बात आत्मसम्मान की ।। – अंजना ठाकुर : Moral Stories in Hindi

सुमन अपने ससुराल मैं बहुत खुश थी शादी के पांच साल हो गए थे उसने पूरे घर को अपना बना लिया था सास ,ससुर ,देवर ,पति और एक प्यारी सी बेटी पा कर सुमन खुश थी सब लोग सुमन को मान भी बहुत देते ।सुमन का ससुराल भी मध्यम वर्गीय है और मायका भी तो कभी लेन देन के बारे मैं भी कोई कुछ नहीं बोलता था सब कुछ अच्छे से चल रहा था ।

सुमन के देवर  आकाश को अपने साथ काम करने वाली लड़की गौरी से प्यार हो गया गौरी विचारों और कपड़ों दोनों से बहुत आधुनिक थी और परिवार भी काफी पैसे वाला है आकाश जानता था मां गौरी के लिए कभी राजी नहीं होंगी इसलिए आकाश ने सुमन से कहा भाभी आप मिल लो अगर आपको सही लगे तो मां पापा से बात करना ।

सुमन राजी हो गई उस दिन गौरी को मॉर्डन कपड़े मैं देख सुमन को लगा पता नही मांजी स्वीकार करेंगी या नहीं क्योंकि उसे तो सूट भी नहीं पहनने दिया जाता मांजी कहती है बहुएं साड़ी मैं ही अच्छी लगती है सुमन ने भी घर की खुशी के लिए कभी दोबारा कोशिश नही करी । फिर बातचीत से तो गौरी सही लगी तो उसने मांजी से कहा की दोनों प्यार करते है तो शादी कर दी क्या पता कल को देवर जी अलग हो जाए घर से ।

गायत्री जी पहले तो मान नही रहीं थी फिर आकाश की जिद्द और सुमन की बात सुनकर मान गई ।

गौरी शादी हो कर आ गई उसे काम करना तो कुछ आता नहीं था तो सुमन ही सब काम करती एक दिन गायत्री जी ने कहा काम करने की तो उसने बाई लगा दी ।कपड़ों के लिए टोका तो बोली मैं साड़ी पहन कर ऑफिस नहीं जा सकती भाभी को तो घर पर ही रहना है कुछ भी पहन लो ।

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गायत्री जी कुछ नहीं बोली धीरे धीरे सुमन को लगा गौरी उसके काम का महत्व नहीं समझती बात बात पर अपने पैसों का रौब दिखाती ।इस से उसके आत्मसम्मान को चोट पहुंचती हद तो तब हो गई जब घर मैं सब गौरी के गुणगान करने लगे क्योंकि गौरी कभी महंगे तोहफे ले

आती कभी घर की सुख सुविधा का सामान तो सास ,ससुर के नियम भी बदल गए अब वो गौरी को आधुनिक कपड़ों मैं देख कर खुश होते गायत्री जी भी बहु के आगे पीछे घूमती ऑफिस से आने पर उसे चाय बना देती कभी मनपसंद खाना ये सब देख सुमन को बुरा लगता एक दिन सुमन ने कहा मांजी आप तो मुझे सूट भी नहीं पहनने देती और गौरी को आप कुछ नहीं कहती वो तो जींस टॉप भी पहन लेती है ।

गायत्री जी बोली तुम कहां जाओगी जींस टॉप पहन कर रहना तो  घर मैं ही है तुम उस से तुलना मत करो घर के काम करो ।

आज फिर सुमन को बुरा लगा की घर के काम करने से कोई इज्जत नहीं है वो सोच ही रही थी क्या किया जाए 

काम के चक्कर मैं सुमन सुबह  तैयार भी नहीं हो पाती थी बच्चे को देखना ,सास ससुर का नाश्ता नीरज का टिफिन सुबह के कितने काम बाई तो आकाश और गौरी का काम करती ।तभी गौरी तैयार हो कर ऑफिस के लिए निकली इतने मैं सुमन के पति नीरज भी ऑफिस जाने के लिए निकले

उन्होंने गौरी को देखा फिर सुमन को देखकर बोले तुम तो बाई से भी बदतर बन कर रहती हो ऐसा क्या काम है जो खुद का भी ध्यान नहीं रख पाती इस से तो चार पैसे कमाती तो काम आते ।पूरा दिन यूं ही बरवाद कर देती हो ।

अब पानी सर से उपर जा चुका था उसका आत्मसम्मान चूर हो चुका था आज ही उसने ठान लिया की अब वो पैसा कमा कर बताएगी वो तो परिवार की खुशी मैं खुश थी ।सुमन को कपड़े के नए नए डिजाइन आते थे उसने अपनी सहेली से बात करी उसका बुटीक था ,जहां सुमन ने अपने सिले हुए कपड़े रखना शुरू कर दिया ,ब्लाउज मैं तो उसे महारथ हासिल थी उसके डिजाइन सबको

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पसंद आने लगे और सुमन ने साझेदारी मैं काम शुरू कर दिया अब वो भी सुबह बेटी को स्कूल भेज कर तैयार हो कर निकल जाती उसने भी काम के लिए बाई लगा दी नीरज को बाई के हाथ का खाना बिल्कुल अच्छा नही लगता और अब जल्दी भी उठना पड़ता क्योंकि सब सामान खुद ही निकालना पड़ता

जो पहले हाथों मैं मिलता ,सास ,ससुर भी परेशान हो गए क्योंकि अब बैठे बैठे सेवा नहीं हो रही थी आज उन्हें घर के काम की कीमत समझ आ रही थी तीनों सोच रहे थे किसी के आत्मसम्मान को इतनी भी चोट नहीं पहुंचाना चाहिए की खुद का ही नुकसान हो जाए ।

मेरे विचार_आत्मसम्मान सबका होता है कोई रिश्तों को बनाए रखने के लिए आपकी गलत बात सहन करता है तो ये उसकी मजबूरी नही प्यार है ।यदि आत्मसम्मान को चोट पहुंचती है तब सबका ही नुकसान होता है इस बात का ध्यान रखना चाहिए किसी को नीचा दिखाने से पहले ।

धन्यवाद

स्वरचित

अंजना ठाकुर

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