औलाद की खातिर – मंगला श्रीवास्तव

क्या माँ जब देखो तब बस पत्रिका पंडितजी उपाय तंग आ गया हूँ मैं “समीर गुस्से से बोला और जाने लगा था।

नही बेटा बस इस बार और यह कर ले शायद कोई राह निकल आये तेरे भाग्य को जगा दे।

 माँ व पिताजी उसकी और कतार निगाहों से देखने लगे थे।

नही होगा मुझसे यह सब आज इस मंदिर जाओ यह पाठ करो यह दान करो।

जो होगा मेरे भाग्य में हो जायेगा पर यह सब ढकोसले मुझसे नही  होगे समझ गए आप दोनों । कहकर वह बाहर निकल गया था।

शाम को देर से लौटा माँ बोली चल खाना खा ले सुबह से भूखा है।

नही खाना  कहकर वह अंदर चला गया थोड़ी देर बाद माँ अंदर आई और रुआंसी सी  बोली बेटा हर माता पिता अपने जीवन में अपने बच्चों  की खुशी की उनके भविष्य की खातिर ही यह सब करते है।

इसी कारण हम यह कर रहे है ।जो तुझे ढकोसला लग रहा है ।क्योंकि हर माता पिता के लिए अपनी औलाद की खुशी और उनके खुशहाल जीवन से बड़ा सुख ही माता पिता के लिए सब कुछ है।

और यह बात आज नही कल जब तुम पिता बनोगे तब समझोगे की माता पिता की चिंता उनके बच्चों की हर खुशी और हर दुख से जुड़ी होती है बचपन से लेकर बड़े होने तक और उसके बाद भी जब तक की वह पूरे सफल नही हो जाते है

इस कहानी को भी पढ़ें: 

“इन्द्रधनुष के रँग ” – सीमा वर्मा




वह हरपल बस ईश्वर से उनके लिए प्रार्थना करते रहते है ।

तुम कुछ मत करो आज से मैं और तुम्हारे पिता सब करेंगे बस ,गुस्सा मत करो चलो उठो खाना खाओ ।

थोड़े दिनों बाद ही समीर की जॉब लग गई और अपनी कलीग शालू से शादी कर आज वह एक बेटे का पिता बन गया था। पर आज शालू और समीर दोनों बहुत दुखी थे बिट्टू तीन साल का हो गया था पर बोल नही पाता था।बहुत इलाज के बाद भी वह बोल नही पाया था।

आज वह दोनो बिट्टू की पत्रिका लेकर एक जाने माने पण्डिजी के पास गए  उन्होंने जब बिट्टू की पत्रिका देखी तो कहा इसका बुध ग्रह जो कि बोलने की समझने का कारक ग्रह है वह कमजोर है आपको उंसके उपाय करने होंगे व कुछ पूजा पाठ भी ।

पंडितजी आप जैसा कहेंगे हम वह करेंगे बस बिट्टू बोलने लगे जाये समीर बोला।

समीर को आज माँ की बात और उनकी हरपल उसके प्रति चिंता याद आ गई थी।वह आज समझ गया था की औलाद की हर खुशी और दुख से माता पिता कितने जुड़े होते  है।

मंगला श्रीवास्तव इंदौर

स्वरचित मौलिक रचना

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!