आवाज उठाना – डाॅक्टर संजु झा : Moral Stories in Hindi

गरीब परिवार की मातृहीन ऊषा शादी के बाद ससुराल आ गई। संपन्न ससुराल पाकर ऊषा को अपने भाग्य पर रश्क होता था।कुछ समय बाद ऊषा पति  अजय के साथ शहर आ गई। कम पढ़ी-लिखी ऊषा के लिए पति देवता समान था।वह  जी-जान से पति को खुश रखने की कोशिश करती,परन्तु यहाँ आकर उसे पति के शराबी होने की बात पता चली।उसके बाद तो ऊषा की जिन्दगी कशमकश में गुजरने लगी।ऐसे भविष्य की तो उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी।उसके दाम्पत्य-जीवन से प्यार की खुमारी अभी उतरी भी नहीं थी कि पति की असलियत  पता चल गई। 

 अजय नौकरी से आने के बाद शाम में आए दिन शराब पीकर ऊषा के साथ दुर्व्यवहार करने लगा। पहली बार  उस पर  हाथ उठाने पर ऊषा के हृदय के किसी कोने से कुछ चटकने की आवाज आई थी,जो पराधीनता की विवशता में गले में ही घुँटकर रह गई थी।उसके बाद से शराबी पति से मार खाना उसकी नियति बन गई थी।

समय के अन्तराल पर  ऊषा एक बेटा और एक बेटी की माँ बन चुकी थी।पराश्रित  की विवशता से मजबूर वह बच्चों के सुखद भविष्य की खातिर  पति की जुल्मों-सितम से समझौता किए जा रही थी।दिनोंदिन उसके मन के भीतर शून्यता भरती जा रही थी।आँखों में दहशत तैरने लगी थी।बेटा विवेक और बेटी निया भी पिता के भय से आतंकित रहते।कभी-कभी ऊषा को पति के अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने की इच्छा होती,परन्तु यह सोचकर कि एकाकी स्त्री को  बहुत  कुछ भोगना पड़ता है,असंख्य  दंश झेलने पड़ते हैं।बिना आर्थिक संबल के दो बच्चों को लेकर कहाँ भटकूँगी?

बेटा विवेक और बेटी निया का भविष्य सोचकर गृहस्थी की गाड़ी को  ढ़ोएँ जा रही थी।बेटा विवेक पन्द्रह वर्ष का और बेटी निया तेरह वर्ष की हो चुकी थी।

आज फिर  शराब के नशे में किसी छोटी बात पर अजय ने ऊषा को पीटना प्रारंभ कर दिया।उसे देखकर अप्रत्याशित रुप से  पिता के खिलाफ आवाज उठाते हुए  विवेक ने कहा -” पिताजी!बस आपका जुल्म बहुत हो चुका।अब हम बड़े हो चुके हैं।आज के बाद  अगर आपने माँ पर हाथ उठाया,तो आपको जेल की हवा खानी पड़ेगी।माँ को पीटते हुए आपके कई वीडियो मेरे पास हैं।आज के बाद आप न तो माँ से और न ही हमसे ऊँची आवाज में बात करेंगे।”

बहन निया ने भी भाई की हाँ में हाँ मिलाया।

किशोर बेटे की धमकी भरी बातों को सुनकर अजय का नशा काफूर हो चुका था।वह हतप्रभ होकर पत्नी और बच्चों को देखकर मन -ही-मन  सोचने लगा-“वक्त-वक्त  की बात है।कभी मासूम सहमे से रहनेवाले बच्चे  अचानक से अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने लगे हैं।अब उसे ही बदलना पड़ेगा।”

समाप्त। 

लेखिका-डाॅक्टर संजु झा (स्वरचित)

मुहावरा व कहावतों की लघु कथा प्रतियोगिता

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