी वाले दिन आए थे । गाड़ी से ढेर सारा सामान उतारते समय सौरभ भैया ने उसे छेड़ते हुए कहा था—-

आँटी जी! इस मँगती ने फ़रमाइशों की लिस्ट भेज दी होगी पक्का … पता नहीं इसका बचपना कब ख़त्म होगा । ख़ामख़ाह आप परेशान हुए….

अरे वाह भैया! मेरे मम्मी-पापा मेरे लिए नहीं ख़रीदेंगे तो किसके लिए ख़रीदेंगे  ? 

अरे बावली ! इतना सामान कैसे इस्तेमाल करेगी एक साथ? जब ज़रूरत हो तब ख़रीद लिया कर ना । 

सचमुच इस कोथली पर इतना सामान था कि पूरे पड़ोस में प्लेटें भर-भरके बाँटने पर भी महीने भर तक नाश्ता किया था । कौन जानता था कि मम्मी- पापा अपने जिगर के टुकड़े के लिए आख़िरी कोथली लाएँ है । 

याद आते ही मनीषा की आँखों से झर-झर आँसू बह निकले । और आज कुछ भी नहीं… तीन-चार दिन बाद संक्रांति है पर  आज फ़रमाइशें पूछने वाले ही नहीं । वैसे तो ससुराल वाले उस पर जान छिड़कते हैं, उसकी छोटी- बड़ी चीज़ का ख़्याल रखते हैं पर न जाने क्यों वो अधिकार नहीं, जो मम्मी- पापा के सामने था ।उसे मम्मी की बचपन में कहीं बात अक्सर अब याद आती जब वह छोटी सी चीज़ पाने के लिए पूरे घर को सिर पर उठा लेती थी और पापा उसी समय उल्टे पाँव बाज़ार जाते —-

कर ले जितना परेशान करना है जब हम नहीं रहेंगे ना …….अरे तरस जाएगी तू । सुबह से  ऑफिस गए पापा को फिर बाज़ार जाना पड़ा….

तो क्या हुआ…. मेरे ही तो पापा हैं —-वह इतराते हुए कहती ।

लोहड़ी के दिन सुबह- सुबह ही नीलम के मम्मी- पापा और भाई-भाभी के  अचानक आने की आवाज़ से घरवाले स्तब्ध रह गए । उनकी नज़रें नीलम की ओर उठ गई —-

मुझे तो पता नहीं, ना किसी ने बताया? 

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बेटा…. इस बार रहने देते तुम्हारे मम्मी- पापा या अकेला भाई आकर शगुन के लिए थोड़ा मीठा दे जाता तो ठीक रहता ना ?

तभी सबने देखा कि दो फलों के टोकरे , दो जगह मिठाइयों की पैकिंग, सूट- साड़ी सबकी अलग-अलग दो- दो पैंकिग……

नीलम दो-दो जगह सामान देखकर थोड़ा सकपकाई ——

क्या भाई-भाभी मम्मी-पापा से अलग हो गए जो इस तरह दो-दो एक सी चीजें…..

समधिन जी …. मनीषा बिटिया कहाँ है? बुलाइए तो ….

नीलम और घरवाले नहीं चाहते थे कि मनीषा ये सब तमाशा देखे । आज पहली बार वे सोच रहे थे कि किसी तरह औपचारिकता पूरी करके ये लोग चले जाएँ क्योंकि जितनी देर रुकेंगे, मनीषा को उतनी ही तकलीफ़ होगी ं 

वो मम्मी…. मनीषा की थोड़ी तबीयत ठीक नहीं, अभी लेटी है, उसे आराम करने देते हैं ।

अच्छा…..तो हम ही उसके रुम में चले जाते हैं, कहते- कहते नीलम के मम्मी – पापा तुरंत अंदर की तरफ़ चल पड़े । अब कैसे रोकें? सास ने बढ़ते हुए कहा——

मनीषा….देख तो बेटा , तुझसे मिलने कौन आया है? 

इस तरह सबको कमरे में आया देख मनीषा उठ बैठी—-

अरे आप लोग!  मुझे उठा दिया होता माँ, रात थोड़ा देर से सोई इसलिए आँख नहीं खुली ।  आँटी..आप बाहर बैठिए, मैं बस दस मिनट में आई । 

मनीषा के ड्राइंगरूम में पहुँचने पर नीलम की मम्मी ने उसे बाँहों में भरते हुए कहा—-

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देख बेटा , हम तुम दोनों बहनों की कोथली लाएँ है । तू छोटी है , पहले सूट- साड़ी छाँटने का अधिकार तेरा है…. बाक़ी सामान एक जैसा है तुम दोनों बहनों का ।

हाँ दीदी, आप देख लो और अगर कोई और फ़रमाइश हो तो बताओ…. मैं और आपके भैया अभी बाज़ार खुलते ही लाकर देंगे । 

मनीषा, अपने माता-पिता की कमी तो कोई पूरी नहीं करता पर बेटा , जाने वालों के साथ ज़ाया नहीं जाता । भगवान की मर्ज़ी में ही खुश रहना सीखना पड़ता है । क्या तू हमें अपने माता-पिता का दर्जा दे सकती है? 

क्यों नहीं? शायद भगवान ने आगे के जीवन के लिए मुझे नए मम्मी- पापा दिए हैं….

मम्मी- पापा ही नहीं, भाई- भाभी भी दिए हैं ।

केवल  नया परिवार नहीं, पूरे हक़ के साथ मन की हर इच्छा, हर फ़रमाइश बताने का अधिकार….. हमें अपनी वही चुलबुली और शरारती मीनू चाहिए ।

नीलम और उसकी सास ने देखा कि महीनों बाद मनीषा के चेहरे पर पहले वाली मुस्कुराहट थी । जिससे इतना तो विश्वास हो गया कि एकदम ना सही पर धीरे-धीरे पहले वाली मनीषा जल्दी ही लौट आएगी ।

लेखिका : करुणा मलिक

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