बाबूजी की हिम्मत को सलाम – नेकराम : Moral Stories in Hindi

दिल्ली के जमनापार में हमारा एक छोटा सा घर था पढ़ाई पूरी होने के बाद पिताजी ने मुझे जहांगीरपुरी के एक कारखाने में लगा दिया था  पिताजी भी उसी कारखाने में काम किया करते थे उन्हीं दिनों पिताजी ने एक पुरानी स्कूटी खरीद ली थी उसी स्कूटी पर कारखाने जाते हुए मुझे बाबूजी के साथ एक महीना बीत चुका था —

एक दिन सुबह जब मेरी आंख खुली तो पिताजी बुखार में तप रहे थे अम्मा पानी में एक कपड़ा भिगोकर पिताजी के माथे पर रखते हुए बोली

नेकराम आज तुझें कारखाने अकेले ही जाना पड़ेगा तेरे बाबूजी को रात भर से बुखार है आज कारखाने से तेरे बाबूजी की छुट्टी ही समझों

आज तू अकेला ही कारखाने चला जा ,, और अगर नहीं जा सकता तो तू भी छुट्टी कर ले ,,,,

मैं बाबूजी के पास ही बैठ गया और बाबूजी से कहा ,, अम्मा को समझाओ अब मैं बड़ा हो चुका हूं क्या मैं अकेले नहीं जा सकता

तब बाबूजी बोले मेरे बूढ़े होने के बाद तुझें ही तो अकेले जाना होगा कारखाने ,,

अम्मा को बताते हुए बाबूजी ने फिर कहा

एक महीने में नेकराम ने कारखाने का बहुत काम सीख लिया है ,,

बाबूजी की बात सुनकर मुझे खुशी मिली चलो बाबूजी ने मेरा सपोर्ट तो किया ,,बाबूजी की इस बात पर ,,मैं बहुत खुश था

और

मन ही मन सोचने लगा बाबूजी को तो बुखार है इसलिए आज मैं स्वयं स्कूटी चला कर कारखाने तक जाऊंगा मैं जल्दी-जल्दी तैयार हुआ खाने का ,,टिफिन हाथ में लिया और बाबूजी का अलमारी से हेलमेट उठाकर आंगन में खड़ी स्कूटी की तरफ चल पड़ा,,

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आंगन की तरफ मुझे जाते देख अम्मा ने मुझे टोका , नेकराम मेरी बात सुन बाबूजी स्कूटी चलाने के लिए मना कर रहे हैं तेरे पास स्कूटी का लाइसेंस नहीं है

तू ,, बस से चला जा ,,

बस का नाम सुनकर मुझे थोड़ी गुस्सा आई और मैं बड़बड़ाते हुए अम्मा से बोला सुबह-सुबह का टाइम है बस में बहुत भीड़ होगी जेब भी कटने का डर बना रहता है और मैं तो लड़का हूं मुझे सीट भी नहीं मिलेगी

मगर अम्मा के सामने मेरा कोई बहाना ना चला

अम्मा ने थोड़ा नाटकीय गुस्सा दिखाते हुए कहा ,, जाना तो तुझे बस से ही पड़ेगा आजकल ट्रैफिक पुलिस वाले किसी की नहीं सुनते अगर तुझे बिना ड्राइविंग लाइसेंस के पकड़ लिया तो तेरे बाबूजी की स्कूटी भी जब्त कर लेंगे फिर तेरे बाबूजी अगले दिन कारखाने कैसे जाएंगे

भलाई इसी में है ,,तू बस से निकल जा ,, मैं तुझे बस का किराया भी तो दे रही हूं

फिर बाबूजी ने समझाया तेरी अम्मा ठीक कहती है जब तेरा ड्राइविंग लाइसेंस बन जाएगा फिर तू भी स्कूटी चला लेना अभी तेरी उम्र पूरी 18 वर्ष  की नहीं हुई है 

उस दिन मैं बाबूजी और अम्मा का कहना मानकर पैदल ही बस स्टैंड की तरफ चल पड़ा रास्ते में जान पहचान वाले मित्र मिले और कहने लगे

नेकराम तू पैदल क्यों जा रहा है तेरी स्कूटी खराब हो गई क्या ,

तभी दूसरा मित्र बोला लगता है नेकराम की स्कूटी का पेट्रोल खत्म हो गया बेचारा इसलिए पैदल ही जा रहा है

अम्मा ने मुझे साफ मना किया था मोहल्ले के लड़कों से बिल्कुल बात नहीं करनी है इसलिए मैं चुपचाप कान में उंगली डालकर बस स्टैंड की तरफ चलता रहा

थोड़ी देर में,, मैं बस स्टैंड पर पहुंच गया

,, वहां एक दीवार पर लिखा हुआ था गोकुलपुरी बस स्टैंड ,, वहां खड़े एक मैले कुचेले कपड़े पहने ठंडे मशीन की पानी वाले दुकानदार से पूछा,, मुझे जहांगीरपुरी जाना है कौन से नंबर की बस जाएगी ,,

उसने कोई उत्तर ना दिया ,,, पहले तो मुझे लगा वह गूंगा है बोल नहीं सकता फिर

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मैं समझ गया पहले इसका पानी पीना पड़ेगा तभी मुझे यह बस का नंबर बताएगा

शहरों में अधिकतर दुकानदार बस का नंबर तभी बताते हैं जब हम उनकी दुकान से कुछ ना कुछ सामान खरीद लेते हैं

मुझे भी यह तरकीब अजमानी पड़ी

मैंने जेब से एक रुपए का सिक्का निकाला और उसकी और बढ़ा दिया उसके चेहरे पर हंसी आ गई जैसे शायद मैं ही उसका पहला ग्राहक था उसने झट मुझे एक ठंडा गिलास का पानी मेरी और बढ़ा दिया मैंने गिलास उठाया और पानी पीते हुए पूछा ,,जहांगीरपुरी जाने के लिए कौन से नंबर की बस जाएगी

तब उसने बताया बाबरपुर से एक बस चलती है उस बस का नंबर है 254 अभी सुबह के 8:15 हुए हैं 8:20 पर बस आ जाएगी

बस स्टैंड पर बहुत सी सवारी खड़ी हुई थी मैं मन ही मन खड़े-खड़े सोचने लगा यह कैसा बस स्टैंड है ऊपर आसमान दिखाई दे रहा है नीचे इधर-उधर सैकड़ो लोग

जो अपनी-अपनी बस का इंतजार कर रहे हैं मगर यहां कोई बस स्टैंड नहीं है अगर बारिश आ जाए तो मुझे भी यहां भीगना पड़ सकता है

सैकड़ो अधिकारी यहां से निकलते हैं यात्रियों के लिए एक बस स्टैंड की व्यवस्था नहीं करवा सकते

मैंने उसी पानी पिलाने वाले व्यक्ति से फिर पूछा यहां तो कोई बस स्टैंड नहीं है क्या सच में यहां बस रुकेगी या नहीं

तब उसने बताया पहले यहां एक बस स्टैंड था लेकिन फालतू लोग बस स्टैंड पर आकर बैठ जाते थे कुछ तो उसमें लेट भी जाते थे एक नंबर के लफंगे थे

सवारियों से लड़ते थे और बस स्टैंड से उठने का नाम नहीं लेते थे जैसे उनके बाप की जागीर हो बस स्टैंड को ही उन्होंने अपना घर समझ लिया था

और धीरे-धीरे रोज रात को कोई ना कोई चोर यहां के बस स्टैंड का लोहा काट काट कर कबाड़ी को बेंच दिया करते थे आखिरकार यहां के लोगों ने तंग आकर बस स्टैंड ही हटवा दिया

अभी बात पूरी नहीं हुई थी

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तभी एक बस आती नजर आई जिसमें लिखा हुआ था बाबरपुर से जहांगीरपुरी की ओर ,,ड्राइवर के आगे वाले शीशे पर  लिखा हुआ था,, बस नंबर 254,,

जहांगीरपुरी की ओर जाने वाला बस नंबर देखकर मेरा तो खुशी का ठिकाना ही ना रहा

इंतजार में खड़े यात्रियों के सामने उनके नंबर की बस आती हुई दिखाई दे जाए तो दुनिया में सबसे कीमती तोहफा उस समय उनके लिए वही होता है मुझे ऐसा अनुभव हो रहा था

जैसे ही बस मेरे आगे रुकी वहां खड़ी तमाम पब्लिक तेजी से बस के भीतर घुसने के लिए एक दूसरे को धक्का मुक्की करने लगी

यह नजारा देख मुझे बड़ा दुख लगा अन्य राज्यों के शहरों में तो शायद ऐसा नहीं होता होगा मगर इस दिल्ली शहर में कोई भी यात्री लाइन लगाने के लिए तैयार नहीं है,, सब्र नाम की चीज किसी में नहीं है ,, जब बस नहीं थी तब तक तो सभी लोग शांत खड़े थे बस देखते ही सब पागल हो गए

सवारी बस के गेट पर पहले से ही लटकी हुई थी ड्राइवर के समझ में नहीं आ रहा था इस स्टैंड पर बस रोकू या नहीं

आखिरकार कुछ सोच कर ड्राइवर ने बस चला दी

मगर यह बात वहां खड़ी पब्लिक को पसंद नहीं आई

ड्राइवर चिल्ला रहा था ,,पीछे भी बस आ रही है बाकी लोग उसमें आ जाइए मगर कोई ड्राइवर की बात सुनने को तैयार नहीं था सभी सवारी उसी बस में ही घुसना चाहती थी

मैंने ड्राइवर की बात मान ली और चुपचाप खड़ा रहा मेरे सामने वह बस आगे निकल गई कुछ सवारी उसमें चढ़ी और कुछ सवारी वही स्टैंड पर रह गई

तब पानी वाले व्यक्ति ने मुझे वहीं खड़ा देखा तो कहा ,,बस तो रुकी थी ,,तुम उसमें चढ़े क्यों नहीं

तब मैंने बड़ी मासूमियत से बताया भीड़ बहुत ज्यादा थी

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तब वह मुझे देखकर हंसने लगा और कहने लगा ,,इस समय ड्यूटी का समय रहता है,,भीड़ तो होगी ही,, अब न जाने दूसरी बस कितने समय बाद आए ,,खैर ,,अब दूसरी बस का इंतजार करना पड़ेगा तुम्हें

मगर मेरी किस्मत अच्छी थी 5 मिनट के बाद ही मुझे फिर 254 नंबर की बस दिखाई दी मैंने फैसला कर लिया इस बार तो बस के भीतर चढ़ कर ही रहूंगा इस बार ड्राइवर की बात नहीं मानूंगा

बस फिर ठीक मेरे ही सामने रुकी और मैं तेजी से बस के भीतर घुसने का प्रयत्न करने लगा मगर गेट पर सवारी पहले से ही मौजूद थी जो बाहर तक लटकी हुई थी अभी मैं बस का डंडा पकड़ ही पाया था कि ड्राइवर ने बस चला दी

मेरे दोनों पैर सड़क पर थे और बस आगे की ओर बढ़ती जा रही थी बाकी सवारी बस के पीछे-पीछे दौड़ रही थी ,, ड्राइवर को बस रोकने के लिए कह रही थी,,

मगर ड्राइवर किसी की नहीं सुन रहा था शायद वह जल्दी में था ,, या फिर वह बस में अधिक सवारी नहीं बैठाना चाहता था

बस स्टैंड से बहुत आगे ले जाकर ड्राइवर साहब ने बस में एक बार ब्रेक भी लगाई कुछ सेकेंड के लिए बस रुकी

और मैंने पलक झपकते ही अपने दोनों पैर बस की सीढ़ियों पर रख लिए तब मुझमें जान में जान आई

एक सेकंड के लिए बस क्या रुकी तभी कानों में शोर सुनाई दिया

सवारी चिल्लाने लगी वह देखो बस रुक गई,,  बस रुक गई

सवारी जैसे ही दौड़ी दौड़ी बस के नजदीक आई ड्राइवर साहब ने फिर बस चला दी

किसी तरह किसी सज्जन ने मेरा हाथ पकड़ कर जोर से मुझे बस के भीतर खींच लिया ,,बस के भीतर पहुंचने के बाद ही मुझे चैन आया ,,वरना ,, मुझे लग रहा था आज तो बस का डंडा मेरे हाथों से छूट जाता ,,और मैं धड़ाम से सड़क पर ही गिर पड़ता अक्सर में अखबारों में पढ़ा करता था कि चलती बस से यात्री गिर जाते हैं,,मेरी खबर भी अखबार में छप जाती मगर मैं उस दिन बाल बाल बच गया

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रोज बाबूजी के साथ स्कूटी में जाता था तब मुझे यह एहसास नहीं था कि लोग बसों में कितनी कठिनाइयों का सामना करके यात्रा करते हैं अपनी जान हथेली पर लेकर चलते हैं

बस के भीतर का नजारा देखकर मेरी आंखें चकरा गई

बस में एक भी कुर्सी खाली नहीं थी एक-एक कुर्सी पर चार-चार सवारी बैठी हुई थी कंडक्टर बार-बार चिल्ला रहा था बिना टिकट कोई यात्रा न करें आगे टिकट चेकर खड़े हैं फिर बाद में मत कहना कि कंडक्टर ने बताया नहीं

मैंने बड़ी मुश्किल से जेब में हाथ डाला और पांच का नोट निकाल कर कंडक्टर की ओर बढ़ा दिया,, कंडक्टर ने मेरे हाथ से रुपए लिए और एक टिकट काट कर मेरे हाथ में थमाते हुए बोला पिछले स्टैंड से 6-7 सवारी चढ़ी थी मगर टिकट सिर्फ एक ने ही लिया ,,तुम लोगों को फ्री में यात्रा करने का बड़ा शौक है ,, जिस दिन दबोचे जाओगे अक्ल ठिकाने आ जाएगी

फिर कहोगे की भीड़ की वजह से टिकट नहीं खरीद सके

मगर कंडक्टर की बात का ,, किसी को कोई फर्क नहीं पड़ा

कुछ लोग कहने लगे जब हमने डीटीसी का पास बनवा रखा है तो हम टिकट क्यों खरीदे

बस में काफी शोरगुल था बस हिलती डुलती अपने सफर में आगे बढ़ी जा रही थी

मेरी निगाहों ने देखा

बस के बीच की गैलरी खचाखच यात्रियों से भरी हुई थी ,,

जो यात्री भीड़ में खामोश खड़े थे मैं समझ गया यह सब शादीशुदा है इन्हें चुप रहने की बीमारी है लेकिन जो यात्री भीड़ में शोर मचा रहे थे

लगता है उनकी अभी शादी की बात चल रही है इसलिए वह अभी खुलकर आवाज उठा रहे हैं

जिन्हें खड़े होने के लिए भी जगह नहीं मिल पा रही थी वह सब मेरी ही तरह कारखाने में जाने वाले शायद नए-यात्री होंगे

बहुत से यात्री तो एक टांग पर ही खड़े हुए थे जरा सी भी बस रुकती और ड्राइवर साहब ब्रेक लगाते तो सारी सवारी एक दूसरे के ऊपर गिर पड़ती ,,

मगर बहुत से यात्री मुझे उसमें खुश दिखाई दिए उनके चेहरे पर चमक थी क्योंकि उन्हें कुर्सियां मिल चुकी थी वह कुर्सियों पर ऐसे चिपक कर बैठे थे जैसे किसी बच्चे को कोई खिलौना मिल जाता है और

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वह बच्चा उस खिलौने को किसी को भी देना नहीं चाहता कुर्सी पर बैठने वाले यात्री आराम से बैठे हुए आंखें बंद किए हुए गीत गुनगुना रहे थे बाकी जो यात्री खड़े हुए थे भीड़ में दब रहे थे आपस में ही एक दूसरे को कुचल रहे थे वह सभी एक एक कुर्सियों से चिपक कर खड़े हुए थे कि शायद अगले स्टैंड पर कोई कुर्सी वाला अपनी कुर्सी छोड़ दे और वह कुर्सी उन्हें मिल जाए

मगर जब भी किसी स्टैंड पर बस रुकती सवारी उसमें और चढ़ जाती भयंकर भीड़ देखकर तो मेरा भी दिमाग खराब हो गया

धीरे-धीरे सरकते हुए मैं पीछे वाले गेट से बस के बीचो-बीच पहुंच गया

शायद यहां कुछ राहत मिल जाए मगर वहां तो बहुत गड़बड़ हो गई

बस के बीच की संकरी सी गली में आजू-बाजू यात्रियों ने मुझे पूरी तरह दबा दिया किसी ने आवाज लगाई बस के शीशे खोल दो ,,अंदर घुटन हो रही है

तभी एक अनजान आवाज आई ,,भाई साहब को घुटन हो रही है एसी चलवा दीजिए इनके लिए ,,उस बस में कोई हंस रहा था तो कोई रो रहा था

किसी का चेहरा उदास था ,,तो किसी के चेहरे पर रौनक थी

तभी मुझे बगल में एक लड़की दिखाई थी उसने आंखों में एक चश्मा लगा रखा था कंधे पर एक बैग टांग रखा था शायद वह नौकरी करती होगी उसकी वेशभूषा से लग रहा था उसके आजू-बाजू कुछ पुरुष खड़े हुए थे जब भी बस की ब्रेक लगती तो वहां खड़े पुरुष उस लड़की से चिपक जाते और उसके शरीर को स्पर्श करते

मगर वह लड़की खामोश थी उसने दो-तीन बार धीरे से कहा भी,, प्लीज धक्का मत दीजिए

मगर उसकी बात का कोई असर नहीं हुआ

हर उम्र का पुरुष उस चश्मे वाली लड़की को ही घूर-घूर कर देखे जा रहे थे जैसे मानो वह भी उसे छूना चाहते हो

बस की भीड़ में अनजान महिला के शरीर को टच करने की घटिया सोच वाले लोगों की तादाद ज्यादा थी

ड्राइवर अपनी बस चलाने में मग्न था कंडक्टर पीछे अपनी सीट पर बैठा हुआ खिड़की से बाहर की तरफ झांक रहा था

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बस के यात्री खामोशी से यह सब तमाशा देख रहे थे यात्रियों से बस खचाखच भरी हुई थी बस में पैर रखने को भी जगह न थी फिर भी लोग यात्रा कर रहे थे साथ में महिलाएं भी डरी सहमी और खामोशी से

,, सबकी अपनी-अपनी मजबूरी थी ,, पापी पेट के लिए शहरों में अक्सर नौकरियों के लिए ,,किसी की बहन ,,किसी की बेटी बस का ही सहारा लेती हैं क्योंकि ऑटो और रिक्शा में किराया अधिक लगता है

शहरों की भाग दौड़ भरी जिंदगी में

कितने कष्टों को झेलती हुई बहन बेटियां घर की गरीबी और मजबूरियों ने उनकी आवाज को कही दबा दिया था वह चाह कर भी अपनी सुरक्षा के लिए आवाज नहीं उठा पा रही थी

मगर मुझसे यह तमाशा देखा ना गया ,,

आखिरकार मेरे अंदर ना जाने कहां से हिम्मत आई और मैं धक्का मारने वाले पुरुष से गरजते हुए बोला ,,तुम्हें शर्म नहीं आती ,,यह लड़की तुमसे कुछ नहीं कह रही है

और तुम भीड़ का फायदा उठाकर लड़की के साथ छेड़छाड़ कर रहे हो,, उसके साथ बदतमीजी कर रहे हो

मैंने जब एक दो बार और कड़क आवाज में ललकारा तो बस में खड़े कुछ भले पुरुष और महिलाओं ने भी मेरा समर्थन किया

मेरी आवाज सुनकर वह पुरुष दो कदम चश्मे वाली लड़की से पीछे हो गया

और मुझे घूरने लगा मैं भी तैयार खड़ा था अगर इसने मुझे ,, कुछ भी फालतू कहा ,, फिर मैं इसका मुंह नोच लूंगा

मैंने फिर एक बार चिल्लाते हुए कहा दाएं तरफ वाली सीट के ऊपर लिखा हुआ है,, केवल महिलाओं के लिए यह सीटें है फिर भी पढ़े लिखे पुरुष आराम से महिलाओं की सीटों पर चिपककर बैठे हुए हैं

उठने का नाम ही नहीं ले रहे हैं बड़े ही बेशर्म पुरुष है दिल्ली के

तभी एक पुरुष अपनी समझदारी दिखाते हुए बोला आओ बहन यहां बैठ जाइए और उसने तुरंत सीट खाली कर दी

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वह चश्मे वाली लड़की को सीट खाली करके उसे बिठाया गया

बस चलती रही कई बस स्टैंड पीछे छूट गए और जहांगीरपुरी का बस स्टैंड आ गया

बस खाली होने लगी वह लड़की सवारियों के साथ नीचे उतरी

उसने पलट कर मुझे एक बार देखा और कहा,, थैंक्स भैया,,

मुझे बड़ा अच्छा लगा लेकिन मुझे शायद एक बात खराब लगी कि उस चश्मे वाली लड़की ने अपने लिए अपनी सुरक्षा के लिए आवाज क्यों नहीं उठाई थी

सारा दिन कारखाने में ,, मैं यही सोचता रहा इस समाज में महिला की सुरक्षा को लेकर बड़ी-बड़ी बातें होती है मगर आज भी महिलाएं सुरक्षित नहीं है अपनों के बीच में ही उनका शोषण होता है

अपना ही समाज उन्हें जीने नहीं देता है

नौकरी पर जाने वाली महिलाएं यात्रा के दौरान क्या-क्या परेशानियों का सामना करती होगी यह तो उनका दिल ही जानता होगा

कारखाने से शाम को वापस घर लौट आया बाबूजी का बुखार उतर चुका था

अगले दिन सुबह बाबूजी स्कूटी लेकर तैयार थे

मगर मैंने बाबूजी से कहा मैं बस से आऊंगा आप स्कूटी लेकर चले जाइए

बाबूजी ने कारण पूछा तो मैंने बस में हुई घटना की सारी कहानी बता दी

बाबूजी ने मुझे स्कूटी में बिठाया और तुरंत नंद नगरी के,, बस डिपो ,, पहुंचे

वहां बाबूजी के जानने वाले एक मित्र थे बाबूजी ने उन्हें एक प्रार्थना पत्र लिखा महिलाओं की सुरक्षा को लेकर

बाबूजी के मित्र ने आश्वासन दिया आप चिंता मत कीजिए

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आपका लेटर आगे पहुंचाकर कल ही कार्रवाई करते हैं

बाबूजी ने मुझे स्कूटी में बिठाया और हम कारखाने की तरफ चल पड़े

मैं मन ही मन सोच रहा था  बाबूजी ऐसा क्या करने वाले हैं

अगले दिन जब मैं बाबूजी के साथ स्कूटी से कारखाने की तरफ जा रहा था तो रास्ते में एक बस दिखाई थी उसकी खिड़की पर मुझे वही लड़की दिखाई थी चश्मे वाली मगर वह सीट पर बैठी हुई थी मैंने जब गौर से देखा तो उस बस में

लिखा था ,, यह बस केवल महिलाएं के लिए है,,

आगे ब्रेकर था तो बाबूजी ने स्कूटी धीमी कर ली और पीछे वाली बस जब हमारी स्कूटी के साथ साथ चलने लगी तो उसमें बैठी चश्मे वाली लड़की ने मुझे देखा और मैंने उसे

मैं मन ही मन सोचने लगा बाबूजी तो बड़े काम की चीज निकले

और मुझे यह भी समझ में आया घर के बड़े बुजुर्ग झगड़े से नहीं अक्ल से काम लेते हैं

वाह भई वाह बाबूजी ने लिखवा भी दिया बस के आगे

      ,, यह बस केवल महिलाओं के लिए है ,,

अब किसी पुरुष की हिम्मत नहीं कोई महिला वाले बस के डिब्बे में चढ़ सके

और मैं इत्मीनान से बाबूजी के साथ स्कूटी पर बैठे बैठे खुशी खुशी कारखाने पहुंचा यह सोचते हुए   

बाबूजी के साहस और हिम्मत की चर्चा घर जाकर अम्मा को जरूर सुनाऊंगा बाबूजी का कमाल देखकर मुझे खुद पर भी गर्व हो रहा था

लेखक नेकराम सिक्योरिटी गार्ड

मुखर्जी नगर दिल्ली से

स्वरचित रचना

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