उस जमाने की लड़कियां – रवीन्द्र कान्त त्यागी

सर्दियों का मौसम और गुनगुनी धूंप में बैठकर मूंफली कुड्कूड़ाने का मजा एक फोन ने खराब कर दिया था। शहर के एक बड़े ट्रांसपोर्टर मेरे एक अनन्य मित्र थे। उनका फोन आया कि गुड़गांव (तब यही नाम था) से उनका ट्रक चोरी हो गया है। लछमन यादव नाम का ड्राइवर अभी जॉब पर रखा था। … Read more

“लंपट” – रवीन्द्र कान्त त्यागी : Moral Stories in Hindi

सुरसती चौधराइन ने करवट बदली तो खाट खाली खाली सी दिखयी दी. टटोलकर देखा तो भरतार कीरत राम चौधरी खाट पर नहीं था. भोर होने में अभी देर थी. न चिड़ियों की आवाज न मुल्ला की अजान. कुछ देर ऐसे ही अलसाई सी पति की बाट जोहती रही मगर शंका का काला नाग दिल पर … Read more

रौंग साइड ओवरटेकिंग – रवीन्द्र कान्त त्यागी : Moral Stories in Hindi

मिस्टर नवीन कत्याल अपनी नौकरी के मात्र दस वर्षों में ही मैनेजर के पद पर आसीन होकर इस कंपनी के शिखर तक पहुँच गए थे. पता नहीं उनका भाग्य था या प्रतिभा किन्तु सब कहते कि एमडी भरत राम बंसल के बाद कंपनी में किसी की चलती है तो वो कत्याल साहब ही हैं. कुशाग्र … Read more

किर्चियाँ – रवीन्द्र कान्त त्यागी : Moral Stories in Hindi

ऑफिस के सामने मल्टी स्टोरी बिल्डिंग के बरामदे में रतीराम का चाय का खोखा था। ऑफिस से खाली समय मिलने पर उसकी लकड़ी की बैंच पर बैठकर एक चाय बीस मिनट में सिप करते हुए गप्पें हाँकते रहना मेरे शौक में शामिल था। बचपन के क्लास फैलो रतन गुप्ता की परचून की दुकान पर चावल … Read more

  प्रतिघात – रवीन्द्र कान्त त्यागी : Moral Stories in Hindi

इन्सपैक्टर चतुर सिंह की खटारा सी धूँआ छोड़ती मोटरसाइकिल थाना परिसर में आकर रुकी तो एक हवलदार बालकराम भागा हुआ बाहर आया और बेताबी से चिल्लाया “साब जी, रेप हो गया कस्बे में।” “अच्छा” उन्होने बेहद ठंडे स्वर में कहा और बरामदे में पड़ी कुर्सी पर थके से बैठ गए। सामने मेज पर रखे पानी … Read more

 आघात – रवीन्द्र कान्त त्यागी : Moral Stories in Hindi

चौधरी मलखान सिंह के गन्ने के कोल्हू पर चहल-पहल थी। कढ़ाव में उबलते रस से मीठी बाप उड़कर सारे वातावरण को मधुर सुगंध से सराबोर कर रही थी। कई मजदूर गन्ना पेरने, खोई सूखाने और भट्टी में सूखी पत्तियों की झोंक लगाने में मगन थे। सफेद धोती कुर्ता पहने और कंधे पर काले सफेद चैक … Read more

 जीवन है अगर ज़हर – रवीन्द्र कान्त त्यागी : Moral Stories in Hindi

किसी गहरी सोच में डूबी सी प्रतिभा देशपांडे रसोई के काम में लगी थी। तभी उन्हे लगा कि कोई उस से सटकर खड़ा हो गया है। उसकी सांसें गर्दन को छू रही थीं। उन्होने पीछे मुड़कर देखा तो बेटी अनुष्का सजल आँखों से उसकी ओर देख रही थी। “अरे, क्या हुआ अनु। परेशान सी क्यूँ … Read more

किरपा करो हे राम – रवीन्द्र कान्त त्यागी : Moral Stories in Hindi

सुबह आठ बजे ऑर्डर मिलने शुरू हो जाते थे। कभी स्वीगी, ब्लिंकिट तो कभी जमैटो। कोई सप्लाई छूट न जाये इसलिए रामचन्द्र कुशवाहा सुबह जल्दी उठते और नहा धोकर, नाश्ता करके आठ बजे तक तैयार हो जाते। सरकार की पाबंदियों के कारण लकड़ी चिरायी का कारख़ाना बंद होने से, छह महीने पहले नौकरी छूट गई … Read more

विभीषिका – रवीन्द्र कान्त त्यागी : Moral Stories in Hindi

दरकते स्त्री पुरुष सम्बन्धों की विभीषिका, जहां तहां अपने रक्तिम चिन्न्ह बिखेरकर एक दर्द भारी दास्तां लिख जाती है। जेल के बाहरी परिसर में एक चालीस साल का पुरुष, मैला सा पायजामा, कंधे पर लाल अंगोछे से बार बार चेहरे का पसीना पौंछते हुए बेताबी से चक्कर लगा रहा था। फिर उसने पीपल की छाँह … Read more

का सन्ग खेलूं होली – रवीन्द्र कान्त त्यागी : Moral Stories in Hindi

“इस बार होली पर हम अपने गांव जाएंगे नलिनी।” समर ने ऑफिस से लौटते ही पत्नी से कहा। “गांव… कैसा गांव। समर तुमने तो कहा था कि गांव में अब हमारा कोई नहीं है। ना कोई नाते रिश्ते वाला। ना कोई संपत्ति न जमीन।” “हां मगर गांव तो है ना। और यादें हैं गांव की।” … Read more

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