” करीब चार दिनों से लगातार बारिश हो रही थी प्रेरणा हर दिन की तरह आज भी बालकनी में आई बाहर का प्राकृतिक सौंदर्य देखकर उसके चेहरे पर मुस्कान फ़ैल गई।सामने पार्क था उसमें विभिन्न प्रकार के फूल खिले हुए थे कालोनी की सड़कों के दोनों
किनारों पर लगे नीम, अशोक,सहजन, अमलतास के वृक्ष हर भरे होकर झूम उठे थे। पार्क के फ़ूल भी मस्ती में झूमते हुए लग रहे थे।लाकडाउन और बारिश के कारण लोग अपने घरों में ही थे इसलिए पार्क सुनसान था लेकिन चारों ओर फैली हरियाली मनमोह रही थी।
चार दिन से लगातार हो रही बारिश और लाकडाउन के कारण वैसे भी सामान्य जीवन अस्त-व्यस्त हो गया था पर सभी को गर्मी से निजात ज़रूर मिल गई थी।
तभी पड़ोस की मिसेज पाठक ने प्रेरणा को देखकर कहा ” प्रेरणा कैसी हो” ?
” मैं बिल्कुल ठीक हूं आप अपना हाल सुनाइए आप कैसी हैं”? प्रेरणा ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया
” मैं तो ठीक हूं प्रेरणा,पर चार दिन से लगातार बरसात हो रही है घर में कोई सब्जी नहीं है यहां अपनी बिल्डिंग के नीचे जो सब्जी वाली अम्मा सब्जी लगातीं थीं वह भी चार पांच दिन से नहीं आ रही हैं।लाकडाउन में भी तो उन्हें यहां सब्जी लगाने की अनुमति मिली हुई थी, पता नहीं उन्हें क्या हो गया है? वह तो हर दिन सब्जी लगाती थी
औलाद के मोह के कारण वह सब कुछ सह गई। – मधु वशिष्ठ : Moral Stories in Hindi
इसलिए हम लोगों को आसानी से ताजी सब्जियां मिल जाती थीं।उनके न आने से बड़ी परेशानी हो गई है इस बरसात में और लाकडाउन में बाहर कौन सब्जी लेने जाएगा समझ में नहीं आ रहा है कि, सब्जी के लिए क्या किया जाए” मिसेज पाठक ने परेशानी भरी आवाज में कहा।
मिसेज पाठक की बात सुनकर प्रेरणा को भी ध्यान आया कि,यह बात तो सही है कि, सब्जी वाली अम्मा चार पांच दिनों से सब्जी नहीं लगा रहीं हैं। प्रेरणा सोचने लगी ऐसा तो कभी हुआ नहीं की वह सब्जी लेकर न आए वह अपने 6-7
साल के पोते के साथ हर दिन सब्जी की टोकरी लेकर आती हैं। इधर क्यों नहीं आ रही हैं कहीं उनकी तबीयत तो ख़राब नहीं हो गई है मुझे जाकर देखना चाहिए वह यहीं पास में ही तो रहतीं हैं एक बार उन्होंने बताया था प्रेरणा यही मन ही मन सोच रही थी।
तभी उसके मन में विचार आया कि, मुझे उनके घर जाकर देखना चाहिए कि, उन्हें क्या हुआ है उनके घर में उनके पोते के अतिरिक्त कोई और व्यक्ति है भी नहीं अगर उनकी तबीयत ख़राब होगी तो वह नन्हा-सा बच्चा क्या कर पाएगा लाकडउन के कारण पता नहीं उनके घर में कुछ खाने पीने का सामान है
भी या नहीं है।प्रेरणा के मन में यह विचार जैसे ही आया उसने छाता लिया और सब्जी वाली अम्मा के घर की ओर चल पड़ी वहां पहुंचकर उसने दरवाज़ा खटखटाया थोड़ी देर में दरवाजा खुला सामने वही छोटा बच्चा खड़ा था उसके चेहरा आंसूओं से डुबा हुआ था।
प्रेरणा को देखते ही बोला “मेमसाहब दादी को बुखार है उनको खांसी भी आवत है” इतना कहकर वह रोने लगा।
“राजू तुम रोओ नहीं मैं देखती हूं क्या आप-पास के लोगों से तुमने नहीं कहा की तुम्हारी दादी बीमार हैं”? प्रेरणा ने राजू से पूछा
” बताया था पर कोई नहीं आया सब कहते हैं दादी को कोरोना है हम उनके पास नहीं जाएंगे” राजू ने रोते हुए कहा।
प्रेरणा यह सुनकर बहुत दुखी हो गई और मन ही मन सोचने लगी लोगों में इंसानियत मर गई है अगर कोरोना भी है तो लोग कोरोना सेंटर पर भी ख़बर कर सकते थे पर आस-पास के लोगों ने ऐसा भी नहीं किया और एक बुढ़ी औरत को उसके मासूम बच्चे के साथ मरने के लिए छोड़ दिया।प्रेरणा ने तुरंत कोरोना सेंटर को फोन किया
और वह वहीं रूकी रही जब वह लोग आ गए तो सब्जी वाली अम्मा और उनके पोते राजू की कोरोना जांच हुई तुरंत वाली रिपोर्ट में दोनों निगेटिव थे।जो डाक्टर आएं थे उन्होंने प्रेरणा से कहा की “बच्चा तो निगेटिव है अम्मा जी भी इस समय तो निगेटिव लग रहीं हैं पर दूसरी रिपोर्ट एक सप्ताह बाद आएगी तभी सही रूप से कहा जा सकता है”
तब प्रेरणा ने कहा”ठीक है डाक्टर साहब आप अम्मा जी को दवा दे दीजिए मैं यहां आकर इनके खाने पीने और दवाई का इंतजाम कर लूंगी और बच्चे को अपने घर लेकर चली जाऊंगी एक सप्ताह बाद जब
रिपोर्ट अगर निगेटिव रहेगी तो बच्चे को यहां अम्मा के पास छोड़ दूंगी अगर रिपोर्ट पाज़िटिव हुई तो मैं बच्चे को अपने पास रखूंगी और अम्मा को अस्पताल में भर्ती करवाया दूंगी जब वह ठीक होकर घर आ जाएगी तो मैं राजू को उनके पास लेकर आऊंगी। डाक्टर साहब जो भी अतिरिक्त खर्चा लगेगा मैं दे दूंगी पर आप अम्मा का इलाज अच्छे से कीजिएगा”
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प्रेरणा की बात सुनकर डाक्टर ने मुस्कुराते हुए कहा ” इलाज़ में कोई अतिरिक्त खर्चा नहीं लगेगा सब बच्चे की समस्या थी उसका आपने समाधान कर दिया इस स्वार्थी संसार में कोई किसी के लिए नहीं सोचता लेकिन आपने स्वार्थ से ऊपर उठकर इंसानियत दिखाई अगर आप जैसे लोग इस तरह आगे बढ़कर
जरूरतमंदों की मदद करें तो उनके जीवन में भी थोड़ी खुशियां आ सकतीं हैं हम जैसे डाक्टरों के लिए भी उनका इलाज करना आसान हो जाए और इंसानियत भी शर्मशार न हो आप ने आज जो किया है और बच्चे के लिए जो करने जा रही हैं इसके लिए आप बधाई की पात्र हैं”
” नहीं डाक्टर साहब मैं बधाई की पात्र नहीं हूं मैं कोई इतना महान कार्य नहीं कर रहीं हूं जो आप मुझे इतना सम्मान दें यह तो हर इंसान का फ़र्ज़ है कि,वह जरूरतमंदों की मदद करे मैं वही कर रही हूं”प्रेरणा से गम्भीर लहज़े में जवाब दिया।
डाक्टर और उनकी टीम की आंखों में प्रेरणा के लिए सम्मान की भावना स्पष्ट दिखाई दे रही थी।आज यह काम करके प्रेरणा को भी आत्मसंतुष्टि का अनुभव हो रहा था।आज की बारिश ने प्रेरणा के मन को खुशियों से लबरेज कर दिया था आज से पहले प्रेरणा को इतनी खुशी का अनुभव कभी नहीं हुआ था।
डॉ कंचन शुक्ला
स्वरचित मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित अयोध्या उत्तर प्रदेश
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