‘ आज मम्मी की रिपोर्ट आने वाली है।
कहीं … यह असमय की बीमारी भगवान् ना करे उनके शरीर से लेकर मन तक फैल ना जाए ? ‘
यह सोचती चांदनी बेचैन हो रही है।
इस वक्त सुबह के ग्यारह बज रहे हैं।
कटता हुआ एक -एक क्षण उसे एक युग के समान लग रहा है।
–फोन की घंटी घनघना उठी।
चांदनी फोन पर ,
” हाँ कहें , क्या ? क्या कहा आपने… ?
हे ईश्वर तुम्हारा लाख-लाख शुक्रिया “
खुशी से भर उठी चांदनी को देख मम्मी और रज्जो को फिर कुछ पूछने की जरूरत नहीं पड़ी।
चांदनी ने सुबह से एक भी निवाला मुँह में नहीं डाला है।
उसने अगरबत्ती जला कर ईश्वर को धन्यवाद दिया।
मम्मी का चेहरा क्लांत दिख रहा है देह पर लुनाई जैसे ठहर गई है।
उनके कंधे पर शाल कस कर उन्हें दवा की गोली और पानी का गिलास बढा़या।
पिछले तीन दिन अवसाद से भरे रहे हैं।
— चांदनी उनके गाल थपथपाती ,
‘ कैसा महसूस कर रही हो मम्मी ? ‘
‘ पहले से बेहतरीन अब मुझे जश्न की तैयारी करनी है ‘
‘ हाँ मैं भी पिछले तीन दिनों से चित्रा और आरती से बात तक नहीं कर पाई हूँ ‘
उसकी आवाज कंपन रहित है।
अगले हफ्ते से उसकी इन्टर्नशिप शुरू होने वाली ,
जिसमें वो बुरी तरह बिजी़ हो जाने वाली है। शायद घर आने तक की फुर्सत नहीं मिलेगी ‘
अचानक मम्मी के घने बालों में उंगलियां उलझाती …
‘ आगे के लिए क्या सोचा है ‘
‘ सोचती तो हूँ पर उलझ जाती हूँ ‘
‘ घर बसाने की चाह है ? तरुण काकू कहाँ हैं इन दिनों ? ‘
बेतरह चौंक उठी हैं मम्मी …
इस कठिन प्रश्न के साथ ही उनके चेहरे पर सैंकड़ों रंग आते-जाते दिखे।
टीस का एक झटका गर्दन में उठा।
मानों दबी-बुझी याद में से तरुण के हाथ निकले, उसे सहलाया और फिर उसी खोह में वापस चले गये…
‘ बीमार पत्नी ‘मृणाल’ के इलाज के लिए उसे लेकर यू. एस. ए जा रहे थे।
उसे भी साथ चलने को कहा था।
— रूपा ने तत्क्षण…
‘ नहीं , चांदनी बड़ी हो गई है उसे मैं नहीं छोड़ सकती ‘
‘ तुम जाओ तुम्हें मैं स्वतंत्र करती हूँ ‘
तरुण चले गये थे और रूपा के दिल-दिमाग पर उदास मौसम के पीले पड़ गये पत्तों का रंग चढ़ने लगा था।
फिर सुना था मृणाल भी नहीं बच पाई थी और तरुण खाली हाथ वापस लौट गये थे।
उसके पास भी नहीं आए थे फिर मैंने भी आवाज नहीं दी ,
” तुम्हारे सहारे ही आगे की काट लूंगी “
यही सोच कर।
तरुण को पत्नी मृणाल की असामान्य मौत ने अंदर से झकझोर दिया था।
सुदूर असम प्रांत में उसके चाय के बागान हैं वे वहीं नितांत एकाकी रहने लगे हैं।
बीता हुआ समय कैसे सालों बाद भी आंखों से चल कर यूं ही अतीत में गुजर जाता है।
वक्त के पसरे मौन को छेदती एक … गीत … एक करुण स्वर …
” गुंईया रे …मोहे दे तीर-कमान / अटे पर बुलबुल बैठी है… रे
गुंईया रे मोहे दे तीर कमान… ” गूँज रही है।
वो मूर्तिवत खड़ी है।
लेकिन उसका दिमाग तेजी से दौड़ रहा है सीधी नजरें मम्मी के चेहरे पर टिकाए हुए …।
अगले कदम के इंतजार में …
चांदनी कमरे से बाहर निकल कर चित्रा को फोन लगाने लग पड़ी है …
‘ हैलो, हैलो … चित्रा ‘हाँ बोलो चांदनी आज याद आई है तुम्हें मेरी ? ‘
‘ शिकवा – शिकायत सब कर लेना डियर लेकिन बाद में इस वक्त तो पहले मेरी बात को ध्यान से सुनो ‘
कॉलेज खुलने में अभी हफ्ते भर समय है।
उसके पहले मुझे कुछ जरूरी काम निपटाने हैं मुझे इसमें तुम्हारी हेल्प चाहिए।
यहाँ से हमें आगे जाना है ,
चांदनी ने घड़ी देखा दिन के एक बजने वाले हैं।
अभी उसके पास पूरे डेढ़ दिन का वक्त है। आगे की तैयारी के लिए।
तब कहीं जा कर निश्चिंत हुई चांदनी ने
मम्मी से बहुत मनुहार कर तरुण काकू का ऐड्रेस निकलवा पाई है।
अगले दिन तड़के ही चित्रा पहुँच गई थी।
उसी दिन दोपहर को उन दोनों की फ्लाइट थी।
नाश्ते के वक्त चांदनी ने धीमी आवाज में अपनी और मम्मी की सारी कहानी उसे कह सुनाई ,
‘ चित्रा , तो यह है उस पेंटिंग वाली ‘नन्हीं परी’ की सच्चाई !
मैं समझती हूँ तुम्हारे सामने अब क्लियर हो गई होगा ?
चित्रा अपलक सुन रही है … उसे इस तरह बुत बनी बैठी देख चांदनी ने उसकी बांह पर अपनी उंगली गड़ा दी … ।
‘ क्या हुआ ?
अब कुछ बोलेगी भी या बस देखती ही रहेगी ? ‘
‘ मैं तैयार हूँ ‘
शांत हो कर चित्रा बोली ,
‘ चलो वहाँ जा कर ही कुछ हो पाएगा ‘
चांदनी अपनी अगली यात्रा शुरुआत करने के पहले मम्मी से आशीर्वाद लेना चाहती है।
दोपहर की सुनहरी ,रुपहली किरणें चांदनी के मन में एक नया संदेश प्रसारित कर रही है।
जब निकलने की सारी तैयारी हो चुकी तब वे दोनों मन में आशाओं के दीप जलाए प्लेन में जा बैठीं।
जहाँ बेचैनी भरी उत्सुकता में अगले दो घंटे काटने के उपरांत वे एअर पोर्ट पर उतर चुकी हैं।
आगे का रास्ता उन्हें ट्रेन से तय करना है।
एक छोटा सा रेलवे स्टेशन ‘तिरिया’
स्टेशन के आसपास छोटी सी बस्ती जहाँ चाय बगान में काम करने वाले मजदूरों के छोटे-छोटे अस्थायी घरों के बीच
स्टेशन के ठीक पीछे बना एक भव्य बंगला। जो कभी बंद रहता था।
आज उसी बंगले को अपनी हस्ती से आबाद कर रहे हैं बगान के मालिक ‘तरुण सरकार ‘
नीम के घने पेड़ के नीचे बने उसी बंगले के दरवाजे पर व्याकुलता से दरवाजा खटखटाती खड़ी हैं चांदनी और चित्रा।
थोड़ी देर बाद दरवाजा खुला। वे खड़े हैं सामने।
उसी मुद्रा में जैसे चांदनी बचपन से उन्हें देखती आई है ,
गोरे , गोल चेहरे पर सुनहरे फ्रेम का चश्मा, सफेद झक्क पजामें पर हल्के नीले रंग की गुरुशर्ट।
बाल सुघड़ता से संवरे हुए फर्क सिर्फ़ इतना कि कनपटी के बाल सफेद हो चुके हैं।
एकाएक इस वक्त चांदनी को देख कर हैरत में पड़ गये। हाथ में पकड़ी किताब पास रखी टेबल पर रख कर …
‘ चांदनी बिट्टो तुम इस वक्त अचानक मम्मी तो ठीक हैं ? ‘
फिर उन दोनों को अंदर आने का इशारा करते हुए दरवाजा बंद कर दिया।
यद्दपि कि रात हो गई थी पर चांदनी अब और देर नहीं करना चाहती
वह असमंजस की स्थिति से उबर ही नहीं पा रही थी कि बातों
उसे इस मनोदशा से निकालने के लिए चित्रा बोल पड़ी ,
‘ नमस्कार काकू, मैं चांदनी की रूममेट चित्रा,
हमदोनों आपके पास बहुत आशान्वित हो कर आए हैं ‘
फिर उसने ही चांदनी की मम्मी की सारी स्थिति से तरुण काकू को अवगत कराया।
घर में काम करनेवाले नौकर ने जलपान ला कर टेबल पर रख दिया है।
तब तक चांदनी भी थोड़ी सामान्य हो चली है।
–चांदनी …
चित्रा की छोड़ी हुई बात का सिरा पुनः पकड़ती हुई ,
‘ देखो काकू आप यह मत समझना कि मम्मी की किसी इच्छा ने मुझे आप तक पहुँचाया है ‘
‘ उनकी हालत अब आपसे छिपी नहीं है और मैं भी आपके यहाँ पलायन कर आने की घटना से वाकिफ हूँ ‘
दोनों हाथ जोड़ …
‘ काकू मुझे अबोध तथा अज्ञानी समझ कर माफ करना ‘
अब तो मम्मी और आपके रिश्ते में नहीं बँधने का कोई कारण नहीं बचा है।
जो बीत गई वो बात गयी अब आप चलिए मेरे साथ और अब तक के इस आधे-अधूरे रिश्ते पर विवाह की मुहर लगा लोगों के संदेह पर पूर्णविराम लगा दीजिए ‘
तरुण सरकार कुछ नहीं बोल कर निर्निमेष दृष्टि से उसे ताके जा रहे हैं।
‘ पिछले दिनों की लंबी बीमारी में मम्मी काफी चुक सी गयी हैं।
प्लीज़ काकू आप मना नहीं करिएगा ‘
कहती हुई चांदनी जिसने बड़ी मेहनत से अब तक खुद को संभाला हुआ था फूट-फूट कर रो पड़ी है।
— शब्दहीन हुए तरुण सरकार ने
बस हौले से उसके कंधे पर हाथ रख दिया ,
‘ उम्र के इस पड़ाव में आई शून्यता को प्रयास करके भरना होगा इससे अधिक की जरुरत क्या है ? ‘
काकू के सुलझे ढ़ंग से कही बात सुनकर चांदनी श्रद्धानवत है।
झुक कर जन्मदाता तो नहीं, पालनकर्ता के पाँव छू लिए।
फिर और देर ना करती हुई उनसे दो दिनों के अंदर वापस आने का वाएदा लेकर अगली दिन सुबह ही दोनों ने वापसी की ट्रेन पकड़ ली।
रास्ते से ही चित्रा ने आरती को भी फोन करके बुला लिया था।
अभी घर में भी थोड़ी बहुत तैयारी करनी बची थी।
जिसमें रज्जो दीदी की निश्चित और निर्णायक भूमिका रही।
उसने ही मम्मी को फ़लसई रंग की साड़ी और हल्के गहनों से सुसज्जित किया।
घर की सजावट पीले गेंदे के फूल और बेले के गजरे से कर के जगह-जगह बिजली के बल्व लगा कर जगमगा दिया है।
नियत-दिन तय-समय पर तरुण काकू सफेद पजामें पर आसमानी सिल्क का कुरता पहन कर पहुँच चुके हैं।
शाम का कार्यक्रम सुव्यवस्थित और मंत्रमुग्ध करनेवाला रहा।
घर में ही बने छोटे से सुदंर मंदिर में मम्मी ने गणेश पूजन कर वहाँ रखी अपनी माँ फूलबाई की तस्वीर के सामने सिर नवाया एवं क्षमायाचना करती हुई उनसे आशीर्वचन की कामना की है।
पुनः ईश्वर को साक्षी मान कर ‘तरुण सरकार’ ने अपने जमाने की ‘ ग्रेट सिंगर ‘ मिस रूपा के हाथ में ‘हरिचरण मजुमदार’ द्वारा पहनाए गये कंगन के उपर, सिंदूर से रूपा की मांग भर दी।
आँख में खुशी के आंसू , भरे हृदय से सबने उन पर गुलाब की पंखुड़ियां छींट सम्मान भरे कोमल भावनाओं को प्रकट किया।
उस दिन पहली बार चांदनी ने अपने सुरीले गायन से माँ, काकू एवं रज्जो दीदी को हतप्रभ कर दिया।
आंखें मूँदे भावविभोर हो कर उसे गाती देख कर ऐसा लग रहा था,
मानों साक्षात सरस्वती बैठी हैं।
शनैः-शनैः रात्रि कट रही है …
सब कुछ सोच के अनुसार ही संपन्न हो गया था।
अगले हफ्ते से उन तीनों की इन्टर्नशिप शुरु होने वाली है।
रात्री के मध्याहृ में इस वक्त इसी विचार मंथन में वे तीनों नये जोश-खरोश से लगी पड़ी हैं।
बीच-बीच में आरती के नॉनवेज जोक्स चल रहे हैं।
मम्मी भी उनके बीच बैठ कर मजे ले रहीं हैं।
बेटियों की ये चुहलबाजी फिर कहाँ मिलेंगी ?
यह सोच कर थोड़ी सी उदास भी हैं।
पर जीवन तो सदैव आगे बढ़ता चलता है।
यह कब और किसके रोके रुका है ?
असली खूबसूरती इसके साथ ही हाथ से हाथ मिला कर चलने में है।
इति श्री!
तो प्रिय पाठकों कहानी कैसी लगी ?
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सीमा वर्मा /नोएडा
बेबी चांदनी (भाग 6) – सीमा वर्मा
the story is simply faboulous, engaging. I stopped only after reading it completely. very enchanting narrartion of life of a singled out woman.