बड़ा दिल – डॉक्टर संगीता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

माधुरी की शादी रोहन से हो तो गई थी पर घर में किसी ने भी उसे स्वीकार नहीं किया था अभी तक।खुद

रोहन भी कहां उसे अपना पाया था,उसके दिल दिमाग में तो रूही का कब्जा ही था,माधुरी से उसे मजबूरी में

शादी करनी पड़ी थी।

रोहन और रूही कॉलेज से दोस्त थे,रूही बहुत अमीर बाप की इकलौती औलाद,रोहन से प्यार की पींगे बढ़ा तो

ली थीं लेकिन जीवन साथी चुनते वक्त अपने पिता के कहने पर रोहन को छोड़ने को झट तैयार भी हो गई

थी,रोहन उसकी बेवफाई भी उसकी कोई नई अदा समझ कर अंगीकार कर चुका था।

समय बीतते,उसके पेरेंट्स ने उसकी शादी माधुरी से करा दी जो बहुत सरल चित्त,सुघड़ और संस्कारी लड़की

थी।धीरे धीरे उसे ससुराल वालों के व्यवहार और रोहन के रवैए से पता चला कि रोहन किसी और को प्यार

करता था पर उस लड़की ने रोहन को छोड़कर किसी और से शादी कर ली है।

उसे कोई शिकायत नहीं थी रोहन से कि वो सब उसका अतीत था लेकिन मैं उसका भविष्य हूं,और अगर वो

मेरे साथ अब ठीक रहता है तो मुझे उस बात से क्या लेना देना!

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लेकिन रोहन ही नहीं, उसकी बहनें,दादी,बुआ,भाई भाभी सभी माधुरी के प्रति कठोर थे।एक तो वो सब

संयुक्त परिवार में रहते थे, पैसों की तंगी के चलते छोटी छोटी चीजों को तरसे हुए वो लोग इस उम्मीद में थे

कि रोहन की बीबी मोटा दान दहेज लाएगी तो सारा घर धनधान्य से भर जाएगा लेकिन माधुरी खुद एक

सामान्य परिवार से थी,वो कुछ भी न लाई संग में सिवाय सुंदर संस्कार,व्यवहार और मीठे बोल के।

पूरे परिवार में एक सिर्फ रोहन के माता पिता ही थे जो माधुरी को पसंद कर लाए थे अपने बेटे के लिए और

वो ही उससे तमीज से पेश आते थे।उन्होंने ही माधुरी को बताया था रूही और रोहन के संबंधों के बारे में और ये

भी कि घर के बाकी सदस्यों को क्यों रूही के आने का इंतजार था और वो क्यों अब उसके आने से चिढ़े बैठे

हैं?

रोहन की मां शीला ने माधुरी को सांत्वना दी ये कहकर…ये सब अपने सपने पूरे न होने की वजह से चिड़चिड़ा

रहे हैं,कुछ दिनों में ठीक भी हो जाएंगे तो उनकी बातों को दिल से मत लगाना।दिल के ये भी बुरे नहीं हैं।

माधुरी ने उन्हें आश्वासन दिया कि वो सब कुछ ठीक कर लेगी।

कहना आसान होता है पर किसी को झेलना कठिन…माधुरी के लिए ये सब इतना आसान न था…हर समय घर

वाले उसका तिरस्कार करते,उसकी कठिन मेहनत को उपेक्षा की नजरों से देखते,उसके बनाए स्वादिष्ट भोजन

की अवहेलना करते पर उसने भी धैर्य न खोया।

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घर की माली हालत ठीक न थी फलस्वरूप माधुरी छोटा मोटा काम करके जैसे सिलाई,बुनाई करके,पापड़

आचार चटनी बनाकर बेचने लगी,उससे कुछ इनकम होती पर उसकी व्यस्तता भी बढ़ने लगी।

बेचारी दिन रात मेहनत करती और सब खाते पीते और उसपर व्यंग करते।उनकी मां समझाती भी अपनी

लड़कियों को…”खुद एक लड़की होकर ,दूसरे के घर की लड़की से इतना कठोर व्यवहार?मत भूलो तुम दोनो

को भी एक दिन पराए घर जाना है…”

पर उनके कानों पर जूं न रेंगती।माधुरी बड़े भैया भाभी के बच्चों को पढ़ाई में भी सहायता करती और उनके

ट्यूशन के पैसे बचने लगे जिससे भाभी के दिल की कड़वाहट कुछ कम होनी शुरू हो गई थी।

दादी की भी माधुरी सेवा करती,कभी कपड़े धो देती,कभी सिर में तेल मालिश कर देती बस वो उससे खुश

होकर आशीर्वाद दे देती।

रोहन की मां हंसती…एक एक कर तू सबके दिल जीत ही लेगी एक दिन।

माधुरी बेचारी दिल में रोती ,भले ही ऊपर से मुस्करा कर दिखाती उन्हें…वो सोचती,जिसका पति ही उसे प्यार

न करे,उसकी क्या जिंदगी!!

लेकिन रोहन के दिल तक भी माधुरी की अच्छाइयों ने दस्तक दे ही दी,वो भी अब रूही को भूलकर माधुरी को

चाहने लगा था।माधुरी भी अब ज्यादा खुश और संतुष्ट रहती।उसने सोचा कि बस दोनो बहनों को और मना लूं

तो हमारा घर स्वर्ग जी बन जाएगा।

रोहन की छोटी बहन शैली बहुत सुंदर और चुलबुली थी,उसका संबंध कॉलेज के एक अमीरजादे विक्रम से

था जो चरित्र में ठीक नहीं था।माधुरी ने एक बार शैली को उससे बात करते सुन लिया जिसमें वो उसे वायदा

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कर रही थी कि अगली रात घर से बाहर बारह बजे वो निकल आयेगी उसके साथ भागने के लिए।

उसने ये बात रोहन की मां को बता दी और शैली का पर्दा फाश हो गया,गलती से दादी ने सबके सामने

माधुरी की तारीफ कर दी ,अब तो शैली पूरी तरह माधुरी की दुश्मन बन गई।

शैली नहीं जानती थी कि उसकी भाभी ने उसके ऊपर कितना बड़ा एहसान किया है उसे विक्रम के चंगुल से

बचाकर।

वो अभी भी चौबीसों घंटे विक्रम के साथ भागने की जुगाड में लगी रहती जबकि शैली के पिता दिनेश जी की

खास हिदायत थी पूरे घर को कि शैली पर कड़ी नजर रखी जाए।

एक बार,शैली अपनी योजना अनुसार विक्रम के साथ भागने को तैयार थी कि दिनेश जी को कुछ आभास

हो गया,वो गुस्से से दहाड़ते शैली को घर के दरवाजे पर पकड़ने चले गए जिसका एहसास माधुरी को हो

गया,वो शैली को पीछे कर खुद दोषी बनकर उनके सामने खड़ी हो गई।

“बहु तुम?”वो चौंके,”इस समय तुम दोनो कहां जा रही हो?”

“जी…बाबूजी!माफ कर दीजिए,मैंने ही शैली को बोला था कि आज आइसक्रीम खाने का बहुत मन है तो हम

दोनो चुपचाप आइसक्रीम खाने बाहर जा रहे थे..”

“क्यों रोहन नहीं है क्या घर में?”वो अविश्वास से बोले।

वो तो दो दिन से टूर पर हैं…माधुरी बोली और दिनेश शांत हो गए।उन्हें लगा वो बिना बात ही शैली के पीछे

लगे रहते हैं।

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उस दिन की बात टलते ही शैली माधुरी के पैरों में बैठ गई…भाभी!आज आपने मेरी जान बचा ली नहीं तो

पिताजी मुझे सचमुच मार ही डालते।

अगर सच में मुझे मानती हो तो वादा करो कि फिर कभी उस विक्रम से नहीं मिलोगी,जहां बाबूजी कहते हैं

,खुशी खुशी शादी की हां कहोगी।

“जी भाभी!प्रॉमिस करती हूं,ऐसा ही करूंगी,जब आप इतना बड़ा दिल दिखा सकती हैं तो मैं कोशिश तो कर

ही सकती हूं।”

उसकी आंखों में सच्चाई और बात में गंभीरता थी।

डॉक्टर संगीता अग्रवाल

वैशाली,गाजियाबाद

#भाभी

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