बच्चे  कच्ची मिट्टी होते हैं – मीनाक्षी सिंह

रिया – मॉम ,आई एम गोइंग टू स्कूल !! बाय !

माँ – बाय, बेटा!!

रिया 9वीं कक्षा में पढ़ती थी ! उसके माँ बाप दोनो नौकरी पेशा थे ! रिया का रीजल्ट बहुत खराब आया ! माँ बाप दोनो ही स्कूल की अभिवावक मीटिंग में आये ! टीचर ने कहा – मिस्टर एंड मिसेज शर्मा ! रिया दिन पर दिन पढ़ाई में पीछे होती जा रही हैं ! क्या आप बतायेंगे ऐसा क्यू हैं !

शर्मा जी – हम दोनो तो नौकरी पर चले जाते हैं ! और इसकी माँ ने इसे एक साल से फ़ोन दिला दिया हैं पूरे दिन बस उसी पर लगी रहती हैं ! मैं तो परेशान आ गया हूँ ! क्या क्या देखूँ !

रिया की माँ – मैम ,रिया ने कहा कि मुझे पढ़ाई में कुछ समझ में नहीं आता ! जब से 9वीं में आयी हूँ ! कहती मुझे बायजू की क्लास जॉइन करनी हैं ! सब बच्चों ने कर रखी हैं ! तो मैने इसे दिलवा दिया क्लास ! और एक लाख रूपये भी लगे ! पर आप बता रही हैं

फिर भी ये पढ़ाई में पीछे हैं ! क्या करू मैं आप ही बताईये ! पूरे दिन फ़ोन पर लगी रहती हैं ! और अब फ़ोन लेने पर  खाना पीना छोड़ देती हैं ! और हमसे बात भी नहीं करती ! खुद को कमरे में बंद कर लेती हैं ! फिर बेटी के आगे हारकर हम उसे फ़ोन दे देते हैं !

टीचर – आई एम वैरी सौरी ! बट इट्स योर फौल्ट ! बच्चे  तो कच्ची मिट्टी होते हैं ! आप ऊंहे जैसे सांचे में ढ़ालेंगे वो वैसा ही आकार ले लेंगे !  आपको उसे फ़ोन देना ही नहीं चाहिए था ! और उसे बायजू क्लास की ज़रुरत क्या हैं ! जब हम स्कूल में पढ़ा रहे हैं ! कोई दिक्कत हो हमसे पूछें ! आपको पता हैं आजकल फ़ोन ही बच्चों का 

अपनी पढ़ाई से भटकने का कारण हैं ! और अगर आप फ़ोन दे भी रहे तो अपनी निगरानी में दिजिये ! इतनी तो आप भी समझदार हैं की आजकल फ़ोन पर क्या  क्या उपलब्ध हैं ! आप भी उसके सामने फ़ोन का इस्तेमाल कम कीजिये ! आई होप नेक्सट टाइम रिया  का रीजल्ट अच्छा आना चाहिए  !



वो टीचर मैं हूँ ! स्कूल से घर आयी और आराम करने लगी ! एकदम से लड़ाई की जोर से आवाजें सुनायी दी ! मैं भाग कर गयी तो देखा आज फिर मकान मालिक अपने बेटे को बेल्ट से मार रहे थे ! मैं वापस अपने कमरे पर आ गयी ! और पिछले 3 साल की बातें याद करने लगी ! जब मैं मकान मालिक के घर किराये पर रहने आयी थी तो राजू ( मकान मालिक का बेटा ) बहुत ही मासूम सा बच्चा था ! और 6वीं क्लास में पढ़ता था ! ट्युशन मुझसे ही पढ़ता था ! और पढ़ने में बहुत ही तेज था !

ऐसा बालक सौ  में एक होता हैं ! अपने रूम में सब पढ़ाई से सम्बंधित  सामग्री लगा रखी थी ! जब 9वीं में आया तो कोचिंग पढ़ने का भूत सवार हुआ ! और एक टेबलेट भी उसे दे दी गयी पढ़ाई के लिए ! फिर उसका मन पढ़ाई से भटकना शुरू हो गया ! उसकी माँ बार बार मेरे पास आती ! और बहुत दुखी होती कहती  इनके पापा से भी नहीं कह सकती ! मैने राजू को कई बार गलत चीजें देखते हुए देखा हैं फ़ोन पर ! और पूछो तो उल्टा मुझ पर ही चिल्लाता हैं !

और मुझे उल्टे सीधे जवाब देता हैं ! दरवाजें पर पैर मारने लगता हैं ! कहता हैं दिखा दो ज़िसे दिखाना हो क्या देख रहा था मैं ! और कुछ नहीं मिलता फ़ोन पर ! बहुत होशियार हैं सब हटा देता हैं ! शीशे के सामने खड़े होकर घंटों खुद को निहारता हैं !

कहती तुम तो टीचर रही हो उसकी उसे समझाओ शायद तुम्हारी बात समझ जाये ! और फफ़क कर रोने लगी ! मैने कहा उसका फ़ोन क्यूँ नहीं ले लेते ! बोलती – लिया था ! घर से भाग गया था पता नहीं कहा रहा रात भर सुबह आया ! हम हार मान चुके हैं !

मैने भी राजू को कई बार फ़ोन को छुपाते हुए देखा जैसे उसकी कोई चोरी पकड़ी गयी हो ! मैने भी कई बार समझाया ! मुझसे भी उल्टा जवाब देकर कहता – आप अपना काम  करो ,मुझे पता हैं मुझे क्या करना हैं ! आज राजू पूरी हद तक फ़ोन का आदी हो चुका हैं  ! पढ़ाई मैं तो बिल्कुल मन नहीं लगता ! बड़े स्कूल से निकल चुका हैं ! छोटे से स्कूल में दाखिला करवा दिया हैं ! जब पानी सर के ऊपर हो जाता था तो ऐसे ही मारने पीटने की आवाजें आती  थी !

अब मैं वहां नहीं रहती – सुनने में आया है राजू ने आत्महत्या कर ली हैं !!

साथियों ,मुझे पता हैं ये कहानी आप लोगो को दुख पहूँचायेगी ! मैं अपनी कहानियों को कभी दुखद अंत पर खत्म नहीं करती ! पर ये वाकया मेरे आँखों देखा हैं ! आज कल माँ बाप बच्चों को आधुनिकता के नाम पर फ़ोन और ऐशो आराम की चीजें दिला देते हैं ! और उनकी आंतरिक भावनायें ऊंहे गलत चीजें देखने के लिए ऊकसाती हैं ! और एक समय के बाद वो फ़ोन की दुनिया में रम चुके होते हैं ! और अब उनसे फ़ोन लेना बच्चे को खोने जैसा हो जाता हैं !

बच्चे तो कच्ची मिट्टी होते हैं ! अगर शुरू से हम ऊंहे अपने मुताबिक ढ़ालेंगे तो वो ढल जायेंगे ! पर अगर ये मिट्टी पक गई तो दुबारा उस सांचे में लाने मे मिट्टी का टूट ना तय हैं ! इसलिये समय रहते बच्चों को संभालो लिजिये ! वो कहते हैं ना-

फूलो का महक़ना, चिड़ियो का चहक़ना,

मौसम का ब़हकना आज़ भी ब़रकरार हैं।

आज़ महसूस किया कि

दिशाहीन हमने हीं क़िया बच्चो कों,

उऩकी नही प्रकृति सें कोईं तक़रार हैं।

स्वरचित

मीनाक्षी सिंह

 

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