“ क्या बात है सुधा … आज तेरे चेहरे पर ऐसी मायूसी क्यों है …कल तक तो तू ठीक लग रही थी… आज अचानक क्या हो गया ।”पड़ोस में रहने वाली हमउम्र सखी रेवती ने सुधा से पूछा
दोनों हर शाम बैठ कर थोड़ी देर गप्पें मारा करती थी
“ क्या ही बोलूँ रेवा….. यार मन हो ना हो पति के लिए पत्नी को हमेशा तैयार रहना चाहिए…थोड़ा ना नुकूर कर दो तो उनके अहम को ठेस लग जाती ।” सुधा ने मायूसी में कहा
“ अब यार पतियों की इच्छा का तो हमेशा मान रखना पड़ता है…. पर ऐसा क्या हुआ जो तुझे ग़ुस्सा आ रहा है ?” रेवती ने पूछा
“वही तो सोच रही पति की इच्छाओं का मान रखना ज़रूरी और मेरी इच्छाओं का क्या…सच कहना तेरा पति भी ऐसे ही करता है क्या… तेरी इच्छा ना हो तो भी ..?” सुधा ने पूछा
“ हाँ रेवती हम अधिकतर औरतों की कहानी ऐसी ही होती है… हम चाह कर भी कुछ नहीं कर पाते…कितनी बार थकी होती हूँ सो जाती हूँ फिर भी… ।” कहते कहते रेवती भी सुधा की तरह ही सोच में डूब गई
“ तुम्हें पता कल तो पति हाथ उठाने वाले थे ये बोलते हुए कि तेरा ये हर दिन का नाटक हो गया है… बंद करो अपना ये नाटक …. आज ये …आज वो कह कर टालती रहती है… अब तू ही बता… बच्चे बड़े हो गए हैं देर रात तक पढ़ाई करते रहते हैं….वो जागते रहते है और ऐसे में हम मना ना करें तो क्या करें…जरा उन्हें ना कह दो तो उनके तन बदन में मानो आग सी लग जाती।”सुधा ने कहा
” फिर क्या तुने पति की बात ना मानी…।”रेवती आश्चर्य से पूछी
” नहीं मानी … तभी तो ग़ुस्सा हो कर हाथ उठाने को हुए… मैं झट से कमरे से निकल गई… दोनों बच्चे अपने कमरे से बाहर निकल कर मुझे देख रहे थे…जब बातें जोर जोर से होगी तो रात के सन्नाटे में सुनाई तो देंगी ही ना… उपर से पति को पीने की आदत…अभी बच्चों की परीक्षा चल रही है वो देर रात तक पढ़ते है … मुझे बोल रखा है कि माँ कभी कभी चाय बना कर दे दिया करो… अब वैसे में मैं पति की इच्छाओं का मान करूँ और बच्चों पर ध्यान दूँ… लाख कहा सो जाओ … धीरे बोलो.. बच्चे पढ़ रहे हैं…क्या सोचेंगे पर जब भूत सवार हो तो किसी की कहाँ सुनते…जो हाथ बढ़ाया मेरी तरफ़ मैं हाथ झटक दी और कमरे से निकल गई थी ।” सुधा ने कहा
“फिर क्या हुआ सुधा…भाई साहब ने बाहर आकर तुम्हें मारा क्या?” रेवती घबराते हुए पूछी
” वही तो नहीं होना था रेवती पर वो कमरे से बाहर आकर मुझे गाली देने लगा … शायद नशा ज़्यादा चढ़ा हुआ था उसपर …. मेरे बच्चे बीच में आकर पापा को रोकने लगे… दोनों को धक्का दे दिया रेवती… तब मैं बिफर पड़ी थी।” कहती सुधा का चेहरा तमतमा सा गया मानो रात की याद उसे अभी अभी होने का एहसास करवा रही थी
“ मैंने कह दिया आपको समझ नहीं आ रहा बच्चों की परीक्षा है… वो पढ़ाई कर रहे हैं और आप ऐसे हल्ला मचा रहे हो जाओ जाकर सो जाओ कमरे में … और मैं ग़ुस्से में उसे घूरने लगी सच कहूँ मुझे डर था कही मेरा हाथ ना उठ जाए और बच्चों के बीच तमाशा ना बन जाए… बेटा लड़खड़ाते हुए अपने पापा को पकड़ कर कमरे में ले गया… सुलाकर आया और मुझे यूँ देखा जैसे उसे मुझपे दया आ रही हो पर बोला कुछ ना… तू ही बता बीस और अठारह साल के बच्चे क्या समझदार नहीं होते… उपर से मेरी बेटी ये सब देख कर तो घबरा गई थी… ।”
वो भाई के जाने के बाद मेरे पास आई और बोली.. ,“माँ कुछ बोलने की ज़रूरत नहीं है….बस सुन लो…. हम अब बच्चे नहीं है सब समझते है…पापा की ये आदतें नई तो नहीं है पर तुम हमेशा उनकी सुनती रही हो इसलिए ही उनका मन बढ़ता गया है…..अब तुम उनकी इच्छा के विरूद्ध जाओगी तो वो ऐसे ही रिएक्ट करेंगे….अब ज़्यादा कुछ मत सोचो…. कुछ दिन तुम मेरे साथ ही सोना….देखते हैं उनको ये बात की समझ आती है की नहीं कि औरत की इच्छा का भी सम्मान करना चाहिए ।”
“ जानती है रेवती , बेटी का इतना ही बोलना काफ़ी था… मैं समझ गई कि अब के बच्चे हमसे कहीं ज़्यादा समझदार है…. बस दुख इस बात का है कि हम पति पत्नी के बीच की बात बच्चों के समक्ष आ गई जो नहीं आनी चाहिए थी बस उसका ही दुख हो रहा।” सुधा ने कहा
“ हाँ सुधा तू ठीक कह रही है… बड़े बच्चे जब साथ रहते हो तो इन सब बातों पर मर्द को चाहे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता हो पर हम औरतों को तो पड़ता ही है ….अब क्या सोचा है तुमने…?” रेवती ने पूछा
“ मैं पति से बात ही नहीं कर रही…. बच्चों की परीक्षा के बीच अब कोई तमाशा ना बनने दूँगी…. बेटी के साथ ही सोऊँगी…. देखती हूँ कब तक वो माफ़ी नहीं माँगते हम सब से।” सुधा कह कर घड़ी देखने लगी
” चल अब घर चले रात का खाना भी बनाना।” कहते हुए सुधा वहाँ से घर आ गई
कुछ दिन यूँ ही गुजर गए सुधा का पति ढीठ की तरह बिना बात किए रहा ….एक दिन उसकी तबियत ख़राब हो गई…. सुधा ने पुरानी सब बातें भूल कर पति की सेवा की…।
एक दिन वो पति के पैरों में मालिश कर रही थी तो उसके पति ने उससे कहा,“ बहुत दिनों से तू बात नहीं कर रही ना …मैं बात कर रहा पर मुझे बीमार देख तेरे से रहा ना गया और सेवा करने आ गई…बच्चों ने भी मेरा इतना ध्यान रखा ये बता मैंने तो तुम सब के साथ बुरा सलूक किया फिर भी..?”
“ हाँ फिर भी क्योंकि हम सब आपका मान करते हैं आपसे प्यार करते हैं बस इसलिए ।” सुधा संक्षिप्त उत्तर दे चुप हो गई
“ मैं भी तो प्यार करता हूँ तुम सब से ।” सुधा के पति ने कहा
” प्यार करते हो पर हम सब की इच्छाओं का मान नहीं करते…क्या कभी मेरा थका हुआ होना आपको नहीं दिखता…. पर जब मैं कभी आपसे कुछ कहती हूँ आप कह देते थका हुआ हूँ …व्यस्त हूँ …तो क्या मैं आपसे ज़बरदस्ती करती नहीं ना… बस वही मैं आपसे चाहती हूँ ।” सुधा पति के पैरों की मालिश ख़त्म कर जाने लगी तो पति उसका हाथ पकड़कर बोला,“ उस दिन के लिए क्या कभी माफ़ नहीं करेगी…. मुझे एहसास तो हो रहा था कही ना कही मैंने गलती कर दिया था पर पुरूष दंभ में जकड़ा हुआ था माफ़ी कैसे माँग सकता था पर तुम सबने मेरी आँखें खोल दी सुधा अब से तेरी हर इच्छा का पूरा मान करूँगा ये वादा करता हूँ।”
सुधा बस मुस्कुरा दी जानती थी कभी कभी ज़्यादा बहस बातों को अलग ही दिशा में ले जाती है और कभी-कभी चुप रह कर ,नज़रअंदाज़ करने से भी हम अपनी बात सही तरीक़े से रख पाते है।
दोस्तों कई घरों में ऐसा होता है पति को किसी की परवाह ना होती पर एक माँ सबकी परवाह करती है….हमेशा इच्छाओं का दमन करते रहने से पति दंभी हो जाता है इसलिए जहाँ ज़रूरत हो अपनी इच्छाओं का खुद सम्मान करें तभी दूसरे सम्मान करेंगे ।
मेरी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा…..किसी ने मुझे बताया ऐसा भी होता है तब उसे विचारों की अभिव्यक्ति देते हुए कहानी का रूप दिया है, हो सकता है आपके विचार इससे अलग हो …जिसका मैं सम्मान करती हूँ ।
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धन्यवाद
रश्मि प्रकाश
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