बच्चे को मत डांटो, इसमें गलती बहू की है…- सिन्नी पाण्डेय : Moral Stories in Hindi

मयूरी अपने 7 साल के बेटे अमय को खाना खिलाने बैठती तो उसके हाथ में मोबाइल फोन ज़रूर पकड़ा देती थी। इस चक्कर में अमय एक जगह बैठकर खाना खा लेता वरना तो मयूरी को पूरे घर के चक्कर लगाने पड़ते तब भी उसको पूरा खाना न खिला पाती थी। जब भी मयूरी की सास सुनीता जी उसको टोकती कि बच्चे को इतना मोबाइल देना ठीक नहीं है तो मयूरी उनसे कहती कि अरे मोबाइल के लालच में वो जल्दी से खा लेगा।

धीरे-धीरे अमय की आदत बिगड़ने लगी अब वो नाश्ता, खाना, दूध कुछ भी नहीं खाने को तैयार होता जब तक उसको मोबाइल नहीं दिया जाता। और साथ ही अमय बेहद चिड़चिड़ा और शैतान होता जा रहा था।

सुनीता जी हर दिन अमय के बढ़ते मोबाइल के इस्तेमाल की वजह से मयूरी को टोंकती पर मयूरी अपने दोनों कानों का सकुशल उपयोग कर रही थी कि एक कान से सुनती और दूसरे से बाहर निकाल देती।

कुछ समय बाद मयूरी ने ध्यान दिया कि अमय का पढ़ाई से बिल्कुल मन हटता जा रहा है और वो कुछ भी सही से याद नहीं कर पा रहा है और जो मोबाइल के उपयोग का समय खाने पीने के लिए निर्धारित किया था वो बढ़ कर लगभग पूरी दिनचर्या में शामिल हो गया है। अमय कभी अपनी मम्मी का मोबाइल खेलता,तो कभी अपनी दादी का,कभी दादाजी का तो कभी पापा का…।

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जब मयूरी ने ध्यान दिया तो पाया कि अमय अपनी आंखों को मसलता रहता है और पढ़ाई से उसका मन एक दम उचाट हो गया है। तब वो परेशान हो गयी।

अब वो जब भी कोशिश करती कि अमय बिना मोबाइल देखे खाना खा ले, तो वो रोता रह जाता पर खाना नहीं खाता। थक हार कर मयूरी उसको मोबाइल पकड़ा ही देती।

एक बार फिर सुनीताजी ने उसको हिदायत दी कि “बहू, अब ये रो रो कर तुमसे मोबाइल ले लेगा। एक दो बार इसके रोने को अनदेखा करो वरना ये एक नई मुसीबत खड़ी होगी। इसको शाम को पार्क लेकर चली जाया करो,तो दूसरे बच्चों के साथ खेलना सीखेगा। वैसे तो मैं ही चली जाती पर अपने घुटनों से लाचार हूँ। और तब तक मैं तुम्हारे शाम के खाने की तैयारी कर दूंगी ,जो भी बैठकर मुझसे हो पायेगा इससे तुम्हारा काम भी कम हो जाएगा। इस समय तुम सिर्फ अमय पर ध्यान दो।

मयूरी अमय को लेकर पार्क गयी वो अनमना सा थोड़ी देर खेला फिर घर आने की ज़िद करने लगा तो झक मारकर मयूरी उसको लेकर घर आ गयी।

रात में जैसे ही खाना लगाया गया वैसे ही अमय ने मोबाइल के लिए रोना शुरू किया। मयंक यानि अमय के पापा थोड़ी देर पहले ही ऑफिस से लौटे थे और कुछ दिनों से वो भी अमय का चिड़चिड़ा स्वभाव देख रहे थे। उन्होंने पहले थोड़ी देर तो बेटे को प्यार से समझाया पर जब वो नहीं माना तो कसके उसको एक थप्पड़ लगा दिया। और उसको बहुत डांटा भी।

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ये देखकर सुनीताजी आग बबूला हो उठीं और क्रोध से भरकर बोलीं,”बच्चे को क्यों डांट और मार रहे हो तुम? इसमें अमय से ज़्यादा गलती बहू की है। पहले अपनी पत्नी को समझाओ। अपनी सहूलियत के लिए पहले बच्चे को मोबाइल तो पकड़ा दिया पर सही समय निर्धारित करना भूल गई। कोई नियम नहीं बनाया। मैं साल भर से मयूरी से कह रही हूँ कि ये आदत तुमको ही परेशान करेगी आगे चलके ,पर इसने मेरी बातों पर ध्यान नहीं दिया। आज जब मैंने बहुत कहा तो पहली बार ये बच्चे को पार्क लेकर गयी थी। ये बच्चे तो गीली मिट्टी हैं इनको जिस आकार में ढालोगे ये वैसे ही बन जाएंगे। इनको जो भी बनाओगे ये बन जाएंगे बशर्ते आपको भी सहभागी बनना पड़ेगा।

जब तुम छोटे थे तो अपने पापा को किताबें पढ़ते देख तुम भी रोते थे तो वो तुमको अपने पास बिठाकर ड्राइंग की कॉपी और कलर पकड़ा देते थे और यही वजह थी कि तुम्हारी ड्राइंग क्लास में सबसे अच्छी थी।ये बच्चे देख कर बहुत जल्दी सीखते हैं। इनके सामने बस आपको उदाहरण प्रस्तुत करना पड़ेगा। आजकल किताबों की जगह मोबाइल ने ले ली है। एक कमरे में चार लोग बैठे हों तो भी एक दूसरे से बात न करके वो अपना मोबाइल चलाते हैं। बस यही सब बच्चा देखकर सीखता है और इस कोमल उम्र में यदि उसको डांट मार पड़ने लग जाए तो उसकी प्रतिभा में और उन्नति में दीमक तो लगनी ही है। इस बच्चे को समय दो और दूसरी चीज़ों में व्यस्त करो कुछ ही समय मे ये सही हो जायेगा। उसको सही दिशा दिखाओगे तब ही तो वो सही रास्ते पर बढ़ेगा। मारपीट कर उसका नन्हा सा दिमाग और मन कुंठित न करो। बाकी तुम लोग खुद समझदार हो ,जैसा चाहो वैसा करो। बड़े होने के नाते मेरा भी फ़र्ज़ है सही दिशा दिखाना बाकी तुम लोगों की मर्ज़ी..।

माँ की बात सुनकर मयंक शांत हो गए और मयूरी अपनी गलती मानकर अमय को कहानी सुनाने का प्रयास करने लगी। दोंनो पति पत्नी ने ठान लिया कि अब से अमय को मोबाइल से दूर रखेंगे और उसको उसका बचपन आंनद से जीने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे। और ये प्रयास ऐसे होंगे जो भौतिक संसाधनों की पूर्ति नहीं अपितु संवेदनशील तरीके से बच्चे का विकास करने में सहायक होंगे।।।।।

सिन्नी पाण्डेय

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