और कितना गुस्सा अंदर रखूं – मंजू ओमर : Moral Stories in Hindi

अस्पताल में बेड पर पड़े आंनद जी को जब डाक्टर देखने आए तो आंनद जी ने डाक्टर से पूछा और डाक्टर साहब कबसे चलने लगेंगे । डाक्टर ने कहा बस आज आपरेशन का दूसरा दिन है कल से नर्स आपको पकड़कर चलाएगी ।खड़ा तो हम लोग 24 घंटे के बाद ही कर देते हैं लेकिन आप आज नहीं खड़े हुए तो कल तो आपको दो चार कदम चलना ही है ।

हां ठीक है डाक्टर साहब वो सामने लक्ष्मी बाई बैठी है , आंनद जी ने अपनी पत्नी की तरफ इशारा किया उनको समीक्षा दिजिए हमसे कह रहीं हैं देखो सब आज खड़े हो गए तुम नहीं खड़े हो रहे हो । रिलेक्स आंनद जी रिलेक्स आप लोग पत्नियों को इतना गुस्सा क्यों दिखाते हो जबकि हम मदों को कुछ हो जाता है तो बिचारी पत्नियां ही कितना ख्याल रखती है

हमारा ।हम लोग तो पत्नियों का इतना ख्याल रख भी नहीं पाते ।और पत्नी लोग तो अपना दुख दर्द हम लोगो को कम ही बताती है । वहीं आपका ख्याल रखेगी छै महीने तक । अभी छै महीने तक आपको बहुत एहतियात की जरूरत है ।

               असल में पूनम के पति आंनद जी बहुत अग्रेसिव नेचर के थे ।बात बात में तेजी तेजी से बोलने लगते हैं ।पूनम उनकी इस आदत से बहुत परेशान थी। बहुत बार सोचती थी शादी के 35 साल हो गए आज तक इनका स्वभाव नहीं बदला ।अब मुझे आदत डाल ही लेनी चाहिए इनके इस आदत की लेकिन कभी कभी क्या अक्सर ही कुछ ऐसी बात बोल देते थे कि पूनम और आनन्द जी की लम्बी कहा सुनी हो जाती थी।और फिर कुछ दिन तक बोलचाल बंद रहती थी ये सिलसिला अभी तक चलता चला आ रहा है ।

                    ऊपर डाक्टर साहब का जो वाकया लिखा है ,वो ये है कि आंनद जी का दोनों घुटनों का आपरेशन हुआ था।और आपरेशन के 24 घंटे के बाद मरीज को खड़ा कर देते हैं । सभी मरीज खड़े हो गए थे लेकिन आंनद जी खड़े होने को तैयार न थे तो पूनम ने कहा दिया था कि सभी मरीज तो खड़े हो गए तुम क्यों नहीं खड़े हो रहे हो तो इसी बात का शिकायत कर रहे थे डाक्टर से ।

                   आज सुबह ही पूनम ने कहा दिया ये इलायची के छिलके इधर उधर या डायनिंग टेबल पर फेंक देते हो चाय की पत्ती के डिब्बे में डाल दिया करों ।या डाइंग रूम गलीचा बिछा है और उसके ऊपर एक टेबल रखी है । टेबल के ऊपर आंनद जी पानी का गिलास भरकर रखते हैं ।

उस दिन जब डाइंग रूम की सफाई कर रही थी तो देखा उस तरफ गलीचा गिला था तो पूनम ने पूछा लिया कि क्या पानी गिरा था क्या यहां गीला कैसे हैं आंनद जी बोले नहीं मुझसे तो नहीं गिरा फिर कैसे गिला है यहां तो पानी का कोई काम ही नहीं है बस पूनम की हो गई मुसीबत ।उस बात के बाद आंनद जी बाज़ार चले गए ।

                 बाजार गए थे शुगर की मशीन में सेल डलवाने ,। बाजार से आकर बहुत जोर से चिल्लाते हुए बोले अब आगे से शुगर चेक करने के बाद मशीन से सेल निकाल कर रख देना मैं रोज़ रोज़ सेल डलवाने नहीं जाऊंगा ‌। पूनम ने कहा तो इतनी जोर से क्यों चिल्ला रहे हो तो बोले क्यों तुमने अभी मुझसे इलायची के छिलके के लिए और पानी के लिए नहीं कहा था ।

गलीचा गीला कर दिया नहीं कह रही थी , पूनम ने कहा अरे वो तो मैं बस पूछ रही थी ।तो क्यों पूछा क्या हमने पानी डाला ।इस तरह छोटी छोटी बातों पर ऐसा माहौल बना देते थे कि लड़ाई हो ही जाती थी ।पूनम सोचती कैसे आदमी से पाला पड़ा है। क्या करें क्या न करें । कुछ पूछना भी मुश्किल है ।

पूनम हमेशा ऐसे माहौल से बचना चाहती थी लेकिन आंनद जी हरदम कुछ ऐसा बोल देते थे कि बहस होना लाजिमी है । आखिर इंसान कबतक चुप रहे ।और जब बहस हो जाए तो पूनम बाई नहीं करती थी तो पूनम के भाई के पास फोन करके कहते आपकी बहन बात नहीं करती ।आगे चलो तो हुरो पीछे चलों तो थुरो वाली कहावत हो जाती थी।।

                   पूनम ने बहुत कोशिश की उनको बदलने की लेकिन नाकाम रही । आंनद जी के बड़े भाई है पूनम ने उनसे भी शिकायत की लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ ऐसी स्थिति में बेटे से भी खूब बहस हो जाया करती है।

             कुछ समय पहले पूनम और आनन्द जी पूनम के बड़े भाई के पास गये थे । वहां पूनम के भाई एक पंडित जी के पास पूनम को लेकर गए भाई का बड़ा भरोसा था पंडित जी पर ,पर पूनम इन सब बातों को नहीं मानती थी फिर भी भाई के कहने पर चली गई ।पूनम ने पंडित जी के सामने अपनी बात रखी कि शादी के इतने साल बाद भी हम पति-पत्नी का अक्सर झगड़ा हो जाता है क्या करें ।

पंडित जी बोले आपके पति बहुत अग्रेसिव नेचर के है ,जब वो बहस करे तो आप शांत हो जाया करें ।पूनम नै कहा कितना शांत हो जाए पंडित जी ।बात बात पर बहस हो जाती है । लेकिन और कर भी क्या सकती है ,सच भी है और किया भी क्या जा सकता है ‌। शादी के इतने साल बाद तलाक़ थोड़े ही ले लेगी आप ।

         बस ऐसे ही चलता रहता है और चलते चलते गाड़ी उम्र के आखिरी पड़ाव पर आ गई है ।जो इंसान इतने साल नहीं बदला वो अब क्या बदलेगा ।पूनम भी बातों को कभी कभी नजरंदाज करके और कभी अपने गुस्से को दबा कर रह। जाती है । अपने कामो में ज्यादा लगी रहती है । ज्यादा बात करने का मौका ही नहीं देती। शायद यही सही है ।

आपका क्या विचार है प्रिय पाठकों ।

धन्यवाद

मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

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