बात मेरे स्वाभिमान की है – निशा जैन  : Moral Stories in Hindi

सुमेधा, सुमेधा …. मेरी येलो शर्ट कहां है , मिल नही रही

अरे मुझे क्या पता  ? मैं तो कब से कपड़े नही संभाली हूं। ये आपकी छुटकी हुई है तब से मैं इसी में व्यस्त रहती हूं और मम्मी ने कहा है तुम्हारी अभी अभी जचगी हुई है, आराम करो 

बाकी के काम मैं देख लूंगी। 

पीयूष  ,आप ऐसा करो मम्मी से पूछो, उन्होंने कल प्रेस के लिए कपड़े दिए थे , क्या पता धोबी के यहां रह गई हो।

मम्मी से पूछ चुका वो कह रही है सुमेधा से पूछो।

अरे मैं तो हमेशा कपड़े गिनकर देती हूं और गिनकर ही लेती हूं , मैने पिछली बार जब कपड़े लिए तब उसमे नही थी। मम्मी को कपड़े गिनने की आदत नही , शायद वो भूल गई हों

रहने दो सुमेधा , तुम्हे तो आदत है अपनी गलती दूसरे के सिर रखने की, मम्मी नही भूली, भूली तुम ही होगी और अब नाम मम्मी का लगा रही हो। पीयूष गुस्से में बोला और ऑफिस के लिए दूसरी शर्ट पहनकर निकल गया। 

शाम को प्रेस वाला उसकी येलो शर्ट देने आया जो उसी के पास रह गई थी।

सुमेधा अभी 10 दिनों पहले ही पहली बार  मां बनी थी वो भी ऑपरेशन से बेटी हुई उसको।इसलिए टांके निकले तब तक डॉक्टर ने काम करने का मना किया था  वैसे भी अभी  तक तो मांडना पूजन (छठी पूजा ) हुई नही थी इसलिए  अभी घर का कुछ काम नही कर रही थी । उसकी सासू मां सारा काम संभाल रही थी। साथ में दादी सास भी थी जो उसके लिए जच्चा को देने वाला खाना बनाने में सासू मां की मदद कर देती। और बाकी तो काम वाली बाई थी ही

अगले दिन रविवार था और पीयूष छुट्टी पर था। और काम वाली बाई भी

मम्मी आज बेड की डस्टिंग नही हुई क्या? यहां धूल दिख रही है।  सुमेधा ने  अपनी सास  से पूछा 

की तो थी ,मैने आज  सुबह जल्दी ही कर दी.. सोचा  छोटे बच्चे का सामान रखती है बेड पर तो अच्छे से सफाई रखना चाहिए

मम्मी, पर बेड पर तो धूल दिख रही है शायद आप सोचकर रह गई, करना भूल गई होंगी कोई बात नही मैं कर देती हूं सुमेधा ने कपड़ा लेकर डस्टिंग कर दी।

सुमेधा अपनी सास को मां की तरह ट्रीट करती थी तो जो लगता बोल देती ये नही सोचती किसी को बुरा लगेगा या अच्छा।

वहीं पीयूष को अपनी मां को रोकना टोकना बिलकुल पसंद नहीं था और सुमेधा भी कभी कुछ कहती तो उसको बुरा लगता।

एक दो दिन से पीयूष का व्यवहार कुछ बदला हुआ था वो अपनी बेटी को तो अच्छे से खिलाता उसको गोद में उठाता पर सुमेधा से बिलकुल बात नही करता। वो बात करना चाहती भी तो इधर उधर हो जाता। सुमेधा अब रोती रहती उसे समझ नही आया की पीयूष ऐसा व्यवहार क्यों कर रहा है।  एक तो अभी अभी मां बनी थी , शारीरिक थकान तो थी ही साथ में पीयूष का ऐसा बेरुखा व्यवहार उसको मानसिक तनाव भी दे रहा था। 

पूरे 7 दिन हो गए पर पीयूष ऐसे ही रहा और सुमेधा रोती रही जबकि इन दिनों उसका शरीर कमजोर था और रोने से आंखों पर विपरीत असर पड़ता साथ ही बेटी को भी रात में कई बार उठकर संभालना पड़ता क्युकी सु सु , पोटी, कभी दूध पिलाना । और सासू मां ने सख्त हिदायत दी कि डायपर नही लगाना चाहे कितने भी कपड़े गंदे हो जाए। तो बार बार कपड़े बदलने में उसकी नींद लग ही नही पाती। 

सासू मां को भी पीयूष ने यह कहकर  सुमेधा के साथ सोने से मना कर दिया कि आपको दिनभर काम करना हैं तो आप आराम से अपने कमरे में सो जाओ। बच्चे के बार बार उठने से आपको परेशानी होगी इसलिए मैं ही सो जाऊंगा कोई दिक्कत हुई तो मैं संभाल लूंगा।  और पीयूष तो कुंभकर्ण की नींद सोता , उठाए नही उठता। अब सुमेधा को बार बार उठकर बच्ची को संभालना पड़ता । फिर पीयूष को ऐसे देख उसको रोना आता। ( ये वही पीयूष था जो सुमेधा को एक पल के लिए दुखी नही देख सकता था

सुमेधा को डिलीवरी होने वाली थी तब उसे करवा चौथ का व्रत नही करने दिया पर पता नही इन दिनों किस बात पर इतना खफा था पीयूष)

आठवें दिन सुमेधा से रहा नही गया और वो रोते हुए पीयूष से उसकी नाराजगी का कारण पूछने लगी

पीयूष क्या तुम मुझे पसंद नही करते या मेरी कोई बात तुम्हे बुरी लगी । तुम मुझसे बात क्यों नहीं करते, इस समय मुझे तुम्हारे स्नेह की कितनी जरूरत है पता है तुम्हे? एक पत्नी पति से बस प्यार चाहती है और तुम मुझे रुला रहे हो।

क्या बात है कुछ तो बताओ कहते कहते  जोर जोर से रो पड़ी सुमेधा

कुछ नही , मुझे तुम्हारा मम्मी को टोकना पसंद नही जब उस दिन उन्होंने बोला कि डस्टिंग कर दी फिर भी तुम  मना किए जा रही थी क्या तुम्हे भरोसा नही उन पर?  तुम अपनी करना चाहती हो जब देखो तब। 

अरे इतनी सी बात पर आप अभी तक गुस्सा हो ….

 ऐसा नही है पीयूष कि मैं उन्हें हुकुम देती हु।  मैं तो उन्हें अपनी मम्मी की तरह समझती हूं इसलिए बिना सोचे समझे बोल देती हूं। मै कल ही माफी मांग लूंगी उनसे।

रहने दो मां तक ये बात पहुंचाने की कोई जरूरत नही।पीयूष बोला। तुम आगे से ध्यान रखना  तुम्हे उन्हें ऐसे टोकने का कोई हक नही

पर पीयूष मैं तो गलत काम पर अपनी मम्मी को भी टोक देती हूं

और सासू मां भी तो मेरी मां है

हां होंगी पर उन्हे टोकने या रोकने का कोई हक नही दिया मैने तुम्हे समझी और हां नए घर का काम पूरा हो चुका है। पापा ने बोला है बहु का  सवा महीने (40 दिनों) का मंदिर पूजन नए घर से ही होगा तो अगले हफ्ते शिफ्टिंग का काम भी है थोड़ा देख लेना ।

पीयूष अभी तो मेरा ऑपरेशन हुआ है , भारी काम करने से डॉक्टर ने  मना किया है । मै कैसे कर पाऊंगी ? और मुझे इतना दर्द है शरीर में। सुबह इंडियन वाशरूम में जाने  में कितनी दिक्कत होती है मुझे , तुम्हे पता भी है। झुकने मुड़ने का काम नही होता मुझसे।…. और साथ में छुटकी भी है इसको भी तो संभालना पड़ता है।

 थोड़ा ठीक हो जाऊं फिर शिफ्ट कर लेंगे सुमेधा बोली

नही , मुहूर्त निकल चुका है और … और काम तो मम्मी करती हैं, तुम्हे तो अभी आराम ही करना है वैसे भी…. पीयूष ऐसे बोला जैसे सुमेधा सच में आराम ही करती है पूरे दिन( शायद पीयूष उस डस्टिंग वाली छोटी सी बात को अभी तक दिल से लगाए हुए था)

सुमेधा को मां बने 25 दिन हो गए थे और उसके टांके भी सूख चुके थे अब वो घर के सारे काम करती , सिवाय खाना बनाने के क्योंकि खाना उसके ससुराल में मंदिर पूजन के बाद ही बनाते थे।

साथ में बेबी को भी संभालती, दिन पता नहीं कब उगता और कब छिप जाता, उसे पता ही नही चलता।

अब तो नए घर में शिफ्टिंग का काम भी चल रहा था । उसको  ऑपरेशन के बाद शरीर में दर्द रहने लगा था, डॉक्टर का कहना था अभी 6 महीने में धीरे धीरे मिटेगा तब तक भारी काम भी नही करना है। पर शिफ्टिंग में कितना ही  हल्का ,भारी काम होता है जो सुमेधा को मनाही के बाद भी करने पड़ते।  सुमेधा पीयूष को कई बार तो बोल ही देती कि अभी या तो बच्चा करने  का निर्णय नही लेते या घर में शिफ्ट होने का। 

मेरे तो ये मां बनने के बाद का आराम का एक महीना काम  में ही निकल गया। बहुत गुस्सा आता है मुझे इन दिनों जब थक जाती हूं और रात में ये छुटकी सोने नही देती ।

 पीयूष से प्यार भरे दो बोल सुनने के बजाय भाषण सुनने और मिल जाते और हद तो तब हो गई जब….

 एक दिन सुमेधा बहुत थक गई थी और पीयूष दोपहर में किसी काम से घर आ गया था।  आते ही सुमेधा को बुलाया

सुमेधा … सुमेधा बाहर आओ तो….

सुमेधा भागी भागी बाहर गई……. पता नही क्या हो गया, पीयूष अचानक क्यों आ गए और मुझे ऐसे क्यों बुला रहे है?

क्या हुआ पीयूष, तुम ठीक तो हो न

अरे मैं ठीक हूं, किसी काम से पास ही  आया था तो सोचा घर होता चलूं। आओ तुम्हे कुछ दिखाना है

 एक बकरी और उसके बच्चे की ओर इशारा करते हुए बोले

  देखो ये बकरी  ये भी तो अभी अभी मां बनी है, इसने अभी थोड़ी देर पहले बच्चा पैदा किया है और अभी इसको अपने साथ ले जा रही है देखो कैसी फुर्ती है इसमें और एक तुम हो जो दिनभर काम का रोना और दर्द का रोना रोती रहती हो। तुमसे अपनी छोटी सी बच्ची और कुछ काम भी नही संभाले  जा रहे।

   सुनकर अवाक रह गई सुमेधा मन में सोचा अब मेरी तुलना एक बकरी से कर रहे हो। क्या इतनी इज्जत रह गई मेरी

   कुछ सोचकर बोली सुमेधा … 

   फिर बकरी से ही शादी कर लिए होते, मुझसे क्यों की? कहकर फफक फफक कर रो पड़ी सुमेधा

   अरे सुमेधा सॉरी यार, मैं तो मजाक कर रहा था, सॉरी डियर तुम तो बुरा मान गई प्लीज रोना बंद करो

   नही पीयूष बात बुरा मानने की नही बात मेरे स्वाभिमान की है। तुम मेरे दर्द को समझने के बजाय मेरा मजाक बना रहे हो। मेरे मातृत्व के 40 दिन होने वाले हैं और तुमने 40 मिनट भी मुझे प्यार से बात नही की होगी । तुम्हारी पत्नी हूं इतना हक तो मेरा भी बनता है कि मैं अपने दुख दर्द अपने पति से बांट सकूं

हां या ना बोलो….

पीयूष को अब अपनी गलती का  मन ही मन एहसास हो रहा था।

   सबकी तो इन दिनों अपनी सास से शिकायत रहती है कि उसकी सास उसका ध्यान नहीं रखती वगेरह वगेरह

   पर मेरी तो यहां मेरी सास से नही बल्कि उनके बेटे से , मेरे पति से , मेरी बेटी के पिता से शिकायत है कि वो अपनी जिम्मेदारी बखूबी नही निभा रहे । उनको मुझे मोरल सपोर्ट देने  के बजाय वो मुझे मानसिक तनाव ज्यादा दे रहे हैं। इस तनाव के कारण ही मैं पूर्ण रूप से स्वस्थ नही हो पा रही हैं शायद।

   शायद आपकी मां मेरे दर्द को आपसे अच्छे से समझ पाई क्योंकि उन्होंने भी मातृत्व के इन 40 दिनों को जिया है। इसलिए आपसे ज्यादा वो मेरा ख्याल रखती है और मैं उनसे हक से बात कर पाती हूं 

    कहकर सुमेधा अंदर चली गई।

     पीयूष को अब बहुत आत्मग्लानि हो रही थी कि जब सुमेधा को उसके प्यार , विश्वास और मोरल सपोर्ट की सबसे ज्यादा जरूरत थी तब उसने उसको इतना दुख दिया। क्या हुआ सुमेधा ने मां को कुछ बोल दिया , मैं भी तो बोल देता हूं कई बार

पर मैने अपनी पत्नी पर अपना हक जमाया ,उसे बिना गलती की सजा दी है

     पर अब वो सारा प्यार उसे दूंगा जिसकी वो हकदार है, आखिर उसने मुझे  एक नन्ही परी के रूप में एक तोहफा जो दिया है।

      अगले दिन पीयूष बिलकुल बदल चुका था एक जिम्मेदार पति बन सुमेधा के सामने उसकी मदद के लिए खड़ा था और सुमेधा अपने सारे दर्द को पीयूष के इस बदले रूप को देख  भूल चुकी थी।

              दोस्तो मातृत्व के इन चालीस दिनों में घर परिवार के सदस्यों का प्यार हमे एक नई ऊर्जा से भर देता है और विशेषकर एक पत्नी के लिए उसके पति का प्यार उसके दर्द को  दूर करने की  एक अचूक दवा होती है ये एक नई नई मां बनी पत्नी से बेहतर और कौन समझ सकता है भला

आपके  क्या विचार हैं। कमेंट द्वारा बताना न भूलें और हमेशा की तरह मेरा उत्साहवर्धन करना भी

धन्यवाद

निशा जैन

#हक

2 thoughts on “बात मेरे स्वाभिमान की है – निशा जैन  : Moral Stories in Hindi”

  1. एक माँ सब भूल जाती है परंतु गर्भावस्था में उसके साथ हुए व्यवहार को कभी नहीं भूलती। मैं भी नहीं भूली ।

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