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आज फिर मम्मी ने सदैव का अपना वही ब्रह्म वाक्य दोहरा दिया – ” तुम बड़े भाई हो। तुम्हारा कर्तव्य है अपने छोटे भाई का ख्याल रखना। तुम्हारा बड़ा दिल होना चाहिये क्योंकि बड़ा भाई तो बाप की जगह होता है।”
बचपन से ही चन्द्रार्क यही सुनता आया है। दो वर्ष का ही था, जब चन्द्रांश का जन्म हुआ था। तभी से वह बड़ा भाई बन गया। उसका बचपन छिन गया। चन्द्रांश को हर वह वस्तु चाहिये होती थी जो चन्द्रार्क की होती। उसका चिल्ला कर रोना सुनते ही मॉ सरोज दौड़कर आ जातीं –
” क्यों रुला रहा है उसे? छोटा भाई है, अभी नासमझ है। तू ही बड़ा दिल वाला बन। जो मॉग रहा है, दे दे।” और सरोज चन्द्रार्क के हाथ से छीनकर चन्द्रांश को चन्द्रार्क का खिलौना, किताब, पेन्सिल और चाकलेट दे देतीं।
कई बार राजीव ने कहा भी – ” मैं दोनों के लिये बराबर सब कुछ लाता हूॅ, तुम चन्द्रांक से छीनकर उसकी चीजें क्यों दे देती हो।”
सरोज तमककर कह देतीं – ” तुम बीच में मत बोला करो। मुझे बच्चों को पालना है, मुझे मालुम है किसके साथ क्या करना है? चन्द्रांक समझदार है, उसका बड़ा दिल है। चन्द्रांश अभी छोटा और नासमझ है। बड़ा हो जायेगा तो खुद ही समझने लगेगा।”
राजीव जानते थे कि सरोज के सामने उनकी चलेगी नहीं इसलिये चुप हो जाते। बाद में भी कई बार उन्होंने सरोज को समझाने का प्रयत्न किया –
” हमारे लिये दोनों बच्चे बराबर होने चाहिये। चन्द्रार्क समझदार और सीधा है तो उसका मतलब यह नहीं कि हर समय उसके साथ अन्याय किया जाये। इस तरह तो चन्द्रांश की जिद बढ़ती ही जायेगी।”
” मेरे अन्दर इतनी ताकत नहीं है कि घर का काम भी करूॅ और दिन भर इन दोनों की कचहरी निबटाती रहूॅ। अगर तुम्हें लगता है कि मैं गलत हूॅ तो मैं दोनों को छोड़कर अपने मायके चली जाती हूॅ। एक दिन में ही सबकी अकल ठिकाने न आ जाये तो कहना।”
राजीव कुछ न बोल पाते। चन्द्रांश धीरे धीरे समझने लगा कि उसका रोना चिल्लाना, जिद करना ही उसका सबसे बड़ा हथियार है। इसी के माध्यम से वह चन्द्रार्क को हराकर मॉ के माध्यम से सब कुछ पा सकता है।
वह दिन पर दिन जिद्दी, स्वार्थी और बिगड़ैल होता गया। चन्द्रांश को पता नहीं अपने भाई से क्या दुश्मनी थी कि चन्द्रार्क की हर नई वस्तु छीनकर उसके चेहरे पर दुख और उदासी देखने में ही उसे मजा आता और चन्द्रार्क बड़े दिल वाला बनकर रह गया।
सरोज उसे ही समझातीं- ” अरे , दे दो। छोटा भाई है। जब मन भर जायेगा तो खुद ही वापस कर देगा। तुम पुरानी वाली ले लो। तुम तो बड़े दिल वाले अच्छे बच्चे हो।”
” मुझे वह पेन ईनाम में मिला था, मैं नहीं दूॅगा। आप पापा से कहकर उसे दूसरा मंगवा दो।”
” वह मानेगा नहीं, अभी कोहराम मचा देगा।”
यहॉ तक यदि गुस्से में सरोज चन्द्रांश के थप्पड़ मार देतीं तो बिना किसी कसूर के चन्द्रार्क को भी एक थप्पड़ जरूर मारतीं- – ” अकेले उसको ही मारूॅगी तो सारा दिन रोयेगा और चिल्लायेगा।”
चन्द्रार्क का जन्मदिन न मनाकर चन्द्रांश के जन्मदिन पर ही दोनों का मनाया जाता। एक ही केक को पहले चन्द्रांश काट लेता, उसके बाद उसी केक को चन्द्रार्क से कटवाया जाता।
इस विचित्र जन्मदिन पर अतिथियों को पहले बहुत आश्चर्य होता लेकिन सरोज का वही सदाबहार जवाब होता – ” चन्द्रार्क बड़े दिल वाला है, आसानी से समझ जाता है। जबकि चन्द्रांश अभी छोटा और नासमझ है। बड़े का जन्मदिन मनाओ तो उसे केक काटते और उपहार लेते देखकर बहुत दुखी होकर सारा दिन रोता रहता है। इसलिये दोनों का एक साथ मना लेते हैं।”
” लेकिन केक तो आप एक ही मंगाती हैं और उसे पहले छोटा ही काटता है। कम से कम एक साथ कटवा दिया करिये।””
” क्या फर्क पड़ता है? कोई भी पहले काट ले । दोनो भाई ही तो है।”
राजीव को भी ऐसा जन्मदिन पसंद नहीं था लेकिन कुछ कहने का मतलब था कलह। चन्द्रार्क के अच्छे नम्बर देखकर सरोज उसका रिपोर्ट कार्ड छिपा देती और सबसे उसके नम्बर कम करके बतातीं।
चन्द्रार्क के एतराज करने पर सरोज अपना वही घिसा पिटा जवाब थमा देतीं – ” तुम तो मेरे समझदार बड़े दिल वाले बेटे हो। तुम्हारे नम्बर देखकर चन्द्रांश के मन में हीन भावना आ जायेगी साथ ही उसका और भी पढाई में मन नहीं लगेगा।”
मॉ के ऐसे व्यवहार से कई बार उसे लगता कि क्या वह मॉ का अपना बेटा नहीं है? क्या केवल चन्द्रांश ही मॉ का बेटा है? सरोज के इस अनावश्यक पक्षपात ने चन्द्रार्क का बचपन तो बर्बाद किया ही बल्कि उसका सम्पूर्ण व्यक्तित्व ही कुंठित होता गया।
कालेज में जहॉ सभी बच्चे एक अलग ही मस्ती और नशे में मदहोश हो जाते हैं, चन्द्रार्क दबा सहमा सा केवल अपनी किताबों में ही उलझा रहता लेकिन अब उसके पहले जैसे नम्बर नहीं आते थे बल्कि उसका पढाई से मन भी उचटता जा रहा था। जबकि वह चाहता था कि नौकरी करके वह पापा की जिम्मेदारियों में सहयोग करे।
तभी उसके नैराश्य पूर्ण जीवन में आशा और उम्मीद की बिजली सी चैताली आ गई। चैताली ने धीरे धीरे इस सहमे और आत्मविश्वास से रहित युवक को बदल कर उसके मन में प्यार और विश्वास के सितारे सजा दिये। उसे विश्वास ही नहीं हुआ कि मॉ के लिये तो उसकी सभी संतान बराबर होती हैं फिर यह कैसी मॉ है जिसने अपने ही एक बच्चे के गुणों को उसके लिये यातना का साधन बना दिया।
चन्द्रार्क और वैशाली कालेज के तीसरे वर्ष में थे। अभी उनके मन में प्यार के अंकुर अच्छी तरह से फूटे भी नहीं थे कि चन्द्रार्क के दुर्भाग्य से चन्द्रांश ने उसी कालेज में एडमिशन ले लिया और उसे इन दोनों की दोस्ती के बारे में पता चल गया।
वह जानता था कि यदि वह चैताली से सीधे बात करेगा तो वह कभी नहीं मानेगी लेकिन वह चन्द्रार्क को खुश नहीं देख सकता था। फिर क्या था वह चैताली को चन्द्रार्क से छीनने की योजना बनाने लगा।
उसने सरोज से कहा कि पहले चैताली उससे प्यार करती थी लेकिन अब चन्द्रार्क ने पता नहीं चैताली से उसके बारे क्या कह दिया है कि चैताली उससे बात नहीं करती है।चन्द्रार्क ने उससे उसका प्यार छीन लिया है और अगर उसे चैताली न मिली तो वह आत्महत्या कर लेगा।
घर आने पर जब चन्द्रार्क को सारी बात पता चली तो वह हतप्रभ रह गया – ” लेकिन मम्मी चन्द्रांश झूठ बोल रहा है, चैताली तो इसे जानती भी नहीं है। वह तो मेरे साथ पढ़ती है, मेरी अच्छी दोस्त है।”
” तुम्हारी दोस्त है तो तुम्हारी बात भी मानती होगी। तुम किसी तरह उसकी शादी चन्द्रांश से करवा दो।”
” ऐसे केवल मेरे कहने से बिना जान पहचान के वह शादी क्यों करेगी? अभी तो वह पढ़ ही रही है।” चन्द्रार्क की कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे?
” तुम चन्द्रांश की जिद तो जानते हो। वह तुम्हारी तरह बड़े दिल वाला तो है नहीं। अपने छोटे भाई के लिये इतना तो कर ही सकते हो। चैताली को समझाओ कि वह चन्द्रांश से शादी कर ले। तुम मुझे उसके घर का पता दो, मैं उसके घरवालों से खुद बात कर लूॅगी।”
” मुझे उसके घर का पता नहीं मालुम है और वह अभी शादी नहीं करेगी।”
” मैं ज्यादा कुछ नहीं सुनना चाहती, तुम कल मुझे उस लड़की का पता लाकर देना, अपने बेटे की जिन्दगी के लिये मैं कुछ भी करूॅगी। तुम्हें तो अपने भाई की चिन्ता है नहीं वह मरे चाहे जिये।” सरोज क्रोध से आग बबूला हो रही थीं और अपने कमरे में बैठा चन्द्रांश खुशी से फूला नहीं समा रहा था।
चैताली सुनकर आग बबूला हो गई – ” यह कैसी बदतमीजी है? मैं क्यों ऐसे व्यक्ति से शादी करूॅ जिसको मैं जानती तक नहीं? मेरी जब जिससे मर्जी होगी शादी करूॅगी, चन्द्रांश कौन होता है मेरे मामले में बोलने वाला।”
” तुम्हीं बताओ चैताली मैं क्या करूॅ? अगर चन्द्रांश ने कुछ कर लिया तो…..।”
” कुछ नहीं करेगा क्योंकि वह एक मानसिक रूप से कायर इंसान है जिसे तुम्हारी खुशी छीनने में मजा आता है और इसका कारण है कि उसे बचपन से तुम्हारी मम्मी से बढ़ावा मिला है।”
” मेरी परिस्थिति को समझने का प्रयास करो। मैं मम्मी का विरोध नहीं कर पाता हूॅ वरना पूरे घर का वातावरण कलुषित और तनाव पूर्ण हो जायेगा।”
दोनों काफी देर तक सोंचते रहे। तभी चैताली ने चन्द्रार्क का हाथ पकड़ लिया – ” आओ, चलो मेरे साथ।”
” कहॉ?” चन्द्रार्क ने असमंजस में कहा।
” तुममें तो साहस है नहीं इसलिये आज मैं ही तुम्हारा अपहरण कर रही हूॅ।”
चन्द्रार्क हॅस पड़ा। चैताली चन्द्रार्क को अपने घर लेकर आ गई। उसके पापा कुलकर्णी जी घर में ही थे। अपने मम्मी-पापा के सामने चैताली ने सारी बात बताई तो उन्हें बहुत अजीब लगा कि कोई इस तरह की मूर्खता कैसे कर सकता है?”
” तुम्हारे पापा ने कभी इस पर प्रतिबंध लगाने का प्रयत्न क्यों नहीं किया?” कुलकर्णी जी ने चन्द्रार्क की ओर देखकर कहा
बदले में चन्द्रार्क ने बचपन से अब तक की सारी बातें सच सच बता दीं – ” अपने पापा का फोन नम्बर दो, मैं उनसे बात करता हूॅ।”
” वो कुछ नहीं कर पायेंगे अंकल।”
” तुम चिन्ता मत करो, मैं सब ठीक कर दूॅगा लेकिन एक बात स्पष्ट बताओ।”
” क्या तुम चैताली को पसंद करते हो?”
चन्द्रार्क ने सिर झुका लिया तो चैताली ने हॅसते हुये कहा – ” पापा इसे खुद नहीं पता तो आपको क्या बतायेगा? मेरे अलावा इसका कोई दोस्त तक तो है नहीं लेकिन मैं इसे पसंद करती हूॅ।”
चन्द्रार्क पिता पुत्री के मध्य इतनी स्पष्ट बात सुनकर दंग रह गया। उसने राजीव का नम्बर उन्हें दे दिया।
कुलकर्णी जी और राजीव ने आपस में काफी देर बात की। तब उन्होंने चन्द्रार्क से सरोज को अपना फोन नम्बर और पता देने को कह दिया।
सरोज और चन्द्रांश खुशी से झूम उठे। आज एक बार फिर वह अपनी मॉ के माध्यम से चन्द्रार्क की खुशी छीनने में सफल हो गया था।
सरोज ने जब फोन किया तो पहले तो मिसेज मंजुला ने उन्हें यह कहकर मना कर दिया कि अभी उनकी बेटी पढाई कर रही है। इसलिये उसकी शादी का प्रश्न ही नहीं उठता। जब सरोज ने बहुत जिद करते हुये कहा कि वह एक बार उनसे मिलना चाहती है तब अपने पति के इशारे से मंजुला कुलकर्णी ने उन्हें घर आने के लिये कह दिया और चन्द्रांश को भी साथ में लाने के लिये कहा।
सरोज ने राजीव से भी साथ चलने को कहा तो उसने मना कर दिया – ” तुम मॉ- बेटे की मूर्खता में पढकर अपना अपमान कराने का मुझे कोई शौक नहीं है।”
” हॉ मत जाओ। देख लेना मैं सफल होकर लौटूॅगी। आखिर मेरे बेटे में कमी ही क्या है? पढ़ाई के बाद नौकरी भी कर लेगा।”
” तुम लोगों का जो मन हो करो क्योंकि जानता हूॅ कि मना करने से भी कोई फायदा नहीं निकलेगा।”
सरोज आग्नेय नेत्रों से घूरती रही और राजीव ऑफिस चला गया।
खुशी से उमगते हुये सरोज और चन्द्रांश चैताली के घर पहुॅचे तो बैठक में ही मिस्टर और मिसेज कुलकर्णी बैठे हुये मिले। जब कुछ देर तक उन्होंने बैठने तक को नहीं कहा तो दोनों मॉ बेटे सामने रखे सोफे पर बैठ गये।
उनके बैठते ही कुलकर्णी जी ने बड़े रूखे स्वर में पूॅछा – ” हॉ, बताइये, क्यों मिलना था हम लोगों से जबकि मैंने फोन पर ही आपसे मना कर दिया था।”
सरोज ने उनको वही कहानी सुनाई जो चन्द्रांश ने उसे सुनाई थी – ” भाई साहब, मेरा बेटा चैताली को बहुत प्यार करता है, उसे बहुत खुश रखेगा। मैं अभी शादी को तो कह नहीं रही, हम लोग अभी सगाई कर देंगे और दोनों बच्चे अपनी पढ़ाई पूरी करते रहेंगे।”
तभी मंजुला कुलकर्णी बोल उठीं – ” आश्चर्य है कि हम तो शादी के लिये मना कर रहे हैं और आप शादी – सगाई की बात कर रही हैं। “
सरोज ने चन्द्रांश की जिद और जुनून के बारे में बताकर अपने बेटे की जिन्दगी और अपनी ममता का वास्ता तक दिया लेकिन कुलकर्णी दम्पत्ति बिल्कुल नहीं पसीजे और उन्होंने यहॉ तक कह दिया कि हमें तो आप दोनों मानसिक रोगी लगते हैं, जाकर अपना दोनों का इलाज करवाइये।
इतना सुनते ही सरोज और चन्द्रांश क्रोध से तिलमिला उठे। सरोज ने चीखते हुये कहा – ” अगर मेरे बेटे को आपकी बेटी के कारण कुछ हो गया तो मैं आपके पूरे परिवार का जीना हराम कर दूॅगी।”
चन्द्रांश ने उन्हें एक उंगली दिखाते हुये कहा – ” अंकल, आपने हमें मानसिक रोगी कहा है ना तो अब देखियेगा कि ये मानसिक रोगी क्या कर सकते हैं? आप लोगों का जीना हराम कर देंगे हम । अभी तो हम सीधे रास्ते से विवाह का प्रस्ताव लेकर आये थे लेकिन अब अपनी बेटी के साथ होने वाली किसी भी दुर्घटना के आप स्वयं जिम्मेदार होंगे।”
सरोज और चन्द्रांश उठकर खड़े हो गये लेकिन उसके पहले ही कमरे में पुलिस की वर्दी में एक महिला और एक पुरुष इंस्पेक्टर आकर खड़े हो गये। अब सरोज और चन्द्रांश घबराकर एक दूसरे का मुॅह देखने लगे।
उन दोनों ने मॉ बेटे की बॉह पकड़ते हुये कहा – ” बाद में जो होगा, देखा जायेगा, अभी तो तुम दोनों मेरे साथ पुलिस स्टेशन चलो क्योंकि कुलकर्णी साहब ने तुम लोगों के खिलाफ पहले ही रिपोर्ट लिखा दी है।”
” साहब, हमने कुछ नहीं किया। इनकी लड़की बुरी तरह से मेरे बेटे के पीछे पड़ी है जबकि मेरे बेटे को वह लड़की पसंद ही नहीं है। आज जब हमने यहॉ आकर स्पष्ट इंकार किया तो ये लोग हमें फंसा रहे हैं।”
दोनों इंस्पेक्टरों ने कुलकर्णी दम्पत्ति की ओर देखा तो उन्होंने सरोज से फोन पर हुई और आज की सारी बातों की रिकॉर्डिंग सुना दी।
सरोज और चन्द्रांश को तो उम्मीद ही नहीं थी कि पासा इस तरह पलट जायेगा कि उन्हें ही जेल जाना पड़ेगा। सरोज और चन्द्रांश ने एक दूसरे की ओर देखा और स्थिति की गंभीरता को देखते हुये हाथ जोड़ते हुये कुलकर्णी दम्पत्ति और दोनों इंस्पेक्टरों से क्षमा मॉगी।
” हमसे बहुत बड़ी गलती हो गई। हमें क्षमा कर दीजिये, मैं अपने बेटे की ममता में अंधी हो गई थी। ” सरोज ने गिड़गिड़ाते हुये कहा।
” हॉ अंकल। गुस्से में वह सब मुॅह से निकल गया। हमें क्षमा कर दीजिये। मैं कभी चैताली के रास्ते में नहीं आऊॅगा। वह कालेज ही छोड़ दूॅगा।”
लेकिन उन दोनों पुलिस इंस्पैक्टरों ने सरोज और चन्द्रांश से लिखित क्षमा पत्र लेते हुये कहा –
” कुलकर्णी जी के कहने से छोड़ रहे हैं लेकिन यह रिकार्डिंग हमेशा हम लोगों के पास रहेगी और यदि कभी चैताली या इन लोगों को खरोंच भी लगी तो तुम दोनों का क्या हाल होगा, सोंच लेना।”
” अब हम लोगों का इन लोगो और इनकी बेटी से कोई लेना देना नहीं है।”सरोज और चन्द्रांश ने एक बार फिर सबके हाथ जोड़े और वहॉ से चले गये।
थोड़ी देर बाद राजीव के पास कुलकर्णी जी का फोन आ गया – ” काम हो गया अब आप निश्चिन्त रहे,।”
असल में ये दोनों पुलिस इंस्पेक्टर कुलकर्णी जी के दोस्त के बेटा और बहू थे जिन्होंने एक नाटक मंडली से कुछ देर के लिये ये कपड़े लेकर यह नाटक किया था।
कुलकर्णी जी ने चैताली से शाम को चन्द्रार्क को साथ लाने को कहा। जब वे दोनों पहुॅचें तब उन्होंने सारी बात दोनों को बताते हुये हॅस कर चन्द्रार्क की ओर देखकर कहा –
* वैसे चैताली तुम्हारी पसंद मुझे और तुम्हारी मम्मी को भी पसंद है क्योंकि चन्द्रार्क की तरह हमारा भी बड़ा दिल है।”
मम्मी-पापा के साथ चैताली भी हॅस पड़ी साथ ही चन्द्रार्क के अधरों पर भी झेपी झेपी मुस्कान तैर गई।
बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर