प्रिया और अमन अपने जीवन में बहुत ख़ुश थे! प्रिया घर संभालती और अमन अपना बिज़नेस, दो बेटे थे – रोहन 15 साल का और रोहित 10 साल का.. भगवान् का दिया सब कुछ था, समाज में अच्छा स्टेटस और खुशहाल जीवन, इससे ज्यादा किसी को क्या चाहिए ! बस प्रिया को एक बेटी कि कमी महसूस होती थी लेकिन जो था उसमें भी वह संतुष्ट थी ! अब तो जिम्मेदारियाँ भी धीरे धीरे बच्चों के काँधे पर डालने के दिन आ रहें थे कि तभी इस परिवार की खुशियों पर ग्रहण लग गया !
बड़े बेटे रोहन को ब्रेन कैंसर ने आ घेरा… पूरा परिवार इस खबर से सकते में आ गया ! अभी उम्र ही क्या थी रोहन की… इतनी छोटी उम्र में इतना बड़ा रोग.. हँसते बोलते बच्चे ने बिस्तर पकड़ लिया ! माँ बाप चिंता से घुले जा रहे थे ! जितना हो सकता था रोहन का इलाज कराया गया, कोई कमी नहीं छोड़ी ! बड़े से बड़े डॉक्टर, महंगी दवाइयाँ और दुआएँ भी रोहन को ना बचा सकी! धन दौलत तो खूब थी बस रोहन को बचाने का वक़्त नहीं मिला, शायद भगवान को यही मंजूर था !
प्रिया और अमन का रो रोकर बुरा हाल था और छोटा बेटा रोहित तो जैसे सदमे में ही चला गया था.. चंचल और शरारती रोहित अब अपने माता पिता से भी बात नहीं करता था ! दस साल के बच्चे ने ऐसी ख़ामोशी ओढ़ी कि पता नहीं चलता था कि वह घर में है कि नहीं ! कोई भी उसके भाई का सामान नहीं छू सकता था… उसने अपने भाई की हर चीज को बहुत सम्भाल कर रखा था, उसकी किसी चीज को घर से हटाया नहीं गया था ! प्रिया और अमन ने तो फिर भी खुद को सम्भाल लिया था लेकिन रोहित कि हालत देख कर उन्हें यह डर खाए जा रहा था कि कहीं रोहन कि मौत का उसके दिमाग पर कोई विपरीत प्रभाव ना पड़े क्यों कि यह तो सच था कि रोहन रोहित के बहुत करीब था और रोहित की उम्र भी ऐसी नहीं थी कि वह कुछ दिनों में सब आसानी से भूल जाए ! लेकिन किया भी क्या जा सकता था यह सोचकर प्रिया और अमन रोहित को बहलाने कि कोशिश करते रहते !
रोहन को गए हुए 4 साल हो चुके थे लेकिन रोहित की हालत ज्यों की त्यों थी। आखिरकार 1 दिन प्रिया ने अमन के सामने अपने मन की बात रखी कि वह दोबारा मां बनना चाहती है क्योंकि यह रोहित और उन दोनों के लिए भी जरूरी है। अमन को इस उम्र में पिया का मां बनना समाज के लिए हंसने का एक कारण लग रहा था लेकिन प्रिया ने भी समाज की परवाह न करते हुए अपने बेटे रोहित के लिए अपना मन नहीं बदला क्योंकि समाज का क्या है …गम में दो आंसू बहाने के बाद सब अपने घर में खुश हैं। हमारी खुशियां हमारे हाथ में है… इसके लिए समाज की हां और अनुमति की कोई जरूरत नहीं है। अमन को भी प्रिया का फैसला सही लगा।
आखिरकार वो दिन भी आ गया जब प्रिया ने जुड़वा बच्चों को जन्म दिया एक बेटा और एक बेटी। प्रिया और अमन की आंखों में आज खुशी के आंसू थे ..प्रिया को ऐसा लग रहा था जैसे आज वही दिन है जब रोहन पैदा हुआ था। उसने अपने बेटे का नाम रोहन ही रखा और बेटी का नाम आकांक्षा क्योंकि कभी प्रिया को बेटी की भी इच्छा रहती थी। आज उसकी दोनों इच्छाएं पूरी हो गई। रोहित को जैसे अपने बिछड़े भाई के साथ-साथ बहन भी मिल गई। अब रोहित हंसने लगा है …बच्चों की जरा सी रोने की आवाज पर वह भागा हुआ मां से पहले पहुंचता है। अपने भाई बहन पर जान छिड़कता है। नवजात बच्चों ने उजाड़ सुनसान पड़े घर और दिलों को फिर से खुशगवार बना दिया था। नन्हे किलकारियां पूरे परिवार के जीवन में खुशियों की नई उमंग लेकर आई थी अब रोहित रोहन का छोटा नहीं बड़ा भाई बन गया था।
प्रिया और अमन अपने फैसले पर खुश हैं फिर चाहे समाज कुछ भी कहे ।
सत्य घटना पर आधारित
मौलिक
स्वरचित
अंतरा