उनके घर में आज बहुत खुशी का माहौल था। उनके छोटे भाई आमोद का विवाह था। माता पिता की अकाल मृत्यु के पश्चात वो और उनके सह्रदय पति विशाल जी ने छोटे से आमोद को गले से लगा लिया था…अब वोही दोनों उसके माँ बाप बन गए थे….उन्होनें उसे दिल से अपनाया था। उसके प्रति हर जिम्मेदारी को निभाते निभाते नीलम को दूसरा आघात भी झेलना पड़ा था।
उन्हें अच्छी तरह से याद है ….कैसे भूल जाऐं…भूलना चाहती हैं पर वो आघात… वो झटके …वो सब इतने गहरे तक उनके अंतर्मन में छप चुके हैं,लाखों प्रयास भी असफल साबित हो चुके हैं।
उस दिन आमोद कॉलेज से आ चुका था…कुछ स्पेशल चाट पकोड़ी का प्रोग्राम था….बस विशाल जी का इंतजार था।
पर उस दिन के इंतजार ने तो उनकी दुनिया ही उलट दी।तीव्र दिल के दौरे को वो झेल नही पाऐ थे…एंबुलेंस में उनकी बॉडी आई थी।
वो आमोद की माँ तो बहुत पहले ही से थी। अब पूरी निष्ठा से पिता की भूमिका भी निभाते हुए पुत्र समान छोटे भाई को सफल डाक्टर भी बना दिया। उसके विवाह का प्रश्न उठा ..बहुत संकोच से उसने साथ में पढ़ी डाक्टर तरुणा का नाम लिया,”अरे भाई, तू तो छुपा रुस्तम निकला! मेरा भोलू सिंह इतना होशियार निकला।चल मिलवा मुझे इन डाक्टर साहिबा से।”
अब विवाह की शुभ घड़ी आई तो रिश्ते की बुआजी, मौसीजी आदि का जमावड़ा हो गया। गाँव से ताईजी ताऊजी ने आकर पूरी बागडोर सम्हाल ली लेकिन अब ये कैसा तूफान था…बेचारी नीलम तो सहम ही गई। दोनों ने आते ही ऐलान कर दिया,”देख बेटी, तू भाई के विवाह की सभी शुभ रस्मों से अपने को अलग रख।विधवा की परछाई भी नही पड़नी चाहिए.. समझ गई ना।”
“पर ताईजी, आमोद मेरा भाई ही नही..मेरा बेटा भी तो है। ये आप क्या कह रही हैं।”
उसकी बात पूरी ही नही होने दी ताई ने,”अरे तो क्या उसके विवाह में अपशगुनी करेगी। पति को तो खा ही चुकी…अब क्या भाई को भी..।”
वो जोर से चीख पड़ी,”चुप रहिए ताईजी। प्लीज़ इतनी अशुभ बात तो ना बोलिए।”
बस उन्होनें उसे रोता छोड़ कर अपनी बेटी और बहू को हर शुभकार्य की कप्तानी थमा दी। आमोद का विरोध नक्कारखाने में तूती बन कर रह गया।
“दीदी,जब हम लोगों पर विपत्तियों के पहाड़ टूटे थे, तब .. तब ये सब रिश्तेदार कौन से बिल में छिपे हुए थे। आज इनकी धमाचौकड़ी मैं तो नहीं सह पाऊँगा।”पर दीदी ने अपनी कसम देकर उसके मुँह पर ताला ठोंक दिया।
अचानक हल्ला हुआ….बहू आ गई… बहू आ गई… उनका पुराना नौकर शंभु पुकारने लगा,”दीदी..आरती का थाल लेकर आओ..भाई भाभी का परछन करो।”
वो हुलस कर उठी थी पर ताई की निगाहों का ताव नही सह पाई। उनकी बहू आरती का थाल लेकर बढ़ी पर ये क्या… तरुणा ने अपना घूँघट सरकाया और जोर से बोली,” मेरा परछन सिर्फ़ नीलम दीदी ही करेंगी। कोई बहस नही होगी…मेरे लिए जिसको जो सोचना है सोचे…पर मेरे लिए उनसे बड़ा शुभचिंतक कोई दूसरा नहीं हो सकता। मेरी तो माँ ही वोही हैं।”
नीरजा कृष्णा
पटना