वक्त के थपेड़े खाती नदीम की टूटी कश्ती सी जिंदगी ,निरुद्देश्य बही जा रही थी।जीवन में उत्साह ,उमंग कुछ भी तो नहीं था। कभी कभी नियति इंसान के साथ कितना क्रूर मजाक कर देती है।
नदीम कोमल हृदय का भावुक इंसान था। पड़ोस में ही माँ की एक सहेली थी, जो काफी बीमार थी। अपने अंतिम क्षणों में उसने माँ से वचन ले लिया कि वे उसकी बेटी को अपनी बहू बनाएंगी। नदीम के मना करने पर माँ ने उसे समझाया , सुंदर, सुशील,भोलीभाली,अनाथ लड़की है,मैने इसकी माँ से वायदा किया है ,तू इंकार मत कर और नदीम ने माँ का वादा टूटने नहीं दिया।
पहली रात नदीम ने पत्नी का स्वागत काव्यमयी भाषा में किया। वह विस्फारित आँखों से उसे देखती रही। सारी रात वह उसे शायरी सुनाता रहा और वह अबोध जाने कब नींद की गोद में लुढ़क गई। वह जान चुका था माँ को जो भोली भाली दिखी वह दरअसल मूढ़मति है। उसका मन चीत्कार कर उठा। विधाता तूने यह क्या कर दिया। कहाँ गई मेरी सपनों की नायिका। उसका मन बिखर गया। माँ को तो साथिन मिल गई पर मेरा क्या हुआ ?
माँ सब कुछ देख समझ रही थी। वह बेटे को समझाती, बहू के पास उठा ,बैठा कर। एक बच्चा घर में आ जाएगा तो रौनक हो जाएगी।
पर वह तो बैरागी सा हो गया। दिल पर जाने कैसा बोझ लिए अकेला घण्टों बैठा खाली दीवार देखता या कागज़,कलम लिए खुद से बातें करता रहता।
इस कहानी को भी पढ़ें:
एक दिन उसकी माँ उसके सामने बैठ कर खूब रोई और उसे समझाती रही। आज रात वह उस अतिथिगृह में पहुंच गया जहां उसकी पत्नी एक लंबा इंतजार झेल रही थी।
और वह गुजरती रात के साथ तमन्नाओं का एक फूल पत्नी की गोद में डाल मुँह-अँधेरे गंगा किनारे जाकर बैठ गया और अपनी कल्पना को कागज़ पर उतारने लगा।
माँ खुश थी ,बेटे ने उसकी बात मान ली थी। समय गुजरता रहा पर एक अनहोनी अभी बाकी थी। नियत समय पर एक विलक्षण पुत्र को जन्म देकर नदीम की पत्नी गुजर गई। अस्पताल से मृत-देह को घर लाकर सारी रात वह उसके पास चुपचाप बैठा रहा। न जाने कौन सा कर्ज चुकाने आई थी। आज उस अबोध के निष्प्राण तन को देख , उसका मन भर-भर कर आ रहा था। क्या कसूर था उसका जो मैंने उसे मानसिक पीड़ा दी ,उसकी कभी परवाह नहीं की और वह जाते-जाते भी मुझे भेंट दे गई।
नवजात शिशु पटर -पटर ऑंखें खोले हाथ -पाँव चला रहा था। उसने लपक कर उसे गोदी में उठा कर कलेजे से लगा लिया। दो बूंद आँसू उसके गाल भिगो गए।
बच्चा बड़ा होने लगा। उसे पालने में माँ बेटे को तकलीफ तो बहुत हुई पर वह मेधावी बच्चा जाने कैसे हर काम तेजी से सीखता चला गया। पिता और दादी के सामने प्रश्नों की झड़ी लगा देता और वे उसे मुस्कुरा कर निहारते रह जाते।
नदीम आज भी अपनी नज्मों में अपनी प्रेयसी से बात करता, उसकी मनुहार करता ,अब भी कविता लिखता और गुनगुनाता तो बच्चा पूछता ‘आप किससे बात कर कर रहे हैं’ तो वह मुस्कुरा कर कहता ‘तेरी माँ से।’
इस कहानी को भी पढ़ें:
हर रात बेटा पिता की बगल में लेटा उसे गीत गाते सुनता। न जाने कैसा दर्द था उन गीतों में। पिता की कोर से बहता आँसू देख बच्चा सहम जाता और पिता के गले लगकर सुबकियाँ लेता। नदीम को बहुत दुख होता इस मासूम को तकलीफ देने का मुझे कोई हक नहीं और उसकी नन्हीं बाहें अपने गले में डालकर उसे चिपटा लेता।
फिर एक दिन ख्वाब में उसकी नज़्म कागज़ से उतर कर उसके घर उसे समझाने चली आई। बच्चा दादी के पास सो रहा था। उस रात नदीम ने अपनी यादों और अहसासों का सारा दर्द समेट नज़्म के खेत में बो दिया और उस खेत को अनजान पशुओं के चरने के लिए छोड़कर गहरी नींद सो गया था।
अगला दिन एक नई सुबह लेकर आया। अंधेरा सिमट गया था ।उसकी नज़्म, कविता और गीत उसे छोड़कर जा चुके थे और वह उन्हें बिसराकर मां और बेटे के साथ जिंदगी की एक नई इबारत लिखने एक नए सफर पर चल दिया था। वह नहीं जानता था जिन्हें वह छोड़ रहा है वो तो ज्यों के त्यों बालक में प्रवेश कर चुके थे। आज नदीम का बेटा शाहिद जवान है। जब साहित्य के सर्वोच्च पुरस्कार हेतु बेटे के नाम की घोषणा हुई तो उसकी आँखें खुशी से मुस्कुरा उठीं। गर्व से उसका सीना चौड़ा हो गया । वह जान चुका था उसने कुछ नहीं खोया, सब उसी के पास है। अंधेरा सिमट चुका था।
सरिता गर्ग ‘सरि’