जब किसी दूसरे का दुख अपना सा लगे – मुकेश कुमार

राधिका का परिवार एक मध्यमवर्गीय परिवार था उसके ससुर बैंक में मैनेजर से रिटायर हुए थे और पति बिजली विभाग में नौकरी करते थे।  शादी से पहले राधिका भी प्राइवेट स्कूल में टीचर थी लेकिन शादी के बाद उसने अपना जॉब छोड़ दिया था।  राधिका की इकलौती बेटी भैरवी का कल जन्मदिन था उसकी मां … Read more

बड़ा भाई हो तो राम जैसा  – पुष्पा पाण्डेय

देवरानी और जेठानी दोनों ने मिलकर चावल की तीन बोरियों का कंकड़-पत्थर चुनकर एक दिन में ही रख दिया। संयुक्त परिवार था, एक साथ ही खरीद कर आ जाता था। सस्ता भी पड़ता था। राम और श्याम दोनों भाई का परिवार मिलकर एक साथ ही रहता था। दोनों भाईयों का प्रेम मोहल्ले में उदाहरण था। … Read more

अपना घर तो अपना ही होता है – मुकेश कुमार

 राकेश जी रांची सचिवालय में नौकरी करते थे लेकिन अब रिटायर हो चुके थे एक दिन अपने दोस्त महेश जी के साथ पार्क में घूम रहे थे तभी उनके  दोस्त महेश जी बोले अरे भाई राकेश मैंने सुना है कि तुम अपना  घर बेचकर हमेशा-हमेशा के लिए अपने बेटे के पास हैदराबाद जाने वाले हो।  … Read more

अनजाने रिश्ते – अनुपमा

शमिता आज फिर छोटी स्कर्ट पहनी है तुमने , कितनी बार बोला है कॉलेज जाते वक्त ऐसे कपड़े मत पहना करो , पीछे से सुधा ने उसे आवाज देते हुए कहा तो शलभ ने मां का हाथ पकड़ के बोला रहने दो मां , पहनने दो उसे जो पहनना चाहती है ।  शमिता तो बिना … Read more

बड़े भैया पिता समान – गरिमा जैन 

4 January 2007 तिहाड़ जेल  सुबह के नौ बजे भोलू : यार मुकेश आज तो तू रिहा हो जाएगा। अब तो बता दे उस रात क्या हुआ था ?इतने सालों से एक उदासी जो मैंने तेरे चेहरे पर देखी है उससे मुझे यही लगता है कि उस रात जो कुछ भी हुआ वह सच सच … Read more

विचित्र किंतु सत्य – प्रीती सक्सेना

 बहुत साल पहले करीब 47 साल पहले की बात है, मेरे पापा बिलासपुर छत्तीसगढ़ में तहसीलदार के पद पर पदस्थ थे, मैं पांचवी क्लास में पढ़ती थी, पापा पास के गांव में टूर पर गए हुए थे, पापा के एक परम मित्र थे एक सरदार जी, जो अक्सर पापा से मिलने आते थे, उनकी खासियत … Read more

मजदूर या मजबूत – गोविन्द गुप्ता

मजदूर शब्द आते ही सर पर अंगोछा बंधे चेहरे पर झुर्रियां और कुछ सामान ढोते या ठेली चलाते मजदूर याद आ जाते है मुम्बई दिल्ली जैसे शहरों में देश के विभिन्न हिस्सों से रोजगार की तलाश में आये मजदूरों की संख्या लाखो में है,लेकिन सब कुछ न कुछ काम पाकर खुशी पूर्वक जीवन यापन कर … Read more

चाय-नाश्ता – पुष्पा कुमारी “पुष्प” 

“आइए बैठिए शोभा जी!.लगता है आज सूरज पश्चिम से निकला है!” यह कहते हुए अंजना ने पड़ोस में रहने वाली अपनी सहेली शोभा को बैठने के लिए वही रखी कुर्सी खिसका दिया। कुर्सी पर बैठते हुए शोभा धीरे से बोली.. “जरा वकील साहब से मिलने आई थी!” “वकील साहब से!” अंजना को हैरानी हुई। असल … Read more

सवाल हानि-लाभ का – नीलम सौरभ

रोज की तरह शाम को रुनू की दादीमाँ अपनी हमउम्र सखी के साथ जब पास वाले मन्दिर गयीं, वापसी में उन्हें सड़क के किनारे ठेले पर सजी ताज़ी सब्जियों के साथ आलू, प्याज भी बिकते दिख गये। वे भी एकदम फ्रेश दिख रहे थे। सुबह-सुबह बहू की बातें कानों में पड़ी थीं, कि आलू-प्याज दोनों … Read more

गुमशुदा – गीतांजलि गुप्ता

बहुत याद करने पर भी उसे कुछ याद नहीं आ रहा था न घर याद था न नाम कुछ भी याद नहीं उसे। भूख प्यास से तड़प रहा था। मैले कपड़े गंदे हाथ देख विचलित हो रहा था। सड़क के किनारे पटरी पर सोया पड़ा था। दूर देखा तो शहर दिखाई दे रहा था। सड़क … Read more

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